Constitution में स्टेट एग्जीक्यूटिव

Shadab Salim

17 Dec 2024 11:55 AM IST

  • Constitution में स्टेट एग्जीक्यूटिव

    भारत का कांस्टीट्यूशन एक संसदीय कांस्टीट्यूशन है जिसके अंतर्गत भारत को राज्यों का एक संघ घोषित किया गया है। संघ के पास अपनी शक्तियां अलग है और भारत के पृथक पृथक प्रांतों के पास अपनी शक्तियां अलग है।

    संघ और राज्यों के बीच शक्तियों को लेकर कोई विवाद न हो इस संबंध में कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में स्पष्ट उपबंध किए गए हैं। शक्तियों के संबंध में सभी राज्य और संघ के बीच कोई विवाद होता है तो उसका निपटारा संघ की न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जाता है। जिस प्रकार कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में संघ व्यवस्था दी है तो राज्यों को भी अपने अधिकार दिए हैं, अपनी शक्तियां दी हैं।

    जैसी प्रक्रिया संघ की कार्यपालिका के संबंध में कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में उल्लेखित की गई है ठीक उसी तरह की प्रक्रिया कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के अंतर्गत राज्यों के संबंध में राज्य की कार्यपालिका के लिए उल्लेखित की गई है। जिस प्रकार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है ठीक इसी प्रकार राज्य की कार्यपालिका शक्ति गवर्नर में निहित होती है।

    गवर्नर कार्यपालिका शक्ति का प्रधान होता है परंतु गवर्नर उस शक्ति का प्रयोग अपने राज्य की केबिनेट के परामर्श से करता है।

    भारत के राष्ट्रपति द्वारा गवर्नर की नियुक्ति की जाती है उसकी नियुक्ति न तो प्रत्यक्ष मतदान से की जाती है और न ही विशेष रूप से राष्ट्रपति के लिए गठित निर्वाचक मंडल द्वारा जो अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति का चुनाव करता है।

    यह केंद्र सरकार द्वारा नामांकित व्यक्ति होते हैं, गवर्नर का पद केंद्रीय सरकार के अधीन नियुक्त पद नहीं है और आर्टिकल 319 का प्रतिषेध उस पर लागू नहीं होता है। राज्य के लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को गवर्नर के पद पर नियुक्त किया जा सकता है गवर्नर का पद एक स्वतंत्र सांविधानिक पद है और वह केंद्र सरकार के अधीन या उसके नियंत्रण में नहीं होता है।

    कोई भी भारत का नागरिक जो 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है वह गवर्नर हो सकता है। आर्टिकल 158 के अनुसार गवर्नर न तो संसद के किसी सदन और न ही राज्य के विधान मंडल का ही सदस्य हो सकता है यदि केंद्र और राज्य के किसी भी सदन का सदस्य है तो गवर्नर के पद की शपथ लेने के पश्चात यह समझा जायेगा कि सदन में उसका स्थान खाली हो गया है। गवर्नर लाभ के किसी पद पर नहीं रहता है, गवर्नर शासकीय निवास के उपयोग का हकदार होता है। गवर्नर ऐसी उपलब्धियों मत और विशेष अधिकारों का जो संसद विधि द्वारा समय-समय पर अवधारित करें जब तक संसद इस संबंध में उपबंध नहीं करती है तब तक ऐसी उपलब्धियों और विशेष अधिकारों का हकदार होगा न दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट होगा।

    कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 156 के अनुसार गवर्नर राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपना पद धारण करता है। समान रूप से गवर्नर का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। राष्ट्रपति किसी भी समय गवर्नर को उसके पद से हटा भी सकता है। इस मामले में राष्ट्रपति केंद्रीय केबिनेट के परामर्श के अनुसार कार्य करता है। गवर्नर के पदावधि राष्ट्रपति पर निर्भर करती है। गवर्नर लिखित रूप से चाहे तो अपना त्यागपत्र भी ले सकता है।

    बीपी सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की कांस्टीट्यूशन पीठ के जी बालाकृष्णन सीएस कपाड़िया रविंद्र और आदि ने सर्वसम्मति से यह कहा है कि गवर्नर को पद से केवल इस आधार पर नहीं हटाया जा सकता कि वह केंद्र सरकार शासक दल की इच्छाओं की नीतियों से सहमत नहीं है या उनका विश्वास खो दिया। इस मामले में अपने लोकहित वाद के रूप में मुकदमा दाखिल किया और निवेदन किया कि कोर्ट उचित निर्देश दें जिससे गवर्नर जैसे सांविधानिक पद का सम्मान न घट जाए।

    इस मामले में ने तर्क दिया कि गवर्नर राज्य का मुखिया है वह केंद्र सरकार का कर्मचारी, सेवक या एजेंट नहीं है। उसने कहा कि साधारण तौर से उसे 5 वर्ष तक अपने पद पर बने रहना चाहिए। उसे विशेष परिस्थितियों में क्यों पद से हटा दिया जाता है, उसे मनमाने तरीके से पद से नहीं हटाया जाना चाहिए।

    प्रसादपर्यंत के सिद्धांत का न्यायिक समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार की ओर से कहा गया कि गवर्नर का पद से हटाया जाना कोई कारण से होना चाहिए और प्रसादपर्यंत का सिद्धांत अत्यधिक है। केंद्र सरकार एक दल का विश्वास होना या उसकी नीतियों के विरुद्ध काम ही पर्याप्त है।

    हाई कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि गवर्नर का पद से हटाना दुर्भावना से नहीं होना चाहिए। आर्टिकल 156 के राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत तक अपने पद पर रहेगा और उसे पद से हटाने का कारण नहीं बताया जाएगा किंतु प्रसाद का सिद्धांत लोकतांत्रिक कांस्टीट्यूशन के अधीन उस रूप में लागू नहीं किया जा सकता जिस रूप से इंग्लैंड में और उसे मनमाने किया जा सकता।

    इस शक्ति का प्रयोग आपवादिक आधारों पर ही किया जाएगा। किसी मामले में अनिवार्य कारण है या नहीं कि प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर आधारित होगा उसे केंद्र सरकार शासक दल की नीतियों के पालन नहीं करने के आधार पर नहीं हटाया जाएगा। केंद्र में सरकार बदलने के कारण गवर्नर के पद से हटाए जाने का कोई कारण नहीं है।

    उस को पद से हटाने की न्यायिक समीक्षा बड़े सीमित आधार पर की जा सकती है। यदि हटाया गया व्यक्ति यह दिखाता है उसकी पदच्युती की मनमानी दुर्भावना से की गई है तो कोर्ट उस सामग्री को मांग सकता है जिसके आधार पर उसके पदच्युत का निर्णय लिया गया था।

    कोर्ट निर्णय लिया कि सार्वजनिक महत्व के मामले में ऐसा किया जा सकता है। गवर्नर के कांस्टीट्यूशन पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को कायम रखने वाला है ऐसा नहीं होना चाहिए कि केंद्र में सरकार बदल जाए तो राज्यों के गवर्नरों को भी बदल दिया जाए।

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