क्या जजों को एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से छूट मिलनी चाहिए?

Himanshu Mishra

4 Nov 2024 3:23 PM IST

  • क्या जजों को एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से छूट मिलनी चाहिए?

    इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि क्या हाईकोर्ट के जजों को एयरपोर्ट पर प्री-एंबार्केशन (Pre-Embarkation) सुरक्षा जांच से छूट मिलनी चाहिए।

    यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट के एक निर्णय से उत्पन्न हुआ, जिसमें उसने यूनियन गवर्नमेंट (Union Government) को निर्देश दिया था कि मुख्य न्यायाधीशों और हाईकोर्ट के जजों को उनकी संवैधानिक स्थिति (Constitutional Status) को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा जांच से छूट दी जाए।

    इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकार (Judicial Authority), कार्यकारी विवेक (Executive Discretion), और संविधान के तहत न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) की सीमा जैसे मौलिक मुद्दों पर विचार किया।

    न्यायिक पुनरावलोकन और इसकी सीमाएँ (Judicial Review and Its Limits)

    सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर प्रकाश डाला, विशेषकर 'स्वयं-नियंत्रण' (Self-Restraint) की अवधारणा पर। न्यायिक पुनरावलोकन का उद्देश्य नीतियाँ (Policies) बनाना या जनमत (Public Opinion) को लागू करना नहीं है, बल्कि कार्यकारी (Executive) या विधायी कार्यों (Legislative Actions) की वैधता (Legality) की जाँच करना है।

    न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) जैसे मुद्दे, जैसे कि एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच में छूट देने का निर्णय, कार्यकारी के विशेषज्ञता के क्षेत्र में आता है। केवल तभी न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है जब कोई स्पष्ट संवैधानिक उल्लंघन (Constitutional Breach) या सरकार के अधिकारों से परे कोई कार्य हो।

    सुरक्षा मामलों में कार्यकारी की भूमिका (Role of the Executive in Security Matters)

    सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि सुरक्षा नीतियों (Security Policies), जैसे कि एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के प्रोटोकॉल (Protocols), विभिन्न सुरक्षा मूल्यांकनों (Security Assessments) और खुफिया रिपोर्टों (Intelligence Reports) के आधार पर तय किए जाते हैं जो न्यायपालिका (Judiciary) के पास उपलब्ध नहीं होती।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि खतरे का आकलन करना (Threat Assessment), कौन सुरक्षा जोखिम (Security Risk) बन सकता है और किन गणमान्य व्यक्तियों (Dignitaries) को जांच से छूट मिलनी चाहिए, इसका निर्णय विशेष ज्ञान (Specialized Knowledge) की आवश्यकता है जो कार्यकारी के पास होता है।

    इस निर्णय ने इस बात पर बल दिया कि सुरक्षा नीतियाँ प्रतिष्ठा (Prestige) या स्थिति (Status) का नहीं, बल्कि सुरक्षा का मुद्दा हैं।

    न्यायिक संयम पर पूर्व निर्णयों का संदर्भ (Reference to Precedents on Judicial Restraint)

    न्यायालय ने टी.एन. शेषन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (T.N. Seshan v. Union of India) मामले में अपने पूर्व निर्णय का संदर्भ दिया, जिसमें न्यायपालिका (Judiciary) ने शक्ति विभाजन (Separation of Powers) का सम्मान करने का महत्व बताया था।

    इन दोनों मामलों में, न्यायालय ने यह सिद्धांत दोहराया कि जज, जबकि संविधान की रक्षा करने के लिए उत्तरदायी हैं, उन्हें केवल तभी कार्यकारी कार्यों में हस्तक्षेप करना चाहिए जब संवैधानिक उल्लंघन स्पष्ट हो। न्यायालय ने ऐसा करके प्रत्येक सरकारी शाखा की अखंडता (Integrity) की सुरक्षा की।

    संवैधानिक अधिकार और प्राथमिकता (Constitutional Authority and Precedence)

    इस केस में राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने निर्णय का आधार मुख्य न्यायाधीशों और हाईकोर्ट के जजों की संवैधानिक स्थिति (Constitutional Status) और प्राथमिकता (Precedence) पर आंशिक रूप से रखा था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्राथमिकता सूची (Warrant of Precedence) केवल औपचारिक (Ceremonial) उद्देश्य से स्थापित की गई है और यह सुरक्षा नीति (Security Policy) को निर्देशित नहीं करती।

    सरकार ने तर्क दिया कि केवल उन गणमान्य व्यक्तियों (Dignitaries) को जांच से छूट दी जा सकती है जो लगातार सरकारी सुरक्षा (Government Security) में रहते हैं। न्यायालय ने इसे कार्यकारी नीति (Executive Policy) के उचित विकल्प के रूप में स्वीकार किया।

    संस्थागत अधिकार बनाए रखना (Maintaining Institutional Authority)

    सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि न्यायिक शक्ति (Judicial Power) का सम्मान इसलिए किया जाता है क्योंकि इसका प्रयोग संयम (Restraint) के साथ और कानूनी मानकों (Legal Standards) के आधार पर किया जाता है।

    विशेषज्ञता (Expertise) से बाहर के क्षेत्रों में हस्तक्षेप से अनावश्यक विवाद उत्पन्न हो सकते हैं और न्यायपालिका (Judiciary) की संस्थागत अधिकारिता (Institutional Authority) कमजोर हो सकती है।

    इस प्रकार, न्यायालय ने जोर दिया कि न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Intervention) को इस बात पर केंद्रित रहना चाहिए कि कानून और संविधान का पालन किया जा रहा है, न कि उन नीतियों को प्रभावित करना जो ज्ञान और जिम्मेदारी वाले व्यक्तियों पर छोड़ी जानी चाहिए।

    इस निर्णय ने यह सिद्धांत पुनः पुष्टि किया कि न्यायिक अधिकारिता (Judicial Authority) का प्रयोग कानून और संवैधानिक प्रावधानों के भीतर रहकर किया जाना चाहिए। न्यायालय ने एयरपोर्ट सुरक्षा नीति में यूनियन गवर्नमेंट (Union Government) के विवेक को मान्यता दी और यह स्पष्ट किया कि प्री-एंबार्केशन (Pre-Embarkation) जांच एक सुरक्षा उपाय (Security Measure) है, न कि स्थिति निर्धारण (Status Determination) का मुद्दा।

    इस निर्णय ने न्यायपालिका और कार्यपालिका (Executive) की शक्तियों के बीच के नाजुक संतुलन (Balance) को याद दिलाया और यह पुष्टि की कि लोकतांत्रिक व्यवस्था (Democratic Order) की रक्षा के लिए प्रत्येक सरकारी शाखा (Government Branch) को अपने क्षेत्र में ही कार्य करना चाहिए।

    Next Story