राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 60 से 63 : नोटिस या उद्घोषणा की सेवा का तरीका
Himanshu Mishra
10 May 2025 5:16 PM IST

राजस्व प्रक्रिया में न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए केवल न्यायालय के आदेश ही पर्याप्त नहीं होते, बल्कि यह भी आवश्यक होता है कि संबंधित पक्षों को सभी नोटिस समय से और सही तरीके से मिले हों, घोषणाएं विधिसम्मत रूप से की गई हों, और यदि कोई पक्षकार अनुपस्थित हो, तो उसके लिए भी एक न्यायसंगत प्रक्रिया अपनाई गई हो।
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 60 से 63 तक के प्रावधान इन सभी पहलुओं को नियंत्रित करते हैं। ये प्रावधान राजस्व मामलों में सूचना, उद्घोषणा और एकपक्षीय कार्यवाही की वैधता सुनिश्चित करते हैं।
धारा 60: नोटिस की सेवा का तरीका
इस धारा में यह बताया गया है कि किसी भी नोटिस को संबंधित व्यक्ति तक कैसे पहुँचाया जाएगा। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, क्योंकि यदि नोटिस की सेवा विधिसम्मत नहीं हुई है, तो पूरी कार्यवाही की वैधता पर प्रश्न उठ सकते हैं।
धारा 60 के अनुसार, नोटिस की सेवा निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है – सबसे पहले, नोटिस को संबंधित व्यक्ति को सीधे सौंपा जा सकता है या उसके अधिकृत अभिकर्ता (authorised agent) को दिया जा सकता है। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो नोटिस को पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जा सकता है।
यदि यह दोनों तरीके भी असफल हों – जैसे कि संबंधित व्यक्ति उपलब्ध न हो, या उसका पता स्पष्ट न हो – तो नोटिस की एक प्रति उसके अंतिम ज्ञात निवास स्थान पर या उस गाँव के किसी सार्वजनिक स्थल पर चिपकाई जा सकती है, जहाँ वह भूमि स्थित है जिससे नोटिस संबंधित है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी किसान को भूमि के सीमांकन के संबंध में नोटिस भेजा जाना है, लेकिन वह अपने गांव से बाहर काम करने गया हुआ है और उसका परिवार भी अस्थायी रूप से कहीं और चला गया है। ऐसे में पटवारी या तहसीलदार उस नोटिस को किसान के घर के बाहर या पंचायत भवन जैसी सार्वजनिक जगह पर चिपका सकते हैं। इससे नोटिस की सेवा विधिक रूप से पूरी मानी जाएगी।
धारा 61: उद्घोषणा जारी करने की विधि
राजस्व प्रक्रिया में कभी-कभी ऐसी स्थिति आती है जहाँ भूमि से जुड़े अधिकारों या अन्य विवादों के संदर्भ में सार्वजनिक घोषणा (proclamation) करना आवश्यक होता है। धारा 61 यह स्पष्ट करती है कि ऐसी उद्घोषणाएं कहाँ और कैसे प्रकाशित की जानी चाहिए।
सबसे पहले, उद्घोषणा की प्रतियाँ उस अधिकारी के न्यायालय परिसर में लगाई जाएंगी, जिसने उसे जारी किया है। इसके बाद, उस तहसील के मुख्यालय में भी एक प्रति लगाई जाएगी, जहाँ वह भूमि स्थित है जिससे उद्घोषणा संबंधित है। इसके अतिरिक्त, उद्घोषणा की एक प्रति उस भूमि के पास के किसी सार्वजनिक स्थल पर या भूमि पर स्वयं लगाई जाएगी।
यदि अधिकारी उचित समझे तो वह यह आदेश भी दे सकता है कि उद्घोषणा ढोल बजाकर भूमि के आस-पास के क्षेत्र में सुनाई जाए। इसका उद्देश्य यह है कि गाँव के सभी लोग या भूमि से संबंधित पक्षकार उद्घोषणा की जानकारी से अवगत हो सकें।
