Transfer Of Property में लीज का समाप्त होना

Shadab Salim

25 Feb 2025 3:39 AM

  • Transfer Of Property में लीज का समाप्त होना

    Transfer Of Property Act, 1882 की धारा 111 किसी भी पट्टे के समाप्त होने के आधारों का वर्णन करती है। किसी भी पट्टे का पर्यवसान इन आधारों पर होता है। यह इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है इस धारा के अंतर्गत कुल 8 प्रकार के आधार प्रस्तुत किए गए हैं जो किसी पट्टे को समाप्त करने हेतु प्रस्तुत किए गए है। जहां रेंट कंट्रोल अधिनियम लागू होता है वहां इस धारा के प्रावधान लागू नहीं होते परंतु फिर भी इस धारा का अत्यधिक महत्व है तथा न्यायालय पट्टे के पर्यवसान के समय इन आधारों पर भी जांच कर सकता है। इस आलेख के अंतर्गत उन सभी आधारों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया जा रहा है।

    धारा 111 में कुल आठ प्रकारों का उल्लेख किया गया है जिनमें से किसी एक द्वारा पट्टे का पर्यवसान हो सकेगा। यब प्रकार पट्टे के पर्यवसान पर अन्तिम व्यवस्था प्रदान करते हैं। रेन्ट कंट्रोल अधिनियम के अन्तर्गत की गयी व्यवस्था इस अधिनियम में दी गयी व्यवस्था के समानान्तर चलती है। अतः इस धारा के उपबन्ध उन पर भी नहीं लागू होंगे। विभिन्न राज्यों के रेन्ट कन्ट्रोल अधिनियमों के द्वारा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 111 में उल्लिखित व्यवस्था को अतिक्रान्त कर दिया गया है। धारा 111 में वर्णित प्रावधान व्यापक है।

    पर्यवसान के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस धारा में वर्णित घटनाओं के घटित होने से पट्टे का स्वयमेव पर्यवसान नहीं हो जाता है। इससे Lessee के लिए खतरा अवश्य उत्पन्न हो जाता है कि उसका लीज़ जब्त हो जाएगा तथा अधिकार Lessor में निहित हो जाएगा, यदि Lessor ऐसा करने का निर्णय लेता है तो परन्तु इसमें कोई ऐसा उपबन्ध नहीं है जो Lessee को सक्षम बनाता हो कि यदि Lessor लीज़ की शर्तों का उल्लंघन करेगा तो वह पट्टे का पर्यवसान कर सकेगा।

    एक निश्चित कालावधि के लिए सृजित किए गये पट्टे का पर्यवसान केवल इस कारण नहीं हो सकेगा क्योंकि Lessor कालावधि के समापन से पूर्व अवैध ढंगों से लीज़ सम्पत्ति पर प्रवेश कर गया था। इस प्रकार प्रवेश से Lessee को अन्य अधिकार प्राप्त होंगे, किन्तु वह पट्टे का पर्यवसान नहीं कर सकेगा।

    अरजिस्ट्रीकृत दस्तावेज का पट्टे के साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता-

    एक अरजिस्ट्रीकृत लीज़ विलेख की स्वीकार्यता का यह एक मान्य सिद्धान्त हैं कि "यदि कोई लीज़ दस्तावेज रजिस्ट्रीकृत न होने के कारण साक्ष्य के में स्वीकार्य नहीं है तो उसमें उल्लिखित सभी शर्तें अस्वीकार्य होंगी जिसमें वह शर्त भी सम्मिलित होगी जिसमें Lessee द्वारा उस लीज़ सृजित करने के लिए Lessor की अनुमति का उल्लेख था। यदि अरजिस्ट्रीकृत लीज़ विलेख में नवीकरण हेतु कोई शर्त थी तो वह भी अमान्य होगी क्योंकि रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 17 (1) (घ) के अन्तरित रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज आवश्यक है साक्ष्य के रूप में स्वीकार किए जाने हेतु।

