राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 79 से 87 : अपील, पुनर्विचार और पुनरीक्षण
Himanshu Mishra
15 May 2025 7:44 PM IST

भूमिका
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम के अध्यायों में अपील, पुनर्विचार (Review), पुनरीक्षण (Revision) और आदेशों की प्रतिलिपि से संबंधित विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं। इनका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, न्याय की पुनः समीक्षा और अनुचित आदेशों पर नियंत्रण सुनिश्चित करना है। नीचे हम धाराओं 79 से 87 तक के प्रावधानों का विस्तार से सरल हिंदी में वर्णन कर रहे हैं, ताकि आम नागरिक या विधि विद्यार्थी भी इन्हें सहजता से समझ सके।
धारा 79 – अपील की याचिका के साथ आदेश की प्रमाणित प्रति देना अनिवार्य
जब भी कोई व्यक्ति किसी आदेश के खिलाफ अपील दायर करता है, तो उसे उस आदेश की प्रमाणित प्रति अपील याचिका के साथ संलग्न करनी होती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपीलीय प्राधिकारी को वह आदेश, जिसके खिलाफ आपत्ति की जा रही है, स्पष्ट रूप से ज्ञात हो।
उदाहरण: यदि कोई किसान तहसीलदार द्वारा भूमि सीमांकन के आदेश से असंतुष्ट है और अपील करना चाहता है, तो उसे उस आदेश की प्रमाणित प्रति साथ में देनी होगी।
धारा 80 – अपीलीय प्राधिकारी की शक्तियाँ
इस धारा के अनुसार, अपीलीय प्राधिकारी के पास यह शक्ति है कि वह अपील को स्वीकार कर ले या रिकार्ड मंगवाकर, अपीलकर्ता को सुनवाई का अवसर देकर, संक्षेप में अपील खारिज कर दे।
यदि अपील समय सीमा से बाहर है या वह अपील योग्य नहीं है, तो रिकार्ड मंगवाना आवश्यक नहीं है। यदि अपील स्वीकार कर ली जाती है, तो सुनवाई के लिए दिनांक निश्चित की जाएगी और प्रतिवादी को सूचना दी जाएगी।
सुनवाई के बाद अपीलीय प्राधिकारी निम्नलिखित कार्य कर सकता है:
• मूल आदेश की पुष्टि कर सकता है,
• उसमें परिवर्तन कर सकता है,
• उसे पलट सकता है,
• किसी तथ्य की आगे जांच के लिए आदेश दे सकता है,
• स्वयं साक्ष्य एकत्र कर सकता है,
• मामले को निचली अदालत को पुनः विचार के लिए निर्देशों सहित भेज सकता है।
उदाहरण: अगर कोई व्यक्ति जिला कलेक्टर के आदेश के खिलाफ अपील करता है, तो राजस्व अपीलीय प्राधिकारी रिकॉर्ड मंगवाकर, पक्षों को सुनकर, आदेश में संशोधन या पुनः जांच के निर्देश दे सकता है।
धारा 81 – निचली अदालत के आदेश के निष्पादन पर रोक लगाने की शक्ति
अगर कोई अपील स्वीकार कर ली जाती है, तो अपीलीय प्राधिकारी यह आदेश दे सकता है कि निचली अदालत द्वारा पारित आदेश का निष्पादन तब तक रोका जाए जब तक अपील का परिणाम न आ जाए।
इसी प्रकार, जब तक अपील दायर करने की समयसीमा समाप्त नहीं हुई हो और अपील दायर नहीं की गई हो, तब तक निचली अदालत स्वयं भी निष्पादन पर रोक लगा सकती है।
इस रोक के दौरान, सुरक्षा राशि जमा करने या अन्य शर्तें लगाने का अधिकार अपीलीय प्राधिकारी या राजस्व अधिकारी को है।
उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध भूमि कब्जा खाली करने का आदेश है और वह अपील करना चाहता है, तो अपील स्वीकार होने पर निष्पादन रोका जा सकता है, बशर्ते वह सुरक्षा राशि जमा करे।
धारा 82 – रिकॉर्ड मंगवाकर राज्य सरकार या बोर्ड को सिफारिश
सेटलमेंट कमिश्नर, डायरेक्टर ऑफ लैंड रिकॉर्ड्स या कलेक्टर के पास यह शक्ति है कि वे अपने अधीनस्थ राजस्व अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णयों या प्रक्रियाओं की जाँच के लिए रिकॉर्ड मंगवा सकते हैं।
अगर उन्हें लगे कि आदेश या प्रक्रिया में कोई कानूनी त्रुटि है या आदेश अनुचित है, तो वे उस केस को अपने अभिमत के साथ आगे बढ़ा सकते हैं:
