Transfer Of Property में लीज का सरेंडर करना
Shadab Salim
25 Feb 2025 3:44 AM

इस एक्ट की धारा धारा 111 (ङ) लीज़ सरेंडर के बारे में प्रावधान करती है। अभिव्यक्त सरेंडर द्वारा अर्थात् उस दशा में जबकि Lessee के अधीन अपना हित पारस्परिक करार द्वारा Lessor के प्रति छोड़ देता है, पट्टे का अवसान हो जाता है। एक वैध एवं आबद्धकारी सरेंडर के लिए लीज़ सदैव आवश्यक नहीं है कि Lessee लीज़ सम्पत्ति का कब्जा Lessor को सौंपे। कमला बाई बनाम मांगीलाल के वाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए अभिप्रेक्षण से यह सुस्पष्ट है जो इस प्रकार है:
'अतः यह स्पष्ट है कि जब पक्षकार Lesseeों का सरेंडर करता है तथा उसे एक नवीन व्यवस्था से प्रतिस्थापित करता है तो केवल इसलिए क्योंकि सम्पत्ति का भौतिक कब्जा नहीं सौंपा गया था पट्टे का पर्यवसान नहीं होगा, महत्वपूर्ण नहीं है। प्रकटत वर्तमान प्रकरण में आपसी करार के द्वारा भी Lesseeी का समापन हुआ था, तथा पंचाट द्वारा जो कुछ करने का प्रयत्न किया गया वह मात्र एक व्यवस्था की धारण एवं उपभोग हेतु क्षतिपूर्ति के भुगतान के लिए। अतः न तो पुरानो Lesseeी जारी रहो और न ही नवीन Lesseeी का सृजन हुआ। नवीन व्यवस्था का यह प्रतिस्थापन तथा पुरातन का पर्यवसान स्पष्टतः प्रकट करता है कि Lessee ने अपने लीज़धिकार का सरेंडर कर दिया है। सम्पत्ति का भौतिक कब्जा प्रदान नहीं किया गया है इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकेगा कि सरेंडर द्वारा पट्टे का अवसान नहीं हुआ।
लीज़ सम्पत्ति का भौतिक कब्जा Lessee द्वारा वापस Lessor पर आसन्न उत्तरभोगी हित धारक को दिया जाता है या नहीं दोनों ही परिस्थितियों में Lessee का हित लीज़ सम्पत्ति से समाप्त हो जाता है। Lessor द्वारा Lessee के कृत्य की स्वीकारोक्ति का वही प्रभाव होता है जो आपसी सहमति से संविदा का होता है। अतः Lessee तब तक सरेंडर नहीं कर सकेगा जब तक कि सम्पत्ति में हित उसमें निहित न हो तथा सरेंडर उस व्यक्ति को न हो जिसमें उत्तरभोगी हित निहित हो। लीज़ सम्पत्ति के कब्जे की स्वीकारोक्ति हो, कब्जे का भौतिक रूप में ग्रहण आवश्यक नहीं है, सांकेतिक कब्जे की स्वीकारोक्ति भी पर्याप्त है। यह स्थिति अस्तित्व में आयी या नहीं यह एक तथ्य विषयक प्रश्न है।
यह खण्ड केवल उन पट्टे के मामले में प्रवर्तित होगा जो सरेंडर की कोटि में आते हैं। यदि एक पट्टे का सृजन एक निश्चित कालावधि के लिए हुआ है तथा लीज़ विलेख में स्पष्टतः प्रतिषेधित करते हुए यह उल्लिखित हैं कि Lessee लीज़ अवधि के समापन से पूर्व उसका सरेंडर नहीं कर सकेगा, तो ऐसी स्थिति में पट्टे का पर्यवसान इस प्रक्रिया द्वारा नहीं हो सकेगा।
सरेंडर के मामले में संव्यवहार के सार एवं तत्व पर ध्यान देना उपयुक्त होता है। औपचारिक पुनः अन्तरण विलेख की आवश्यकता नहीं होती है इसी प्रकार किसी विशिष्ट प्रकार के शब्दों का प्रयोग भी वैध सरेंडर हेतु आवश्यक नहीं होता है। ऐसे में प्रश्न केवल शुद्ध आशय का होता है। अतः यदि Lessee ने एक राजीनामा यदि निम्नलिखित शब्दों में निष्पादित किया
"वर्तमान समय तक मैं इस भूमि पर खेती कर रहा था पर जमीन इनामदार की है। इस पर मेरा कोई हक नहीं है और इनामदार इसे किसी भी व्यक्ति को जिस पर वह प्रसन्न हो, खेतो के लिए दे सकेगा।"
