राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 64 से 67

Himanshu Mishra

12 May 2025 1:17 PM IST

  • राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 64 से 67

    राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) एक महत्वपूर्ण कानून है जो राजस्थान राज्य में भूमि (Land) और उससे संबंधित राजस्व (Revenue) मामलों को नियंत्रित करता है।

    इस अधिनियम की धारा 64 से 67 कुछ जरूरी प्रक्रिया संबंधी प्रावधानों को स्पष्ट करती हैं जो Revenue Courts और Officers की कार्यप्रणाली को प्रभावी और न्यायसंगत (Fair) बनाते हैं। आइए, इन धाराओं को आसान हिंदी में उदाहरणों (Illustrations) के साथ समझते हैं।

    धारा 64: सुनवाई को स्थगित करना (Adjournment of Hearing)

    यह धारा बताती है कि कोई भी Revenue Court या Officer किसी भी केस या प्रक्रिया (Proceeding) की सुनवाई को जब ज़रूरत हो, तब-तब स्थगित (Postpone) कर सकता है।

    धारा 64(1) कहती है कि Revenue Officer या Court समय-समय पर सुनवाई को आगे बढ़ा सकता है। ऐसा तब किया जाता है जब कोई पक्ष दस्तावेज़ पेश करने के लिए समय मांगता है या कोई गवाह (Witness) उपलब्ध नहीं होता।

    धारा 64(2) के अनुसार, जब भी कोई सुनवाई स्थगित की जाती है, तो अगली सुनवाई की तारीख और स्थान, उस समय उपस्थित सभी पक्षों और गवाहों को वहीं पर बताया जाना चाहिए। यह इसलिए ज़रूरी है ताकि कोई पक्ष जानकारी के अभाव में अनुपस्थित न रहे।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए कि किसी भूमि विवाद (Land Dispute) की सुनवाई हो रही है और एक पक्ष (Party) दस्तावेज़ लाने के लिए समय मांगता है। Revenue Officer अगली तारीख तय करता है और वहां मौजूद दोनों पक्षों को नई तारीख और स्थान बता देता है। यदि कोई पक्ष अनुपस्थित है, तो उसे नोटिस भेजकर सूचना दी जाएगी।

    धारा 65: धारा 63 के अंतर्गत दिए गए आदेश पर अपील नहीं (No Appeal from Order Passed under Section 63)

    यह धारा साफ़ कहती है कि अगर कोई आदेश धारा 63 के अंतर्गत Ex Parte (एकतरफा) दिया गया है—यानि जब कोई पक्ष सुनवाई में उपस्थित नहीं हुआ या Process Fee जमा नहीं की—तो उस आदेश के खिलाफ अपील (Appeal) नहीं की जा सकती, जब तक मामला मेरिट (Merits) पर न निपटाया गया हो।

    धारा 65(1) कहती है कि यदि कोई केस सिर्फ़ इसलिए खारिज या स्वीकार कर लिया गया क्योंकि एक पक्ष उपस्थित नहीं हुआ, तो उस पक्ष को सीधे अपील करने का अधिकार नहीं है।

    धारा 65(2) एक राहत प्रदान करती है। अगर किसी पक्ष के खिलाफ धारा 63 के तहत आदेश पारित हुआ है, तो वह पक्ष उस आदेश को हटवाने (Set Aside) के लिए आवेदन कर सकता है, बशर्ते कि वह यह साबित कर दे कि वह किसी उचित कारण (Sufficient Cause) से उपस्थित नहीं हो पाया या Process Fee जमा नहीं कर पाया।

    यह आवेदन आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर किया जाना चाहिए। Revenue Officer या Court संबंधित पक्षों को नोटिस देकर जांच करेगा और यदि संतुष्ट हुआ, तो आदेश को रद्द कर सकता है।

    उदाहरण (Illustration):

    एक किसान के खिलाफ भूमि कब्जे का मामला दर्ज हुआ। वह निर्धारित तारीख पर कोर्ट में उपस्थित नहीं हो सका क्योंकि उस दिन उसका एक्सीडेंट हो गया था। कोर्ट ने Ex Parte आदेश पारित कर दिया। अब किसान उस आदेश के खिलाफ अपील नहीं कर सकता, लेकिन वह 30 दिन के भीतर एक आवेदन देकर अपना कारण बता सकता है। यदि कोर्ट को उसका कारण उचित लगा, तो आदेश रद्द किया जा सकता है।