    एक प्रकरण में एक मकान मालिक ने अपने एक आवासीय परिसर को Lessee से खाली कराने हेतु प्रक्रिया प्रारम्भ किया। उक्त परिसर मकान मालिक एक आभूषण की दुकान खोलने हेतु चाहता था। इस प्रयोजन हेतु उसने दुकान चलाने के अपने अनुभव, वित्तीय सामर्थ्य तथा उक्त कारोबार को प्रारम्भ करने हेतु अपनी इच्छाशक्ति को साबित किया। सुप्रीम कोर्ट ने सुस्पष्ट किया कि वादी का मकान खाली कराने हेतु प्रयोजन अस्पष्ट था, अतः यह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं है तथा मकान खाली करने हेतु आदेश पारित नहीं हो सकेगा।

    स्थावर सम्पत्ति के पट्टे का पर्यवसान निम्नलिखित में से किसी भी एक के द्वारा हो सकेगा-

    समय बीतने से। {धारा 111 (क)}

    विनिर्दिष्ट घटना के घटने से। {धारा 111 (ख)}

    Lessor के हित की समाप्ति से। {धारा 111 (ग)}

    विलयन से। {धारा 111 (घ)}

    अभिव्यक्त समर्पण से। {धारा 111 (ङ)}

    विवक्षित समर्पण से। {धारा 111 (च)}

    जब्ती से। {धारा 111 (छ)}

    छोड़ने की सूचना से। {धारा 111 (ज)}

    समय बीतने या समय की समाप्ति से

    स्थावर सम्पत्ति के पट्टों में समय या कालावधि का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अनुसार ही पट्टे को अवधि, विस्तार, प्रारम्भ को तिथि एवं परिसम्पत्ति की तिथि इत्यादि का निश्चय होता है। यदि लीज़ विलेख में लीज़ की अवधि का विवरण स्पष्ट नहीं है तो उसका निर्धारण पक्षकारों की संविदा के आधार पर होगा, निर्धारित अवधि के लिए किया गया लीज़ अवधि की समाप्ति के साथ ही साथ समाप्त हो जाता है जब तक कि उनका नवीकरण न हो जाए।

    नवीकरण अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा के आधार पर हो सकेगा। यदि लीज़ विलेख में ही नवीकरण के उपबन्ध हैं तो लीज़ निर्धारित अवधि के समाप्त होने के बाद भी जारी रहता है या चालू रहता है। यदि Lessee लीज़ अवधि के समापन के पश्चात् भी सम्पत्ति पर काबिज रहता है एवं किराया देने का प्रस्ताव करता है या उसको निविदा करता है तो ऐसा लीज़ इच्छा जनित या यथेच्छ लीज़ हो सकेगा या मर्पणजात लीज़।

    यदि निर्धारित अवधि का लीज़ समय व्यतीत होने से समाप्त हो रहा है तो इसके अवसान के लिए किसी सूचना की आवश्यकता नहीं होगी। पर यदि Lessor चाहे तो वह नोटिस दे सकेगा। पट्टे के समापन की अन्तिम तिथि को Lessor स्वयं या उसके द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति बिना सूचना के भी सम्पत्ति में प्रवेश कर सकेगा पर यह आवश्यक है कि धारा 116 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत Lessee लीज़ सम्पत्ति का अतिधारण न कर रहा हो। धारा 111 (क) को धारा 116 के साथ पढ़ा जाना चाहिए।

    यदि Lessor ऐसी स्थिति में नोटिस देता है और वह नोटिस त्रुटिपूर्ण है तो भी Lessor सम्पत्ति पाने का अधिकारी होगा। नोटिस के त्रुटिपूर्ण होने मात्र से Lessor का सम्पत्ति का कब्जा पाने का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता और न ही उसे वंचित किया जा सकेगा सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने के अधिकार से।

    यदि पट्टे का अवसान लीज़ की अवधि के समाप्त होने के कारण हो रहा है तो Lessee का यह कर्तव्य होगा कि वह Lessor को संदत्त कर दे या उसके प्राधिकारी को Lessee अपने कब्जे को बनाये रखने के लिए धारा 114, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत उपचार की माँग नहीं कर सकेगा। साधारणतया निर्धारित अवधि का लीज़ समय के अवसान के साथ ही समाप्त होता है। समय के अवसान से पूर्व बेदखली एवं कब्जा हेतु वाद संस्थित करना काल पूर्व या असामाजिक होगा। फिर भी वाद को रद्द नहीं किया जा सकेगा। परन्तु इसके आधार पर Lessor के अधिकार की उद्घोषणा हो सकेगी तथा लीज़ की अवधि के समापन पर सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने का Lessor का अधिकार और भी अधिक पुख्ता हो जाएगा।

