सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धाराएं 61 से 64 : न्यायिक अधिकार क्षेत्र, हाईकोर्ट में अपील, और दंड या मुआवजे की वसूली

Himanshu Mishra

6 Jun 2025 5:10 PM IST

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धाराएं 61 से 64 : न्यायिक अधिकार क्षेत्र, हाईकोर्ट में अपील, और दंड या मुआवजे की वसूली

    सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) ने भारत में डिजिटल लेनदेन, साइबर अपराध और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जैसे विषयों पर स्पष्ट और मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान किया है।

    अधिनियम के अध्याय X की धाराएं 61 से 64 कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल करती हैं, जो न्यायिक अधिकार क्षेत्र, हाईकोर्ट में अपील, उल्लंघन के समझौते (Compounding of Contraventions) और दंड या मुआवजे की वसूली से संबंधित हैं।

    धारा 61 - सिविल न्यायालय का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा (Civil court not to have jurisdiction)

    इस धारा के अनुसार, किसी भी सिविल न्यायालय (Civil Court) को ऐसा कोई मामला सुनने या उस पर प्रक्रिया चलाने का अधिकार नहीं होगा, जो इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त किसी न्यायनिर्णय अधिकारी (Adjudicating Officer) या अपीली अधिकरण (Appellate Tribunal) के अधिकार क्षेत्र में आता हो।

    इसके साथ-साथ, किसी भी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण को यह भी अधिकार नहीं होगा कि वह इस अधिनियम के तहत लिए गए किसी निर्णय या की जाने वाली कार्यवाही को रोकने के लिए अंतरिम निषेधाज्ञा (injunction) जारी कर सके।

    इसका उद्देश्य यह है कि सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित मामलों को विशेष रूप से उन्हीं अधिकारियों के पास रखा जाए, जिन्हें यह कानून इसके लिए नियुक्त करता है, और अन्य अदालतें उस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करें।

    उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति पर साइबर अपराध के अंतर्गत जुर्माना लगाया गया है, तो वह व्यक्ति सीधे सिविल अदालत में जाकर उस जुर्माने के खिलाफ मुकदमा नहीं दायर कर सकता। उसे अधिनियम में बताए गए विशेष प्रक्रिया से ही गुजरना होगा, जैसे अपील अधिकरण में जाना।

    धारा 62 - हाईकोर्ट में अपील (Appeal to High Court)

    यह धारा यह व्यवस्था करती है कि यदि कोई व्यक्ति अपीली अधिकरण (Appellate Tribunal) के किसी निर्णय या आदेश से असंतुष्ट है, तो वह हाईकोर्ट (High Court) में अपील कर सकता है।

    यह अपील उस आदेश की सूचना मिलने की तिथि से 60 दिन के भीतर की जानी चाहिए। यह अपील किसी वास्तविक तथ्य (fact) या कानून के प्रश्न (question of law) के आधार पर की जा सकती है।

    यदि व्यक्ति यह दिखा सकता है कि वह किसी उचित कारण (sufficient cause) से अपील समय पर दाखिल नहीं कर पाया, तो हाईकोर्ट एक और अधिकतम 60 दिन की अवधि तक उसे विलंब से अपील दाखिल करने की अनुमति दे सकता है।

    उदाहरण: मान लीजिए कि अपीली अधिकरण ने एक कंपनी पर ₹10 लाख का जुर्माना लगाया और वह निर्णय कंपनी को 1 जुलाई को प्राप्त हुआ। यदि कंपनी को उस निर्णय से आपत्ति है, तो उसे 31 अगस्त तक हाईकोर्ट में अपील करनी होगी। यदि वह किसी वैध कारण से 20 सितंबर को अपील दाखिल करती है, तो उसे यह साबित करना होगा कि देरी उचित थी।

    धारा 63 - उल्लंघनों का समझौता (Compounding of Contraventions)

    इस धारा के अनुसार, इस अधिनियम के अंतर्गत होने वाले किसी भी उल्लंघन को, चाहे वह कार्यवाही शुरू होने से पहले या बाद में, समझौते के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है।

    यह समझौता नियंत्रक (Controller) या उसके द्वारा अधिकृत अधिकारी या न्यायनिर्णय अधिकारी द्वारा किया जा सकता है।

