Sales of Goods Act, 1930 की धारा 6, 7 और 8 : वर्तमान या भविष्य का माल

Himanshu Mishra

21 Jun 2025 11:57 PM IST

  • Sales of Goods Act, 1930 की धारा 6, 7 और 8 : वर्तमान या भविष्य का माल

    वर्तमान या भविष्य का माल (Existing or Future Goods)

    माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय II अनुबंध के निर्माण (Formation of the Contract) के एक और महत्वपूर्ण पहलू, यानी अनुबंध की विषय-वस्तु (Subject-matter of Contract) को संबोधित करता है। धारा 6 माल की प्रकृति (Nature of Goods) को परिभाषित करती है जो बिक्री अनुबंध का विषय बन सकते हैं।

    धारा 6(1) के अनुसार, माल जो बिक्री अनुबंध का विषय बनते हैं, वे या तो वर्तमान माल (Existing Goods) हो सकते हैं, जिनका स्वामित्व (Owned) या कब्ज़ा (Possessed) विक्रेता के पास हो, या भविष्य का माल (Future Goods) हो सकते हैं।

    • वर्तमान माल (Existing Goods) वे होते हैं जो अनुबंध के समय मौजूद होते हैं और विक्रेता के स्वामित्व या कब्जे में होते हैं। उदाहरण के लिए, एक दुकान में प्रदर्शन पर रखी एक साइकिल या आपके गोदाम में पड़ा हुआ अनाज।

    • भविष्य का माल (Future Goods) वे होते हैं जिन्हें विक्रेता द्वारा अनुबंध बनने के बाद निर्मित (Manufactured), उत्पादित (Produced) या अधिग्रहित (Acquired) किया जाना है। उदाहरण के लिए, एक किसान द्वारा अगली फसल में उगाया जाने वाला गेहूं, या एक कारखाने द्वारा अगले महीने बनाई जाने वाली कारें।

    धारा 6(2) एक दिलचस्प परिदृश्य (Scenario) प्रस्तुत करती है: माल की बिक्री के लिए एक अनुबंध हो सकता है जिसका विक्रेता द्वारा अधिग्रहण (Acquisition) एक आकस्मिकता (Contingency) पर निर्भर करता है, जो हो भी सकता है और नहीं भी। इसका मतलब है कि विक्रेता के पास अभी तक माल नहीं है, और उसे माल प्राप्त होगा या नहीं, यह किसी अनिश्चित घटना (Uncertain Event) पर निर्भर करता है।

    उदाहरण के लिए, रमेश सुरेश को वह घड़ी बेचने का अनुबंध करता है जो उसे अपने दोस्त से मिलने की उम्मीद है, लेकिन निश्चित नहीं है कि उसका दोस्त उसे वह घड़ी देगा या नहीं। यह एक वैध अनुबंध है, भले ही रमेश का अधिग्रहण आकस्मिक है।

    धारा 6(3) भविष्य के माल की बिक्री से संबंधित एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत (Legal Principle) को स्पष्ट करती है। जहाँ बिक्री के अनुबंध द्वारा विक्रेता भविष्य के माल की वर्तमान बिक्री (Present Sale of Future Goods) को प्रभावी करने का प्रयास करता है, तो अनुबंध माल बेचने के एक समझौते (Agreement to Sell the Goods) के रूप में संचालित होता है। इसका मतलब है कि भविष्य के माल के मामले में, संपत्ति (Property) तुरंत हस्तांतरित नहीं हो सकती है क्योंकि माल अभी मौजूद नहीं है या विक्रेता के पास नहीं है। ऐसे में, यह केवल एक वादा है कि जब माल अस्तित्व में आएगा और विक्रेता उसका अधिग्रहण करेगा, तब उसे बेचा जाएगा।

    उदाहरण के लिए, एक किसान अपनी अभी तक न बोई गई कपास की फसल को एक व्यापारी को बेचने का अनुबंध करता है। यह तुरंत बिक्री नहीं हो सकती क्योंकि कपास अभी अस्तित्व में नहीं है। यह केवल एक "बेचने का समझौता" है जो तब बिक्री में बदल जाएगा जब कपास बोई जाएगी, उगेगी, और कटाई के बाद किसान के स्वामित्व में आएगी।

    अनुबंध बनने से पहले माल का नष्ट होना (Goods Perishing Before Making of Contract)

    माल विक्रय अधिनियम की धारा 7 उन विशिष्ट माल (Specific Goods) से संबंधित है जो अनुबंध बनने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं। यह 'शून्य अनुबंध' (Void Contract) के सिद्धांत को लागू करती है।

    धारा 7 के अनुसार, जहाँ विशिष्ट माल की बिक्री के लिए एक अनुबंध होता है, यदि वह माल विक्रेता के ज्ञान के बिना, अनुबंध बनते समय ही नष्ट हो गया था (Perished) या इतना क्षतिग्रस्त हो गया था (So Damaged) कि अब वह अनुबंध में अपने विवरण के अनुरूप नहीं है (No Longer to Answer to Their Description), तो अनुबंध शून्य (Void) हो जाता है। इसका अर्थ है कि ऐसा अनुबंध कभी अस्तित्व में ही नहीं आया क्योंकि अनुबंध का विषय ही गायब था।