    विनिर्दिष्ट घटना के घटने से

    पट्टे के पक्षकारों का यह विकल्प है कि यदि वे चाहें तो लीज़ का अनुबन्धन किसी घटना के घटित होने की शर्त पर आश्रित कर सकते हैं। यदि उल्लिखित घटना घटित हो जाती है तो पट्टे का अवसान हो जाएगा। उदाहरणार्थ क अपनी सम्पत्ति का लीज़ ख को इस शर्त पर करता है कि यदि वह ग से विवाह नहीं करेगा तो पट्टे का अवसान हो जाएगा। ख, घ से विवाह कर लेता है। ख के पक्ष में सृजित लीज़ समाप्त हो जाएगा।

    इस खण्ड के अन्तर्गत पट्टे का संव्यवहार किसी भावी घटना पर आधारित रहता है और जैसे ही वह घटना घटित होती है लीज़ का अवसान हो जाता है। यदि लीज़ विलेख में यह उपबन्धित हो कि लीज़ 30 वर्ष की अवधि के लिए सृजित किया जा रहा है यदि Lessee तब तक जीवित रहा। यदि Lessee लीज़ की तिथि से 30 वर्ष तक जीवित रहता है तो पट्टे का अवसान समय की समाप्ति के द्वारा होगा, किन्तु यदि Lessee को मृत्यु पहले ही हो जाती है तो पट्टे का अवसान 30 वर्ष से पूर्व ही हो जाएगा

    यदि पट्टे का सृजन कब्जा बन्धकदार द्वारा किया गया है तो बन्धक के मोचन के साथ ही पट्टे का अवसान हो जाएगा केवल सांविधिक पट्टे को छोड़कर।

    श्रीनाथ के प्रकरण में 99 वर्ष की अवधि के लिए पट्टे का सृजन किया गया था। इस शर्त के साथ कि यदि कम्पनी का स्वेच्छया या अन्यथा विघटन हो जाता है तो पट्टे का पर्यवसान हो जाएगा। कम्पनी का कतिपय कारणों से विघटन हो गया, यह अभिनिर्णीत हुआ कि पट्टे का अवसान नहीं हुआ। इसी प्रकार इस शर्त के साथ 40 वर्ष हेतु लीज़ पर सम्पत्ति की दी गयी थी कि Lessee उक्त सम्पत्ति पर नमक के कारोबार के सिवाय कोई अन्य कारोबार नहीं करेगा अन्यथा लीज़ का अवसान हो जाएगा। यह अभिनिर्णीत हुआ कि खण्ड (ख) के अन्तर्गत लीज़ समाप्त नहीं होगा।

    यदि एक मालिक ने अपने सेवक को इस शर्त के साथ आवास पट्टे पर दिया है। कि जब तक वह सेवारत रहेगा लीज़ जारी रहेगा। यदि उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है या वह स्वयं नौकरी से त्यागपत्र दे देता है तो लीज़ समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार सृजित लीज़ धारा 111 (ख) से आच्छादित होगा। इसी प्रकार यदि लीज़ का सृजन करते समय Lessor ने Lessee से यह अपेक्षा की थी कि वह लीज़ सम्पत्ति के सम्बन्ध में एक विशिष्ट स्थिति बनाये रखेगा, जैसे बीमा की रकम अदा करता रहेगा, विभिन्न करों जैसे जलकर, गृहकर का भुगतान करता रहेगा, सम्पत्ति को उसी स्थिति में बनाये रखेगा जिस स्थिति में सम्पत्ति उसे दी जा रही है और यदि Lessee अधिरोपित तर्कों का उल्लंघन करता है तो पट्टे का पर्यवसान हो जाएगा, लीज़ को समाप्त करने के लिए पर्याप्त आधार होगा यदि शर्त के अनुपालन में Lessee विफल रहता है।

