फुलेल सिंह बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला: दहेज हत्या मामले में विस्तृत कानूनी विश्लेषण
Himanshu Mishra
10 Sep 2024 12:43 PM GMT
फुलेल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (Phulel Singh vs State of Haryana) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर 2023 को अपना फैसला सुनाया। यह मामला दहेज उत्पीड़न (Harassment) और धारा 304-बी (Section 304-B IPC) के तहत दहेज मृत्यु (Dowry Death) से जुड़ा था। इस केस में करन कौर नामक महिला की मृत्यु हुई, जिसे आरोपों के अनुसार, उसके पति फुलेल सिंह और उसके ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। कोर्ट के फैसले में मुख्य रूप से सबूतों की विश्वसनीयता (Credibility) और विशेष रूप से मृतक का दिया हुआ मरते वक्त का बयान (Dying Declaration) महत्वपूर्ण रहा।
फुलेल सिंह बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह दर्शाता है कि मरते वक्त के बयान की कड़ी जांच होनी चाहिए और दोषसिद्धि के लिए स्पष्ट और ठोस सबूत जरूरी होते हैं। हालांकि कानून दहेज उत्पीड़न के मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान करता है, लेकिन अदालतें सुनिश्चित करती हैं कि दोषसिद्धि केवल विश्वसनीय और अविवादित (Undisputed) सबूतों के आधार पर हो।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
यह मामला 1987 में करन कौर और फुलेल सिंह की शादी से जुड़ा है। आरोपों के अनुसार, शादी के बाद से ही करन कौर को दहेज कम लाने के कारण प्रताड़ित किया जाने लगा। उसके परिवार ने समय-समय पर उसे पैसों, स्कूटर और सोने के आभूषण दिए, लेकिन ससुराल वालों की मांगें बढ़ती गईं।
1991 में दिवाली के समय करन कौर गंभीर रूप से जल गईं और अस्पताल में भर्ती हुईं, जहां बाद में उनकी मृत्यु हो गई। होश में आने के बाद करन ने बयान दिया कि उसके पति और ससुराल वालों ने उसे जलाया। यह मरते वक्त का बयान (Dying Declaration) अभियोजन पक्ष (Prosecution) का मुख्य आधार बना।
निचली अदालत (Trial Court) ने फुलेल सिंह को धारा 304-बी (Dowry Death) के तहत दोषी ठहराया, लेकिन उसे हत्या (Section 302) के गंभीर आरोप से बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
कानूनी मुद्दे और तर्क (Legal Issues and Arguments)
1. धारा 304-बी IPC के तहत दहेज मृत्यु (Dowry Death under Section 304-B IPC)
धारा 304-बी के तहत, यह साबित करना जरूरी होता है कि महिला की मृत्यु विवाह के 7 साल के अंदर हुई हो और उसकी मृत्यु दहेज उत्पीड़न के कारण हुई हो। इस मामले में अभियोजन पक्ष पर यह जिम्मेदारी थी कि वह साबित करे कि करन कौर की मृत्यु दहेज उत्पीड़न से जुड़ी थी।
2. मरते वक्त के बयान की विश्वसनीयता (Reliability of the Dying Declaration)
इस मामले में, करन कौर के मरते वक्त दिए गए बयान पर काफी ध्यान केंद्रित किया गया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह बयान एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) ने दर्ज किया था और उपस्थित डॉक्टर ने करन कौर की मानसिक स्थिति (Mental Condition) को सही बताया था। निचली अदालत और हाईकोर्ट ने इसी बयान पर विश्वास करते हुए फुलेल सिंह को दोषी ठहराया।
3. बचाव पक्ष की दलीलें (Defense Arguments)
बचाव पक्ष के वरिष्ठ वकील श्री राजुल भार्गव ने तर्क दिया कि यह बयान विश्वसनीय नहीं था। उन्होंने कहा कि जब करन कौर को अस्पताल में भर्ती किया गया, तब उन्होंने डॉक्टर से कहा था कि उन्होंने खुद को जलाया था। इसके बाद दिया गया बयान उनके परिवार के कहने पर दिया गया था और इसे स्वैच्छिक (Voluntary) नहीं माना जा सकता।
बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि मरते वक्त का बयान घटना के कई दिन बाद दर्ज किया गया था, जिससे इसकी सच्चाई पर सवाल उठता है।
4. अभियोजन पक्ष का पक्ष (Prosecution's Position)
अभियोजन पक्ष के वकील श्री समर विजय सिंह ने तर्क दिया कि बयान को कानूनी तौर पर दर्ज किया गया था और मृतका उस वक्त सही मानसिक स्थिति में थी। उन्होंने कहा कि यह बयान, अन्य सबूतों के साथ, फुलेल सिंह के खिलाफ मजबूत प्रमाण है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)
सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों और मरते वक्त के बयान के संदर्भ में स्थिति का बारीकी से विश्लेषण किया। कोर्ट ने माना कि केवल मरते वक्त के बयान के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन इसके लिए बयान का पूरी तरह से विश्वसनीय (Trustworthy) होना जरूरी है।
इस मामले में, कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष की कहानी में कई खामियां थीं। सबसे पहले, करन कौर द्वारा दिए गए शुरुआती बयान में उन्होंने खुद को आग लगाने की बात कही थी, जो बाद के बयान से अलग था। इसके अलावा, मरते वक्त का बयान घटना के कई दिन बाद दर्ज किया गया, जिससे इसकी सच्चाई पर शक पैदा होता है।
कोर्ट ने यह भी पाया कि यही बयान मृतका के ससुर, जोरा सिंह को बरी करने के लिए इस्तेमाल किया गया था, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर और भी सवाल खड़े हुए। अगर यह बयान एक आरोपी के लिए अविश्वसनीय था, तो इसे दूसरे आरोपी के खिलाफ कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है?
अभियोजन पक्ष यह भी साबित करने में असफल रहा कि करन कौर को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। अभियोजन पक्ष के गवाह, जो करन कौर के रिश्तेदार थे, ने अस्पष्ट बयान दिए और उनमें कोई ठोस विवरण नहीं था।
फैसला (Judgment)
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए फुलेल सिंह को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मरते वक्त के बयान की विश्वसनीयता पर संदेह है और अभियोजन पक्ष दहेज उत्पीड़न को साबित करने में असफल रहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि संदेह का लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।
फुलेल सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और उनकी जमानत रद्द कर दी गई।