SC/ST Act के अंतर्गत केस की सुनवाई हेतु स्पेशल कोर्ट

Shadab Salim

10 May 2025 10:03 AM IST

  • SC/ST Act के अंतर्गत केस की सुनवाई हेतु स्पेशल कोर्ट

    इस अधिनियम को अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति पर होने वाले अत्याचारों के निवारण के उद्देश्य से बनाया गया है। इस अधिनियम में वे सभी व्यवस्थाएं अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को उपलब्ध कराने के प्रयास किए गए हैं जिन के अभाव में इन जातियों के लोगों को संपूर्ण न्याय प्राप्त नहीं हो पाता है।

    किसी मामले का विचारण किसी स्पेशल कोर्ट द्वारा किया जाता है तब विचारण में कोर्ट को सुविधा रहती है तथा कोर्ट के समक्ष कार्यभार भी कम होता है।भारतीय कोर्ट की सबसे दुखद स्थिति यह है कि वहां मुकदमों की अधिकता है तथा कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या कम है। इस कारण पक्षकारों और पीड़ित व्यक्तियों को समय पर न्याय उपलब्ध नहीं हो पाता है।

    किसी भी अधिनियम को संसद द्वारा बना दिया जाना एक अलग विषय है। यदि संसद किसी अधिनियम को बनाती है तो उसके पीछे उसका कोई लक्ष्य होता है। कोई उद्देश्य होता है जो जनता के जनहित से संबंधित होता है परंतु संसद का केवल अधिनियम बना देना ही समस्या का निराकरण नहीं होता है। संसद केवल अपने दायित्व को पूरा करती है वह जनहित में अधिनियम का निर्माण कर देती है परंतु इस अधिनियम में लक्षित उद्देश्य तब ही प्राप्त हो सकते हैं जब उस अधिनियम को संपूर्ण रुप से लागू किया जाए।

    अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति अधिनियम भी समाज में एक उद्देश्य से बनाया गया है। इन जातियों के सदस्यों पर अनंत काल से लोगों द्वारा अत्याचार किए जाने के दृश्य सामने आते रहे है।समाज के इन लोगों को ऊपर उठाने के उद्देश्य से तथा उन पर होने वाले अत्याचारों को समाप्त करने के उद्देश्य से इस अधिनियम को निर्मित किया गया है।

    इस अधिनियम के उद्देश्य तभी प्राप्त हो सकते हैं जब इसे संपूर्ण रूप से लागू किया जा सके। अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्य अत्यंत दीन हीन होते हैं उन्हें कोर्ट तक लाना भी अत्यंत दूभर कार्य होता है। फिर कोर्ट में देरी भी एक प्रकार से न्याय के रास्ते में रोड़ा है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही इस अधिनियम के अंतर्गत स्पेशल कोर्ट की स्थापना की गई है।

    संसद द्वारा प्रस्तुत किए गए अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 14 के अनुसार स्पेशल कोर्ट को इस रूप में प्रस्तुत किया गया है यहां इस आलेख में धारा को प्रस्तुत किया जा रहा है-

    कोर्ट पोड़ित व्यक्ति के प्रतिकर के दृष्टिकोण पर विचार करना संगत तथा उचित समझता है। राज्य सरकार ने संहिता की धारा 357 (क) के अधीन पीड़ित प्रतिकर सा बनाया है, जिससे कि पीडित व्यक्ति, जो निकाय के विरुद्ध अपराध के कारण हानि अथवा क्षति किया है, को प्रतिकर प्रदान किया जा सके। पीडित प्रतिकर योजना को पीड़ित व्यक्तियों/उनके आश्रितों के पुनर्वासन के परोपकारी उद्देश्य से शामिल किया गया है।

    मंगली प्रसाद बनाम अपर सत्र न्यायाधीश के मामले में यह कहा गया है कि अवर कोर्ट को अधिनियम की धारा 2 (घ) के अर्थान्तर्गत स्पेशल जज के रूप में नियुक्त किया गया है, परन्तु जब तक मजिस्ट्रेट के द्वारा उसके समक्ष अभियुक्त को भेजा न गया हो, तब तक वह अधिनियम की धार 14 अधीन अपराध का कोई संज्ञान नहीं ले सकता है और वह अपनी शक्ति के प्रयोग में अथवा मजिस्ट्रेट की तरह अपराध का संज्ञान लेने में अथवा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के अधीन परिवाद याचिका सम्बद्ध पुलिस थाना में भेजने के लिए मजिस्ट्रेट के रूप में भी कार्य नहीं कर सकता है, सत्र न्यायाधीश का आदेश बिना अधिकारिता के था और अभिखण्डित किया गया।

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