राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 95 से 98 : आबादी भूमि की नीलामी
Himanshu Mishra
22 May 2025 8:09 PM IST

राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 95 से 98 तक की प्रविधियां विशेष रूप से "आबादी भूमि" से संबंधित हैं। ये धाराएं इस विषय में दिशा-निर्देश देती हैं कि किस प्रकार से आबादी क्षेत्र में भूमि का विकास, अधिकारों का हस्तांतरण, नजूल भूमि का आवंटन, बोली प्रक्रिया, तथा कबाड़ और चारे के भंडारण हेतु भूमि का आवंटन किया जाएगा।
धारा 95 - आबादी का विकास
इस धारा में राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह आबादी क्षेत्र के विकास के लिए नियम बना सकती है। इस उद्देश्य में नजूल भूमि का आवंटन, आरक्षित भूमि का विकास, तथा ऐसी भूमि के लिए भुगतान की व्यवस्था शामिल है। इसके साथ ही जिन व्यक्तियों को यह भूमि आवंटित की जाती है, उनके अधिकारों की घोषणा भी इन नियमों द्वारा की जा सकती है।
उदाहरण के रूप में, सरकार किसी गांव में एक क्षेत्र को 'आबादी क्षेत्र' के रूप में आरक्षित कर देती है और यह तय करती है कि इस क्षेत्र की ज़मीन केवल उन लोगों को दी जाएगी जो नियमानुसार प्रीमियम (भूमि के लिए भुगतान) भरते हैं।
धारा की उप-धाराएं निम्नलिखित बातें स्पष्ट करती हैं:
• (2) बिना निर्धारित प्रीमियम का भुगतान किए कोई भी व्यक्ति आबादी क्षेत्र में भूमि पर कब्जा नहीं कर सकता।
• (3) जब कोई व्यक्ति प्रीमियम का पूरा भुगतान कर देता है, तभी उसे उस भूमि पर पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं।
• (4) यदि इस अधिनियम के लागू होने से पहले कोई व्यक्ति वैध रूप से आबादी भूमि पर कब्जा किए हुए है, तो उस पर यह धारा लागू नहीं होगी।
• (5) यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के लागू होने के समय आबादी भूमि पर सीमित अधिकारों के साथ काबिज है, तो वह प्रीमियम देकर पूर्ण स्वामित्व अधिकार प्राप्त कर सकता है।
(6) सबसे महत्वपूर्ण उपधारा है, जो कहती है कि अधिनियम के लागू होने के बाद यदि कोई व्यक्ति बिना वैध अधिकार के या नियमों के विरुद्ध आबादी भूमि पर कब्जा करता है या कोई निर्माण करता है (चाहे नया हो या किसी पुराने भवन का विस्तार हो), तो वह "अवैध कब्जाधारी" यानी अतिक्रमी माना जाएगा।
(7) ऐसे अतिक्रमियों पर धारा 91 के प्रावधान लागू होंगे।
इसमें यह भी कहा गया है कि तहसीलदार को यह अधिकार होगा कि वह स्थानीय निकायों (जैसे पंचायत या नगरपालिका) की ओर से आवेदन मिलने पर या स्वयं से भी कार्रवाई कर सकता है। अतिक्रमण करने वाले से जो जुर्माना और मूल्य वसूला जाएगा, वह उस स्थानीय निकाय के खाते में जमा किया जाएगा।
उदाहरण: रामलाल ने गांव के आबादी क्षेत्र में बिना सरकार की अनुमति लिए एक कमरा बना लिया। तहसीलदार ने जांच के बाद पाया कि रामलाल ने बिना प्रीमियम चुकाए और बिना अनुमति के निर्माण किया है, अतः उसे अतिक्रमी घोषित किया गया और उस पर धारा 91 के अनुसार कार्यवाही की गई।
धारा 96 - प्रीमियम की दरें निर्धारित करने की प्रक्रिया
इस धारा के अनुसार, राज्य सरकार एक अधिसूचना के माध्यम से यह निर्धारित कर सकती है कि आबादी क्षेत्र की जमीन के लिए किस दर से प्रीमियम लिया जाएगा। यह दर समय-समय पर बदली भी जा सकती है।
यह दर भूमि के "स्थान-मूल्य" (site value) के आधार पर निर्धारित की जाती है। विभिन्न गांवों, कस्बों या शहरों में अलग-अलग दरें तय की जा सकती हैं।
