भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 70-72 : झूठी जानकारी के लिए दंड, नियम बनाने की शक्ति और सार्वजनिक सूचना देने का तरीका
Himanshu Mishra
23 July 2025 6:01 PM IST

भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के ये खंड फर्मों के पंजीकरण (Registration) से संबंधित अंतिम महत्वपूर्ण प्रावधानों पर प्रकाश डालते हैं। ये धाराएँ पंजीकरण प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा (Integrity) बनाए रखने के लिए दंड का प्रावधान करती हैं, अधिनियम के प्रशासन (Administration) के लिए नियम बनाने की सरकार की शक्ति को परिभाषित करती हैं, और सार्वजनिक सूचना (Public Notice) देने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं को निर्धारित करती हैं। ये प्रावधान समग्र रूप से यह सुनिश्चित करते हैं कि फर्मों का पंजीकरण और उनसे संबंधित जानकारी का रिकॉर्ड विश्वसनीय और सुलभ हो।
झूठी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए दंड (Penalty for Furnishing False Particulars)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 70 (Section 70) पंजीकरण प्रक्रिया में धोखे या लापरवाही (Negligence) को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण दंड प्रावधान (Penal Provision) है। यह धारा यह निर्धारित करती है कि कोई भी व्यक्ति जो इस अध्याय (Chapter VII) के तहत किसी भी विवरण (Statement), संशोधित विवरण (Amending Statement), नोटिस (Notice) या सूचना (Intimation) पर हस्ताक्षर करता है, जिसमें कोई ऐसी जानकारी है जिसे वह जानता है कि वह झूठी (False) है या जिसे वह सही नहीं मानता (Does Not Believe to Be True), या जिसमें ऐसी जानकारी है जिसे वह जानता है कि वह अधूरी (Incomplete) है या जिसे वह पूर्ण नहीं मानता (Does Not Believe to Be Complete), तो उसे कारावास (Imprisonment) से दंडित किया जा सकता है जिसकी अवधि तीन महीने तक बढ़ सकती है, या जुर्माना (Fine) लगाया जा सकता है, या दोनों (Both) हो सकते हैं।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि रजिस्ट्रार (Registrar) के पास दर्ज की गई सभी जानकारी सटीक और विश्वसनीय हो। यह भागीदारों या उनके एजेंटों को जानबूझकर गलत या अधूरी जानकारी प्रस्तुत करने से रोकता है, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक भागीदार जानबूझकर फर्म के पते को गलत बताता है या किसी भागीदार के शामिल होने की तारीख को गलत दर्ज करता है ताकि किसी देनदारी से बचा जा सके, तो वह इस धारा के तहत दंड के लिए उत्तरदायी होगा। यह फर्मों के रजिस्टर (Register of Firms) की अखंडता (Integrity) को बनाए रखने और तीसरे पक्षों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है जो इस सार्वजनिक रिकॉर्ड पर भरोसा करते हैं।
नियम बनाने की शक्ति (Power to Make Rules)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 71 (Section 71) राज्य सरकार (State Government) को इस अधिनियम के कुशल प्रशासन (Efficient Administration) के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है:
1. शुल्क निर्धारित करने के नियम (Rules for Prescribing Fees): इस धारा की उप-धारा (1) के अनुसार, राज्य सरकार राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना (Notification) द्वारा नियम बना सकती है जो फर्मों के रजिस्ट्रार को भेजे गए दस्तावेजों के साथ देय शुल्कों को निर्धारित करेंगे। ये नियम उन शुल्कों को भी निर्धारित करेंगे जो फर्मों के रजिस्ट्रार की हिरासत (Custody) में दस्तावेजों के निरीक्षण (Inspection) के लिए, या फर्मों के रजिस्टर से प्रतियां (Copies) प्राप्त करने के लिए देय होंगे।
