राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 63 से 65B : गलती के आधार पर शुल्क वापसी

Himanshu Mishra

13 May 2025 3:08 PM IST

  • राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 63 से 65B : गलती के आधार पर शुल्क वापसी

    राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961, न्यायालयों में दायर किए गए वादों (Suits), अपीलों (Appeals), आवेदन-पत्रों (Applications) आदि पर देय शुल्क (Fees) से संबंधित एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का अध्याय VII विशेष रूप से "शुल्क वापसी और रियायतों" (Refunds and Remissions) को लेकर है। हमने पहले धारा 61 और 62 को समझा।

    अब हम धारा 63 से लेकर 65B तक का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। ये प्रावधान उन स्थितियों को स्पष्ट करते हैं जिनमें व्यक्ति शुल्क की वापसी के पात्र हो सकते हैं, कुछ दस्तावेजों को शुल्क से छूट प्राप्त होती है, और राज्य सरकार को शुल्क कम या माफ करने का अधिकार कैसे है।

    धारा 63: गलती के आधार पर शुल्क वापसी (Section 63: Refund on Grounds of Mistake)

    यह धारा दो मुख्य स्थितियों को नियंत्रित करता है: पहली, जब पुनर्विचार याचिका (Review Petition) स्वीकार की जाती है और दूसरी, जब गलती से शुल्क जमा कर दिया गया हो।

    पहली स्थिति में, जब कोई व्यक्ति न्यायालय के निर्णय की समीक्षा के लिए याचिका दायर करता है और वह याचिका इस आधार पर स्वीकार की जाती है कि रिकॉर्ड पर स्पष्ट रूप से कोई गलती या त्रुटि है, तो यदि पुनः सुनवाई के बाद न्यायालय अपना पुराना निर्णय पलट देता है या उसमें संशोधन करता है, तो न्यायालय आदेश देगा कि जितना शुल्क उस आवेदन पर लिया गया था और जो राशि अनुसूची-II के अनुच्छेद 11(g) और (h) के अंतर्गत अन्य आवेदन पर देय शुल्क से अधिक है, उसे वापस किया जाए।

    उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि महेश ने न्यायालय के फैसले में कोई स्पष्ट गलती पाई और उसने ₹200 का शुल्क देकर समीक्षा याचिका दाखिल की। यह याचिका इसलिए स्वीकार हुई क्योंकि रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि थी। न्यायालय ने महेश की बात मानते हुए पहले के फैसले को पलट दिया। यदि सामान्य आवेदन पर देय शुल्क ₹50 था, तो महेश को ₹150 की वापसी होगी।

    दूसरी स्थिति में, यदि कोई व्यक्ति भूलवश या अनजाने में शुल्क चुका देता है, जैसे कि किसी ऐसे आवेदन पर जो शुल्कमुक्त था, तो उसे वह राशि वापस की जाएगी।

    उदाहरण के लिए, यदि राधा ने एक ऐसा आवेदन शुल्क के साथ प्रस्तुत कर दिया जिस पर वास्तव में कोई शुल्क नहीं देना था और बाद में उसे ज्ञात हुआ कि यह गलती थी, तो उसे उसका भुगतान किया गया शुल्क वापस मिलेगा।

    धारा 64: कुछ दस्तावेजों पर शुल्क से छूट (Section 64: Exemption of Certain Documents)

    इस धारा में कुछ विशिष्ट दस्तावेजों को न्यायालय शुल्क से पूरी तरह छूट दी गई है। ये छूट जनहित और प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से दी गई हैं।

    पहली श्रेणी में आते हैं वे मुक्‍तारनामा (Mukhtarnama), वकालतनामा (Vakalatnama) या अन्य कोई लिखित प्राधिकरण (Authority) जिनके माध्यम से कोई व्यक्ति वाद दायर करता है या उसका बचाव करता है, यदि वह प्राधिकरण भारत संघ की सशस्त्र सेनाओं (Armed Forces) के किसी सदस्य द्वारा दिया गया हो जो कि नागरिक सेवा में नहीं हो।

    दूसरी छूट सिंचाई (Irrigation) से संबंधित उन सभी सरकारी जल स्त्रोतों के लिए है जिनके लिए पानी की आपूर्ति हेतु आवेदन किया गया हो।

    तीसरी श्रेणी में पहला ऐसा आवेदन आता है, जो किसी गवाह को न्यायालय में बुलाने या किसी दस्तावेज को प्रस्तुत कराने के लिए हो। यह आवेदन केवल पहली बार किया गया हो और उस पर कोई आपराधिक आरोप न लगाया गया हो। यदि वह दस्तावेज हलफनामा (Affidavit) नहीं है और तत्काल न्यायालय में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया है, तो वह शुल्क से मुक्त रहेगा।

    चौथी श्रेणी में जमानत बॉन्ड (Bail Bonds), पहचान पत्र (Recognizance) और उपस्थिति सुनिश्चित करने वाले बॉन्ड आते हैं। ये सभी दस्तावेज आपराधिक मामलों से संबंधित हैं और इन पर कोई शुल्क नहीं लगेगा।

