The Hindu Succession Act का अन्य कानूनों को Overlap करना
Shadab Salim
29 July 2025 9:49 AM IST

जब भी Legislature किसी Act को प्रस्तुत करती है तो यह अधिनियम किन विधियों को अध्यारोही करेगा इस संबंध में भी स्पष्ट उल्लेख करती है। इसी प्रकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अंतर्गत विधियों को अध्यारोही करने हेतु अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत प्रावधान किए गए है जिस से संबंधित विशेष बातें निम्न है-
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के पहले हिंदू पर्सनल लॉ के अंतर्गत उत्तराधिकार से संबंधित अनेक विधियां उपलब्ध थी। यह विधियां टीका, स्मृति, शास्त्र रीति रिवाजों, प्रथाओं के माध्यम से जन्म दी गई थी।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 उत्तराधिकार से संबंधित उन सभी विधियों को समाप्त कर देता है यदि वह विधियां इस अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध जाती हैं तो उन विधियों का कोई महत्व नहीं रहेगा।
यदि किसी बात के लिए इस अधिनियम के अंतर्गत प्रावधान कर दिए गए हैं तो उस हेतु किसी अन्य विधि की सहायता नहीं ली जाएगी। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम उन सभी विधियों का अतिक्रमण और अधिक्रान्त करता है उन पर अविभावी होता है।
यह अधिनियम का प्रभाव पूर्व हिंदू शास्त्रीय विधि के अधीन चलने वाली सभी विधियों को निरस्त करता है। वह सभी विधि, नियम तथा विनियम जो प्राचीन शास्त्रीय, स्मृतियों, टीका और निर्वचन के अधीन प्रचलित थी। उन सभी पर वर्तमान अधिनियम अध्यारोही प्रभाव रखता है। उत्तराधिकार के नियम जो हिंदुओं के संबंध में पहले लागू होते थे वह विभिन्न अधिनियम में समाविष्ट थे और इस प्रकार के विधान भी उपरोक्त परिस्थिति में निरस्त समझे जाएंगे।
केवल अयुक्तियुक्त रूढ़ि और प्रथाओं को ही इस अधिनियम के माध्यम से निरस्त नहीं किया गया है अपितु उन सब अधिनियमों को इस अधिनियम के माध्यम से निरस्त कर दिया गया है जो उत्तराधिकार के संबंध में लागू होते थे। जैसे हिंदू विधवा का पुनर्विवाह अधिनियम 1856, हिन्दू की संपत्ति का अंतरण अधिनियम 1916 इन सभी अधिनियम को समाप्त कर दिया गया है।
इस अधिनियम के माध्यम से जिन विषयों के संबंध में उपबंध कर लिया गया है उन विषयों के संबंध में पूर्व हिंदू विधि के शास्त्र का कथन, नियम, कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय एवं निर्वाचन, रूढ़ि या प्रथा जो पूर्व हिंदू विधि का अंश था उनको समाप्त कर दिया गया है।
इसलिए इस अधिनियम में जहां तक उपबंध कर दिए गए हो पूर्व हिंदू विधि के सभी विषय जिनके संबंध में इस अधिनियम में उपस्थित कर दिया गया है वे सभी पूर्व विषय प्रभावहीन कर दिए गए हैं।
हिंदू विधवा नारी के पुनर्विवाह करने पर उसे उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता-
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 के अंतर्गत हिंदू विधवा के पुनर्विवाह करने पर उसके उत्तराधिकार के हक को नियंत्रित किया गया था। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 उत्तराधिकार से संबंधित सभी विधियों को प्रभावहीन करती है। यह अधिनियम की धारा 4 उत्तराधिकार के संबंध में चलने वाली सभी विधियां प्रभावहीन कर देती है।
यदि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 के अंतर्गत किसी हिंदू नारी को पुनर्विवाह करने पर उत्तराधिकार प्राप्त नहीं होने का प्रावधान था तो ऐसे प्रावधान को इस उत्तराधिकार अधिनियम के माध्यम से प्रभावहीन कर दिया गया। इस अधिनियम की धारा 4 हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम की प्रभावशीलता निराकृत कर देती है।
प्राचीन विधि के अधीन एक निर्वसीयती मरने वाले पुरुष के अधीन समकालीन उत्तराधिकारी गण का केवल 1 पुत्र था और पुत्र एवं पूर्व मृत का पुत्र का एक पूर्व मृत पुत्र को हिंदू स्त्री का संपत्ति का अधिकार अधिनियम 1937 द्वारा बढ़ा दिया गया।
वर्तमान समय में उत्तराधिकार अधिनियम के अधीन एक विधवा समकालीन तौर पर अनुसूची में वर्ग एक में विनिर्दिष्ट किए गए एक पुत्र पुत्री और दूसरे उत्तराधिकारियों और धारा 9 के अनुसार सभी दूसरे उत्तराधिकारियों का अपवर्जन के साथ विरासत में प्राप्त करती है।
धारा 14 यह प्रावधान करती है कि एक हिंदू स्त्री द्वारा धारण की गई संपत्ति चाहे अधिनियम के प्रारंभ होने के पहले या बाद अर्जित की गई हो को उसके एक पूर्ण स्वामी की हैसियत से उसके द्वारा अभिधारित किया जाएगा और न कि एक परीसीमित किए गए स्वामी द्वारा अतः विधवा अत्यंतिक रूप से उसके हिस्से को ग्रहण करती है।
एक विधवा द्वारा पुनर्विवाह अपने पति से उसके द्वारा विरासत में प्राप्त की गई संपदा को अर्जित करने के लिए एक आधार हो जाता है। यद्यपि पुनर्विवाह विरासत संपदा के संदर्भ में उनकी अयोग्यता में से एक है किंतु इस अयोग्यता को कतिपय उत्तराधिकारियों द्वारा पद सीमित कर दिया गया है।
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 4 द्वारा स्पष्ट तौर पर निश्चित नहीं किया गया है बल्कि अधिनियम की धारा 4(1) ऐसी विधवा के मामले में पूर्वोत्तर अधिनियम की प्रवर्तनियता को निराकृत कर देती है।