    Lessor के हित या शक्ति की समाप्ति से

    यदि लीज़ सम्पति से Lessor के हित का पर्यवसान किसी घटना से घटित होने पर होता है या उसका व्ययन करने की शक्ति का विस्तार किसी घटना के घटित होने तक ही है, वहाँ ऐसी घटना के घटित होने से। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यदि Lessor का लीज़ सम्पत्ति में हित सीमित है तो Lessor के हित के समाप्त होने पर लीज़ का अवसान हो जाएगा। यदि लीज़ के सृजन हेतु पति से संव्यवहार किया था तथा लीज़ उसके नाम में किया गया था और कुछ समय पश्चात् Lessee लीज़धृति Lessor को वापस कर देता है तो Lessee की पत्नी उस सम्पत्ति पर Lessee के रूप में विद्यमान नहीं रह सकेगी। लीज़धृति पर उसकी उपस्थिति अतिचारी के तुल्य होगी।

    यदि कोई किसी सम्पत्ति का प्रबन्ध पदेन कर रहा है और इस हैसियत से वह सम्पत्ति को पट्टे पर देता है तो वह लीज़ केवल इसलिए समाप्त नहीं होगा कि उसकी Lessor हैसियत एवं अधिकार जो प्रबन्धक के रूप में उसे प्राप्त थे, समाप्त हो गये थे। यदि प्रबन्धक ने सम्यक् रूप में लीज़ का सृजन किया है तो लीज़ उस अवधि तक जारी रहेगा जिसके लिए उसका सृजन हुआ है। प्रबन्धक Lessor के हटने से लीज़ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। बन्धक का मोचन किए जाने के उपरान्त बन्धकी के Lessee को लीज़ सम्पत्ति में बने रहने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उसका Lessor सीमित हित धारक था और उसका हित लीज़ सम्पत्ति से समाप्त हो चुका है।

    विलयन

    इस खण्ड के अनुसार उस दशा में, जबकि उस सम्पूर्ण सम्पत्ति में Lessee एवं Lessor के हित एक ही व्यक्ति में एक ही समय एक ही अधिकार के नाते निहित हो जाते हैं, तो पट्टे का अवसान हो जाता है। इस खण्ड की विवेचना करने पर प्रतीत होता है कि यह प्रकल्पित करता है कि :-

    Lessee एवं Lessor का हित मिल जाए:

    सम्पूर्ण सम्पत्ति के सम्बन्ध में;

    एक ही समय में

    एक ही व्यक्ति में तथा

    एक ही अधिकार के नाते।

    यह आवश्यक है इस सिद्धान्त के प्रवर्तन के लिए कि Lessor एवं Lessee के सम्पूर्ण हितों का आपस में विलयन हो जाए अर्थात् Lessee का लघु हित Lessor के विशाल हित में डूब जाए। सुप्रीम कोर्ट ने विलयन के प्रयोजनार्थ पूर्व में दिए गये निम्नलिखित निर्णयों को अनुमोदित किया है। विलयन का सिद्धान्त जिसे इस खण्ड में सांविधिक हैसियत दी गयी है इसी अधिनियम की धारा 109 के साथ पढ़ा जाना चाहिए अकेले नहीं।

    इस खण्ड के अन्तर्गत तब विलयन होगा, जबकि सम्पूर्ण लीज़ सम्पत्ति में Lessee एवं Lessor के हित एक ही व्यक्ति में एक ही समय एक ही अधिकार के नाते निहित हो जाते हैं। अतः यदि Lessee आसन्न उत्तरभोग के अधिकार प्राप्त कर लेता है Lessor से तथा कोई मध्यवर्ती नहीं होता है तो दोनों हित Lessee में निहित माने जायेंगे और यह विलयन की प्रक्रिया होगी। विलयन एक इच्छा का प्रश्न है तथा परिस्थितियों पर निर्भर करता है तथा न्यायालय विलयन के विरुद्ध अवधारणा करेगा जब यह एक पक्षकार के विरुद्ध प्रभावी हो रहा हो।

    विलयन को साधारणतया परिभाषित किया जाता है एक कम महत्व को वस्तु का अधिक महत्व या बड़ी वस्तु में समाहित हो जाना जिससे कम महत्व को वस्तु तो समाप्त हो जाती है, परन्तु अधिक महत्व की वस्तु में कोई वृद्धि नहीं होती है और यह कहा जाता है कि दोनों हितों का विलयन हो गया है।