उदाहरण: जयपुर शहर के मालवीय नगर क्षेत्र में आबादी भूमि की दर ₹3000 प्रति वर्गमीटर तय की गई, जबकि पास के गांव में वही दर ₹500 प्रति वर्गमीटर है।
धारा 97 - आबादी भूमि की नीलामी
जब एक ही भूखंड के लिए एक से अधिक आवेदन आते हैं, तो वह भूमि सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से उस व्यक्ति को दी जाएगी जो सबसे अधिक बोली लगाएगा।
हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ अपवाद भी हैं:
• (a) कलेक्टर को यह अधिकार है कि यदि कोई बोली उसे अनुचित लगे, तो वह उसे अस्वीकार कर सकता है।
• (b) जो ज़मीन किसी भवन से सटी हुई है और उसका आकार बहुत छोटा है, वह बिना नीलामी के निर्धारित दर पर दी जा सकती है, लेकिन इसके लिए उपखंड अधिकारी की अनुमति आवश्यक है।
• (c) नीलामी की प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार होगी।
उदाहरण: दो लोग एक ही प्लॉट के लिए आवेदन करते हैं, तो तहसील कार्यालय उस ज़मीन की सार्वजनिक बोली करवाता है। सबसे अधिक बोली लगाने वाले को ज़मीन मिलती है, परन्तु यदि वह बोली ज़्यादा वाजिब नहीं मानी जाती, तो कलेक्टर उसे अस्वीकार भी कर सकता है।
धारा 98 - कचरे एवं चारे के भंडारण हेतु भूमि
इस धारा के अंतर्गत उपखंड अधिकारी को यह अधिकार है कि वह गांवों या नगरों में कुछ भूमि बिना किसी प्रीमियम या किराए के निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए दे सकता है:
• घर के कचरे, गोबर, और अन्य जैविक कचरे को जमा करने के लिए
• पशुओं के लिए चारा रखने के लिए
लेकिन यह भूमि तभी दी जाएगी जब वह उपलब्ध हो, और यह किसी व्यक्ति का अधिकार नहीं होगा।
सरकार के पास यह अधिकार सुरक्षित है कि वह कभी भी बिना कोई मुआवजा दिए ऐसी भूमि को वापस ले सकती है। इस भूमि का कोई भी व्यक्ति न तो विक्रय कर सकता है, न ही गिरवी रख सकता है, न दान दे सकता है और न ही उत्तराधिकार में दे सकता है।
यदि कोई व्यक्ति इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो तहसीलदार स्तर का राजस्व अधिकारी उस भूमि को वापस ले सकता है।
उदाहरण: मोहना को गांव में गोबर इकट्ठा करने के लिए 10x10 फीट की भूमि मुफ्त दी गई थी। लेकिन बाद में उसने उस पर छोटा सा कमरा बना लिया और किराए पर दे दिया। यह नियमों का उल्लंघन है। तहसीलदार ने भूमि वापस ले ली।
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 95 से 98 तक की प्रविधियां स्पष्ट रूप से यह दर्शाती हैं कि राज्य सरकार और प्रशासनिक अधिकारी किस प्रकार से आबादी भूमि का नियमन करते हैं। यह भूमि का दुरुपयोग रोकने, अतिक्रमण को नियंत्रित करने और सार्वजनिक हित में योजनाबद्ध विकास सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक प्रावधान हैं। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया गया है कि जो व्यक्ति पहले से वैध रूप से भूमि पर काबिज हैं, उनके अधिकार सुरक्षित रहें।
इस अधिनियम द्वारा एक ओर जहां प्रशासनिक अधिकारियों को अधिकार दिए गए हैं, वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों के लिए यह निर्देश भी हैं कि वे आबादी भूमि का लाभ तभी उठा सकते हैं जब वे निर्धारित शर्तों का पालन करें। नियमों की अवहेलना करने वालों को अतिक्रमी माना जाएगा और उन पर सख्त कार्यवाही हो सकती है।

