राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 99 से 102-A : गांवों में भवन निर्माण को नियंत्रित करने का अधिकार
Himanshu Mishra
23 May 2025 7:00 PM IST

प्रस्तावना
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 एक ऐसा महत्वपूर्ण कानून है जो भूमि के प्रबंधन, उपयोग और आवंटन से जुड़े नियमों को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के तहत कई धाराएं बनाई गई हैं जो विशेष रूप से ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में भूमि के निर्माण, बिक्री, आवंटन और उपयोग के विषय में सरकार को अधिकार प्रदान करती हैं।
इस लेख में हम विशेष रूप से धाराएं 99, 100, 101, 102 और 102-A की व्याख्या सरल भाषा में करेंगे और इनके अंतर्गत दिए गए प्रावधानों को उदाहरणों के माध्यम से समझने का प्रयास करेंगे।
धारा 99: गांवों में भवन निर्माण को नियंत्रित करने का अधिकार
धारा 99 राज्य सरकार को यह अधिकार देती है कि वह उन गांवों या कस्बों में, जहाँ कोई स्थानीय प्राधिकरण स्थापित नहीं है, भवन निर्माण, रख-रखाव, विध्वंस, मरम्मत और विस्तार को नियंत्रित करने के लिए नियम बना सकती है। यह धारा विशेष रूप से उन ग्रामीण इलाकों में लागू होती है जहाँ नगर पालिका या पंचायत जैसी कोई संस्था नहीं है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी गांव में एक व्यक्ति अपनी पुरानी झोपड़ी की जगह पक्की दीवारों वाला मकान बनाना चाहता है, तो सरकार नियम बनाकर यह तय कर सकती है कि निर्माण किस ऊँचाई तक हो, किस प्रकार की सामग्री का प्रयोग हो, और किस सीमा तक निर्माण किया जा सकता है।
धारा 100: औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में भूमि की बिक्री
धारा 100 के तहत राज्य सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में भूमि की बिक्री को नियंत्रित कर सके और जहाँ आवश्यक हो वहाँ वार्षिक कर या मूल्यांकन लागू कर सके। इसका उद्देश्य यह है कि इन क्षेत्रों में भूमि का उचित उपयोग हो और सरकार को उससे राजस्व प्राप्त हो।
एक उदाहरण समझें यदि किसी शहर के बाहरी इलाके में एक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया है और सरकार वहाँ की जमीन फैक्ट्रियों को बेचना चाहती है, तो वह नियम बनाकर यह तय कर सकती है कि कौन सी कंपनियाँ कितनी जमीन खरीद सकती हैं और उन्हें हर साल कितना कर देना होगा।
धारा 101: कृषि प्रयोजनों के लिए भूमि का आवंटन
धारा 101 कृषि उपयोग के लिए भूमि के आवंटन की प्रक्रिया से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, कृषि कार्यों के लिए भूमि का आवंटन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार एक प्राधिकृत संस्था के द्वारा किया जाएगा। यह आवंटन किराए के भुगतान के अधीन होगा, जिसकी दर प्रथा, प्रचलन या लागू कानून के अनुसार तय की जाएगी।
यदि कोई व्यक्ति एक ही भूमि को प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है, तो उसे निम्नलिखित प्राथमिकता के आधार पर आवंटित किया जाएगा।
पहली प्राथमिकता सह-स्वामियों को दी जाएगी यदि भूमि एक संयुक्त खंड का हिस्सा हो या एक ही सिंचाई स्रोत से सिंचित हो। ऐसे सह-स्वामियों में प्राथमिकता उसे दी जाएगी जिसके पास न्यूनतम भूमि हो।
दूसरी प्राथमिकता उस गांव के निवासी को दी जाएगी जहाँ भूमि स्थित हो, और उसमें भी उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी जिनके पास कोई भूमि नहीं है या जिनके पास नियमों में निर्धारित सीमा से कम भूमि है।
