सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66B से 66E : डिजिटल अपराध और हमारी सुरक्षा
Himanshu Mishra
9 Jun 2025 4:44 PM IST

आज का युग तकनीक का युग है। इंटरनेट, मोबाइल और कंप्यूटर अब हमारी जिंदगी के अभिन्न हिस्से बन चुके हैं। लेकिन जहां इन तकनीकों ने जीवन को आसान बनाया है, वहीं इनके दुरुपयोग ने कई नए अपराधों को जन्म दिया है। इन्हीं अपराधों से निपटने और नागरिकों की डिजिटल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) लागू किया था।
इस अधिनियम के अध्याय XI में विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों और उनके लिए दंड का प्रावधान किया गया है। पहले हम इस अध्याय की धारा 65 (Source Code से छेड़छाड़), धारा 66 (Computer Related Offences) और धारा 66A (Offensive Messages) की चर्चा कर चुके हैं।
धारा 66B – चोरी किए गए कंप्यूटर संसाधन को बेईमानी से रखना (Dishonest Receipt of Stolen Computer Resource)
इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर (Dishonestly) किसी ऐसे कंप्यूटर संसाधन (Computer Resource) या संचार उपकरण (Communication Device) को अपने पास रखता है या प्राप्त करता है, जिसके बारे में वह जानता है या उसे विश्वास करने का कारण है कि वह वस्तु चोरी की गई है, तो वह अपराध करता है।
यह धारा भारतीय दंड संहिता की धारा 411 (चोरी की गई संपत्ति को छुपाना या रखना) से मिलती-जुलती है लेकिन यह डिजिटल संसाधनों पर लागू होती है।
मान लीजिए, किसी व्यक्ति ने एक लैपटॉप चुराया और वह किसी अन्य व्यक्ति को बेचा। यदि खरीदने वाले को यह ज्ञात था या उसे संदेह था कि लैपटॉप चोरी का है, और फिर भी उसने उसे रखा, तो उस व्यक्ति पर धारा 66B के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
इस अपराध के लिए तीन साल तक की सजा या एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
यह धारा इसलिए जरूरी है क्योंकि डिजिटल संसाधनों की चोरी के बाद उनका उपयोग अक्सर बिना रोक-टोक आगे किया जाता है। इस धारा से उस प्रवृत्ति पर रोक लगाने में मदद मिलती है।
धारा 66C – पहचान की चोरी (Identity Theft)
यह धारा उन मामलों पर लागू होती है जब कोई व्यक्ति किसी और की पहचान से जुड़ी चीजों—जैसे उसका Electronic Signature (इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर), पासवर्ड, या अन्य कोई विशिष्ट पहचान संख्या—का धोखाधड़ी या बेईमानी से उपयोग करता है।
आजकल बैंकिंग, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया आदि सभी क्षेत्रों में पहचान की चोरी एक आम समस्या बन चुकी है। यदि कोई व्यक्ति किसी और की ईमेल आईडी से फर्जी मेल भेजता है या उसकी पहचान लेकर ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन करता है, तो यह धारा 66C के अंतर्गत आता है।
यह अपराध साइबर धोखाधड़ी (Cyber Fraud) की मुख्य श्रेणी में आता है और इसका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति की डिजिटल पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इस अपराध के लिए अधिकतम तीन साल की जेल और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
यह धारा धारा 66 और 43 से जुड़ती है, क्योंकि वहाँ भी किसी की अनुमति के बिना डिजिटल संसाधनों के इस्तेमाल को अपराध माना गया है। लेकिन धारा 66C विशेष रूप से 'पहचान की चोरी' को लक्षित करती है।
धारा 66D – कंप्यूटर संसाधन द्वारा व्यक्ति बनकर धोखाधड़ी करना (Cheating by Personation using Computer Resource)
इस धारा के अंतर्गत वह व्यक्ति आता है जो किसी कंप्यूटर या संचार डिवाइस का उपयोग करके किसी अन्य व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत होकर (Personation) धोखाधड़ी करता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर कोई फर्जी कॉल करके खुद को बैंक अधिकारी बताता है और किसी व्यक्ति से उसका OTP या पासवर्ड लेकर पैसे निकाल लेता है, तो यह अपराध धारा 66D के तहत आता है।
