पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 81 - 84: दस्तावेज़ों का गलत पृष्ठांकन, प्रतिलिपि, अनुवाद या पंजीकरण करने पर दंड

Himanshu Mishra

14 Aug 2025 6:59 PM IST

  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 81 - 84: दस्तावेज़ों का गलत पृष्ठांकन, प्रतिलिपि, अनुवाद या पंजीकरण करने पर दंड

    आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XIV को समझते हैं, जो पंजीकरण प्रक्रिया में होने वाले अपराधों और उनके लिए निर्धारित दंडों से संबंधित है। यह भाग पंजीकरण प्रणाली की अखंडता (integrity) की रक्षा करता है और इसमें शामिल सभी पक्षों - अधिकारियों और नागरिकों - की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

    81. चोट पहुँचाने के इरादे से दस्तावेज़ों का गलत पृष्ठांकन, प्रतिलिपि, अनुवाद या पंजीकरण करने पर दंड (Penalty for incorrectly endorsing, copying, translating or registering documents with intent to injure)

    यह धारा पंजीकरण अधिकारियों और उनके कर्मचारियों के दुराचार (misconduct) से संबंधित है।

    इसमें कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत नियुक्त प्रत्येक पंजीकरण अधिकारी और उसके कार्यालय में कार्यरत हर व्यक्ति, जिसे किसी दस्तावेज़ के पृष्ठांकन (endorsing), प्रतिलिपि बनाने (copying), अनुवाद (translating) या पंजीकरण का काम सौंपा गया है, यदि वह जानबूझकर या यह मानते हुए कि वह गलत तरीके से (in a manner which he knows or believes to be incorrect) ऐसा करता है, और उसका इरादा किसी व्यक्ति को चोट (injury) पहुँचाने का है (जैसा कि भारतीय दंड संहिता में परिभाषित है), तो उसे सात साल तक की कैद (imprisonment for a term which may extend to seven years), या जुर्माना (fine), या दोनों से दंडित किया जाएगा।

    • उदाहरण: एक उप-रजिस्ट्रार जानबूझकर एक वैध दस्तावेज़ को अपनी रजिस्ट्री-बुक में गलत तरीके से दर्ज करता है, जैसे कि मालिक का नाम गलत लिख देना या संपत्ति का विवरण बदल देना। यदि वह जानता है कि इससे मालिक को कानूनी नुकसान हो सकता है, तो वह इस धारा के तहत दंड का भागी होगा।

    82. झूठे बयान देने, झूठी प्रतियां या अनुवाद देने, गलत प्रतिरूपण और दुष्प्रेरण के लिए दंड (Penalty for making false statements, delivering false copies or translations, false personation, and abetment)

    यह धारा उन अपराधों को परिभाषित करती है जो नागरिक पंजीकरण प्रक्रिया के दौरान कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति, जो:

    • (a) झूठे बयान देता है (makes any false statement): जानबूझकर कोई भी झूठा बयान देता है, चाहे वह शपथ पर हो या नहीं, और चाहे वह दर्ज किया गया हो या नहीं, किसी भी अधिकारी के सामने जो इस अधिनियम को लागू कर रहा है।

    • (b) झूठी प्रतियां या अनुवाद देता है (delivers false copies or translations): धारा 19 (section 19) या धारा 21 (section 21) के तहत किसी भी कार्यवाही में जानबूझकर किसी दस्तावेज़ की झूठी प्रति या अनुवाद, या किसी नक्शे या योजना की झूठी प्रति देता है।

    • (c) गलत प्रतिरूपण (falsely personates) करता है: जानबूझकर किसी और व्यक्ति का प्रतिरूपण करता है और उस व्यक्ति के रूप में कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है, या कोई स्वीकृति या बयान देता है, या कोई सम्मन या आयोग जारी करवाता है।

    • (d) दुष्प्रेरण (abets) करता है: इस अधिनियम द्वारा दंडनीय किसी भी कार्य का दुष्प्रेरण करता है (यानी उकसाता है या मदद करता है)।

    तो उसे सात साल तक की कैद (imprisonment for a term which may extend to seven years), या जुर्माना (fine), या दोनों से दंडित किया जाएगा।

    • उदाहरण 1 (झूठा बयान): एक गवाह पंजीकरण अधिकारी के सामने शपथ पर झूठ बोलता है कि उसने अपनी आंखों के सामने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर होते देखे, जबकि उसने नहीं देखे थे।

    • उदाहरण 2 (गलत प्रतिरूपण): एक व्यक्ति किसी संपत्ति के मालिक का प्रतिरूपण करता है और फर्जी हस्ताक्षर करके उसकी संपत्ति का पंजीकरण कराने की कोशिश करता है।

    83. पंजीकरण अधिकारी अभियोजन शुरू कर सकते हैं (Registering officers may commence prosecutions)

    यह धारा बताती है कि इस अधिनियम के तहत अपराधों के लिए कानूनी कार्रवाई कौन शुरू कर सकता है।

    उपधारा (1) के अनुसार, इस अधिनियम के तहत कोई भी अपराध, जो किसी पंजीकरण अधिकारी के अधिकारिक क्षमता में उसके संज्ञान में आता है, वह महानिरीक्षक (Inspector-General), रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) की अनुमति से या उनके द्वारा शुरू किया जा सकता है, जिसके क्षेत्र, जिले या उप-जिले में अपराध हुआ है। यह उन्हें अपनी अधिकारिता में होने वाले अपराधों के लिए सीधे कानूनी कार्रवाई करने की शक्ति देता है।

    उपधारा (2) में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों की सुनवाई किसी भी ऐसे न्यायालय या अधिकारी द्वारा की जाएगी जिसके पास द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट (Magistrate of the second class) से कम की शक्तियां न हों।

    84. पंजीकरण अधिकारी लोक सेवक माने जाएँगे (Registering officers to be deemed public servants)

    यह धारा पंजीकरण अधिकारियों की कानूनी स्थिति को स्पष्ट करती है।

    उपधारा (1) के अनुसार, इस अधिनियम के तहत नियुक्त प्रत्येक पंजीकरण अधिकारी को भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के अर्थ में एक लोक सेवक (public servant) माना जाएगा। इसका मतलब है कि उनके द्वारा किए गए अपराधों और उनके प्रति किए गए अपराधों पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधान लागू होते हैं।

    उपधारा (2) कहती है कि जब कोई पंजीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति से जानकारी की मांग करता है, तो वह व्यक्ति कानूनी रूप से उसे ऐसी जानकारी देने के लिए बाध्य है। यह अधिकारी को अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से पालन करने की शक्ति देता है।

    उपधारा (3) में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228 में, "न्यायिक कार्यवाही" (judicial proceeding) शब्द में इस अधिनियम के तहत कोई भी कार्यवाही शामिल मानी जाएगी। इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति पंजीकरण अधिकारी के काम में जानबूझकर बाधा डालता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के तहत दंडित किया जा सकता है।

    यह भाग मिलकर पंजीकरण प्रणाली में विश्वास और कानूनी वैधता की रक्षा करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि संपत्ति के लेनदेन और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों का पंजीकरण एक सुरक्षित और विश्वसनीय प्रक्रिया बनी रहे।

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