तीसरी स्थिति में, यदि दो या दो से अधिक लोग समान प्राथमिकता में हों, तो लॉटरी के माध्यम से चयन किया जाएगा।
यह सब कुछ इस शर्त के अधीन होगा कि उस व्यक्ति के पास यह भूमि मिलने के बाद कुल भूमि नियमों में तय सीमा से अधिक न हो।
उदाहरण: मान लीजिए रामलाल, जो एक किसान है, एक कृषि भूमि के टुकड़े के लिए आवेदन करता है। उसी जमीन के लिए श्यामलाल नामक सह-स्वामी भी आवेदन करता है और वह पहले से बहुत कम भूमि का मालिक है। ऐसे में श्यामलाल को प्राथमिकता दी जाएगी।
धारा 102: कृषि के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए भूमि का आवंटन
धारा 102 के अनुसार, राज्य सरकार को यह विशेष अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी उद्देश्य के लिए जैसे कि उद्योग स्थापित करना या सार्वजनिक उपयोग की किसी योजना के लिए भूमि का आवंटन कर सकती है। यह आवंटन राज्य सरकार द्वारा तय की गई शर्तों पर होगा।
उदाहरण के तौर पर, यदि राज्य सरकार किसी क्षेत्र में सरकारी स्कूल या अस्पताल बनाना चाहती है, तो वह धारा 102 के अंतर्गत उस भूमि को संबंधित विभाग को आवंटित कर सकती है, चाहे वह भूमि मूल रूप से कृषि कार्य के लिए आरक्षित हो।
धारा 102-A: भूमि का स्थानीय प्राधिकरणों को हस्तांतरण
धारा 102-A के अंतर्गत राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी नज़ूल भूमि या धारा 92 के तहत निर्धारित भूमि को स्थानीय प्राधिकरण (जैसे नगर पालिका या पंचायत) को सौंप सके। ऐसी स्थिति में वह स्थानीय प्राधिकरण उस भूमि का उपयोग सरकार के निर्देशों के अनुसार करेगा और यह भूमि राज्य सरकार की ओर से ली जाएगी।
इस धारा के अनुसार, उपयोग की सीमा, शर्तें और प्रतिबंध राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और संबंधित स्थानीय प्राधिकरण को उनका पालन करना होता है। राजस्थान नगरपालिका (नगरीय भूमि का निस्तारण) नियम, 1974 इसी उद्देश्य से बनाए गए हैं।
उदाहरण के तौर पर, सरकार यदि किसी पंचायत समिति को एक नज़ूल भूमि सौंपती है, ताकि उस पर प्राथमिक विद्यालय या सामुदायिक भवन बन सके, तो पंचायत समिति उसे राज्य सरकार के निर्देशों के अनुसार ही उपयोग कर सकती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उस भूमि का स्वामित्व पंचायत के पास चला गया वह केवल उस कार्य के लिए उसका उपयोग करेगी।
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की ये धाराएं स्पष्ट रूप से यह दर्शाती हैं कि राज्य सरकार को भूमि के प्रबंधन और उपयोग पर कितना अधिकार प्राप्त है। विशेष रूप से धारा 99 से 102-A तक की धाराएं इस बात की गवाही देती हैं कि सरकार किस प्रकार ग्रामीण और नगरीय दोनों ही क्षेत्रों में भूमि का नियमन कर सकती है।
ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि भूमि का सही उपयोग हो, सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद मिले और भूमि से जुड़ी अनियमितताएं रोकी जा सकें। इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियम, जैसे कि नगरपालिका नियम, पंचायत नियम आदि इस प्रक्रिया को और भी व्यवस्थित और पारदर्शी बनाते हैं।
नोट: नज़ूल भूमि का अर्थ होता है वह सरकारी भूमि जो कभी किसी व्यक्ति की थी, लेकिन अब सरकार के अधीन आ चुकी है, और जिसे सरकार विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाती है या निस्तारित करती है।

