सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 71, 72 और 72A: डिजिटल युग में गोपनीयता, अनुबंध और ई-हस्ताक्षर धोखाधड़ी
Himanshu Mishra
14 Jun 2025 5:19 PM

आज के समय में जब हर छोटी-बड़ी जानकारी डिजिटल रूप में संग्रहीत की जा रही है और सरकारी व निजी सेवाएं इंटरनेट, मोबाइल ऐप और क्लाउड टेक्नोलॉजी जैसे माध्यमों पर आधारित हैं, तब गोपनीयता (Privacy), भरोसे (Trust) और वैधानिक अनुबंधों (Lawful Contracts) का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।
एक ओर हम डिजिटल सेवाओं से अपने कामकाज को आसान बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन सेवाओं के दुरुपयोग की आशंका भी बढ़ती जा रही है। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में कुछ कठोर प्रावधान शामिल किए गए हैं जो डिजिटल क्षेत्र में अनुचित आचरण, धोखाधड़ी और निजी जानकारी की चोरी या अनुचित खुलासे को दंडनीय बनाते हैं।
इस लेख में हम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 71, 72 और 72A का सरल हिन्दी में विस्तृत विश्लेषण करेंगे ताकि आम नागरिक, तकनीकी क्षेत्र से जुड़े लोग, विद्यार्थी और कारोबारी इन नियमों को समझ सकें और इनका पालन कर सकें।
सबसे पहले बात करते हैं धारा 71 की, जो मिथ्या विवरण देने और महत्वपूर्ण तथ्य छिपाने से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति प्रमाणन प्राधिकरण (Certifying Authority) या नियंत्रक (Controller) को किसी ई-हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (Electronic Signature Certificate) या लाइसेंस प्राप्त करने के लिए गलत जानकारी देता है, या कोई आवश्यक तथ्य जानबूझकर छिपाता है, तो उसे दो साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
यह प्रावधान उन सभी व्यक्तियों या कंपनियों के लिए लागू होता है जो डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र या डिजिटल सेवाओं से संबंधित लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आवेदन करते हैं। चूंकि इन सेवाओं के ज़रिए डिजिटल लेनदेन, सरकारी कार्यवाही, दस्तावेज सत्यापन, ई-गवर्नेंस और ई-कॉमर्स जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं, इसलिए यह अनिवार्य है कि ऐसे प्रमाणपत्र निष्पक्ष, पारदर्शी और सटीक जानकारी के आधार पर जारी किए जाएं।
मान लीजिए कोई व्यक्ति अपने आपराधिक इतिहास को छिपाकर या किसी दूसरे की पहचान का उपयोग करके डिजिटल सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेता है, तो वह न केवल कानून का उल्लंघन करता है बल्कि पूरी डिजिटल व्यवस्था की सुरक्षा और भरोसे को खतरे में डाल देता है। इसलिए इस तरह के झूठे बयानों को दंडनीय बनाया गया है ताकि सिस्टम में पारदर्शिता बनी रहे।
अब बात करते हैं धारा 72 की, जो डिजिटल जानकारी की गोपनीयता के उल्लंघन से संबंधित है। यह धारा कहती है कि यदि कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों या अधिकारों के तहत किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, पत्राचार, दस्तावेज़, रजिस्टर या किसी अन्य सूचना तक पहुँच मिली है, वह उस जानकारी को बिना संबंधित व्यक्ति की अनुमति के किसी अन्य को प्रकट करता है, तो उसे दो साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
इस प्रावधान का मकसद है कि सरकारी अधिकारी, सेवा प्रदाता, आईटी कर्मी, अथवा वे सभी लोग जिन्हें कानूनी तरीके से किसी की निजी जानकारी तक पहुँच मिली है, वे उस गोपनीय जानकारी का दुरुपयोग न करें।
जब भी हम किसी वेबसाइट या ऐप पर पंजीकरण करते हैं या किसी सरकारी सेवा में अपनी जानकारी साझा करते हैं, तो हमें भरोसा होता है कि हमारी जानकारी सुरक्षित रहेगी। यदि यह भरोसा टूट जाए और कोई व्यक्ति उस जानकारी को बेच दे या लीक कर दे, तो यह न केवल अनैतिक है, बल्कि अवैध भी है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी सरकारी वेबसाइट पर नागरिकों की आधार संख्या, मोबाइल नंबर, पते और बैंक खाता विवरण जैसी जानकारी जमा होती है। यदि कोई कर्मचारी उस जानकारी को किसी अन्य एजेंसी या व्यक्ति को बेच देता है, तो वह धारा 72 के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा। इस प्रकार का दुरुपयोग समाज में डर और अविश्वास फैलाता है और डिजिटल प्रणाली की नींव को कमजोर करता है।