    पांचवीं श्रेणी में पुलिस अधिकारी को प्रस्तुत किए गए आवेदन, आरोप या सूचना शामिल हैं जो किसी अपराध से संबंधित हों।

    छठी श्रेणी में वे आवेदन शामिल हैं जो जेल में बंद या किसी न्यायालय या उसके अधिकारी की हिरासत में रह रहे व्यक्ति द्वारा किए गए हों।

    सातवीं श्रेणी में वे शिकायतें आती हैं जो सरकारी कर्मचारी या राज्य रेलवे के अधिकारी द्वारा की जाती हैं और जिनका संबंध उनके आधिकारिक कार्य से हो।

    आठवीं श्रेणी में वे आवेदन आते हैं जो राज्य सरकार से देय राशि के भुगतान हेतु हों, जब तक कि वह छः महीने से अधिक समय पहले समाप्त हो चुकी जमा राशि की वापसी के लिए न हो।

    नौवीं श्रेणी में नगर निगम या नगरपालिका कर के विरुद्ध की गई अपीलें आती हैं।

    दसवीं श्रेणी में वे आवेदन आते हैं जो किसी संपत्ति के अधिग्रहण के बदले मुआवजे (Compensation) की मांग से संबंधित हों।

    ग्यारहवीं श्रेणी में वे अपीलें आती हैं जो किसी सरकारी कर्मचारी या न्यायालय के कर्मचारी द्वारा की जाती हैं, यदि उन्हें बर्खास्त, निलंबित या पदावनत किया गया हो और वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अपील कर रहे हों। इस श्रेणी में उन आदेशों की प्रतिलिपि भी शामिल है जो इस अपील के साथ प्रस्तुत की जाती है।

    धारा 65: शुल्क को कम करने या माफ करने की शक्ति (Section 65: Power to Reduce or Remit Fees)

    राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी अधिसूचना (Notification) के माध्यम से इस अधिनियम के अंतर्गत देय सभी या कुछ शुल्कों को राजस्थान राज्य के किसी भाग में या पूरे राज्य में घटा या माफ कर सकती है। राज्य सरकार जब चाहे इस प्रकार की अधिसूचना को रद्द या उसमें परिवर्तन भी कर सकती है।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि सरकार सामाजिक, आर्थिक या प्रशासनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए न्यायालय शुल्क में छूट या राहत प्रदान कर सके।

    धारा 65A: शुल्क से छूट देने की शक्ति (Section 65A: Power to Exempt Fees)

    यह एक नया प्रावधान है जिसे अधिनियम में जोड़ा गया है। इसमें राज्य सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी भी श्रेणी के मामलों के लिए किसी भी वर्ग के व्यक्तियों को शुल्क से पूरी तरह या आंशिक रूप से छूट दे सकती है, बशर्ते यह निर्णय सार्वजनिक हित (Public Interest) में हो।

    उदाहरण के लिए, राज्य सरकार यह अधिसूचना जारी कर सकती है कि विधवा महिलाएं या विकलांग व्यक्ति, यदि वे पारिवारिक मामलों में वाद दायर करें, तो उन्हें कोई शुल्क नहीं देना होगा।

    धारा 65B: वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) के मामलों में शुल्क वापसी (Section 65B: Refund of Fee in ADR Settlements)

    यह प्रावधान भी हाल ही में जोड़ा गया है और यह वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) प्रणाली को बढ़ावा देने हेतु लाया गया है। इसके अनुसार, यदि कोई वाद न्यायालय द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 89 (Section 89 of CPC) के अंतर्गत मध्यस्थता (Mediation), सुलह (Conciliation), लोक अदालत (Lok Adalat) या किसी अन्य वैकल्पिक प्रक्रिया से सुलझा लिया जाता है, तो वादी को एक प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इस प्रमाणपत्र के आधार पर वह कलेक्टर से अपने द्वारा वाद पत्र (Plaint) पर दिया गया पूरा शुल्क वापस ले सकता है।

    उदाहरण के लिए, रोहित ने ₹5,000 का शुल्क देकर एक संपत्ति विवाद का वाद दायर किया। न्यायालय ने उसे मध्यस्थता के लिए भेजा और दोनों पक्षों में समझौता हो गया। न्यायालय ने एक प्रमाणपत्र जारी किया जिसके आधार पर रोहित को ₹5,000 की पूरी वापसी कलेक्टर से मिल जाएगी।

    राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के धारा 63 से लेकर 65B तक की यह व्यवस्था न केवल न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाती है, बल्कि इसमें मानवीय दृष्टिकोण भी शामिल है। यदि गलती से शुल्क जमा हो जाए या वाद वैकल्पिक तरीके से हल हो जाए, तो नागरिकों को आर्थिक राहत मिलती है।

    इसके अलावा, राज्य सरकार को यह शक्ति देना कि वह शुल्क माफ या कम कर सकती है, यह दर्शाता है कि विधायी मंशा समाज के कमजोर वर्गों और सार्वजनिक हितों की रक्षा करना है। इस अधिनियम की ये धाराएं न्यायपालिका में विश्वास बढ़ाने और न्याय को सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

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