Sales of Goods Act, 1930 की धारा 62-64: नीलामी बिक्री
Himanshu Mishra
14 July 2025 5:46 PM IST

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VII विविध प्रावधानों (Miscellaneous Provisions) से संबंधित है जो अधिनियम के पिछले अध्यायों को पूरक बनाते हैं। ये धाराएँ कुछ सामान्य सिद्धांतों, 'उचित समय' के निर्धारण, और नीलामी बिक्री (Auction Sale) के विशिष्ट नियमों पर प्रकाश डालती हैं।
निहित शर्तों और निबंधनों का अपवर्जन (Exclusion of Implied Terms and Conditions)
धारा 62 पार्टियों को निहित शर्तों और निबंधनों को बदलने की अनुमति देती है:
जहाँ बिक्री अनुबंध के तहत कानून के निहितार्थ (Implication of Law) से कोई अधिकार (Right), कर्तव्य (Duty) या देनदारी (Liability) उत्पन्न होती है, उसे स्पष्ट समझौते (Express Agreement) द्वारा या पार्टियों के बीच व्यवहार के दौरान (Course of Dealing), या प्रथा (Usage) द्वारा नकारा (Negatived) या बदला (Varied) जा सकता है, यदि प्रथा ऐसी हो जो अनुबंध के दोनों पक्षों को बाध्य करती हो।
यह धारा अनुबंध की स्वतंत्रता (Freedom of Contract) के सिद्धांत को पुष्ट करती है। माल विक्रय अधिनियम द्वारा निहित कई शर्तें (जैसे गुणवत्ता, फिटनेस या स्वामित्व से संबंधित शर्तें) डिफ़ॉल्ट नियम हैं। धारा 62 पार्टियों को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं या उद्योग की प्रथाओं के अनुरूप इन निहित शर्तों से विचलित होने की अनुमति देती है।
उदाहरण:
• स्पष्ट समझौता: यदि अधिनियम में निहित है कि माल 'बाजार योग्य गुणवत्ता' का होना चाहिए, लेकिन विक्रेता और खरीदार एक अनुबंध पर सहमत होते हैं कि माल 'जैसा है, जहाँ है' (as is, where is) बेचा जा रहा है, तो उन्होंने निहित शर्त को स्पष्ट समझौते से नकार दिया है।
• व्यवहार का दौरान: यदि दो व्यापारी नियमित रूप से व्यापार करते हैं और उनके पिछले लेनदेन में हमेशा डिलीवरी के लिए 10 दिन का समय लगता है, तो यह उनके भविष्य के अनुबंधों में डिलीवरी के लिए एक निहित 'उचित समय' बन सकता है, भले ही कोई स्पष्ट शर्त न हो।
• प्रथा: एक विशेष उद्योग में यह प्रथा हो सकती है कि किसी विशेष प्रकार के माल को दोषपूर्ण होने पर भी वापस नहीं किया जा सकता। यदि यह एक स्थापित और बाध्यकारी प्रथा है, तो यह अधिनियम द्वारा प्रदान किए गए माल को अस्वीकार करने के अधिकार को नकार सकती है।
उचित समय एक तथ्य का प्रश्न (Reasonable Time a Question of Fact)
धारा 63 'उचित समय' की अवधारणा को स्पष्ट करती है:
जहाँ इस अधिनियम में किसी भी संदर्भ में उचित समय (Reasonable Time) का उल्लेख किया गया है, तो प्रश्न कि 'उचित समय क्या है' एक तथ्य का प्रश्न है (Is a Question of Fact)।
अधिनियम में कई बार 'उचित समय' शब्द का प्रयोग किया गया है (जैसे सुपुर्दगी, स्वीकृति, या पुनर्बिक्री के लिए)। यह धारा स्पष्ट करती है कि 'उचित समय' की कोई निश्चित, सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है।
इसके बजाय, इसे प्रत्येक मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए, जिसमें शामिल हैं:
• माल की प्रकृति (उदाहरण के लिए, खराब होने वाले माल के लिए कम समय)।
• व्यापार की प्रथाएं।
• अनुबंध की शर्तें।
• बाजार की स्थितियाँ।
• पक्षों का आचरण।