आज के समय में यह अपराध बहुत तेजी से फैल रहा है। OTP फ्रॉड, KYC Verification के नाम पर फर्जी लिंक भेजना, सस्ता लोन देने का झांसा देकर जानकारी चुराना—ये सभी इस धारा के अंतर्गत दंडनीय हैं।
इस अपराध के लिए तीन साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यह धारा भी भारतीय दंड संहिता की धारा 419 (Personation) के डिजिटल संस्करण की तरह मानी जा सकती है।
धारा 66D को समझना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बहुत सारे लोग अनजाने में ऐसे अपराधों के शिकार हो जाते हैं और उन्हें यह नहीं पता होता कि यह एक संज्ञेय अपराध है जिसमें आरोपी को कठोर सजा हो सकती है।
धारा 66E – निजता का उल्लंघन (Violation of Privacy)
यह धारा सबसे अधिक मानवीय अधिकारों से जुड़ी है। इसके तहत किसी व्यक्ति की गोपनीयता (Privacy) का उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान है।
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या जानकारी रहते हुए किसी दूसरे व्यक्ति की Private Area (निजी अंगों) की छवि लेता है, उसे प्रकाशित करता है या किसी को भेजता है—बिना उस व्यक्ति की अनुमति के—तो यह अपराध धारा 66E के अंतर्गत आता है।
इसमें कुछ शब्दों की परिभाषा भी दी गई है—
Capture (कैप्चर): किसी भी माध्यम से वीडियो या फोटो लेना।
Transmit (ट्रांसमिट): किसी भी चित्र को इस उद्देश्य से भेजना कि कोई दूसरा व्यक्ति उसे देखे।
Private Area (निजी अंग): शरीर के वे भाग जो नग्न हों या केवल अंडरगारमेंट में हों जैसे कि जननांग (Genitals), नितंब (Buttocks), या महिला के स्तन (Female Breast)।
Publish (प्रकाशित करना): छवि को इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट माध्यम से सार्वजनिक करना।
Under Circumstances Violating Privacy: वे परिस्थितियाँ जहाँ कोई व्यक्ति यह अपेक्षा कर सकता है कि वह निजता में है और उसका कोई निजी चित्र नहीं लिया जा रहा।
उदाहरण के लिए, अगर कोई महिला किसी ट्रायल रूम में कपड़े बदल रही है और कोई छिपकर उसका वीडियो बना लेता है या उसे वायरल कर देता है, तो यह धारा 66E का गंभीर उल्लंघन है।
इस अपराध के लिए तीन साल तक की सजा या दो लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
यह धारा मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है।
पिछली धाराओं से संबंध (Link with Previous Sections)
धारा 66B से 66E, धारा 65 और 66 के साथ मिलकर एक समग्र (Comprehensive) डिजिटल सुरक्षा ढांचा तैयार करती हैं। जहां धारा 65 स्रोत कोड की सुरक्षा सुनिश्चित करती है और धारा 66 सामान्य कंप्यूटर अपराधों को दंडित करती है, वहीं धारा 66B से 66E विशिष्ट स्थितियों को लक्षित करती हैं—जैसे चोरी की वस्तु रखना, पहचान की चोरी, धोखाधड़ी और गोपनीयता का उल्लंघन।
धारा 66A को भले ही सुप्रीम कोर्ट ने Shreya Singhal बनाम भारत सरकार फैसले में निरस्त कर दिया हो, लेकिन यह पूरे अध्याय की व्याख्या को मौलिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में देखने में मदद करता है।
धारा 66B से 66E हमारे डिजिटल जीवन को सुरक्षित बनाने की दिशा में उठाया गया एक अहम कदम है। ये धाराएं उन अपराधों से संबंधित हैं जो आम जीवन को प्रभावित करते हैं और जिनके शिकार हममें से कोई भी हो सकता है—चाहे वह पहचान की चोरी हो, फोटो वायरल करना हो, या बैंक फ्रॉड।
आज जब हर व्यक्ति इंटरनेट से जुड़ा है, तब यह ज़रूरी हो गया है कि हम न केवल इन धाराओं को समझें, बल्कि इनका पालन भी करें और अगर कहीं उल्लंघन हो तो कानूनी सहायता लें।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का यही उद्देश्य है—डिजिटल युग में कानून के ज़रिए नागरिकों की सुरक्षा और स्वतंत्रता की रक्षा।