क्या जिला न्यायपालिका से नियुक्त हाईकोर्ट जज की पेंशन उनकी अंतिम सैलरी के अनुसार तय होनी चाहिए?

Himanshu Mishra

5 Aug 2025 5:36 PM IST

  • क्या जिला न्यायपालिका से नियुक्त हाईकोर्ट जज की पेंशन उनकी अंतिम सैलरी के अनुसार तय होनी चाहिए?

    संवैधानिक और विधिक ढांचा (Constitutional and Statutory Framework)

    यह मामला मुख्य रूप से High Court Judge की Pension से जुड़ा है, विशेषकर तब जब वह Judge District Judiciary (जिला न्यायपालिका) से प्रोन्नत होकर High Court में नियुक्त होते हैं और बीच में थोड़े समय का Break (अवधि-रहित अंतराल) आ जाता है।

    इसमें संविधान के अनुच्छेद 217 और अनुच्छेद 221 प्रमुख हैं।

    अनुच्छेद 217, High Court Judge की नियुक्ति को नियंत्रित करता है, जबकि अनुच्छेद 221(2) कहता है कि किसी Judge को Parliament द्वारा तय की गई पेंशन मिलेगी।

    इस उद्देश्य के लिए Parliament ने High Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Act, 1954 बनाया, जिसके धारा 14 और धारा 15 पेंशन से संबंधित मुख्य प्रावधान हैं।

    धारा 14 – जब Judge पहले कोई Pensionable Post (पेंशनयोग्य पद) न रख चुका हो

    धारा 14 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति High Court Judge बनने से पहले कोई अन्य Pensionable Post नहीं रख चुका है, या अगर रख चुका है लेकिन वह Part I के अंतर्गत पेंशन लेना चाहता है, तब उसे Part I के अनुसार पेंशन दी जाएगी लेकिन इसके लिए कम से कम 12 वर्ष की सेवा पूरी करनी होगी।

    इस धारा में जो "Explanation" (व्याख्या) जोड़ी गई है, वह यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई Judge पहले से Pensionable पद पर था और वह Part III के अनुसार पेंशन लेना चुनता है, तो उस पर धारा 14 लागू नहीं होगी।

    Justice Raj Rani Jain ने Part III के तहत पेंशन लेने का विकल्प चुना था, इसलिए उन पर धारा 14 लागू नहीं हुई।

    धारा 15 और Part III – संयुक्त सेवा का लाभ (Blended Service)

    धारा 15 विशेष रूप से उन Judges के लिए है जो High Court में नियुक्त होने से पहले किसी Union या State की सेवा में पेंशन योग्य पद पर थे।

    ऐसे Judge यदि Part III के अनुसार पेंशन चुनते हैं, तो उन्हें Part III की Schedule में वर्णित नियमों के अनुसार पेंशन मिलेगी।

    Part III के अनुच्छेद 2(a) में स्पष्ट है कि ऐसे Judge को वही पेंशन दी जाएगी जैसे वह अपने पहले वाले Judicial Post पर बने रहते, लेकिन उनकी High Court की सेवा को उस सेवा में जोड़ा जाएगा।

    साथ ही, अनुच्छेद 2(b) के अनुसार उन्हें एक विशेष अतिरिक्त पेंशन (Special Additional Pension) भी मिल सकती है।

    इसका मतलब यह है कि उनकी पूरी सेवा District + High Court को एक साथ जोड़कर (Blended Service) पेंशन तय की जानी चाहिए।

    सेवा में Break और उसका प्रभाव (Break in Service and Its Effect)

    इस मामले का मूल सवाल यह था कि क्या एक 54 दिनों का छोटा Break जो District Judge के रिटायर होने और High Court Judge बनने के बीच आया सेवा के गणना में रुकावट बन सकता है?