उदाहरण: खराब होने वाले फल की सुपुर्दगी के लिए 'उचित समय' कुछ घंटे हो सकता है, जबकि एक भारी मशीनरी की सुपुर्दगी के लिए 'उचित समय' कुछ सप्ताह या महीने हो सकता है।
नीलामी बिक्री (Auction Sale)
धारा 64 नीलामी द्वारा बिक्री के लिए विशिष्ट नियम निर्धारित करती है:
नीलामी द्वारा बिक्री के मामले में—
(1) जहाँ माल लॉट में बिक्री के लिए रखा जाता है, प्रत्येक लॉट प्रथम दृष्टया बिक्री के एक अलग अनुबंध का विषय माना जाता है (Where goods are put up for sale in lots, each lot is prima facie deemed to be the subject of a separate contract of sale):
इसका मतलब है कि यदि नीलामी में कई वस्तुएं (लॉट) हैं, तो प्रत्येक लॉट को एक अलग बिक्री माना जाता है, न कि पूरी नीलामी को एक ही अनुबंध।
उदाहरण: एक कला नीलामी में, यदि 50 पेंटिंग अलग-अलग लॉट के रूप में बेची जा रही हैं, तो प्रत्येक पेंटिंग की बिक्री एक अलग अनुबंध है।
(2) बिक्री तब पूरी होती है जब नीलामकर्ता हथौड़े के गिरने से या अन्य प्रथागत तरीके से इसकी पूर्णता की घोषणा करता है; और, ऐसी घोषणा होने तक, कोई भी बोली लगाने वाला अपनी बोली वापस ले सकता है (The sale is complete when the auctioneer announces its completion by the fall of the hammer or in other customary manner; and, until such announcement is made, any bidder may retract his bid):
यह नीलामी की बिक्री पूर्ण होने का निर्णायक क्षण है। हथौड़े का गिरना (या कोई अन्य संकेत) अंतिम स्वीकृति का प्रतिनिधित्व करता है। इस घोषणा से पहले, बोली लगाने वाले के पास अपनी बोली वापस लेने का अधिकार होता है, क्योंकि प्रस्ताव (बोली) को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है।
उदाहरण: आप एक नीलामी में एक पुराने सिक्के के लिए बोली लगाते हैं। यदि नीलामकर्ता अभी तक हथौड़ा नहीं गिराता है, तो आप अपनी बोली बदल सकते हैं या वापस ले सकते हैं। एक बार हथौड़ा गिर जाने के बाद, आप बाध्य हो जाते हैं।
(3) बोली लगाने का अधिकार विक्रेता द्वारा या उसकी ओर से स्पष्ट रूप से आरक्षित किया जा सकता है, और, जहाँ ऐसा अधिकार स्पष्ट रूप से आरक्षित है, लेकिन अन्यथा नहीं, विक्रेता या उसकी ओर से कोई भी व्यक्ति, इसमें निहित प्रावधानों के अधीन, नीलामी में बोली लगा सकता है (A right to bid may be reserved expressly by or on behalf of the seller and, where such right is expressly so reserved, but not otherwise, the seller or any one person on his behalf may, subject to the provisions hereinafter contained, bid at the auction):
यह 'पुफिंग' (Puffing) या 'नॉक-ऑफ' (Knock-off) का मुद्दा है। आमतौर पर, विक्रेता को अपनी ही नीलामी में बोली लगाने की अनुमति नहीं होती है ताकि कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ाया न जा सके। हालांकि, यदि विक्रेता स्पष्ट रूप से यह अधिकार आरक्षित करता है (यानी, नीलामी की शर्तों में बताता है कि विक्रेता भी बोली लगा सकता है), तो वह या उसका एजेंट बोली लगा सकता है।
