जल अधिनियम 1974 की धाराएं 9 से 12 : समितियों का गठन

Himanshu Mishra

22 Aug 2025 5:57 PM IST

  • जल अधिनियम 1974 की धाराएं 9 से 12 : समितियों का गठन

    भारत का जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 केवल प्रदूषण को रोकने का कानून नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा ढांचा (Framework) तैयार करता है जिसके माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने अधिकारों और कर्तव्यों को व्यवस्थित रूप से निभा सकें।

    इस अधिनियम के अध्याय II की धाराएँ 9 से 12 मुख्यतः इस बात पर केंद्रित हैं कि बोर्ड किस प्रकार समितियों (Committees) का गठन कर सकता है, किस प्रकार विशेष उद्देश्यों के लिए विशेषज्ञ व्यक्तियों की मदद ले सकता है, कैसे बोर्ड की कार्यवाही में खाली पदों (Vacancies) का असर नहीं पड़ता, और किस प्रकार अध्यक्ष (Chairman), सदस्य-सचिव (Member Secretary) और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति एवं अधिकारों का निर्धारण होता है।

    धारा 9: समितियों का गठन (Constitution of Committees)

    धारा 9 बोर्ड को यह शक्ति देती है कि वह अपनी ज़रूरत और उद्देश्य के अनुसार समितियों का गठन कर सके। यह समितियाँ पूरी तरह बोर्ड के सदस्यों से बनी हो सकती हैं, या पूरी तरह बाहर के विशेषज्ञों से, अथवा दोनों के मिश्रण से। समितियों का गठन करने का उद्देश्य विशेष विषयों पर गहन अध्ययन करना, व्यावहारिक समाधान निकालना और बोर्ड की कार्यवाही को प्रभावी बनाना है।

    उदाहरण के तौर पर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग समितियाँ गठित की हैं। जैसे, यमुना नदी की सफाई के लिए गठित विशेषज्ञ समिति, जिसमें पर्यावरण वैज्ञानिक, नगर निकायों के अधिकारी और उद्योग प्रतिनिधि शामिल थे। इसी तरह राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) भी अक्सर स्थानीय समितियाँ बनाते हैं, जैसे राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सीमेंट उद्योगों से निकलने वाले धुएँ पर नियंत्रण के लिए विशेष समिति गठित की थी।

    समितियाँ अपनी बैठकें निर्धारित समय और स्थान पर करती हैं और नियमों के अनुसार कार्य करती हैं। बोर्ड यह भी तय करता है कि बाहर से शामिल किए गए सदस्यों को उनकी सेवाओं के लिए कितनी फीस (Fees) और भत्ते (Allowances) दिए जाएंगे।

    धारा 10: बोर्ड के साथ व्यक्तियों का अस्थायी सहयोग (Temporary Association of Persons with Board)

    धारा 10 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो बोर्ड को यह अनुमति देता है कि वह अपनी कार्यवाही में विशेषज्ञों, समाजसेवियों या किसी विशेष क्षेत्र के जानकार लोगों को अस्थायी रूप से शामिल कर सके। ऐसे लोग स्थायी सदस्य नहीं होते, लेकिन वे अपनी विशेषज्ञता के आधार पर चर्चा में भाग ले सकते हैं।

    उदाहरण के रूप में, जब गंगा एक्शन प्लान बनाया गया था, तब बोर्डों ने जलविज्ञान (Hydrology), पर्यावरण अभियांत्रिकी (Environmental Engineering) और समाजशास्त्र (Sociology) के विशेषज्ञों को अपनी बैठक में शामिल किया। इन विशेषज्ञों ने प्रदूषण नियंत्रण की रणनीति, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों में अहम सुझाव दिए।

    हालाँकि, ऐसे व्यक्तियों को मतदान का अधिकार नहीं दिया जाता। वे केवल चर्चा में भाग ले सकते हैं। साथ ही उन्हें उनकी सेवाओं के लिए फीस और भत्ते दिए जा सकते हैं। यह व्यवस्था बोर्ड को लचीलापन (Flexibility) देती है ताकि वह जटिल पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में विभिन्न क्षेत्रों के ज्ञान का उपयोग कर सके।

    धारा 11: बोर्ड में रिक्तियों का प्रभाव नहीं (Vacancy in Board not to Invalidate Acts or Proceedings)

    किसी भी बड़े संगठन में यह संभावना होती है कि कभी-कभी सदस्यों के पद रिक्त हो जाएँ, या संविधानिक संरचना में कोई कमी रह जाए। धारा 11 इस स्थिति से निपटने के लिए बनाई गई है। यह कहती है कि यदि बोर्ड या उसकी किसी समिति में कोई पद खाली है, या संरचना में कोई कमी है, तो भी बोर्ड द्वारा किए गए कार्य या लिए गए निर्णय वैध (Valid) माने जाएँगे।

    यह प्रावधान अत्यंत व्यावहारिक है क्योंकि यदि किसी एक सदस्य के हटने या किसी पद के खाली रहने से बोर्ड की सारी कार्यवाही रुक जाए तो प्रदूषण नियंत्रण जैसे गंभीर विषय पर काम रुक सकता है।

