वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में अध्याय II के अंतर्गत धारा 6 से 8 : राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन, कार्यप्रणाली और कर्तव्य

Himanshu Mishra

23 Aug 2025 4:58 PM IST

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में अध्याय II के अंतर्गत धारा 6 से 8 : राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन, कार्यप्रणाली और कर्तव्य

    वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में अध्याय II के अंतर्गत धारा 6 से 8 तक राज्य स्तर पर वन्यजीव संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था का प्रावधान किया गया है, जिसे राज्य वन्यजीव बोर्ड (State Board for Wildlife) कहा जाता है।

    इस संस्था का गठन 2002 के संशोधन अधिनियम द्वारा और अधिक स्पष्ट और व्यापक रूप से परिभाषित किया गया। राज्य वन्यजीव बोर्ड एक ऐसा मंच है जहाँ सरकार, विशेषज्ञ, गैर-सरकारी संगठन और विभिन्न विभाग मिलकर वन्यजीव संरक्षण की नीति और दिशा तय करते हैं।

    धारा 6 — राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन (Constitution of State Board for Wildlife)

    धारा 6 के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार को संशोधन अधिनियम, 2002 लागू होने की तारीख से छह माह के भीतर एक राज्य वन्यजीव बोर्ड गठित करना आवश्यक है। इस बोर्ड में विभिन्न प्रकार के सदस्य शामिल होते हैं ताकि यह संस्था व्यापक दृष्टिकोण (Comprehensive Perspective) के साथ कार्य कर सके।

    बोर्ड का अध्यक्ष (Chairperson) राज्य का मुख्यमंत्री होता है। यदि कोई केंद्रशासित प्रदेश (Union Territory) है तो वहाँ मुख्यमंत्री या प्रशासक अध्यक्ष बनेगा। उपाध्यक्ष (Vice-Chairperson) राज्य के वन और वन्यजीव मंत्री होते हैं। इसके अलावा बोर्ड में राज्य विधानसभा के सदस्य, वन्यजीव से जुड़े गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के प्रतिनिधि, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि शामिल किए जाते हैं।

    साथ ही, प्रशासनिक स्तर पर भी अनेक अधिकारी इसके सदस्य होते हैं—जैसे राज्य के वन विभाग के प्रमुख अधिकारी, पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक, पुलिस विभाग और सेना के वरिष्ठ अधिकारी, पशुपालन और मत्स्य विभाग के निदेशक, वन्यजीव संस्थान देहरादून, बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि। बोर्ड का सचिव (Member-Secretary) मुख्य वन्यजीव वार्डन (Chief Wildlife Warden) होता है।

    यह विविध सदस्यता इस बात को सुनिश्चित करती है कि बोर्ड केवल सरकारी संस्था न रहकर विभिन्न दृष्टिकोणों से वन्यजीव संरक्षण पर विचार कर सके।

    उदाहरण

    मान लीजिए, मध्य प्रदेश सरकार "नर्मदा नदी क्षेत्र" के आसपास के जंगलों को संरक्षित क्षेत्र (Protected Area) घोषित करना चाहती है। इस निर्णय से केवल वन्यजीव संरक्षण ही नहीं, बल्कि वहाँ रहने वाले आदिवासी, पर्यटन उद्योग और स्थानीय आजीविका पर भी प्रभाव पड़ेगा। ऐसे मामले में राज्य वन्यजीव बोर्ड सभी पक्षों—सरकार, विशेषज्ञों, NGOs और स्थानीय समुदायों—की राय लेकर संतुलित सुझाव देता है।

    धारा 7 — बोर्ड की कार्यप्रणाली (Procedure to be Followed by the Board)

    धारा 7 बोर्ड की कार्यप्रणाली से संबंधित है। प्रावधान है कि बोर्ड वर्ष में कम से कम दो बार बैठक करेगा। बैठक का स्थान राज्य सरकार तय करती है।

