किरायेदारी की अवधि : राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 22-C
Himanshu Mishra
9 April 2025 12:43 PM

राजस्थान किराया नियंत्रण (संशोधन) अधिनियम, 2017 के लागू होने के बाद, राज्य में किरायेदारी (Tenancy) से संबंधित कानूनों में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। इन्हीं बदलावों में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है – धारा 22-C, जो यह निर्धारित करती है कि किरायेदारी की अवधि कितनी होगी, उसे कैसे बढ़ाया जा सकता है, और अगर निर्धारित अवधि पूरी हो जाए तो आगे क्या होगा।
इससे पहले हमने धारा 22-A और धारा 22-B को समझा था, जिनमें Rent Authority की नियुक्ति और लिखित किरायेदारी अनुबंध (Tenancy Agreement) को अनिवार्य किया गया है। इन्हीं आधारों पर धारा 22-C भी काम करती है।
धारा 22-C(1): किरायेदारी की अवधि आपसी सहमति से तय होगी (Tenancy Period to be decided mutually)
धारा 22-C की पहली उपधारा यह स्पष्ट करती है कि 2017 के संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद की सभी किरायेदारियाँ (Tenancies) उतनी अवधि के लिए होंगी जितनी अवधि पर मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) आपस में सहमत होंगे। यह अवधि लिखित किरायेदारी अनुबंध (Tenancy Agreement) में स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए।
इसका अर्थ है कि अब कोई भी किराया मौखिक रूप से तय नहीं किया जा सकता और न ही बिना किसी तय अवधि के किरायेदारी दी जा सकती है। कानून दोनों पक्षों को यह आज़ादी देता है कि वे एक-दूसरे की ज़रूरतों और सहूलियत के अनुसार किरायेदारी की अवधि तय करें – चाहे वह 11 महीने हो, 2 साल हो या 5 साल।
लेकिन यह आज़ादी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है। धारा 22-B के अनुसार, हर किरायेदारी अनुबंध को लिखित रूप में बनाना अनिवार्य है और उसका विवरण Schedule-D के माध्यम से Rent Authority को देना होता है।
उदाहरण 1: मान लीजिए A जयपुर में एक फ्लैट का मालिक है और B नाम का युवक वहाँ 18 महीनों के लिए किराए पर रहना चाहता है। A और B मिलकर एक किरायेदारी अनुबंध बनाते हैं जिसमें 18 महीने की अवधि लिखी जाती है। वे दोनों मिलकर Schedule-D भरकर Rent Authority के पास जमा करते हैं। यह अनुबंध कानूनन वैध होगा और धारा 22-C(1) के अंतर्गत मान्य माना जाएगा।
धारा 22-C(2): किरायेदारी की अवधि बढ़ाने या नवीनीकरण (Renewal) का प्रावधान (Renewal or Extension of Tenancy)
यह उपधारा किरायेदार को यह अधिकार देती है कि वह किरायेदारी की अवधि समाप्त होने से पहले मकान मालिक से उसका नवीनीकरण (Renewal) या विस्तार (Extension) करने का अनुरोध कर सकता है। यह अनुरोध उसी अवधि में किया जाना चाहिए जो अनुबंध में तय की गई हो।
हालाँकि, यह ज़रूरी नहीं कि मकान मालिक इस अनुरोध को माने। अगर मकान मालिक सहमत होता है, तो दोनों को मिलकर एक नया किरायेदारी अनुबंध लिखित रूप में तैयार करना होगा और नए शर्तों व नियमों पर सहमति बनानी होगी।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह नया अनुबंध भी धारा 22-B के तहत Rent Authority को Schedule-D के ज़रिए जमा करना होगा।
उदाहरण 2: मान लीजिए C एक छात्र है जो D के मकान में एक साल के लिए किराए पर रह रहा है। दस महीनों बाद, C चाहता है कि वह छह महीने और वहाँ रहे। वह D से अनुरोध करता है। D सहमत हो जाता है और दोनों मिलकर नया अनुबंध बनाते हैं, जिसमें 6 महीने की नई अवधि होती है। वे दोनों उसे Rent Authority को जमा कर देते हैं। यह विस्तार अब पूरी तरह से कानूनी है।
धारा 22-C(3): किरायेदारी की अवधि समाप्त होने के बाद भी मकान खाली नहीं किया गया तो क्या होगा (What Happens If the Tenant Does Not Vacate After Tenancy Ends)
यह उपधारा एक व्यावहारिक समस्या को हल करती है – अगर किरायेदारी की तय अवधि पूरी हो जाती है, लेकिन किरायेदार मकान खाली नहीं करता, और कोई नया अनुबंध भी नहीं किया गया, तो क्या होगा?