धारा 72A इन स्थितियों को और विस्तार देती है और निजी अनुबंधों (Lawful Contracts) के संदर्भ में सूचना के दुरुपयोग को अपराध की श्रेणी में रखती है। यह धारा कहती है कि यदि कोई व्यक्ति या मध्यस्थ (Intermediary), जो किसी वैध अनुबंध के तहत सेवा प्रदान कर रहा है, वह उस प्रक्रिया में प्राप्त व्यक्तिगत जानकारी को, जानबूझकर या किसी गलत इरादे से, बिना संबंधित व्यक्ति की सहमति के किसी तीसरे व्यक्ति को उजागर करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल या पाँच लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
यह प्रावधान खासकर उन निजी कंपनियों और सेवा प्रदाताओं के लिए है जो ग्राहकों से सेवाओं के दौरान उनकी व्यक्तिगत जानकारियाँ प्राप्त करते हैं। जैसे – ई-कॉमर्स वेबसाइटें, हेल्थ ऐप्स, बैंक्स, बीमा कंपनियाँ, मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स। इन सभी संस्थाओं को कानूनी अनुबंध के तहत ग्राहक की जानकारी सिर्फ वही सेवाएं प्रदान करने के लिए इस्तेमाल करनी होती हैं जिनकी अनुमति ग्राहक ने दी हो।
यदि कोई कंपनी उस जानकारी का प्रयोग विज्ञापन एजेंसियों को बेचने, टेलीमार्केटिंग कंपनियों को सौंपने, या किसी अन्य व्यावसायिक लाभ के लिए करती है, तो यह धारा 72A के तहत अपराध माना जाएगा। इससे ग्राहक को "Wrongful Loss" (अनुचित हानि) और सेवा प्रदाता को "Wrongful Gain" (अनुचित लाभ) हो सकता है। यही वजह है कि यह प्रावधान सेवा प्रदाताओं के लिए एक कठोर चेतावनी है कि वे अपने अनुबंधों और जिम्मेदारियों का पालन करें।
यह समझना ज़रूरी है कि इस धारा का प्रभाव आज के समय में बहुत व्यापक है। जैसे-जैसे इंटरनेट आधारित सेवाएं बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्राहकों की निजी जानकारी का व्यापार भी बढ़ रहा है। कई बार लोगों को यह पता ही नहीं होता कि जब वे किसी ऐप या वेबसाइट पर अपनी जानकारी देते हैं, तो वह जानकारी कहाँ जा रही है, किसे मिल रही है और कैसे इस्तेमाल हो रही है। इसलिए इस धारा का होना न केवल कानूनी रूप से बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक हो गया है।
इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि इन तीनों धाराओं का उद्देश्य केवल सजा देना नहीं है, बल्कि एक ऐसा सुरक्षित और विश्वसनीय डिजिटल वातावरण तैयार करना है जिसमें लोग बिना डर के सेवाओं का उपयोग कर सकें। इससे डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों को मजबूती मिलेगी और आम जनता तकनीकी प्रगति से अधिक लाभ उठा सकेगी।
इस लेख के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 71, 72 और 72A हमारे डिजिटल जीवन में गोपनीयता, सत्यता और अनुबंध की पवित्रता को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। ये धाराएं हमें यह याद दिलाती हैं कि तकनीक का उपयोग तभी उपयोगी है जब उसमें नैतिकता, जवाबदेही और कानूनी बाध्यताएं शामिल हों। यदि कोई व्यक्ति या संस्था इन सीमाओं का उल्लंघन करती है, तो उन्हें सजा भुगतनी होगी।
अंत में, यह ज़रूरी है कि सभी डिजिटल सेवा प्रदाता, ग्राहक और आम नागरिक इन प्रावधानों से परिचित हों, ताकि वे अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझ सकें। हमें एक ऐसी डिजिटल संस्कृति बनानी है जहाँ भरोसा, सुरक्षा और निजता को प्राथमिकता दी जाए। कानून का उद्देश्य डर फैलाना नहीं बल्कि व्यवस्था बनाना है, और ये धाराएं उसी व्यवस्था की रीढ़ हैं। यदि हम इनका पालन करते हैं, तो न सिर्फ हमारी डिजिटल ज़िंदगी सुरक्षित होगी, बल्कि देश की समग्र तकनीकी प्रगति को भी स्थायित्व और नैतिक आधार मिलेगा।