    हालाँकि, समझौते की राशि उस अधिकतम दंड राशि से अधिक नहीं हो सकती जो उस उल्लंघन के लिए अधिनियम में निर्धारित की गई हो।

    एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही गई है कि यदि कोई व्यक्ति तीन वर्षों के भीतर फिर से वही या समान उल्लंघन करता है, तो वह समझौते के लिए पात्र नहीं होगा।

    हालाँकि, यदि दूसरी या अगली बार उल्लंघन तीन वर्ष बीत जाने के बाद होता है, तो उसे फिर से पहला उल्लंघन माना जाएगा और वह समझौते के लिए पात्र हो सकता है।

    इस धारा का तीसरा उपखंड कहता है कि यदि किसी उल्लंघन का समझौता कर लिया गया है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

    उदाहरण: एक संस्था ने वर्ष 2022 में ग्राहक डेटा को अनधिकृत रूप से साझा किया। इस पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाया गया, लेकिन संस्था ने नियंत्रक के साथ समझौता कर लिया और ₹1.5 लाख का भुगतान करके मामला निपटा दिया। अब यदि वही संस्था 2023 में फिर से ऐसा ही उल्लंघन करती है, तो वह समझौता करने के लिए पात्र नहीं होगी। लेकिन यदि वह संस्था अगली बार 2026 में ऐसा उल्लंघन करती है, तो उसे फिर से 'पहला उल्लंघन' माना जाएगा और वह समझौते की पात्र होगी।

    धारा 64 - दंड या मुआवजे की वसूली (Recovery of Penalty or Compensation)

    इस धारा में यह व्यवस्था की गई है कि यदि अधिनियम के तहत लगाया गया दंड या आदेशित मुआवजा व्यक्ति द्वारा नहीं चुकाया जाता, तो उसे भूमि राजस्व की बकाया राशि (arrear of land revenue) के रूप में वसूला जाएगा।

    इसका अर्थ है कि सरकार दंड की वसूली उसी प्रकार करेगी जैसे वह भूमि कर या अन्य सरकारी बकाया की वसूली करती है।

    साथ ही, जब तक यह दंड नहीं चुकाया जाता, तब तक उस व्यक्ति का लाइसेंस या इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (Electronic Signature Certificate) निलंबित रहेगा।

    यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि दंडात्मक आदेश केवल कागज पर न रहें, बल्कि उनका पालन हो और सरकार के पास वसूली के प्रभावी साधन मौजूद हों।

    उदाहरण: एक व्यक्ति पर ₹5 लाख का दंड लगाया गया और उसने भुगतान नहीं किया। तब नियंत्रक यह राशि तहसीलदार के माध्यम से भूमि राजस्व की बकाया राशि की तरह वसूल सकता है। जब तक यह राशि जमा नहीं होती, उस व्यक्ति का डिजिटल सिग्नेचर प्रमाणपत्र निलंबित रहेगा और वह किसी भी ऑनलाइन सरकारी सेवा का उपयोग नहीं कर पाएगा।

    धाराएं 61 से 64 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत कानूनी कार्यवाही की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

    धारा 61 यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया विशिष्ट और विशेष प्राधिकरणों के माध्यम से ही चले और बाहरी अदालतें उस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करें।

    धारा 62 हाईकोर्ट में अपील के रास्ते को खोलती है जिससे न्याय की दूसरी परत उपलब्ध हो जाती है।

    धारा 63 समझौते के माध्यम से विवादों को शीघ्र और सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने का विकल्प देती है, जिससे न्यायिक तंत्र पर बोझ कम होता है।

    धारा 64 सरकार को दंड और मुआवजे की प्रभावी वसूली के लिए सशक्त उपकरण प्रदान करती है।

    इन प्रावधानों के माध्यम से अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि डिजिटल क्षेत्र में नियमों का उल्लंघन करने वालों को सख्त परिणाम भुगतने पड़ें और जो पीड़ित हैं उन्हें समय पर न्याय और मुआवजा प्राप्त हो सके। इसके साथ ही यह अधिनियम भारत के डिजिटल भविष्य के लिए एक सुदृढ़ विधिक आधार भी प्रदान करता है।

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