इसे एक वैध सरेंडर माना गया। किन्तु कई वर्षों से किराया का भुगतान न करने मात्र से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकेगा कि समर्पण के आशय के अभाव में पट्टे का सरेंडर हो गया है। इसी प्रकार यदि पट्टे पर दिया गया भवन मरम्मत के बिना विनष्ट हो रहा हो तथा उसका पुनर्निर्माण न हो रहा हो तो यह निश्चयतः इस बात का सबूत नहीं है कि Lessee का आशय उक्त भवन का परित्याग करना है। यदि सरकार भूमि अधिग्रहण आदेश के अन्तर्गत सम्पत्ति का कब्जा ले लेती है और यह कब्जा Lessor एवं Lessee दोनों से ले लिया जाता है तो यह अधिग्रहण सरेंडर नहीं होगा। इससे पट्टे का पर्यवसान नहीं होगा।
सरेंडर में Lessor एवं Lessee दोनों का इसके लिए सहमत होना आवश्यक होता है तथा Lessee का लीज़ सम्पत्ति में हित Lessor को प्राप्त होता है एवं Lessor का उक्त सम्पत्ति में हित परिपूर्ण हो जाता है। यदि Lessee ने Lessor को इस आशय की नोटिस दे दी हो कि अमुक तिथि को वह लीज़ सम्पत्ति Lessor को सौंप देगा पर Lessor उक्त तिथि के बाद भी Lessee को सम्पत्ति में बने रहने देता है, सम्पत्ति का कब्जा नहीं लेता है, तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि मूल लीज़ विद्यमान है, वह समाप्त नहीं हुआ है।"
एक वैध सरेंडर तभी अस्तित्व में आएगा जबकि सरेंडर Lessor एवं Lessee की आपसी सहमति से हो। यदि Lessee सरेंडर की सूचना Lessor को देता है एवं Lessor उस नोटिस को चुपचाप रख लेता है तो यह नहीं माना जाएगा कि Lessor ने सरेंडर हेतु अपनी सहमति दे दी।
सरेंडर सामान्यतया Lessor के हो पक्ष में होता है किन्तु यदि लीज़ कर्ता ने लीज़ सम्पत्ति का बन्धक कर दिया है साथ ही साथ बन्धकदार को उक्त सम्पत्ति का किराया वसूलने का भी अधिकार अन्तरित कर दिया है एवं Lessee, लीज़ सम्पत्ति Lessor को संदत करता है तो यह सरेंडर वैध नहीं होगा यदि Lessor के पक्ष में अन्तरित करने हेतु बन्धकदार से सहमति नहीं ली गयी है। Lessee, बन्धकदार को सम्पत्ति का किराया अदा करने के दायित्वाधीन होगा यदि सम्पत्ति का लीज़ संयुक्त Lesseeों के पक्ष में हुआ है तो सरेंडर तभी वैध होगा जब सम्पूर्ण लीज़ सम्पत्ति का सभी संयुक्त Lesseeों द्वारा सरेंडर किया गया हो। यद्यपि एक अन्य बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने प्रतिकूल मत अभिव्यक्त किया है।
न्यायालय के अनुसार केवल Lessee भी अपने हित का अभ्य कर सकेगा और ऐसा होने पर Lessor उस हिस्से के विभाजन की मांग कर सकेगा कभी-कभी यह भी प्रश्न उठता है कि क्या Lessee लीज़ सम्पत्ति के एक भाग का सरेंडर कर किराये में कमी की मांग कर सकेगा। ए० एस० वेंकटास्वामी बनाम एस० राजन के मामले में मद्रास हाईकोर्ट में अभिनिर्णीत किया है कि Lessee लीज़ सम्पत्ति के एक अंश का सरेंडर कर, Lessee बना रहे तथा किराया में कमी की मांग करे।
विवक्षित सरेंडर द्वारा
यदि Lessee का लीज़ सम्पत्ति में हित विधि के प्रवर्तन द्वारा समाप्त होता है तथा सम्पत्ति Lessee से वापस ले ली जाती है तो यह स्थिति विवक्षित सरेंडर का परिचायक होगी। विधि के प्रवर्तन से नवीन पट्टे का सृजन हो सकेगा Lessee को लीज़ सम्पत्ति में अपना लीज़ Lessor को वापस करना होगा। यदि लीज़कतां लीज़ सम्म का नवीन लीज़ भी उसी पढ़ेदार के पक्ष में करता है तो भी पूर्ववत लीज़ का विवक्षित समर्पण हुआ माना जाएगा। यदि Lessee लीज़ सम्पत्ति का त्याग कर देता है तथा Lessor उसका कब्जा से लेता है। तो भी विवक्षित सरेंडर माना जाएगा। विवक्षित समर्पण का निष्कर्ष पक्षकारों के आचरण से भी निकाला जा सकेगा।