परंतु (Provided that), ऐसे शुल्क अनुसूची I (Schedule I) में निर्दिष्ट अधिकतम शुल्क से अधिक नहीं होंगे। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि रजिस्ट्रार के कार्यालय द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए एक पारदर्शी और उचित शुल्क संरचना हो, जो अधिनियम के कार्यान्वयन (Implementation) के लिए आवश्यक धन जुटा सके, लेकिन अत्यधिक न हो।
2. अन्य मामलों के लिए नियम बनाने की शक्ति (Power to Make Rules for Other Matters): इस धारा की उप-धारा (2) राज्य सरकार को अन्य महत्वपूर्ण मामलों के लिए नियम बनाने की शक्ति भी देती है:
o (क) विवरण के फॉर्म और सत्यापन का निर्धारण (Prescribing Form of Statement and Verification): धारा 58 (Section 58) के तहत प्रस्तुत किए जाने वाले विवरण के फॉर्म और उसके सत्यापन के तरीके को निर्धारित करना। यह सुनिश्चित करता है कि पंजीकरण के लिए आवश्यक जानकारी एक मानकीकृत (Standardized) और समझने योग्य प्रारूप (Format) में एकत्र की जाए।
o (ख) निर्धारित फॉर्म में सूचनाओं और नोटिसों की आवश्यकता (Requiring Intimations and Notices in Prescribed Form): धारा 60 (Section 60), धारा 61 (Section 61), धारा 62 (Section 62) और धारा 63 (Section 63) के तहत दिए जाने वाले विवरणों, सूचनाओं और नोटिसों को निर्धारित फॉर्म में होने की आवश्यकता और उनके फॉर्म का निर्धारण करना। यह विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों की रिपोर्टिंग में एकरूपता (Uniformity) सुनिश्चित करता है।
o (ग) फर्मों के रजिस्टर के फॉर्म का निर्धारण (Prescribing Form of Register of Firms): फर्मों के रजिस्टर के फॉर्म, और उसमें फर्मों से संबंधित प्रविष्टियों को बनाने के तरीके, तथा ऐसी प्रविष्टियों को संशोधित (Amended) करने या उसमें नोट्स (Notes) बनाने के तरीके को निर्धारित करना। यह रजिस्टर की संरचना और रखरखाव में स्पष्टता लाता है।
o (घ) विवादों के उत्पन्न होने पर रजिस्ट्रार की प्रक्रिया का विनियमन (Regulating Registrar's Procedure in Disputes): विवादों के उत्पन्न होने पर रजिस्ट्रार की प्रक्रिया को विनियमित करना। यह सुनिश्चित करता है कि रजिस्ट्रार विवादों से संबंधित मामलों को संभालने में एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करें।
o (ङ) रजिस्ट्रार द्वारा प्राप्त दस्तावेजों को फाइल करने का विनियमन (Regulating Filing of Documents): रजिस्ट्रार द्वारा प्राप्त दस्तावेजों को फाइल करने का विनियमन। यह रिकॉर्ड-कीपिंग (Record-keeping) के लिए एक व्यवस्थित प्रणाली सुनिश्चित करता है।
o (च) मूल दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए शर्तों का निर्धारण (Prescribing Conditions for Inspection of Original Documents): मूल दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए शर्तों का निर्धारण। (धारा 66 (Section 66) के संदर्भ में)।
o (छ) प्रतियों के अनुदान का विनियमन (Regulating Grant of Copies): प्रतियों के अनुदान (Grant of Copies) का विनियमन। (धारा 67 (Section 67) के संदर्भ में)।
o (ज) रजिस्टरों और दस्तावेजों के उन्मूलन का विनियमन (Regulating Elimination of Registers and Documents): पुराने या अनावश्यक रजिस्टरों और दस्तावेजों को हटाने के लिए नियम बनाना।
o (झ) फर्मों के रजिस्टर के सूचकांक के रखरखाव और फॉर्म का प्रावधान (Providing for Maintenance and Form of Index): फर्मों के रजिस्टर के लिए एक सूचकांक (Index) के रखरखाव और फॉर्म का प्रावधान करना। यह रजिस्टर में जानकारी को आसानी से खोजने में मदद करता है।
o (ञ) सामान्यतः, इस अध्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए (Generally, to Carry Out Purposes): सामान्य रूप से, इस अध्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाना। यह सरकार को अधिनियम के प्रशासन में आने वाली किसी भी अप्रत्याशित (Unforeseen) समस्या को हल करने के लिए लचीलापन प्रदान करता है।
