The Hindu Succession Act में धर्म परिवर्तन के कारण उत्तराधिकार का अधिकार नहीं रहना
Shadab Salim
31 July 2025 9:42 AM IST

किसी हिंदू व्यक्ति के उत्तराधिकार से वारिसों को बेदखल करने के कारण में एक कारण हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 26 के अंतर्गत धर्म परिवर्तन भी है। इस धारा की विशेषता यह है कि यह धर्म छोड़ने वाले उस हिंदू व्यक्ति को तो संपत्ति में अधिकार देती है जो स्वयं धर्म छोड़कर जाता है परंतु उसके बच्चों को उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता है।
इस धारा के अनुसार एक हिंदू दूसरे धर्म को अंगीकृत करने के कारण हिंदू नहीं रह जाता है। उसके ऐसे धर्म परिवर्तन करने के पश्चात उत्पन्न हुई संतान तथा उसके वंशज किसी भी हिंदू नातेदार की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करने के लिए निर्योग्य हो जाते हैं क्योंकि यह अधिनियम इस की धारा 2 के अनुसार केवल हिंदुओं पर लागू होता है और हिंदू कौन है इस संबंध में इस अधिनियम में स्पष्ट किया जा चुका है।
अब यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करने के कारण हिंदू नहीं रह गया है तो इस स्थिति में इस अधिनियम के अंतर्गत उसे उत्तराधिकार नहीं दिया जा सकता। हिंदू नहीं होने का अर्थ यह है कि हिंदू धर्म को त्याग कर कोई अन्य धर्म स्वीकार कर लेना।
इस अधिनियम के अंतर्गत जैन, बौद्ध, सिख, धर्म को हिंदू धर्म माना गया है। इन धर्मों के अनुयाई हिंदू होते हैं तथा उन पर यह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है। केवल मुसलमान, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्म को छोड़कर भारत की सीमा के अंतर्गत निवास करने वाला कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू होता है।
धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति स्वयं उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया गया है किंतु ऐसे धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति की संतान को हिंदू व्यक्ति की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करने से वंचित किया गया है। इसी प्रकार धर्म परिवर्तन से पूर्व उत्पन्न संतान को भी हिंदू रिश्तेदार की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करने से वंचित नहीं किया गया है।
यदि हिंदू धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म को अंगीकृत करने वाले व्यक्ति के वंशज उत्तराधिकार के खुलने के समय हिंदू ही थे तो उन्हें उत्तराधिकार प्राप्त करने के लिए निर्योग्य नहीं माना जाएगा।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 28 के अंतर्गत स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि किसी बीमारी से पीड़ित होने वाले किसी हिंदू व्यक्ति को संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त करने से बेदखल नहीं किया जाएगा। किसी समय भारत में यह प्रथा थी कि पागलपन और जड़ता से ग्रसित होने वाले व्यक्ति या फिर संन्यास लेने वाले व्यक्ति को उत्तराधिकार से वंचित किया जाता था।
विधवाओं का शीलभ्रष्ट होना भी उत्तराधिकार से वंचित किए जाने का एक प्रमुख कारण होता था परंतु इस धारा के अंतर्गत स्पष्ट उल्लेख कर दिया गया है कि किसी भी बीमारी के कारण किसी व्यक्ति को उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
भारत के समाज में अशिक्षा होने के कारण अनेक स्थानों पर विधवा स्त्रियों पर व्यभिचार के आरोप लगाकर उन्हें शीलभ्रष्ट करार देकर उत्तराधिकार से वंचित किया जाता था। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 एक क्रांतिकारी अधिनियम है। भारत की संसद द्वारा या एक क्रांतिकारी प्रयास है जो समाज की उत्तराधिकार संबंधित समस्त कुरीतियों का अंत करता है।
यह अधिनियम केवल इन तीन कारणों पर ही किसी व्यक्ति को संपत्ति से बेदखल करता है। इस कारण के अलावा कोई भी कारण किसी व्यक्ति को उत्तराधिकार प्राप्त करने से वंचित नहीं करेगा। जय लक्ष्मी अम्माल बनाम टीवी गणेश अय्यर ए आई आर 1972 मद्रास 357 के प्रकरण में कोर्ट के समक्ष यह प्रश्न प्रस्तुत किया गया है कि निर्वसीयती मृतक हिंदू की विधवा शीलभ्रष्ट हो जाने की वजह से उसके द्वारा छोड़ी गई संपत्ति को प्राप्त करने से वंचित की दी जानी चाहिए या नहीं?
कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया है कि विधवा का शीलभ्रष्ट होना ऐसी कोई निर्योग्यता नहीं है जिसके आधार पर उसे अपने मृत पति की संपदा को विरासत में प्राप्त करने से रोक दिया जाना चाहिए। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अयोग्यता संबंधी जो स्पष्ट प्रावधान है उनके अतिरिक्त अन्य कोई अयोग्यता उत्तराधिकार के मामले में अधिरोपित नहीं की जा सकती है। इस प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि किसी को नैतिक या चारित्रिक आधार पर भी उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता या विधि स्पष्ट न्याय और साम्य पर आधारित है।