पट्टे का समापन धारा 111 (च) के अन्तर्गत विवक्षित सरेंडर द्वारा होता है। विवक्षित सरेंडर मामले के तथ्यों के आधार पर सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके लिए सम्पत्ति का कब्जा प्रदत्त होना आवश्यक नहीं है।
पट्टे के विवक्षित सरेंडर को विनियमित करने वाला सिद्धान्त यह है कि जब एक विषयवस्तु के सम्बन्ध में दो पक्षकारों के बीच कोई सम्बन्ध होता है तथा उसी विषयवस्तु को लेकर एक सम्बन्ध स्थापित होता है और दोनों सम्बन्ध एक साथ अस्तित्व में नहीं रह सकते हैं, क्योंकि दोनों सम्बन्ध परस्पर विरोधी एवं असंगत होते हैं तो पाश्चिक सम्बन्ध को प्रभावी बनाने हेतु यह माना जाएगा कि पूर्ववर्ती सम्बन्ध समाप्त हो गया है।
पूर्व पट्टे की निरन्तरता के दौरान नवीन पट्टे को संस्वीकृति पूर्व पट्टे के विवक्षित सरेंडर के तुल्य है। इसके कारण के सम्बन्ध में पार्क बी० नेलियोस बनाम रोड के वाफ में इस प्रकार अपना मत अभिव्यक्त किया था:-
"यदि एक अवधि का Lessee अपने Lessee से एक नया लीज़ स्वीकार करता है तो उसे यह कहने से रोक दिया जाएगा कि उसके Lessor को नवीन लीज़ सृजित करने का अधिकार नहीं था। चूंकि Lessor तब तक ऐसा नहीं कर सकता था जब तक कि पूर्वक पट्टे का सरेंडर न हुआ हो, तो विधि के अनुसार नवीन पट्टे की संस्वीकृति, अपने आप में ही पूर्विक पट्टे का सरेंडर होगा।"
पूर्ववर्ती सम्बन्ध में केवल परिवर्तन, सुधार अथवा पूर्व सम्बन्ध का नष्ट किया जाना भी स्वयमेव विवक्षित सरेंडर नहीं होगा। इसका निर्धारण नवीन सम्बन्ध की शर्तों से किया जाएगा। पुराने सम्बन्ध के सापेक्ष और तब निष्कर्ष निकाला जाएगा कि पुराना सम्बन्ध विवक्षा द्वारा समाप्त हो गया।
यदि Lessor लीज़ सम्पत्ति का पुनः लीज़ एक अन्य व्यक्ति के पक्ष में Lessee की सहमति से कर देता है तथा Lessee को निर्देश देता है कि वह सम्पत्ति का कब्जा नवीन Lessee को सौंप दे या अपने उप-Lesseeों से कह दे कि ये किराया का भुगतान सीधे Lessor को करें तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि पूर्ववर्ती लीज़ का विवक्षित सरेंडर द्वारा अवसान हो गया है। टी० के० लठिका बनाम सेठ कर्सनदास के वाद में एक पिता ने अपनी लीज़जनित सम्पत्ति अपनी ही पुत्री के पक्ष में दान द्वारा अन्तरित कर किया। पुत्री तथा Lessee के बीच एक नया करार हुआ जिसके आधार पर किरायेदार ने किराये में वृद्धि करने का वचन दिया। पुत्री ने दान को तिथि से एक वर्ष के अधिस्थगन कर्ता को प्रतीक्षा किए बिना उक्त भूमि पर निर्माण कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। प्रश्न यह था कि क्या सम्पत्ति विवक्षित सरेंडर द्वारा पुत्री की हो गयी है जिससे वह उस पर निर्माण कार्य करा सके।
तथ्यों का अवलोकन करने के उपरान्त न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया जो उचित हैं, इस मामले में विवक्षित सरेंडर नहीं है क्योंकि जिन परिस्थितियों के आधार पर विवक्षित सरेंडर का अनुमान लगाया जा रहा है अर्थात् सम्पत्ति का पूर्व में स्वामी कोई और था तथा वर्तमान में कोई और है एवं पूर्व में किराया कम था वर्तमान में किराये में वृद्धि हुई हैं, वे ऐसा निष्कर्ष निकालने पर्याप्त नहीं हैं।