    Supreme Court ने कहा कि धारा 15 और Part III में कहीं भी Continuous Service (निरंतर सेवा) की अनिवार्यता नहीं है।

    जब Break प्रशासनिक कारणों से है और Judge की कोई गलती नहीं है, तब इसे सेवा का बाधा नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने यह भी कहा कि कानून की व्याख्या उस उद्देश्य के अनुसार होनी चाहिए जिससे वह बना है और यहां उद्देश्य है Judge की Judicial Independence (न्यायिक स्वतंत्रता) को पेंशन के माध्यम से सुनिश्चित करना।

    अनुच्छेद 14 और समानता का अधिकार (Right to Equality under Article 14)

    इस निर्णय में कई पुराने फैसलों का भी हवाला दिया गया, जैसे:

    • Kuldip Singh बनाम Union of India (2002)

    • Govt. of NCT of Delhi बनाम All India Young Lawyers Association (2009)

    • P. Ramakrishnam Raju बनाम Union of India (2014)

    इन मामलों में Supreme Court ने कहा कि जो Judges Bar (वकालत) से नियुक्त होते हैं, उन्हें सेवा में 10 वर्ष का अतिरिक्त लाभ मिलता है।

    तो फिर जो Judge District Judiciary में सालों सेवा करते हैं, उन्हें कम पेंशन क्यों मिले केवल इसलिए कि उनकी High Court में सेवा कुछ महीनों की थी?

    P. Ramakrishnam Raju मामले में Court ने कहा कि यह Discriminatory (भेदभावपूर्ण) है कि एक Judge को केवल उसकी Service Background की वजह से कम पेंशन दी जाए।

    यह फैसला उसी भावना को आगे बढ़ाता है और कहता है कि Article 14 के तहत सभी Judges को समान पेंशन मिलनी चाहिए चाहे वह Bar से आए हों या Judiciary से।

    M. L. Jain मामला – अंतिम वेतन का आधार (M L Jain and Last Drawn Salary)

    Supreme Court ने M. L. Jain बनाम Union of India (1985) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि Judge की पेंशन तय करते समय High Court में मिला अंतिम वेतन ही आधार होना चाहिए, न कि District Judge की सेवा के समय का वेतन।

    इस सिद्धांत को दोहराते हुए Court ने यह भी कहा कि अगर Judge ने High Court में कार्य किया है even for short duration तो उन्हें High Court Judge के वेतन के आधार पर ही पेंशन मिलनी चाहिए।

    पेंशन का उद्देश्य – न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा (Pension as Safeguard of Judicial Independence)

    Court ने कहा कि Judges की पेंशन केवल Retiral Benefit नहीं है। यह एक संवैधानिक अनिवार्यता (Constitutional Necessity) है।

    एक बार सेवानिवृत्त होने के बाद Judges आमतौर पर कोई दूसरा कार्य नहीं करते और न ही उन्हें वैकल्पिक आय के स्रोत मिलते हैं।

    इसलिए, उचित पेंशन उनकी स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखने का तरीका है।

    जो भी व्याख्या Judges को कम पेंशन देने की ओर ले जाए, वह संविधान की भावना के खिलाफ है।

    अंतिम निर्णय (Final Holding)

    Supreme Court ने कहा कि Justice Raj Rani Jain को उनके District और High Court दोनों सेवाओं को जोड़कर पेंशन दी जानी चाहिए।

    54 दिनों का Break नज़रअंदाज़ किया गया और यह माना गया कि उनकी सेवा Blended Continuity में थी।

    इसलिए उनकी पेंशन High Court Judge की अंतिम सैलरी के आधार पर तय होनी चाहिए।

    साथ ही, Court ने उन्हें बकाया राशि 6% ब्याज सहित देने का निर्देश दिया।

    यह निर्णय संविधान के Article 14, न्यायिक स्वतंत्रता, और सेवा की समानता को मज़बूत करता है।

    Supreme Court ने यह सुनिश्चित किया कि High Court Judges चाहे Bar से आए हों या Judiciary से उनकी सेवा का सम्मान हो और उन्हें उचित व समान पेंशन मिले।

    इस निर्णय से भविष्य में District Judiciary से आने वाले Judges को स्पष्ट संदेश मिला है कि उनकी सेवाओं का मूल्य भी बराबर है और उन्हें पेंशन में कोई भेदभाव नहीं झेलना पड़ेगा।

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