धारा 60, 61 और 61ए राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 : आबकारी अधिकारियों द्वारा कर्तव्यहीनता पर दंड
Himanshu Mishra
16 Jan 2025 12:31 PM

राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 (Rajasthan Excise Act, 1950) में नशीले पदार्थों के उत्पादन, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करने के लिए विस्तृत प्रावधान हैं। इस अधिनियम के तहत आबकारी अधिकारियों (Excise Officers) की नियुक्ति की जाती है, जिन पर कानून लागू करने की ज़िम्मेदारी होती है।
अधिकारियों को उनके कार्यों में जवाबदेह बनाने और दुरुपयोग रोकने के लिए, अधिनियम में कर्तव्यहीनता और अधिकारों के दुरुपयोग के लिए दंड निर्धारित किए गए हैं।
धारा 60, 61 और 61ए में विशेष रूप से उन अधिकारियों के लिए दंड का प्रावधान है जो अपने कर्तव्यों का पालन करने में असफल रहते हैं या अपने अधिकारों का गलत उपयोग करते हैं। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि आबकारी व्यवस्था में पारदर्शिता और ईमानदारी बनी रहे।
धारा 60: कर्तव्य पालन से इनकार करने पर दंड (Penalty for Refusing to Perform Duty)
धारा 60 उन मामलों से संबंधित है जहां कोई आबकारी अधिकारी बिना वैध कारण के अपने कर्तव्यों का पालन करने से इनकार करता है या अपने कार्यों से अलग हो जाता है। एक आबकारी अधिकारी का कार्य क्षेत्र महत्वपूर्ण होता है, और उनके द्वारा कार्य करने से इनकार करना कानून लागू करने की प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है।
इस धारा के तहत, यदि कोई अधिकारी बिना वैध कारण के अपने कर्तव्यों का पालन करना बंद कर देता है या अपने कर्तव्यों से हट जाता है, तो यह अपराध माना जाएगा। यदि अधिकारी ने आबकारी आयुक्त (Excise Commissioner) से लिखित अनुमति नहीं ली है या अपने वरिष्ठ अधिकारी को दो महीने पहले लिखित सूचना नहीं दी है, तो उसे दंडित किया जाएगा।
इस अपराध के लिए दंड में तीन महीने तक की कैद, पाँच सौ रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
उदाहरण:
एक आबकारी अधिकारी को एक जिले में शराब की दुकानों का निरीक्षण करने की ज़िम्मेदारी दी गई है। बिना लिखित अनुमति लिए, वह निरीक्षण करना बंद कर देता है और अपने कर्तव्यों से अलग हो जाता है। यदि उसने अपने वरिष्ठ अधिकारी को दो महीने पहले सूचना भी नहीं दी है, तो उसे धारा 60 के तहत दंडित किया जाएगा।
धारा 61: अनुचित तलाशी और ज़ब्ती पर दंड (Penalty for Vexatious Searches or Seizures)
धारा 61 उन मामलों को कवर करती है जहां आबकारी अधिकारी अपने अधिकारों का अनुचित या अनावश्यक उपयोग करते हैं। यह प्रावधान नागरिकों को अधिकारियों के दुरुपयोग से बचाने के लिए है और यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी केवल उचित संदेह और आवश्यकता के आधार पर कार्य करें।
किसी अधिकारी को इस धारा के तहत दोषी माना जाएगा यदि वह निम्नलिखित कार्यों में संलग्न होता है:
1. बिना उचित संदेह के किसी स्थान में प्रवेश करना, निरीक्षण करना, या तलाशी लेना।
2. किसी व्यक्ति की संपत्ति को अनावश्यक रूप से ज़ब्त करना या यह दिखावा करना कि वह जब्ती के लिए उत्तरदायी है।
3. किसी व्यक्ति को अनुचित रूप से रोकना, तलाशी लेना, या गिरफ्तार करना।
इस प्रकार के कदाचार के लिए तीन महीने तक की कैद, पाँच सौ रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
उदाहरण:
एक आबकारी अधिकारी को सूचना मिलती है कि एक घर में अवैध शराब का भंडारण हो रहा है। बिना यह जाँच किए कि सूचना सही है या नहीं, वह घर में प्रवेश करता है, तलाशी लेता है और घरेलू सामान ज़ब्त कर लेता है। बाद में यह साबित होता है कि अधिकारी ने अनुचित संदेह के आधार पर कार्य किया। ऐसे मामले में, अधिकारी धारा 61 के तहत दंडित होगा।
धारा 61ए: अवैध कार्यों और लापरवाही पर दंड (Penalty for Unlawful Acts or Omissions)