यदि लीज़ सम्पत्ति के एक अंश मात्र का समर्पण किया गया है तो इसके आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाएगा कि सम्पूर्ण Lesseeी का विवक्षित समर्पण हो गया है। कृष्ण कुमार बनाम ग्रिन्डलोज बैंक के बाद में पढ़ेदारों ने चार फ्लैट किराये पर लिए थे। उसमें से दो का उन्होंने बाद में सरेंडर कर दिया। यह अभिनिर्णीत हुआ कि इन दो फ्लैटों के सरेंडर से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाएगा कि पूर्ववर्ती Lesseeी समाप्त हो गयी है और इससे नवीन Lesseeी का भी सृजन नहीं हुआ है।
इन्द्रा शर्मा बनाम गोपाल दास के मामले में Lessee की मृत्यु के उपरान्त उसका टेनेन्सी अधिकार उसके उत्तराधिकारियों को मिला जिन्होंने उक्त अधिकार को सहस्वामी के रूप में धारण किया न कि संयुक्त स्वामी के रूप में अभिधार प्रपत्र में कतिपय उत्तराधिकारियों के नामों का उल्लेख भी नहीं हुआ था और न ही उन लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि उनका नाम अभिधार प्रपत्र में सम्मिलित किया जाना चाहिए। अभिधार प्रपत्र के विषय में यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकेगा कि उक्त उत्तराधिकारियों का अधिकार समाप्त हो गया है और न ही यह निष्कर्ष निकाला जा सकेगा कि उनका हित विवक्षित रूप में अभ्यर्पित हो गया है।
पट्टे के विवक्षित सरेंडर के लिए आवश्यक है कि Lessee का हित लीज़ सम्पत्ति से विधि के प्रवर्तन द्वारा अथवा नवीन पट्टे के सृजन द्वारा समाप्त हो गया हो क्योंकि पूर्विक लीज़ एवं पाश्चिक
लीज़ एक साथ नहीं रह सकते हैं। अतः यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि पूर्व पट्टे का विवक्षित सरेंडर गया है।
अतः यदि नवीन पट्टे के सृजन के साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं तो यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकेगा कि मूल पट्टे का विवक्षित सरेंडर हो गया है। मधुबाला बनाम बुधिया के बाद में मृतक Lessee का कोई भी उत्तराधिकारी न्यायालय में अपने Lesseeी अधिकार को जताने के लिए उपस्थित नहीं हुआ। उत्तराधिकारियों के आवास का भी Lessor द्वारा विशिष्ट उल्लेख नहीं हुआ था और न ही कथित उत्तराधिकारियों में से कोई भी लीज़ सम्पत्ति पर निवास कर रहा था तथा किसी ने भी उक्त सम्पत्ति का किराया भी नहीं अदा किया था। प्रश्न यह था कि क्या उक्त स्थिति, विवक्षित सरेंडर के तुल्य है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभिनिर्णीत किया कि उक्त स्थिति विवक्षित सरेंडर के तुल्य है।
विवक्षित सरेंडर में यह आवश्यक है कि Lessee लीज़ सम्पत्ति में अपना हित Lessor को सौंप दे तथा Lessor उक्त सम्पत्ति का कब्जा स्वीकार कर ले, धारण कर ले अथवा ग्रहण कर ले। 3 लीज़ की शर्तों में लघु संशोधन विवक्षित सरेंडर का प्रतीक नहीं है जैसे देय किराया आरक्षित करना या किसी अन्य व्यक्ति को देना इत्यादि। इसी प्रकार किराये में वृद्धि से भी विवक्षित समर्पण का सृजन नहीं होगा। किन्तु यदि कोई विशिष्ट परिस्थिति विद्यमान हो जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि नवीन लीज़ अस्तित्व में आ गया है, तो पट्टे का विवक्षित सरेंडर माना जाएगा।