• न्यायिक या सेटलमेंट से संबंधित मामलों में बोर्ड को,
• गैर-न्यायिक मामलों में राज्य सरकार को।
बोर्ड या सरकार फिर उपयुक्त आदेश पारित कर सकते हैं।
धारा 83 – राज्य सरकार द्वारा गैर-न्यायिक कार्यों की समीक्षा
राज्य सरकार के पास यह शक्ति है कि वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा किए गए गैर-न्यायिक कार्यों के रिकॉर्ड मंगवाकर समीक्षा कर सके और उचित आदेश दे सके।
उदाहरण: अगर किसी पटवारी द्वारा किसी भू-राजस्व रिकॉर्ड को गलत तरीके से दर्ज किया गया है, तो सरकार उसे जाँच कर बदल सकती है।
धारा 84 – बोर्ड की पुनरीक्षण शक्तियाँ
बोर्ड ऐसे मामलों में, जिनमें उसके पास अपील नहीं आती, रिकॉर्ड मंगवाकर यह देख सकता है कि क्या किसी अधिकारी ने अपनी कानूनी सीमा से बाहर जाकर निर्णय लिया है, या अपनी शक्तियों का अनुचित उपयोग किया है। यदि ऐसा पाया गया, तो बोर्ड आदेश को रद्द, संशोधित या परिवर्तित कर सकता है।
उदाहरण: किसी एसडीएम द्वारा सीमा से बाहर जाकर आदेश पारित करने पर बोर्ड स्वतः संज्ञान लेकर आदेश को शून्य घोषित कर सकता है।
धारा 85 – सुनवाई का अधिकार
धारा 82, 83 और 84 के तहत कोई भी आदेश पारित करने से पहले, जिससे किसी व्यक्ति के अधिकार प्रभावित हों, ऐसे व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है।
न्याय के सिद्धांत के अनुसार, "दो पक्षों को सुने बिना निर्णय पारित करना अन्यायपूर्ण होता है।"
धारा 85-A – राज्य सरकार द्वारा पुनर्विचार (Review)
राज्य सरकार किसी भी आदेश पर पुनर्विचार कर सकती है, चाहे वह उसके अपने द्वारा दिया गया हो या किसी पक्षकार द्वारा आवेदन दिया गया हो। वह आदेश को रद्द, संशोधित या यथावत् बनाए रखने का अधिकार रखती है।
धारा 86 – बोर्ड तथा अन्य राजस्व न्यायालयों द्वारा पुनर्विचार
बोर्ड तथा अन्य राजस्व न्यायालय या अधिकारी, अपने द्वारा या अपने पूर्ववर्तियों द्वारा पारित आदेश पर पुनर्विचार कर सकते हैं। यह पुनर्विचार स्वयं या किसी पक्ष की याचिका पर हो सकता है।
परंतु इसके लिए कुछ शर्तें हैं:
• कोई आदेश तब तक बदला नहीं जा सकता जब तक संबंधित पक्षों को सुनवाई का अवसर न दिया जाए।
• यदि उस आदेश पर अपील या पुनरीक्षण लंबित है, तब तक पुनर्विचार नहीं किया जा सकता।
• दो पक्षों के अधिकारों से संबंधित मामलों में केवल पक्ष की याचिका पर ही पुनर्विचार होगा और वह याचिका 90 दिनों के अंदर दायर होनी चाहिए।
यह समीक्षा सिविल प्रक्रिया संहिता की ऑर्डर 47, रूल 1 में दी गई शर्तों पर आधारित होगी।
धारा 87 – अपील व पुनर्विचार के लिए सीमा अधिनियम लागू
इस धारा के अनुसार, भारतीय सीमा अधिनियम, 1908 (Limitation Act) की धाराएं इस अधिनियम के तहत की गई अपीलों व पुनर्विचार याचिकाओं पर लागू होंगी।
इसका तात्पर्य है कि यदि किसी याचिका को सीमित अवधि में नहीं दायर किया गया है, तो वह केवल वैध कारणों पर ही स्वीकार की जाएगी।
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धाराएं 79 से 87 तक यह सुनिश्चित करती हैं कि न केवल नागरिकों को अपील और पुनर्विचार का अवसर मिले, बल्कि राजस्व न्यायालय और राज्य सरकार भी अपने आदेशों की वैधानिकता की समीक्षा कर सकें। इससे न्याय प्रणाली अधिक पारदर्शी और न्यायोचित बनती है।
हर नागरिक या वकील को यह जानना आवश्यक है कि किस परिस्थिति में वह अपील कर सकता है, कब आदेश पर रोक लग सकती है और किस स्तर पर पुनरीक्षण अथवा पुनर्विचार की संभावना है। यही जानकारी उन्हें न्याय की दिशा में सही कदम उठाने में सहायता प्रदान करती है।

