Consumer Protection Act में धारा 72 और 73

Shadab Salim

4 Jun 2025 10:15 AM IST

  • Consumer Protection Act में धारा 72 और 73

    इस एक्ट की धारा धारा-72 उल्लेख करती है कि-

    आदेश के अनुपालन के लिए शास्ति (1) जो कोई, यथास्थिति, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम या नेशनल फोरम द्वारा किए गए किसी आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से जो पञ्चीस हजार रूप से कम का नहीं होगा किन्तु जो एक लाख रु तक का हो सकेगा या दोनों से दंडनीय होगा।

    (2) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2 ) में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, जिला आयोग, स्टेट फोरम या नेशनल फोरम को उपधारा (1) के अधीन अपराधों के विचारण के लिए प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्ति होगी और ऐसी शक्तियों के प्रदत्त किए जाने पर यथास्थिति, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम या नेशनल फोरम दंड प्रक्रिया संहिदता, 1973 के प्रयोजन के लिए प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट समझा जाएगा।

    (3) अन्यथा उपबंधित के सिवाय उपधारा (1) के अधीन अपराधों पर, यथास्थिति, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम या नेशनल फोरम द्वारा संक्षिप्त रूप से विचारण किया जाएगा।

    वास्तव में एक्ट की धारा 72 के अंतर्गत दांडिक प्रावधान किए गए हैं। यह इस अधिनियम की एक अपराधिक धारा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम केवल एक सिविल अधिनियम नहीं है अपितु इस में आपराधिक प्रावधान भी दिए गए है। यदि राष्ट्र आयोग, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम तीनों में से किसी भी आयोग द्वारा दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जाता है तब ऐसी स्थिति में आयोग के पास एक न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्ति होती है जिस शक्ति के अंतर्गत उसके द्वारा अधिकतम 3 वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है और ₹1,00,000 तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

    धारा 72 को इस अधिनियम में शामिल करने का उद्देश्य इस अधिनियम को प्रभावशाली बनाना है और उसके आदेशों के प्रति जनता के भीतर भय पैदा करना है जिससे इस के आदेशों का पालन आज्ञापक रूप से किया जाए।

    धारा-73

    धारा 72 के अधीन पारित आदेशों के विरुद्ध अपील-

    (1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, जहां धारा 72 की उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश पारित किया जाता है, वहां तथ्य और विधि दोनों पर अपील निम्नलिखित द्वारा किए गए आदेश से.

    (क) डिस्ट्रिक्ट फोरम द्वारा किए गए आदेश की अपील स्टेट फोरम को होगी;

    (ख) स्टेट फोरम द्वारा किए गए आदेश की अपील नेशनल फोरम को होगी; और

    (घ) नेशनल फोरम द्वारा किए गए आदेश की अपील सुप्रीम कोर्ट को होगी। (2) उपधारा (1) के अधीन के सिवाय, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम या

    नेशनल फोरम के किसी आदेश की अपील किसी कोर्ट में नहीं होगी।

    (3) इस धारा के अधीन प्रत्येक अपील, यथास्थिति, डिस्ट्रिक्ट फोरम या स्टेट फोरम के आदेश की तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर की जाएगी :

    परंतु, यथास्थितित, स्टेट फोरम या नेशनल फोरम या सुप्रीम कोर्ट तीस दिन की उक्त अवधि के पश्चात् भी अपील की सुनवाई कर सकेंगे, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी के पास उक्त तीस दिन की अवधि के भीतर अपील करने का पर्याप्त कारण था।

    अधिनियम की धारा 73 धारा 72 के अंतर्गत दिए गए दंड के विरुद्ध अपील का अधिकार देती है। इस धारा को अधिनियम में समावेश देने का उद्देश्य दंड को नियमित करना है जिससे कहीं भी किसी प्रकार के साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं हो। यदि धारा 72 के अंतर्गत डिस्ट्रिक्ट फोरम द्वारा दंड का कोई आदेश दिया जाता है तब ऐसी स्थिति में अपील स्टेट फोरम को हो सकती है, कोई आदेश स्टेट फोरम द्वारा दिया जाता है तब अपील नेशनल फोरम को हो सकती है।

    नेशनल फोरम द्वारा ऐसा कोई आदेश दिया जाता है तब भारत के सुप्रीम कोर्ट में अपील हो सकती है परंतु इस धारा के अंतर्गत अपील हेतु एक परिसीमा निर्धारित की गई है। उस परिसीमा अवधि के भीतर ही अपील की जा सकती है ऐसी कोई भी अपील 30 दिन के भीतर की जाएगी इसके बाद किसी भी अपील को सुनवाई योग्य नहीं माना जाएगा परंतु कोई युक्तियुक्त कारण है जिसके वजह से अपील में कुछ समय की देरी हुई है तब कोर्ट के पास यह विवेकाधिकार है कि वह अपील को सुन सके।

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