स्वराज अभियान बनाम भारत संघ: सूखा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

Himanshu Mishra

30 Oct 2024 5:34 PM IST

  • स्वराज अभियान बनाम भारत संघ: सूखा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

    स्वराज अभियान बनाम भारत संघ के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सूखा प्रबंधन की चुनौतियों और इससे जुड़े संवैधानिक (Constitutional) और प्रशासनिक (Administrative) प्रश्नों पर गंभीर विचार किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act, 2005) के प्रावधानों और अनुच्छेद 21 व 32 की भूमिका पर जोर दिया। यह मामला इस बात पर केंद्रित था कि राज्य और केंद्र सरकारें कैसे प्रभावित नागरिकों के जीवन और गरिमा (Dignity) की रक्षा के लिए अपने दायित्वों का पालन करें।

    आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और उसका कार्यान्वयन (Disaster Management Act, 2005 and its Implementation)

    कोर्ट ने पाया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, जो जोखिम मूल्यांकन (Risk Assessment), निवारण (Mitigation), और राहत उपायों की रूपरेखा तैयार करता है, ठीक से लागू नहीं किया गया है। अधिनियम के तहत, आपदा प्रबंधन के लिए राज्य और केंद्र दोनों की जिम्मेदारी है।

    अधिनियम के अनुसार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority, NDMA) का गठन किया जाना था ताकि आपदा से पहले ही एहतियाती कदम उठाए जा सकें। कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि अधिनियम के लागू होने के 10 साल बाद भी राष्ट्रीय योजना (National Plan) नहीं बनाई गई है, जो आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक है।

    न्यायिक हस्तक्षेप और जनहित याचिका (Judicial Oversight and Public Interest Litigation)

    कोर्ट ने कहा कि, भले ही सूखे की घोषणा एक प्रशासनिक (Executive) काम है, लेकिन अनुच्छेद 21 के तहत, सरकार की निष्क्रियता (Inaction) से संकट पैदा होने पर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सूखे की घोषणा को राजनीतिक विफलता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह प्रशासन का कर्तव्य है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शासन में देरी से राहत न मिलने पर नागरिकों के जीवन के अधिकार (Right to Life) और गरिमा का उल्लंघन होता है।

    महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख (Critical Judgements Cited)

    इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया, जिनसे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर प्रकाश डाला गया:

    • शीला बारसे बनाम भारत संघ (1988): इसमें कहा गया कि जनहित याचिकाएं (Public Interest Litigation, PIL) सुप्रीम कोर्ट को उन कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए सक्रिय होने का अवसर देती हैं, जो गरीबी या अज्ञानता के कारण अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाते।

    • गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ (2015): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के कल्याण की रक्षा के लिए सक्रिय रहे और संकट के समय उनकी सहायता करे।

    • सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस माइकल किर्बी के विचारों का भी उल्लेख किया, जिन्होंने कहा था कि जहां सरकारें निष्क्रिय रहती हैं, वहां सुप्रीम कोर्ट को सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना जरूरी हो जाता है।

    संघवाद और प्रशासनिक जिम्मेदारी (Federalism and Governance)

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर विचार किया कि आपदा प्रबंधन मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी है, लेकिन केंद्र सरकार भी मूकदर्शक नहीं बन सकती।

    अदालत ने बिहार और गुजरात जैसे राज्यों की “शुतुरमुर्ग जैसी मानसिकता” (Ostrich-like Attitude) की आलोचना की, जिन्होंने सूखे की वास्तविकता को स्वीकारने में देर की। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सूखा केवल एक जिले या गांव तक सीमित हो सकता है, और सरकारों को जरूरत के अनुसार क्षेत्रीय स्तर पर भी कदम उठाने चाहिए।

    जोखिम मूल्यांकन और प्रबंधन दिशानिर्देश (Risk Assessment and Management Guidelines)

    इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने ड्रॉट मैनेजमेंट मैन्युअल (Manual for Drought Management, 2009) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशानिर्देश (National Disaster Management Guidelines, 2010) का हवाला दिया।

    इन दस्तावेजों के अनुसार, सूखे की निगरानी के लिए निम्नलिखित चार मानकों का प्रयोग किया जाना चाहिए:

    • वर्षा की कमी (Rainfall Deficiency)

    • बुवाई और फसल की स्थिति (Sowing and Crop Conditions)

    • सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक (Normalized Difference Vegetation Index, NDVI)

    • नमी पर्याप्तता सूचकांक (Moisture Adequacy Index, MAI)

    सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की आलोचना की, जिसने पारंपरिक अनावारी प्रणाली (Annewari System) का पालन किया, जबकि केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों ने वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने का सुझाव दिया था। अदालत ने सरकार से अनुरोध किया कि वह सूखे की घोषणा के मानकों में एकरूपता लाए।

    न्यायिक निर्देश और राहत उपाय (Judicial Directions and Relief Measures)

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावित राज्यों को निर्देश दिया कि वे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत रोजगार और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत खाद्यान्न वितरण सुनिश्चित करें।

    कोर्ट ने बच्चों के लिए मिड-डे मील योजना (Mid-Day Meal Scheme) के तहत भोजन और पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था पर जोर दिया। साथ ही, पीने के पानी की आपूर्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आदेश दिया।

    स्वराज अभियान बनाम भारत संघ का यह निर्णय सरकारों को अपने संवैधानिक और प्रशासनिक दायित्वों का पालन करने की स्पष्ट रूप से याद दिलाता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर सूखा प्रबंधन और समय पर राहत देने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस फैसले में बताया गया कि जब सरकार की निष्क्रियता जनता के जीवन और गरिमा को प्रभावित करती है, तो सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।

    यह निर्णय एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों की याद दिला सकता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

    Next Story