सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 73 से 77: डिजिटल प्रमाणपत्र, धोखाधड़ी, अंतरराष्ट्रीय अपराध और जब्ती
Himanshu Mishra
16 Jun 2025 6:46 PM IST

डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर और उससे संबंधित प्रमाणपत्रों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है। किसी व्यक्ति की पहचान, लेनदेन की वैधता और दस्तावेज़ की प्रमाणिकता को सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का प्रयोग किया जाता है।
परंतु, जब इनका दुरुपयोग किया जाता है या झूठे प्रमाणपत्र प्रकाशित किए जाते हैं, तो इससे न केवल डिजिटल विश्वास पर आघात होता है बल्कि साइबर अपराध को भी बढ़ावा मिलता है। इसलिए, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धाराएं 73 से 77 ऐसे ही अपराधों और उनके परिणामों को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं। इस लेख में हम इन धाराओं का सरल और व्यवहारिक विश्लेषण करेंगे।
धारा 73: झूठा इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र प्रकाशित करने पर दंड
यह धारा यह कहती है कि कोई भी व्यक्ति निम्नलिखित परिस्थितियों में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र को प्रकाशित या किसी अन्य को उपलब्ध नहीं कर सकता:
पहला, यदि वह जानता है कि प्रमाणपत्र में दी गई प्रमाणन संस्था (Certifying Authority) ने ऐसा प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया है। दूसरा, यदि प्रमाणपत्र में जिनका नाम दर्ज है उन्होंने उस प्रमाणपत्र को स्वीकार ही नहीं किया है। और तीसरा, यदि वह प्रमाणपत्र पहले ही रद्द या निलंबित किया जा चुका है। हां, यदि प्रमाणपत्र का उपयोग यह जांचने के लिए किया जा रहा है कि उसके रद्द होने से पहले किस हस्ताक्षर के लिए उसे प्रयोग किया गया था, तो वह एक वैध उपयोग होगा।
यदि कोई व्यक्ति इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसे दो वर्ष तक की सजा या एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति ने किसी पुराने और रद्द किए जा चुके इलेक्ट्रॉनिक सर्टिफिकेट को जानबूझकर किसी वित्तीय संस्था को दिखाया ताकि वह ऋण प्राप्त कर सके। ऐसा करने पर वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा और उसे सजा दी जा सकती है।
धारा 74: धोखाधड़ीपूर्ण उद्देश्य से प्रमाणपत्र बनाना या प्रकाशित करना
धारा 74 एक कदम आगे बढ़ते हुए यह बताती है कि अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी झूठे या धोखाधड़ीपूर्ण उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र बनाता है, प्रकाशित करता है या किसी अन्य को उपलब्ध कराता है, तो यह दंडनीय अपराध होगा। इस स्थिति में दोषी व्यक्ति को दो वर्ष तक की जेल या एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है।
व्यावहारिक स्थिति: मान लीजिए कोई व्यक्ति एक नकली प्रमाणन संस्था बनाकर जनता को इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र जारी करता है और उनसे पैसे वसूलता है। चूंकि उसका उद्देश्य धोखाधड़ी है, इसलिए उस पर धारा 74 के अंतर्गत कार्यवाही होगी।
धारा 75: भारत के बाहर किए गए अपराधों पर भी अधिनियम का प्रभाव
यह धारा वैश्विक स्तर पर डिजिटल अपराधों को रोकने के लिए बेहद आवश्यक है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति, चाहे वह भारतीय नागरिक हो या विदेशी, भारत के बाहर रहते हुए भी कोई ऐसा कृत्य करता है जो इस अधिनियम के तहत अपराध है, तो वह इस अधिनियम के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है, बशर्ते उस कृत्य का संबंध भारत में स्थित किसी कंप्यूटर, कंप्यूटर नेटवर्क या प्रणाली से हो।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि भारत के नागरिकों या भारत में स्थित डिजिटल सिस्टम की सुरक्षा भारत की सीमाओं से बाहर भी बनी रहे।
प्रसंग: मान लीजिए कि कोई विदेशी हैकर अमेरिका से भारत में स्थित किसी बैंक के सर्वर को हैक करता है। यद्यपि अपराध भारत के बाहर हुआ है, फिर भी यह धारा लागू होगी क्योंकि यह अपराध भारत में स्थित कंप्यूटर प्रणाली को प्रभावित करता है।
धारा 76: कंप्यूटर और उपकरणों की जब्ती
इस धारा के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि यदि किसी कंप्यूटर, फ्लॉपी, सीडी, टेप ड्राइव या अन्य सहायक उपकरणों का प्रयोग इस अधिनियम के किसी प्रावधान के उल्लंघन में किया गया है, तो उन्हें जब्त किया जा सकता है।
लेकिन इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि यह सिद्ध हो जाए कि जिस व्यक्ति के पास यह उपकरण थे, वह स्वयं उस उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं है, तो न्यायालय उन्हें जब्त करने की बजाय दोषी व्यक्ति के खिलाफ अन्य उपयुक्त कार्यवाही कर सकता है।
उदाहरण: किसी व्यक्ति के साइबर कैफे में बैठे एक ग्राहक ने अवैध कार्य किया और उसका रिकॉर्ड कंप्यूटर में रह गया। यदि साइबर कैफे का मालिक यह सिद्ध कर देता है कि वह इस अपराध में संलिप्त नहीं था, तो न्यायालय कंप्यूटर की जब्ती से बच सकता है और आरोपी ग्राहक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है।
धारा 77: अन्य दंडों पर कोई प्रभाव नहीं
यह धारा एक स्पष्टीकरण देती है कि यदि किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के तहत कोई दंड, जुर्माना या जब्ती होती है, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि उसे किसी अन्य कानून के अंतर्गत दंडित नहीं किया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य से आईटी अधिनियम और किसी अन्य कानून – जैसे कि भारतीय दंड संहिता – दोनों का उल्लंघन करता है, तो उसे दोनों अधिनियमों के अंतर्गत सज़ा दी जा सकती है।
प्रत्याशित परिदृश्य: किसी ने नकली ई-हस्ताक्षर प्रमाणपत्र बनाकर किसी व्यक्ति को धोखा दिया और आर्थिक नुकसान पहुँचाया। ऐसे में वह व्यक्ति आईटी अधिनियम के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की धोखाधड़ी संबंधी धाराओं के अंतर्गत भी दंडनीय होगा।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 73 से 77 डिजिटल प्रमाणिकता, न्यायिक अधिकार क्षेत्र, जब्ती और सह-विधिक दंडों से संबंधित हैं। ये धाराएं एक ओर जहां ई-हस्ताक्षर प्रणाली में विश्वास को बनाए रखने का कार्य करती हैं, वहीं दूसरी ओर वैश्विक साइबर अपराधों से सुरक्षा की गारंटी भी देती हैं।
आज जब हर लेन-देन डिजिटल हो गया है और इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की विश्वसनीयता पर देश की अर्थव्यवस्था और कानून व्यवस्था निर्भर करती है, ऐसे में इन धाराओं का सही ढंग से कार्यान्वयन अत्यंत आवश्यक है। आम नागरिकों, सेवा प्रदाताओं, वकीलों और तकनीकी विशेषज्ञों को इन कानूनी प्रावधानों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे स्वयं भी इनका पालन करें और दूसरों को भी जागरूक कर सकें।
भारत में डिजिटल ट्रस्ट और साइबर स्पेस की सुरक्षा बनाए रखने के लिए इन धाराओं का होना एक मजबूत आधारशिला है।