3. नियमों का प्रकाशन (Publication of Rules): इस धारा की उप-धारा (3) यह निर्धारित करती है कि इस धारा के तहत बनाए गए सभी नियम पिछली प्रकाशन (Previous Publication) की शर्त के अधीन होंगे। इसका मतलब है कि नियम अंतिम रूप से लागू होने से पहले सार्वजनिक टिप्पणी और सुझावों के लिए प्रकाशित किए जाएंगे, जिससे हितधारकों (Stakeholders) को अपनी प्रतिक्रिया देने का अवसर मिल सके।
4. राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करना (Laying Before State Legislature): इस धारा की उप-धारा (4) यह अनिवार्य करती है कि राज्य सरकार द्वारा इस धारा के तहत बनाया गया प्रत्येक नियम, जैसे ही वह बनाया जाता है, राज्य विधानमंडल (State Legislature) के समक्ष रखा जाएगा। यह विधायी समीक्षा (Legislative Scrutiny) और निरीक्षण (Oversight) सुनिश्चित करता है, जिससे नियमों में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहती है।
सार्वजनिक सूचना देने का तरीका (Mode of Giving Public Notice)
भारतीय भागीदारी अधिनियम के अध्याय VIII (Chapter VIII) के अंतर्गत आने वाली धारा 72 (Section 72), इस अधिनियम के तहत दी जाने वाली सार्वजनिक सूचना के तरीके को स्पष्ट करती है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ घटनाओं, जैसे फर्म के विघटन, के लिए सार्वजनिक सूचना देना भागीदारों की देनदारियों (Liabilities) को समाप्त करने के लिए आवश्यक है (धारा 45 (Section 45) के संदर्भ में)।
इस अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक सूचना इस प्रकार दी जाती है:
• (क) कुछ विशिष्ट घटनाओं के लिए (For Certain Specific Events): जहां सार्वजनिक सूचना निम्नलिखित से संबंधित है:
o एक पंजीकृत फर्म से किसी भागीदार की सेवानिवृत्ति (Retirement) या निष्कासन (Expulsion)।
o एक पंजीकृत फर्म का विघटन।
o एक नाबालिग के रूप में भागीदारी के लाभों में शामिल किए गए व्यक्ति द्वारा वयस्कता प्राप्त करने पर पंजीकृत फर्म में भागीदार बनने या न बनने का चुनाव।
ऐसे मामलों में, सार्वजनिक सूचना धारा 63 (Section 63) के तहत फर्मों के रजिस्ट्रार को नोटिस (Notice) देकर दी जाएगी, और राजपत्र (Official Gazette) में तथा उस जिले में परिचालित (Circulating) होने वाले कम से कम एक स्थानीय भाषा के समाचार पत्र (Vernacular Newspaper) में प्रकाशन (Publication) द्वारा दी जाएगी जहाँ संबंधित फर्म का स्थान या प्रमुख व्यवसाय स्थान है। यह सुनिश्चित करता है कि महत्वपूर्ण परिवर्तन व्यापक जनता तक पहुंचें, जिससे तीसरे पक्ष सतर्क हो सकें और तदनुसार अपने निर्णय ले सकें।
उदाहरण के लिए, यदि जयपुर में स्थित "शर्मा एंड संस" नामक एक पंजीकृत फर्म भंग हो जाती है, तो उन्हें रजिस्ट्रार को सूचित करना होगा, और राजस्थान राजपत्र और जयपुर में प्रसारित होने वाले एक हिंदी समाचार पत्र में विज्ञापन देना होगा।
• (ख) किसी अन्य मामले में (In Any Other Case): किसी भी अन्य मामले में जहां इस अधिनियम के तहत सार्वजनिक सूचना की आवश्यकता है, वह राजपत्र (Official Gazette) में और उस जिले में परिचालित होने वाले कम से कम एक स्थानीय भाषा के समाचार पत्र (Vernacular Newspaper) में प्रकाशन द्वारा दी जाएगी जहाँ संबंधित फर्म का स्थान या प्रमुख व्यवसाय स्थान है। यह सुनिश्चित करता है कि सामान्य सार्वजनिक सूचना भी प्रभावी ढंग से प्रसारित हो।
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि सार्वजनिक सूचना के माध्यम से महत्वपूर्ण व्यावसायिक घटनाओं के बारे में उचित रूप से प्रचार किया जाए, जिससे व्यापारिक समुदाय में पारदर्शिता और विश्वास बना रहे। यह विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहाँ भागीदारों की देनदारियां या तीसरे पक्षों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।