    बोर्ड को अपने कामकाज की प्रक्रिया (Procedure) स्वयं निर्धारित करने की स्वतंत्रता है, जिसमें कोरम (Quorum) भी शामिल है। इसका अर्थ है कि बोर्ड अपने कार्य के लिए आवश्यक नियम बना सकता है।

    साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि बोर्ड में कोई रिक्ति रह जाए या इसके गठन में कोई तकनीकी त्रुटि हो, तब भी उसकी बैठकें और निर्णय वैध (Valid) माने जाएंगे, बशर्ते उन त्रुटियों से मामले की वास्तविकता प्रभावित न होती हो।

    उदाहरण

    यदि किसी बैठक में नामित किसी NGO का प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हो पाया, तो यह बोर्ड की बैठक को अमान्य नहीं बनाएगा। बल्कि शेष उपस्थित सदस्य आवश्यक कार्यवाही आगे बढ़ा सकते हैं।

    धारा 8 — राज्य वन्यजीव बोर्ड के कर्तव्य (Duties of the State Board for Wildlife)

    धारा 8 बोर्ड के कर्तव्यों को स्पष्ट करती है। इसका मुख्य कार्य है राज्य सरकार को विभिन्न विषयों पर परामर्श देना।

    सबसे पहला कर्तव्य है कि बोर्ड राज्य सरकार को यह सुझाव दे कि किन क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र (Protected Area) घोषित किया जाना चाहिए और उनके प्रबंधन (Management) के लिए क्या कदम उठाए जाएँ। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, अभयारण्यों का विस्तार या पुनर्गठन शामिल हो सकता है।

    दूसरा कर्तव्य है वन्यजीव और निर्दिष्ट पौधों के संरक्षण के लिए नीति निर्माण (Policy Formulation) में सहायता करना। इससे यह सुनिश्चित होता है कि राज्य स्तर पर संरक्षण केवल प्रशासनिक निर्णय न होकर वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से संतुलित हो।

    बोर्ड का एक और महत्वपूर्ण दायित्व है अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासियों (Forest Dwellers) की आवश्यकताओं को वन्यजीव संरक्षण के साथ संतुलित (Harmonised) करना। यह प्रावधान इसीलिए जोड़ा गया क्योंकि लंबे समय तक संरक्षण के नाम पर स्थानीय निवासियों की उपेक्षा की जाती रही थी।

    साथ ही, बोर्ड किसी भी ऐसे अन्य मामले पर भी सलाह दे सकता है जिसे राज्य सरकार उसके पास भेजे। इसमें अवैध शिकार रोकने की नीति, नए कानूनों का प्रस्ताव, या पर्यटन और संरक्षण के बीच संतुलन जैसे मुद्दे शामिल हो सकते हैं।

    उदाहरण

    मान लीजिए छत्तीसगढ़ सरकार यह तय करना चाहती है कि किस प्रकार स्थानीय जनजातियों को जंगल के उत्पाद (NTFP – Non-Timber Forest Produce) संग्रह की अनुमति दी जाए ताकि उनकी आजीविका प्रभावित न हो और साथ ही वन्यजीव संरक्षण भी बना रहे। इस तरह की नीतिगत दिशा तय करने में राज्य वन्यजीव बोर्ड की सलाह निर्णायक हो सकती है।

    धारा 6 से 8 राज्य स्तर पर वन्यजीव संरक्षण की लोकतांत्रिक और सहभागितापूर्ण संरचना (Participatory Structure) का निर्माण करती हैं। राज्य वन्यजीव बोर्ड केवल प्रशासनिक संस्था नहीं है, बल्कि यह विशेषज्ञों, NGOs, समुदायों और विभिन्न विभागों के सहयोग से काम करने वाला मंच है।

    इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित होता है कि वन्यजीव संरक्षण केवल सरकारी अधिकारियों का कार्य न रहकर एक साझा जिम्मेदारी बने। बोर्ड की भूमिका संतुलन बनाने की है—जहाँ संरक्षण की आवश्यकता, स्थानीय समुदायों के अधिकार, और विकास की ज़रूरतें, सबको एक साथ ध्यान में रखा जाता है।

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