    जगत चंदर के प्रकरण में विलयन के अन्तर्निहित सिद्धान्तों को स्पष्ट करते हुए कहा था-

    विधि में विलयन परिभाषित हैं एक ऐसी स्थिति के रूप में जहाँ दिर्घ सम्पदा एवं लघु सम्पदा का एकाकार हो जाता है तथा एक ही व्यक्ति में एक ही समय, एक हो अधिकार के नाते बिना किसी मध्यवर्ती सम्पदा के निहित हो जाते हैं। लघु सम्पदा का तुरन्त उन्मूलन हो जाता है या विधि के रूप में यदि कहा जाए तो "विलीन हो जाना" कहा जाएगा। अर्थात् डूब जाना या निमग्न हो जाना। अतः यदि कोई व्यक्ति वर्षों से Lessee है तथा सम्पत्ति का उत्तर भोग उस पर अवरोहित हो जाता है या उसके द्वारा क्रय कर लिया जाता है तो कालावधि का उत्तराधिकार में विलयन हो जाएगा। साम्या में भी निर्णय वही है जो विधि में है। इस संशोधन के साथ कि विधि में यह अपरिवर्तनीय एवं अनन्य है जबकि साम्या में यह विनियंत्रित को जाती हैं। उस पक्षकार की अभिव्यक्त या विवक्षित मंशा से जिसमें हित या सम्पदा एकीकृत होती है। विलयन इसी सिद्धान्त पर आधारित है कि दो सम्पदाएँ एक वृहत्तर तथा दूसरी लघु न तो एक साथ विद्यमान रह सकती है और न ही उन्हें एक साथ रहना चाहिए। यदि बड़ा हित में लघु सम्पदा साम्या में एवं यथावत विधि में एक साथ डूब जाये अथवा निमग्न हो जाए।

    इस खण्ड में उल्लिखित विलयन का सिद्धान्त वहाँ भी समान रूप में लागू होता है जहाँ विलयन विधि के प्रवर्तन द्वारा होता है।

    विलयन के लिए यह आवश्यक है कि Lessee एवं Lessor के हित एक हो व्यक्ति में, एक ही समय, एक हो अधिकार के नाते निहित हो जाएं। जहाँ Lessor, Lessee का हित क्रय कर लेता है तो पट्टे का समापन हो जाता है क्योंकि Lessor एवं पट्टे का एक हो व्यक्ति एक ही समय में दोनों नहीं हो सकता है किन्तु यदि अनेक Lesseeों में से एक Lessor के हित का केवल एक भाग क्रय करता है, तो पट्टे का पर्यवसान नहीं होगा। यदि एक संयुक्त परिवार द्वारा एक ही भूमि में दो हित अलग-अलग व्यक्तियों के नाम में धारित किए जा रहे हैं तो यह एक सारवान् स्थिति होगी यह साबित करने में कि पक्षकारों की मंशा दोनों हितों को पृथक्-पृथक् रखने को थी। लीज़कतां द्वारा Lessee के पक्ष में विक्रय हेतु करार सम्पत्ति में कोई हित सृजित नहीं करता है अतः धारा 111 (घ) के अन्तर्गत Lesseeी एवं स्वामित्व का विलयन नहीं होगा।

    समपहरण द्वारा

    यह खण्ड उपबन्धित करता है -

    समपहरण द्वारा अत्यंत वृहद आधार है। इस आधार पर पट्टे का पर्यवसान इस धारा का अत्यंत महत्वपूर्ण आधार है। इससे संबंधित विषय महत्वपूर्ण और बड़ा है इसलिए इस खंड पर विस्तार से व्याख्या इससे ठीक अगले आलेख भाग 41 में प्रस्तुत की जा रही है।

    छोड़ देने की सूचना

    इस खण्ड के अनुसार पट्टे का करने या पट्टे पर दी गयी सम्पत्ति को छोड़ देने या छोड़ देने के आशय को एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को सम्यक् रूप से दी गयी सूचना के अवसान पर पट्टे का पर्यवसान हो सकेगा। पट्टे के पर्यवसान का यह सबसे उत्तम तरीका है।