    धारा 66: लागत (Costs) देने और बांटने की शक्ति (Power to Give and Apportion Costs)

    Revenue Courts को यह अधिकार दिया गया है कि वे केस की लागत को उचित रूप से किसी भी पक्ष को देने या आपस में बांटने का आदेश दे सकती हैं।

    धारा 66(1) के अनुसार, Court या Officer यह तय कर सकता है कि किस पक्ष को कितना खर्च (Costs) देना है। यह खर्च Court Fee, गवाहों की उपस्थिति, वकील की फीस आदि हो सकता है। कोर्ट यह भी तय कर सकता है कि दोनों पक्ष खर्च साझा करें या एक पक्ष पूरा खर्च वहन करे।

    धारा 66(2) कहती है कि यदि किसी पक्ष (राज्य सरकार को छोड़कर) को लागत दी जाती है, तो वह उस आदेश को एक पैसे की डिक्री (Decree for Money) की तरह लागू करा सकता है—जैसे कि वह Revenue Court द्वारा पास किया गया कोई बकाया आदेश हो।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए एक व्यक्ति झूठा मामला लेकर Revenue Court पहुँचता है और दूसरी पार्टी को नुकसान होता है। कोर्ट उस व्यक्ति को दूसरी पार्टी को ₹10,000 की लागत देने का आदेश देती है। अब वह पार्टी इस रकम की वसूली Decree की तरह करा सकती है।

    धारा 67: त्रुटि या चूक सुधारने की शक्ति (Correction of Error or Omission)

    इस धारा के अंतर्गत Revenue Officer या Court को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने ही आदेश में कोई मामूली त्रुटि (Error) या चूक (Omission) को ठीक कर सकता है।

    यह सुधार दो तरीकों से हो सकता है (1) Officer स्वयं पहल करे या (2) कोई पक्ष आवेदन करे। लेकिन यह केवल उसी स्थिति में किया जा सकता है जब वह गलती केस के मूल मुद्दे (Material Part) को प्रभावित न करती हो।

    सुधार करने से पहले संबंधित पक्षों को सूचना (Notice) देना आवश्यक है।

    उदाहरण (Illustration):

    यदि कोर्ट ने गलती से आदेश में किसी का नाम "रामबाबू" लिख दिया जबकि सही नाम "रमेश" था, और वह स्पष्ट टाइपिंग मिस्टेक (Typing Mistake) है, तो यह गलती सुधारी जा सकती है। लेकिन यदि किसी भूमि के स्वामित्व (Ownership) को बदलना हो, तो वह त्रुटि नहीं बल्कि मूल निर्णय है और उसके लिए अलग प्रक्रिया होगी।

    धाराएं 64 से 67 भले ही प्रक्रिया से जुड़ी लगें, लेकिन वे Revenue Courts की कार्यप्रणाली को पारदर्शी (Transparent), लचीला (Flexible) और न्यायपूर्ण (Just) बनाती हैं। धारा 64 सुनवाई को स्थगित करने के नियम तय करती है ताकि सभी पक्षों को सुनवाई का पूरा अवसर मिले।

    धारा 65 यह सुनिश्चित करती है कि अनुपस्थित रहने वाले पक्ष को बिना अपील का अधिकार दिए भी न्याय की दूसरी राह मिल सके। धारा 66 यह शक्ति देती है कि झूठे मामलों में दोषी पक्ष को लागत चुकानी पड़े। और धारा 67 छोटी-मोटी त्रुटियों को सुधारने की सुविधा प्रदान करती है ताकि रिकॉर्ड सही बने रहें।

    इन धाराओं को समझना सिर्फ वकीलों या राजस्व अधिकारियों के लिए ही नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी उपयोगी है, ताकि वे अपने भूमि से जुड़े अधिकारों की रक्षा उचित रूप से कर सकें।

    Next Story