सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 82 से 84C : केंद्र सरकार का राज्य सरकार को निर्देश देने का अधिकार

Himanshu Mishra

20 Jun 2025 11:18 AM

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 82 से 84C : केंद्र सरकार का राज्य सरकार को निर्देश देने का अधिकार

    सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 भारत में डिजिटल दुनिया को नियंत्रित करने वाला एक प्रमुख कानून है। यह अधिनियम साइबर अपराध, इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज, डिजिटल साक्ष्य, और ऑनलाइन लेन-देन जैसे विषयों को कानूनी रूप से परिभाषित करता है।

    इस अधिनियम की धाराएं 82 से 84C उन प्रावधानों से जुड़ी हैं जो अधिकारियों के कर्तव्यों, उनके अधिकारों, संरक्षण और अपराध के प्रयास व उकसावे से संबंधित हैं। यह लेख इन धाराओं का सरल और व्यावहारिक विश्लेषण करता है ताकि आम पाठक भी इन कानूनी प्रावधानों को आसानी से समझ सकें।

    धारा 82: नियंत्रक और अन्य अधिकारी लोक सेवक माने जाएंगे

    इस धारा में कहा गया है कि नियंत्रक (Controller), उप-नियंत्रक (Deputy Controller) और सहायक नियंत्रक (Assistant Controller) भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के तहत 'लोक सेवक' माने जाएंगे। इसका मतलब यह हुआ कि ये अधिकारी सरकार की ओर से जनता की सेवा करने वाले पद पर हैं, और इनसे वही अपेक्षाएं की जाती हैं जो किसी अन्य सरकारी अधिकारी से की जाती हैं।

    यह धारणा इन अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करती है और यदि वे अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, तो उनके खिलाफ वही कार्रवाई की जा सकती है जो किसी सरकारी अफसर के खिलाफ की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई नियंत्रक किसी डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट को गलत तरीके से जारी करता है, तो वह भ्रष्टाचार या कदाचार के आरोप में पकड़ा जा सकता है।

    धारा 83: केंद्र सरकार का राज्य सरकार को निर्देश देने का अधिकार

    धारा 83 यह बताती है कि केंद्र सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम या इससे संबंधित नियमों, आदेशों, या विनियमों को राज्य में प्रभावी रूप से लागू करने हेतु निर्देश दे सकती है। यह व्यवस्था भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए की गई है ताकि अधिनियम का देशभर में एक समान कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य में साइबर अपराधों की संख्या बढ़ रही है और स्थानीय अधिकारियों द्वारा उचित कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, तो केंद्र सरकार वहां की राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दे सकती है कि वह अधिनियम के तहत विशेष साइबर क्राइम सेल बनाए या डिजिटल फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं को सशक्त करे।

    धारा 84: सद्भावनापूर्वक कार्य करने पर कानूनी संरक्षण

    इस धारा में कहा गया है कि यदि केंद्र सरकार, राज्य सरकार, नियंत्रक, या उसका प्रतिनिधि, या निर्णयकर्ता अधिकारी इस अधिनियम के अंतर्गत कोई कार्य सद्भावनापूर्वक करता है, तो उसके खिलाफ कोई वाद, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी। इसका उद्देश्य अधिकारियों को बेझिझक कार्य करने की स्वतंत्रता देना है।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई नियंत्रक किसी वेबसाइट को इसलिए ब्लॉक कर देता है क्योंकि उसे लगता है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, और बाद में पता चलता है कि ऐसा खतरा नहीं था, तब भी यदि उसने वह कार्य ईमानदारी और सद्भावना में किया था, तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा।

    धारा 84A: एन्क्रिप्शन के तरीके तय करने का अधिकार

    इस धारा के अनुसार, केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह ई-गवर्नेंस और ई-कॉमर्स को सुरक्षित बनाने हेतु एन्क्रिप्शन के तरीके और विधियाँ तय करे। एन्क्रिप्शन डिजिटल डेटा को सुरक्षित रखने का एक तकनीकी तरीका है जिससे जानकारी को इस प्रकार कोड में बदल दिया जाता है कि वह केवल अधिकृत व्यक्ति द्वारा ही पढ़ी जा सके।

    उदाहरण के लिए, जब हम इंटरनेट बैंकिंग करते हैं तो उसमें डाले गए पासवर्ड और लेनदेन की जानकारी एन्क्रिप्ट की जाती है ताकि हैकर उसे चुरा न सकें। केंद्र सरकार यह तय कर सकती है कि किन एन्क्रिप्शन विधियों को भारत में मान्यता दी जाएगी।

    धारा 84B: अपराध के लिए उकसाने पर दंड

    यदि कोई व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत किसी अपराध को उकसाता है और उस उकसावे के कारण वह अपराध हो जाता है, तो ऐसे व्यक्ति को उसी प्रकार की सजा दी जाएगी जैसी उस अपराध के लिए दी जाती है। यह धारा तब लागू होती है जब अधिनियम में विशेष रूप से उकसावे की सजा निर्धारित नहीं है।

    व्याख्या के अनुसार, कोई भी कार्य तब 'उकसावे' के तहत माना जाता है जब वह किसी को उकसाने, साजिश रचने या सहायता प्रदान करने की वजह से किया गया हो।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति दूसरे को हैकिंग के लिए जरूरी तकनीकी उपकरण और जानकारी देता है, और दूसरा व्यक्ति उसी जानकारी के आधार पर किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर देता है, तो पहला व्यक्ति भी अपराधी माना जाएगा और उस पर वही दंड लागू होगा जैसा कि मुख्य अपराधी पर।

    धारा 84C: अपराध के प्रयास पर दंड

    यदि कोई व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध करने का प्रयास करता है, लेकिन वह अपराध पूर्ण नहीं हो पाता, फिर भी यदि उस प्रयास में कोई कार्य किया गया हो, तो उस व्यक्ति को दंडित किया जाएगा।

    इसमें यह प्रावधान है कि ऐसी स्थिति में उसे उस अपराध की अधिकतम सजा की आधी अवधि तक की जेल या उतना ही जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। यह प्रावधान अपराधियों को यह सोचकर अपराध करने से रोकने का प्रयास है कि अगर उनका प्रयास भी पकड़ा गया तो उन्हें दंड मिलेगा।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी बैंक की वेबसाइट को हैक करने की कोशिश करता है और उसने उसका पासवर्ड तोड़ने के लिए सॉफ्टवेयर चला भी दिया लेकिन अंतिम क्षण में पकड़ा गया, तो उसे भी दंड मिलेगा, भले ही डेटा चोरी नहीं हुआ हो।

    धाराएं 82 से 84C सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की रीढ़ हैं जो अधिकारियों को जिम्मेदार और सशक्त बनाती हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करती हैं कि डिजिटल अपराधों के प्रयास और उकसावे को भी कानून के दायरे में लाया जाए। इन प्रावधानों का उद्देश्य डिजिटल इंडिया को सुरक्षित, उत्तरदायी और कानूनी रूप से सक्षम बनाना है। जैसे-जैसे भारत डिजिटल तकनीक में आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इन धाराओं का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है।

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