    उदाहरण के तौर पर, यदि महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में किसी उद्योग विशेषज्ञ का पद कुछ महीनों तक खाली रहा, तब भी बोर्ड के अन्य निर्णय जैसे औद्योगिक अपशिष्ट जल के लिए नए मानक तय करना, वैध माने गए। इस प्रावधान ने यह सुनिश्चित किया कि प्रशासनिक खामियों की वजह से पर्यावरणीय संरक्षण का कार्य बाधित न हो।

    धारा 11A: अध्यक्ष को अधिकारों का प्रत्यायोजन (Delegation of Powers to Chairman)

    धारा 11A यह व्यवस्था करती है कि बोर्ड का अध्यक्ष, बोर्ड द्वारा सौंपे गए अधिकारों और दायित्वों का प्रयोग कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि बोर्ड के कामकाज को तेज़ और प्रभावी बनाने के लिए कई बार अध्यक्ष को सीधे अधिकार दिए जा सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में तुरंत किसी औद्योगिक क्षेत्र में निरीक्षण (Inspection) का आदेश देना हो, तो यह ज़रूरी नहीं कि पूरी बोर्ड बैठक बुलाकर निर्णय लिया जाए। अध्यक्ष को यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह स्वयं यह आदेश जारी करे। इससे समय की बचत होती है और त्वरित कार्यवाही संभव होती है।

    यह प्रावधान विशेषकर उन परिस्थितियों में उपयोगी है जहाँ प्रदूषण से संबंधित समस्या अचानक उत्पन्न होती है और तत्काल कार्रवाई करनी होती है।

    धारा 12: सदस्य-सचिव और अन्य कर्मचारी (Member-Secretary and Officers of the Board)

    धारा 12 बोर्ड के सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक, सदस्य-सचिव (Member Secretary) की भूमिका को स्पष्ट करती है। यह प्रावधान बताता है कि सदस्य-सचिव की सेवा शर्तें क्या होंगी, उनके अधिकार और कर्तव्य क्या होंगे, और किस प्रकार उन्हें बोर्ड या अध्यक्ष द्वारा अधिकार सौंपे जा सकते हैं।

    सदस्य-सचिव आमतौर पर एक तकनीकी विशेषज्ञ होते हैं जिनके पास वैज्ञानिक, अभियांत्रिकी या प्रबंधन का अनुभव होता है। उनका काम प्रशासनिक नेतृत्व देना, नीतियाँ लागू करना और बोर्ड की दैनिक कार्यवाही का संचालन करना होता है।

    इसके अलावा, बोर्ड अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति भी कर सकता है। यह नियुक्तियाँ केंद्र या राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अंतर्गत की जाती हैं। धारा 12(3A) यह प्रावधान करती है कि अधिकारियों और कर्मचारियों की भर्ती, वेतनमान और सेवा शर्तें बोर्ड द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार होंगी, लेकिन इन्हें केंद्र या राज्य सरकार की स्वीकृति आवश्यक होगी।

    धारा 12(3B) बोर्ड को यह भी अनुमति देती है कि वह कुछ अधिकार अपने अधिकारियों को सौंप दे। उदाहरण के लिए, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कई बार अपने क्षेत्रीय निदेशकों को अधिकार देता है कि वे औद्योगिक इकाइयों का निरीक्षण करें और रिपोर्ट तैयार करें।

    इसके अतिरिक्त, बोर्ड ज़रूरत पड़ने पर परामर्शदाता अभियंता (Consulting Engineer) की भी नियुक्ति कर सकता है। मान लीजिए कि किसी राज्य में कोई बड़ा सीवेज ट्रीटमेंट प्रोजेक्ट बनना है, तो बोर्ड किसी अनुभवी अभियंता को परामर्शदाता के रूप में नियुक्त कर सकता है।

    धाराएँ 9 से 12 इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केवल कानूनी प्रावधानों तक सीमित न रहें, बल्कि व्यावहारिक रूप से सक्षम, लचीले और विशेषज्ञ-समर्थित संस्थान बन सकें। समितियों का गठन, विशेषज्ञ व्यक्तियों का अस्थायी सहयोग, रिक्तियों के बावजूद कार्यवाही की वैधता, अध्यक्ष को अधिकारों का प्रत्यायोजन और सदस्य-सचिव व कर्मचारियों की नियुक्ति—ये सभी प्रावधान बोर्ड की संगठनात्मक दक्षता (Organizational Efficiency) को मजबूत बनाते हैं।

    भारत में प्रदूषण की चुनौती विशाल और जटिल है। केवल एक बोर्ड या एक कानून इसे हल नहीं कर सकता। परंतु इस अधिनियम के ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि बोर्ड समयानुसार विशेषज्ञों को शामिल कर सके, तुरंत कार्रवाई कर सके और अपने संगठनात्मक ढाँचे को प्रभावी बनाए रख सके। यही कारण है कि इन धाराओं का व्यावहारिक महत्व केवल कागज़ी नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की नीतियों और परियोजनाओं में भी दिखाई देता है।

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