पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 68-70: रजिस्ट्रार और इंस्पेक्टर जनरल की नियंत्रण शक्तियां

Himanshu Mishra

9 Aug 2025 6:48 PM IST

  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 68-70: रजिस्ट्रार और इंस्पेक्टर जनरल की नियंत्रण शक्तियां

    आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XI के खंड (E) को समझते हैं, जो पंजीकरण कार्यालयों के कामकाज पर नियंत्रण रखने वाले वरिष्ठ अधिकारियों - रजिस्ट्रार (Registrar) और महानिरीक्षक (Inspector-General) - की शक्तियों को निर्धारित करता है। यह भाग पंजीकरण प्रणाली में पदानुक्रम और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करता है।

    68. उप-रजिस्ट्रारों का अधीक्षण और नियंत्रण करने की रजिस्ट्रार की शक्ति (Power of Registrar to superintend and control Sub-Registrars)

    यह धारा रजिस्ट्रार को अपने जिले के भीतर उप-रजिस्ट्रारों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखने का अधिकार देती है।

    उपधारा (1) के अनुसार, प्रत्येक उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन उस रजिस्ट्रार (Registrar) के अधीक्षण (superintendence) और नियंत्रण (control) के तहत करेगा जिसके जिले में ऐसा उप-रजिस्ट्रार का कार्यालय स्थित है। यह एक स्पष्ट पदानुक्रम स्थापित करता है, जिससे उप-रजिस्ट्रार अपने वरिष्ठ अधिकारी के प्रति जवाबदेह होते हैं।

    उपधारा (2) में कहा गया है कि प्रत्येक रजिस्ट्रार को (शिकायत पर या अन्यथा) कोई भी ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार है जो इस अधिनियम के अनुरूप हो और जिसे वह अपने अधीनस्थ किसी भी उप-रजिस्ट्रार के किसी भी कार्य या चूक (omission) के संबंध में या उस पुस्तक या कार्यालय में किसी त्रुटि के सुधार (rectification of any error) के संबंध में आवश्यक समझता है जहाँ कोई दस्तावेज़ पंजीकृत किया गया है। यह रजिस्ट्रार को गलतियों को सुधारने और अपनी अधीनस्थ इकाइयों में जवाबदेही लागू करने का अधिकार देता है।

    • उदाहरण: यदि किसी उप-रजिस्ट्रार ने गलती से किसी दस्तावेज़ को गलत बुक में दर्ज कर दिया है, तो रजिस्ट्रार एक आदेश जारी करके उस गलती को सुधारने का निर्देश दे सकता है।

    69. पंजीकरण कार्यालयों का अधीक्षण करने और नियम बनाने की महानिरीक्षक की शक्ति (Power of Inspector-General to superintend registration offices and make rules)

    यह धारा महानिरीक्षक को पंजीकरण प्रणाली का सर्वोच्च प्रशासनिक प्रमुख बनाती है और उसे महत्वपूर्ण नियम बनाने की शक्तियां देती है।

    उपधारा (1) के अनुसार, महानिरीक्षक (Inspector-General) राज्य सरकार के तहत सभी पंजीकरण कार्यालयों पर एक सामान्य अधीक्षण (general superintendence) रखेगा और समय-समय पर इस अधिनियम के अनुरूप नियम बनाने की शक्ति रखेगा। इन नियमों में निम्नलिखित शामिल हैं:

    • (a) पुस्तकों, कागजात और दस्तावेजों की सुरक्षित हिरासत (safe custody) के लिए प्रावधान करना।

    • (aa) वह तरीका प्रदान करना जिसके अनुसार और वे सुरक्षा उपाय जिनके अधीन धारा 16A की उपधारा (1) के तहत कंप्यूटर फ्लॉपी या डिस्क या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में पुस्तकें रखी जा सकती हैं। (यह प्रावधान आधुनिक समय के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड कीपिंग के लिए है)।

    • (b) यह घोषित करना कि प्रत्येक जिले में कौन सी भाषा आमतौर पर उपयोग में मानी जाएगी।

    • (c) यह घोषित करना कि धारा 21 के तहत किन क्षेत्रीय विभाजनों को मान्यता दी जाएगी।

    • (d) क्रमशः धारा 25 और 34 के तहत लगाए गए जुर्मानों की राशि को विनियमित (regulating) करना।

    • (e) धारा 63 के तहत पंजीकरण अधिकारी में निहित विवेक (discretion) के प्रयोग को विनियमित करना।

    • (f) वह प्रारूप (form) विनियमित करना जिसमें पंजीकरण अधिकारियों को दस्तावेजों के ज्ञापन (memoranda) बनाने हैं।

    • (g) धारा 51 के तहत रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रारों द्वारा उनके संबंधित कार्यालयों में रखी गई पुस्तकों के प्रमाणीकरण (authentication) को विनियमित करना।

    • (gg) वह तरीका विनियमित करना जिसमें धारा 88 की उपधारा (2) में उल्लिखित दस्तावेजों को पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

    • (h) क्रमशः सूचकांक संख्या I, II, III और IV में निहित विवरणों को घोषित करना।

    • (i) पंजीकरण कार्यालयों में कौन से अवकाश (holidays) मनाए जाएंगे, यह घोषित करना।

    • (j) सामान्यतः, रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रारों की कार्यवाहियों (proceedings) को विनियमित करना।

    उपधारा (2) में कहा गया है कि इस तरह बनाए गए नियमों को अनुमोदन (approval) के लिए राज्य सरकार (State Government) को प्रस्तुत किया जाएगा, और उनके अनुमोदित होने के बाद, उन्हें राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाएगा, और प्रकाशन पर उनका ऐसा प्रभाव होगा जैसे कि वे इस अधिनियम में अधिनियमित किए गए हों।

    70. जुर्माना माफ करने की महानिरीक्षक की शक्ति (Power of Inspector-General to remit fines)

    यह धारा महानिरीक्षक को एक और महत्वपूर्ण शक्ति प्रदान करती है। महानिरीक्षक (Inspector-General) अपने विवेक (discretion) का प्रयोग करते हुए, धारा 25 या धारा 34 के तहत लगाए गए किसी भी जुर्माने और उचित पंजीकरण शुल्क की राशि के बीच के अंतर को पूरी तरह या आंशिक रूप से माफ (remit) कर सकता है। यह उसे विशेष मामलों में लचीलापन प्रदान करता है, जहां जुर्माना अत्यधिक लग सकता है।

    • उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति पर देरी के कारण ₹5000 का जुर्माना लगाया गया है, लेकिन महानिरीक्षक को लगता है कि देरी का कारण बहुत ही गंभीर था और जुर्माना अनुचित है, तो वह जुर्माने की राशि को पूरी तरह या आंशिक रूप से माफ कर सकता है।

    ये धाराएँ मिलकर पंजीकरण विभाग के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पंजीकरण प्रक्रिया सुव्यवस्थित, जवाबदेह और न्यायसंगत तरीके से संचालित हो।

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