उदाहरण के रूप में मान लीजिए कि किसी भूमि की नीलामी की घोषणा की जानी है क्योंकि उसका मालिक भू-राजस्व का भुगतान नहीं कर रहा है। ऐसी स्थिति में तहसीलदार एक सार्वजनिक उद्घोषणा जारी करता है, जिसकी प्रतियाँ तहसील कार्यालय, न्यायालय भवन और गाँव के चौपाल पर चिपकाई जाती हैं। साथ ही, ढोल बजाकर गाँव में घोषणा की जाती है कि इस भूमि की नीलामी आगामी सोमवार को की जाएगी।
धारा 62: नोटिस या उद्घोषणा में त्रुटि होने पर उनका अमान्य न होना
कई बार ऐसा होता है कि नोटिस या उद्घोषणा में किसी व्यक्ति का नाम गलत लिखा जाता है या भूमि का विवरण ठीक से नहीं दिया जाता। धारा 62 यह स्पष्ट करती है कि ऐसी त्रुटियों के कारण केवल इस आधार पर नोटिस या उद्घोषणा को अमान्य नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि वह त्रुटि किसी व्यक्ति को “वास्तविक और गंभीर” अन्याय न पहुंचाए।
इस प्रावधान का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को तकनीकी त्रुटियों के कारण निष्फल होने से बचाना है। यानी अगर किसी उद्घोषणा में किसी का नाम "रामलाल" के स्थान पर गलती से "रामपाल" लिखा गया हो, लेकिन संदर्भ और स्थान से स्पष्ट है कि वह "रामलाल" के बारे में ही है, और रामलाल को इससे कोई गंभीर अन्याय नहीं हुआ, तो उद्घोषणा अमान्य नहीं मानी जाएगी।
दूसरे उदाहरण में यदि किसी भूमि का खसरा नंबर 210/1 के स्थान पर 210 लिखा गया हो, और फिर भी कोई भ्रम न हो, तो यह त्रुटि उद्घोषणा को रद्द करने का आधार नहीं बन सकती।
धारा 63: पक्षकार की अनुपस्थिति में सुनवाई
इस धारा में दो अवस्थाओं का उल्लेख है। पहली स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई पक्षकार सुनवाई की तारीख पर उपस्थित नहीं होता। ऐसी स्थिति में राजस्व न्यायालय या अधिकारी उसके अभाव में मामले की सुनवाई कर सकता है और निर्णय दे सकता है या फिर अनुपस्थित रहने वाले पक्षकार के विरुद्ध डिफ़ॉल्ट में मामला खारिज कर सकता है।
दूसरी स्थिति तब आती है जब सुनवाई की तिथि को यह ज्ञात हो कि किसी पक्षकार को समन या नोटिस भेजा ही नहीं गया क्योंकि विपक्षी पक्ष ने समन भेजने के लिए आवश्यक फीस जमा नहीं की। ऐसी स्थिति में न्यायालय उस मामले को विपक्षी पक्ष की डिफ़ॉल्ट से खारिज कर सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर भूमि बंटवारे के एक मुकदमे में राम और श्याम पक्षकार हैं और श्याम सुनवाई की तारीख पर उपस्थित नहीं होता, तो राजस्व अधिकारी राम की बात सुनकर एकपक्षीय निर्णय दे सकता है। इसी तरह, यदि राम को समन भेजने के लिए श्याम ने प्रक्रिया शुल्क नहीं भरा और इस कारण राम को समन नहीं मिला, तो अधिकारी श्याम की डिफ़ॉल्ट के कारण मुकदमा खारिज कर सकता है।
यह प्रावधान पक्षकारों को यह सिखाता है कि न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को समझें और समन/नोटिस की प्रक्रिया को हल्के में न लें।
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 60 से 63 तक के प्रावधान राजस्व न्यायालयों की कार्यवाही में सूचना, सेवा, उद्घोषणा और अनुपस्थिति से संबंधित सभी आवश्यक पहलुओं को नियंत्रित करते हैं।
ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि राजस्व मामलों में सभी पक्षों को समय से नोटिस मिले, सार्वजनिक घोषणाएं ठीक से हों, तकनीकी त्रुटियों के कारण न्याय में बाधा न आए और पक्षकारों की अनुपस्थिति के बावजूद न्याय सुनिश्चित किया जा सके। इन धाराओं के प्रभावी पालन से राजस्व न्यायिक प्रणाली न केवल विधिसम्मत रहती है, बल्कि अधिक न्यायिक, पारदर्शी और उत्तरदायी भी बनती है।