अवमानना के दोषी वकील को प्रैक्टिस की अनुमति मिलनी चाहिए?
Himanshu Mishra
1 Nov 2024 5:35 PM IST
अवमानना और न्यायालय की भूमिका (Contempt and Role of the Court)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रश्न उठाया कि क्या अवमानना (Contempt) के दोषी वकील को कानून प्रैक्टिस जारी रखने का अधिकार होना चाहिए। Contempt of Courts Act, 1971 के अंतर्गत अवमानना का अर्थ है न्यायालय की गरिमा कम करना या न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालना। संविधान से प्राप्त अवमानना शक्ति न्यायालय की प्रतिष्ठा बनाए रखने और न्यायिक कार्यवाही की सुचारुता सुनिश्चित करने के लिए है।
इस मामले में, न्यायालय ने उस वकील के आचरण का परीक्षण किया जिसने खुलेआम न्यायिक अधिकार को चुनौती दी थी। यह मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि क्या ऐसे व्यक्ति को कानून प्रैक्टिस का अधिकार मिलना चाहिए जो न्यायालय की गरिमा को कम करता है।
प्रैक्टिस के अधिकार और अवमानना का संबंध (Relationship Between the Right to Practice and Contempt)
इस मामले ने अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत किसी पेशे को करने के मौलिक अधिकार और कानून पेशे में आचरण के उच्च मानकों की आवश्यकता के बीच के अंतर को रेखांकित किया।
अनुच्छेद 19(1)(g) (Article 19(1)(g)) किसी भी पेशे को करने का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन यह अधिकार सार्वजनिक हित में उचित सीमाओं के अधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि कोई वकील पेशेवर अनुशासन का उल्लंघन करता है या अवमानना करता है तो उसका प्रैक्टिस का अधिकार सीमित किया जा सकता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि जो व्यक्ति न्यायालय की गरिमा को नुकसान पहुँचाता है, उसे प्रैक्टिस जारी रखने की अनुमति देना न्याय प्रणाली के लिए हानिकारक हो सकता है।
वकीलों के आचरण पर बार काउंसिल्स की भूमिका (Role of Bar Councils in Regulating Conduct)
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि भारत और संबंधित राज्यों के बार काउंसिल्स (Bar Councils) वकीलों के पेशेवर आचरण को नियंत्रित करने की प्राथमिक शक्ति रखते हैं, लेकिन यदि किसी वकील का आचरण न्यायिक कार्यवाही में बाधा डालता है, तो न्यायालय अतिरिक्त प्रतिबंध लगा सकता है।
Supreme Court Bar Association v. Union of India जैसे महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि वह किसी वकील को न्यायालय में उपस्थिति से रोक सकता है ताकि न्यायिक गरिमा को बनाए रखा जा सके, भले ही बार काउंसिल उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई न करे। यह शक्ति न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
पूर्व में वकीलों के आचरण पर न्यायिक अधिकार को समर्थन देने वाले फैसले (Previous Judgments Supporting Judicial Authority over Advocate Conduct)
इस निर्णय में कुछ प्रमुख फैसलों का उल्लेख किया गया, जो वकीलों के आचरण को नियंत्रित करने में न्यायपालिका की शक्ति को समर्थन देते हैं।
Pravin C. Shah v. K.A. Mohd. Ali मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो वकील अवमानना का दोषी पाया गया हो उसे न्यायालय में उपस्थित होने से रोका जा सकता है। इसी प्रकार, R.K. Anand v. Registrar, Delhi High Court ने पुष्टि की कि न्यायपालिका वकील के प्रैक्टिस के अधिकार को सीमित कर सकती है ताकि न्यायालय के कार्य में बाधा उत्पन्न न हो।
ये मामले यह दर्शाते हैं कि किसी वकील द्वारा की गई अवमानना न केवल व्यक्तिगत मामले को प्रभावित करती है बल्कि न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को भी हानि पहुँचाती है।
वकीलों के अधिकार और जिम्मेदारियों का संतुलन (Balancing Rights and Responsibilities of Advocates)
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वकीलों की न्यायिक ढांचे में एक विशेष भूमिका होती है, जिसमें उच्च आचरण मानकों का पालन आवश्यक है। इस निर्णय ने यह रेखांकित किया कि वकील को न्यायिक अधिकार का सम्मान करना चाहिए और प्रैक्टिस का उनका विशेषाधिकार न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के साथ मेल खाना चाहिए।
अवमानना के दोषी वकीलों को न्यायालय में उपस्थित होने से रोककर, न्यायपालिका अपनी गरिमा की रक्षा कर सकती है और यह सुनिश्चित कर सकती है कि केवल वे ही लोग कानून की सेवा करें जो पेशेवर मानकों का पालन करते हैं।