    नोटिस द्वारा पट्टे का पर्यवसान निम्नलिखित परिस्थितियों में सम्भव है-

    मियादी पट्टे

    शाश्वत पट्टे

    वर्षानुवर्षी पट्टे

    मासानुमासी पट्टे

    सूचना की अवधि के समापन के साथ ही साथ यदि Lessee सम्पत्ति का कब्जा Lessor को संदत्त नहीं करता है तो उसके विरुद्ध Lessor बेदखली का वाद चला सकेगा।

    निम्नलिखित परिस्थितियों में नोटिस की फोई आवश्यकता नहीं होगी-

    निश्चित अवधि के पट्टे।

    समनुजाभोगी विवक्षित पट्टे।

    इच्छा आभोगी पट्टे ।

    सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 106 उपबन्धित करती है कि अनधिक लीज़ँ अर्थात् वर्षानुवर्षी एवं मासानुमासी पट्टों की समाप्ति के लिए सूचना आवश्यक है। जहाँ अवधि निश्चित है तो कोई सूचना अपेक्षित नहीं है क्योंकि ऐसे पट्टे धारा 111 (क) के अन्तर्गत अवधि की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। स्थायी पट्टों का अन्तरण नहीं होता है अतः नोटिस को कोई उपादेयता ऐसे मामलों में नहीं होती है। वर्षानुवर्षी पट्टे छः मास को सूचना एवं मासानुमासी पट्टे 15 दिन की सूचनोपरान्त समाप्त हो जाते हैं।

    यदि छोड़ देने हेतु नोटिस धारा 111 (ज) के अन्तर्गत दे दी गयी हैं तो धारा 111 (छ) के अन्तर्गत नोटिस का दिया जाना समपहरण के आधार पर आवश्यक नहीं होगा। पर यदि Lessor अपेक्षित नोटिस की तामील धारा 111 (छ) सपठित धारा 114 (क) के अन्तर्गत नहीं करता है तो पट्टे का पर्यवसान नहीं होगा, अपितु लीज़ जारी रहेगा।

    अर्जुन लाल बनाम गिरीश चन्द्र के प्रकरण में Lessor भूस्वामी एवं Lessee के बीच लीज़ सम्पत्ति को Lessee के पक्ष में विक्रय करने हेतु करार इस शर्त पर हुआ कि Lessee विक्रय रकम का भुगतान समान किश्तों में करेगा और यदि वह भुगतान करने में विफल रहता है तो करार निरस्त हो जाएगा। Lessee ने जहां तक कि प्रथम किश्त का भी भुगतान नहीं किया। अतः Lessor ने एक मास की नोटिस दिए बिना ही लीज़ सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने हेतु वाद संस्थित कर दिया। लीज़ अभिनिर्णीत हुआ कि करार के निरस्त होने के उपरान्त यह नहीं कहा जा सकेगा कि Lessee अपीलार्थी अपनी मूल स्थिति पर पुनः वापस लौटा अर्थात् वह Lessee बना रहा। अतः Lessor सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत ही नोटिस दिए बिना उसकी बेदखली हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।

    एक अन्य प्रकरण में एक शेड पट्टे पर दिया गया पर शेड के नीचे की भूमि पट्टे पर नहीं दी गयी। कुछ समय के उपयोग के पश्चात् शेड नष्ट हो गया तथा Lessee ने उसका पुनः निर्माण करा कर उपयोग करने लगा। इस प्रकार के प्रकरण में नोटिस को तामील करना अपेक्षित नहीं है क्योंकि लीज़ की विषय वस्तु नष्ट हो चुकी थी और उसी के साथ ही पट्टे का भी पर्यवसान हो गया था।

    वाद संस्थित करने का Lessor का अधिकार-

    यह अधिकार Lessor का एक महत्वपूर्ण अधिकार है। Lessee को बेदखल करने के लिए Lessor विधि के अनुसार प्राधिकृत है। यह भी वाद संस्थित करने के लिए प्राधिकृत होगा जबकि उसने Lessee के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की थी जब वह उसके संज्ञान में लीज़ सम्पत्ति पर अनधिकृत निर्माण किया। अनधिकृत निर्माण के दौरान मौन रहना या सक्रिय कार्य न करना, Lessee को बेदखल करने हेतु वाद संस्थित करने के उसके अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है। Lessor का यह कृत्य उसके विरुद्ध (Lessor के) विबन्धन के रूप में प्रभावी नहीं होगा।

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