    इस धारा का आधार यह है कि यदि अनुबंध के निर्माण के समय माल मौजूद नहीं है, तो अनुबंध वैध नहीं हो सकता। यह सामान्य कानून के सिद्धांत (Common Law Principle) 'Res Extincta' पर आधारित है, जिसका अर्थ है 'वस्तु का अस्तित्व समाप्त हो गया'।

    कॉउटूरियर बनाम हेस्टी (Couturier v. Hastie) (1856) 5 HLC 673 एक प्रमुख ऐतिहासिक मामला है जो इस सिद्धांत को स्पष्ट करता है। इस मामले में, मकई का एक लदान (Cargo) भारत से इंग्लैंड ले जाया जा रहा था। विक्रेता ने मकई को रास्ते में बेच दिया। हालाँकि, अनुबंध के समय, मकई पहले ही किण्वित (Fermented) हो चुकी थी और कप्तान ने उसे बेच दिया था क्योंकि वह खराब हो रही थी।

    खरीदार को बाद में इस बात का पता चला। हाउस ऑफ लॉर्ड्स (House of Lords) ने फैसला सुनाया कि चूंकि अनुबंध के समय मकई मौजूद नहीं थी, इसलिए अनुबंध शून्य था, और खरीदार को पैसे वापस पाने का अधिकार था। यह मामला दर्शाता है कि यदि अनुबंध के विषय-वस्तु का अस्तित्व नहीं है, तो कोई वैध अनुबंध नहीं बन सकता।

    बिक्री से पहले लेकिन बेचने के समझौते के बाद माल का नष्ट होना (Goods Perishing Before Sale but After Agreement to Sell)

    धारा 8 उस स्थिति से संबंधित है जहाँ बिक्री के लिए एक समझौता (Agreement to Sell) है, लेकिन माल बिक्री में परिवर्तित होने से पहले ही नष्ट हो जाता है। यह धारा धारा 7 से भिन्न है क्योंकि यहाँ अनुबंध वैध रूप से बना था, लेकिन बाद में कुछ हुआ।

    धारा 8 के अनुसार, जहाँ विशिष्ट माल बेचने का समझौता होता है, और उसके बाद माल विक्रेता या खरीदार की किसी गलती के बिना (Without Any Fault), खरीदार को जोखिम हस्तांतरित होने से पहले ही नष्ट हो जाता है (Perish) या इतना क्षतिग्रस्त हो जाता है कि अब वह समझौते में अपने विवरण के अनुरूप नहीं है, तो समझौता टाल दिया जाता है (Avoided)।

    यहाँ मुख्य अंतर यह है कि धारा 7 में माल अनुबंध के समय ही नष्ट हो गया था, जबकि धारा 8 में माल बेचने के समझौते के बाद लेकिन बिक्री बनने से पहले नष्ट हुआ है। धारा 8 मुख्य रूप से 'जोखिम कौन उठाता है' (Who bears the risk) के सिद्धांत पर आधारित है। जब तक जोखिम खरीदार को हस्तांतरित नहीं होता है, विक्रेता माल के नुकसान के लिए जिम्मेदार होता है।

    उदाहरण के लिए, आप एक दुर्लभ पेंटिंग खरीदने के लिए एक कला डीलर के साथ समझौता करते हैं। पेंटिंग को एक सप्ताह बाद आपके घर डिलीवर किया जाना है, और जोखिम तभी हस्तांतरित होगा। डिलीवरी से पहले, डीलर के गोदाम में आग लगने से पेंटिंग नष्ट हो जाती है, जिसमें डीलर या आपकी कोई गलती नहीं है। इस स्थिति में, धारा 8 लागू होगी, और बेचने का समझौता टाल दिया जाएगा, जिसका अर्थ है कि आपको पेंटिंग के लिए भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।

    यह धारा 'दुर्घटना से निराशा' (Frustration by Accident) के सिद्धांत का एक उदाहरण है। अनुबंध मूल रूप से वैध था, लेकिन एक अप्रत्याशित घटना (Unforeseen Event) ने इसके प्रदर्शन को असंभव बना दिया।

    हॉलैंड बनाम एर्स्किन (Howell v. Coupland) (1876) 1 QBD 258 इस धारा से संबंधित एक महत्वपूर्ण अंग्रेजी मामला है, हालांकि यह सीधे भारतीय कानून का नहीं है, यह अंतर्निहित सिद्धांत को दर्शाता है। इस मामले में, विक्रेता ने एक विशिष्ट क्षेत्र से उगाई जाने वाली 200 टन आलू बेचने का अनुबंध किया था।

    फसल को एक बीमारी लग गई थी जिसके परिणामस्वरूप केवल 80 टन आलू ही उपलब्ध थे। अदालत ने फैसला सुनाया कि अनुबंध के विषय-वस्तु का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था, और विक्रेता शेष भाग को वितरित करने के लिए बाध्य नहीं था क्योंकि अनुबंध टाल दिया गया था।

    संक्षेप में, धारा 6 माल की विभिन्न श्रेणियों को परिभाषित करती है जो बिक्री का विषय हो सकती हैं। धारा 7 और 8 विशिष्ट माल के नष्ट होने की स्थिति में अनुबंध के भाग्य को निर्धारित करती हैं, जो माल के नष्ट होने के समय पर निर्भर करता है (अनुबंध बनने से पहले या बेचने के समझौते के बाद लेकिन बिक्री से पहले)। ये धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि अनुबंध की निष्पक्षता बनी रहे, खासकर जब अनुबंध की विषय-वस्तु अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण प्रभावित होती है।

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