क्या सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने की प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी और समावेशी बनाया जाना चाहिए?
Himanshu Mishra
16 Jun 2025 1:12 PM

भारत में एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (Advocates Act, 1961) की धारा 16 (Section 16) के अंतर्गत सीनियर एडवोकेट का दर्जा एक विशेष सम्मान (Recognition of Excellence) के रूप में दिया जाता है। यह दर्जा उन वकीलों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपने उत्कृष्ट वकालत कौशल (Advocacy Skills), विधिक ज्ञान (Legal Knowledge), और कानून के विकास (Development of Law) में विशेष योगदान दिया हो।
लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और पक्षपात के आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय मामले में हस्तक्षेप किया और वर्ष 2023 में दिए अपने निर्णय में सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक निष्पक्ष और समावेशी (Inclusive) बनाने के लिए महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए।
कानूनी आधार (Legal Framework): सीनियर एडवोकेट (Senior Advocate) का दर्जा देने की वैधानिक व्यवस्था
एडवोकेट्स एक्ट की धारा 16 वकीलों को दो वर्गों में बाँटती है – सामान्य वकील और सीनियर एडवोकेट। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को यह अधिकार है कि वे किसी भी वकील को उसकी सहमति से सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह अधिकार विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 (Supreme Court Rules, 2013) के ऑर्डर IV के रूल 2 में निहित है।
1973 के संशोधन (Amendment) से पहले यह दर्जा वकील की "क्षमता, अनुभव और प्रतिष्ठा (Ability, Experience and Standing at the Bar)" के आधार पर दिया जाता था। संशोधन के बाद इसमें "विशेष विधिक ज्ञान या अनुभव (Special Knowledge or Experience in Law)" को भी शामिल किया गया।
2017 का निर्णय (2017 Judgment): न्यायिक सुधार की ओर पहला कदम
2017 में इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट केस में कोर्ट ने माना कि नामांकन प्रक्रिया पारदर्शी (Transparent) और वस्तुनिष्ठ (Objective) नहीं थी। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने एक परमानेंट कमेटी (Permanent Committee) बनाने का आदेश दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश, दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, अटॉर्नी जनरल (Attorney General) और एक वरिष्ठ वकील शामिल होंगे। यह समिति एक अंक आधारित प्रणाली (Point-Based System) से वकीलों का मूल्यांकन करेगी – जिसमें प्रैक्टिस के वर्ष, कानूनी ज्ञान, प्रकाशित लेख, और साक्षात्कार को शामिल किया गया।
2023 का निर्णय (2023 Judgment): प्रक्रिया का परिष्करण (Fine-tuning the Process)
2023 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य 2017 में बनाए गए दिशानिर्देशों (Guidelines) की समीक्षा नहीं बल्कि उनके बेहतर कार्यान्वयन के लिए बदलाव करना है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सीक्रेट बैलट वोटिंग (Secret Ballot Voting) का इस्तेमाल केवल अपवाद स्वरूप होना चाहिए और इसके लिए कारण भी दर्ज होने चाहिए। इसका मकसद यह था कि परमानेंट कमेटी द्वारा किए गए मूल्यांकन का सम्मान किया जाए।
मूल्यांकन मानदंडों में बदलाव (Evaluation Criteria: Modifications and Additions)
पहले प्रकाशित लेखों (Publications) को 15 अंक मिलते थे, जिसे अब घटाकर 5 अंक कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि ज्यादातर वकीलों के पास लेखन का समय नहीं होता, लेकिन इस श्रेणी में गेस्ट लेक्चर (Guest Lectures) और टीचिंग असाइनमेंट्स (Teaching Assignments) को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे वकील के अकादमिक योगदान (Academic Contribution) का समुचित मूल्यांकन हो सकेगा।
वहीं "जजमेंट्स, प्रो बोनो (Pro Bono) कार्य और विशेषज्ञता (Domain Expertise)" वाले खंड के लिए अंक 40 से बढ़ाकर 50 किए गए। कोर्ट ने कहा कि केवल उपस्थिति की संख्या को नहीं बल्कि वकील की भूमिका (Role) को भी देखा जाए। अब वकील पांच श्रेष्ठ केसों की सिनॉप्सिस (Synopsis) भी दे सकते हैं ताकि उनके योगदान का सही मूल्यांकन हो सके।
विविधता और विशेषज्ञता (Diversity and Specialization): नए वकीलों को बढ़ावा
कोर्ट ने माना कि अब वकालत पारिवारिक पेशा नहीं रही। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ और अन्य संस्थानों से पढ़े पहले पीढ़ी के वकीलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही, जो वकील विशेष ट्राइब्यूनलों जैसे NCLT, TDSAT आदि में विशेषज्ञता रखते हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट में कम उपस्थित रहने के कारण वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि लिंग समानता (Gender Equality) और विविधता (Diversity) को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इससे नई पीढ़ी के प्रतिभाशाली वकीलों को यह विश्वास मिलेगा कि वे शीर्ष पर पहुँच सकते हैं।
साक्षात्कार की भूमिका (Personal Interview): संपूर्ण मूल्यांकन का माध्यम
साक्षात्कार (Interview) में दिए गए 25 अंकों को यथावत रखा गया। कोर्ट ने माना कि इंटरव्यू प्रक्रिया एक उम्मीदवार की प्रस्तुति, स्पष्टता और आत्मविश्वास को परखने का बेहतर माध्यम है, और इसलिए यह आवश्यक है। हालांकि, उम्मीदवारों की संख्या को देखते हुए इसे व्यावहारिक बनाने के लिए इंटरव्यू की सीमा कमेटी तय करेगी।
सामान्य पहलू (General Aspects): प्रक्रिया की नियमितता और समयबद्धता
2018 की गाइडलाइंस के अनुसार नामांकन प्रक्रिया वर्ष में दो बार होनी चाहिए, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर यह साल में एक बार भी हो तो पर्याप्त है, बशर्ते यह नियमित रूप से हो। कई हाईकोर्ट में वर्षों से प्रक्रिया नहीं हुई है, जिससे योग्य वकीलों को अवसर नहीं मिल पाया।
युवा वकीलों के लिए कोर्ट ने कहा कि वे भी आवेदन कर सकते हैं लेकिन उन्हें असाधारण प्रतिभा (Exceptional Ability) दिखानी होगी, खासकर अगर उनकी उम्र 45 वर्ष से कम है।
स्वतः संज्ञान से नामांकन (Suo Motu Designation): अपवादों के लिए प्रावधान
कोर्ट ने 2017 के निर्णय को दोहराते हुए कहा कि फुल कोर्ट (Full Court) द्वारा स्वतः संज्ञान (Suo Motu) से विशेष मामलों में नामांकन जारी रखा जा सकता है। यह प्रक्रिया न्यायालय के विशेषाधिकार का हिस्सा है और इसमें संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का 2023 का यह निर्णय सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक न्यायोचित (Fair), पारदर्शी (Transparent), और समावेशी (Inclusive) बनाने की दिशा में एक सशक्त प्रयास है। यह न केवल उत्कृष्टता की पहचान है बल्कि विधिक क्षेत्र में समर्पण, सेवा और विद्वता का भी सम्मान है।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि कानून की परंपराओं का सम्मान करते हुए भी समय के अनुसार उन्हें सुधारना जरूरी है। कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से यह संकेत दिया है कि सुधार एक सतत प्रक्रिया है और इससे न केवल न्यायपालिका बल्कि पूरे विधिक समुदाय को लाभ होगा।