(4) जहाँ बिक्री विक्रेता की ओर से बोली लगाने के अधिकार के अधीन अधिसूचित नहीं होती है, वहाँ विक्रेता के लिए स्वयं बोली लगाना या किसी व्यक्ति को ऐसी बिक्री में बोली लगाने के लिए नियुक्त करना, या नीलामकर्ता के लिए जानबूझकर विक्रेता या ऐसे किसी व्यक्ति से कोई बोली लेना वैध नहीं होगा; और इस नियम का उल्लंघन करने वाली किसी भी बिक्री को खरीदार द्वारा धोखाधड़ी (Fraudulent) माना जा सकता है (Where the sale is not notified to be subject to a right to bid on behalf of the seller, it shall not be lawful for the seller to bid himself or to employ any person to bid at such sale, or for the auctioneer knowingly to take any bid from the seller or any such person; and any sale contravening this rule may be treated as fraudulent by the buyer):
यह 'पुफिंग' या 'बोगी बिडिंग' (Bogus Bidding) को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यदि विक्रेता ने नीलामी में बोली लगाने का अधिकार आरक्षित नहीं किया है, तो विक्रेता (या उसका कोई एजेंट) गुप्त रूप से बोली नहीं लगा सकता है ताकि कीमत बढ़ाई जा सके। यदि ऐसा होता है, तो खरीदार उस बिक्री को धोखाधड़ी के रूप में रद्द कर सकता है।
उदाहरण: यदि एक नीलामी में स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा गया है कि विक्रेता बोली लगा सकता है, और बाद में यह पता चलता है कि विक्रेता के एक एजेंट ने बोली लगाकर कीमतें बढ़ाईं, तो उच्चतम बोली लगाने वाला खरीदार उस बिक्री को धोखाधड़ी के रूप में रद्द कर सकता है।
(5) बिक्री को आरक्षित या न्यूनतम कीमत (Reserved or Upset Price) के अधीन अधिसूचित किया जा सकता है (The sale may be notified to be subject to a reserved or upset, price):
आरक्षित या न्यूनतम कीमत वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर विक्रेता माल बेचने को तैयार है। यदि बोली उस आरक्षित कीमत तक नहीं पहुँचती है, तो नीलामकर्ता को माल बेचने की आवश्यकता नहीं होती है। यह एक वैध शर्त है जिसे नीलामकर्ता द्वारा घोषित किया जाना चाहिए।
उदाहरण: एक घर की नीलामी ₹50 लाख की आरक्षित कीमत के साथ हो सकती है। यदि उच्चतम बोली ₹48 लाख है, तो घर नहीं बेचा जाएगा।
(6) यदि विक्रेता कीमत बढ़ाने के लिए दिखावटी बोली (Pretended Bidding) का उपयोग करता है, तो बिक्री खरीदार के विकल्प पर रद्द करने योग्य (Voidable) है (If the seller makes use of pretended bidding to raise the price, the sale is voidable at the option of the buyer):
यह धारा 64(4) का विस्तार है और 'पुफिंग' के सीधे परिणाम को बताता है। यदि विक्रेता या उसका एजेंट (बिना अधिकार आरक्षित किए) फर्जी बोलियाँ लगाता है ताकि अन्य बोली लगाने वालों को अधिक कीमत देने के लिए उकसाया जा सके, तो यह धोखाधड़ी का कार्य माना जाता है, और खरीदार उस बिक्री को रद्द कर सकता है।
पिथडेली बनाम ओगडेन (Pitheley v. Ogden) (1795) 1 Term Rep 260 (एक शुरुआती अंग्रेजी मामला): यह मामला 'पुफिंग' या गुप्त बोली लगाने की अवैधता को दर्शाता है, खासकर जब नीलामी 'बिना आरक्षित' (without reserve) होती है।
निष्कर्ष:
माल विक्रय अधिनियम का अध्याय VII अधिनियम को अंतिम रूप देता है, सामान्य सिद्धांतों को स्पष्ट करता है और नीलामी जैसे विशिष्ट लेनदेन के लिए महत्वपूर्ण नियम प्रदान करता है। ये प्रावधान वाणिज्यिक अनुबंधों की व्याख्या और निष्पादन में स्पष्टता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