ऐसी स्थिति में, कानून कहता है कि उस किरायेदारी को महीने-दर-महीने (Month-to-Month) आधार पर अधिकतम छह महीने तक वैध माना जाएगा। इस दौरान उसी किरायेदारी अनुबंध की शर्तें लागू रहेंगी। लेकिन छह महीने के बाद, अगर कोई नया अनुबंध नहीं होता, तो किरायेदारी स्वतः समाप्त (Deemed to Have Expired) मानी जाएगी।
यह प्रावधान मकान मालिक को यह अधिकार देता है कि अगर किरायेदार बिना अनुमति ज़्यादा समय तक ठहरा है, तो वह छह महीने के बाद उसे कानूनन हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सके।
उदाहरण 3: मान लीजिए E तीन साल के लिए F से एक दुकान किराए पर लेता है। तीन साल पूरे होने पर कोई नया अनुबंध नहीं होता, लेकिन E दुकान खाली नहीं करता। ऐसी स्थिति में, उसकी किरायेदारी महीने-दर-महीने आधार पर अगले 6 महीनों तक मान्य मानी जाएगी, और फिर स्वतः समाप्त हो जाएगी।
धारा 22-C का व्यावहारिक महत्व (Practical Importance of Section 22-C)
धारा 22-C में जो भी प्रावधान हैं, वे मकान मालिक और किरायेदार – दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। पहले के समय में अधिकतर किरायेदारी मौखिक होती थी और दस्तावेज़ीकरण नहीं होता था, जिससे विवाद होते थे। कोई तय अवधि नहीं होती थी, और किरायेदार वर्षों तक बिना लिखित अनुबंध के रह सकते थे। मकान मालिकों को उन्हें हटाने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया अपनानी पड़ती थी।
अब यह धारा कहती है कि –
• हर किरायेदारी की एक तय अवधि होगी।
• किरायेदार अगर रहना चाहता है तो समय रहते नया अनुबंध कराना होगा।
• यदि अनुबंध समाप्त हो गया है और किरायेदार अभी भी ठहरा है, तो उसे छह महीने की मोहलत मिलेगी, लेकिन उसके बाद नहीं।
इसके साथ-साथ, Rent Authority के पास सभी किरायेदारी का रिकॉर्ड होना ज़रूरी है, जैसा कि धारा 22-B(4) और 22-B(6) में कहा गया है।
धारा 22-A (Rent Authority की नियुक्ति), धारा 22-B (लिखित किरायेदारी अनुबंध की अनिवार्यता), और धारा 22-C (किरायेदारी की अवधि) – मिलकर एक सशक्त और पारदर्शी व्यवस्था बनाते हैं।
• इससे किरायेदारों को यह भरोसा मिलता है कि उन्हें बिना समय दिए निकाला नहीं जा सकता।
• मकान मालिकों को यह सुविधा मिलती है कि कोई भी अनधिकृत रूप से उनका मकान कब्ज़ा न कर सके।
• विवादों की संभावना कम हो जाती है और अदालतों पर बोझ घटता है।
इसलिए राजस्थान में मकान मालिक और किरायेदारों को चाहिए कि वे हमेशा लिखित अनुबंध करें, उसे Rent Authority में रजिस्टर्ड करवाएँ, और अनुबंध की समाप्ति तिथि पर ध्यान रखें।