धारा 61ए उन गंभीर मामलों से संबंधित है जहां आबकारी अधिकारी ऐसे कार्य करते हैं जो राजस्थान आबकारी अधिनियम के उद्देश्यों को कमजोर करते हैं। यह प्रावधान उन अधिकारियों पर लागू होता है जो जानबूझकर कानून के उल्लंघन में मदद करते हैं या अपने कर्तव्यों का पालन करने में असफल रहते हैं।
इस धारा के तहत, किसी अधिकारी को निम्नलिखित कार्यों में संलग्न होने पर दोषी माना जाएगा:
1. अवैध रूप से गिरफ्तार व्यक्ति को रिहा करना या उसके भागने में मदद करना।
2. अपने कर्तव्यों के विपरीत कार्य करना जिससे कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन कर सके।
3. ऐसे कार्य करना जिससे आबकारी राजस्व (Excise Revenue) की हानि हो।
इस अपराध के लिए तीन महीने से एक वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। साथ ही, यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि इस धारा के तहत किसी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त की जाए।
उदाहरण:
एक व्यक्ति को अवैध शराब के निर्माण के लिए गिरफ्तार किया गया है। जिम्मेदार आबकारी अधिकारी उसे रिश्वत के बदले अवैध रूप से रिहा कर देता है, जिससे वह आगे की कानूनी कार्रवाई से बच जाता है। इसी तरह, यदि कोई अधिकारी रिकॉर्ड में हेरफेर करता है जिससे शराब निर्माता पर लगने वाला आबकारी शुल्क कम हो जाता है, तो यह भी धारा 61ए के तहत अपराध होगा।
राज्य सरकार की अनुमति का महत्व (Importance of State Government Permission)
धारा 61ए में एक प्रावधान है कि राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी अधिकारी के खिलाफ अदालत में मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि अधिकारियों के खिलाफ केवल वैध और ठोस मामलों में ही कार्रवाई हो और उन्हें झूठे आरोपों से बचाया जा सके।
इन धाराओं का उद्देश्य (Objective of Sections 60, 61, and 61A)
इन धाराओं का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आबकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी और अनुशासन के साथ करें। यह अधिकारियों को कर्तव्य पालन से इनकार करने, अनुचित कार्यों में संलग्न होने और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने से रोकता है।
साथ ही, इन प्रावधानों के तहत दंड के प्रावधान अधिकारियों के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं। राज्य सरकार की अनुमति का प्रावधान अधिकारियों को झूठे मामलों से बचाने के लिए संतुलन बनाता है।
सार्वजनिक विश्वास और राजस्व संरक्षण पर प्रभाव (Impact on Public Trust and Revenue Protection)
आबकारी अधिकारियों का कदाचार न केवल सार्वजनिक विश्वास को नुकसान पहुँचाता है बल्कि राज्य के राजस्व को भी हानि पहुँचाता है। धारा 60, 61 और 61ए इन चिंताओं को दूर करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी से करें।
इन प्रावधानों के माध्यम से, अधिनियम एक पारदर्शी और प्रभावी प्रणाली बनाने में मदद करता है जो नागरिकों के विश्वास को बनाए रखता है और राज्य के संसाधनों की रक्षा करता है।
राजस्थान आबकारी अधिनियम, 1950 की धारा 60, 61 और 61ए अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और उनके अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। ये प्रावधान कर्तव्य पालन से इनकार, अनुचित तलाशी और अवैध कार्यों से संबंधित विभिन्न प्रकार के कदाचार को संबोधित करते हैं।
इन प्रावधानों के तहत निर्धारित दंड अधिकारियों को अनुशासन और जिम्मेदारी के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही, राज्य सरकार की अनुमति का प्रावधान झूठे आरोपों से बचाने के लिए एक संतुलन बनाता है।
इन प्रावधानों के माध्यम से, राजस्थान आबकारी अधिनियम ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को बनाए रखते हुए कानून का प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करता है।