Indian Partnership Act, 1932 की धारा 59-62: फर्मों का पंजीकरण और परिवर्तनों का अभिलेखन

Himanshu Mishra

18 July 2025 11:08 AM

  • Indian Partnership Act, 1932 की धारा 59-62: फर्मों का पंजीकरण और परिवर्तनों का अभिलेखन

    भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) का यह खंड फर्मों के पंजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है और पंजीकृत (Registered) फर्मों से संबंधित विभिन्न परिवर्तनों (Alterations) को आधिकारिक रिकॉर्ड (Official Record) में दर्ज करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। ये प्रावधान फर्म के कानूनी रिकॉर्ड की सटीकता (Accuracy) और पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करते हैं, जो तीसरे पक्षों (Third Parties) के लिए और फर्म के अपने हित के लिए महत्वपूर्ण है।

    धारा 59: पंजीकरण (Registration)

    भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 59 बताती है कि पंजीकरण प्रक्रिया कैसे पूरी होती है। जब रजिस्ट्रार (Registrar) इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि धारा 58 (Section 58) के प्रावधानों का विधिवत (Duly) पालन किया गया है - यानी, आवेदन सही फॉर्म में, निर्धारित शुल्क के साथ और आवश्यक सभी जानकारी के साथ प्रस्तुत किया गया है, और सभी भागीदारों द्वारा हस्ताक्षरित और सत्यापित (Verified) है - तो वह फर्म के विवरण (Statement) की एक प्रविष्टि (Entry) को एक रजिस्टर में दर्ज करेगा जिसे फर्मों का रजिस्टर (Register of Firms) कहा जाता है।

    इसके बाद, रजिस्ट्रार उस विवरण को फाइल (File) करेगा। यह प्रक्रिया फर्म को कानूनी रूप से पंजीकृत बनाती है, और फर्मों का रजिस्टर एक सार्वजनिक रिकॉर्ड (Public Record) बन जाता है जिस पर तीसरे पक्ष भरोसा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि "सनराइज ट्रेडिंग कंपनी" ने की धारा 58 के अनुसार अपना आवेदन प्रस्तुत किया है, और रजिस्ट्रार सभी विवरणों से संतुष्ट है, तो वह फर्मों के रजिस्टर में "सनराइज ट्रेडिंग कंपनी" का नाम और विवरण दर्ज करेगा, और आवेदन को रिकॉर्ड के लिए फाइल करेगा।

    धारा 60: फर्म के नाम और व्यवसाय के प्रमुख स्थान में परिवर्तनों का अभिलेखन (Recording of Alterations in Firm Name and Principal Place of Business)

    भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 60 पंजीकृत फर्मों के महत्वपूर्ण विवरणों में परिवर्तन होने पर उन्हें कैसे दर्ज किया जाए, इसका प्रावधान करती है:

    इस धारा की उप-धारा (1) के अनुसार, जब एक पंजीकृत फर्म के फर्म के नाम (Firm Name) या व्यवसाय के प्रमुख स्थान (Principal Place of Business) के स्थान में कोई परिवर्तन किया जाता है, तो रजिस्ट्रार को एक विवरण भेजा जा सकता है। इस विवरण के साथ निर्धारित शुल्क (Prescribed Fee) भी संलग्न होना चाहिए, और इसमें परिवर्तन को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया जाना चाहिए।

    यह विवरण धारा 58 (Section 58) के तहत आवश्यक तरीके से हस्ताक्षरित (Signed) और सत्यापित (Verified) होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि "अग्रवाल ब्रदर्स एंड कंपनी" अपना नाम बदलकर "अग्रवाल एसोसिएट्स" करती है, या अपने मुख्य कार्यालय को जयपुर से उदयपुर स्थानांतरित करती है, तो उन्हें की धारा 58 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए रजिस्ट्रार को एक नया विवरण भेजना होगा।

    इस धारा की उप-धारा (2) यह बताती है कि जब रजिस्ट्रार इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि उप-धारा (1) के प्रावधानों का विधिवत पालन किया गया है, तो वह फर्मों के रजिस्टर में फर्म से संबंधित प्रविष्टि को विवरण के अनुसार संशोधित (Amend) करेगा। वह इस संशोधित विवरण को फर्म से संबंधित की धारा 59 (Section 59) के तहत दायर मूल विवरण के साथ फाइल करेगा।

    यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि फर्मों का रजिस्टर हमेशा फर्म के वर्तमान और सटीक विवरण को दर्शाता है, जिससे व्यापार करने वाले पक्षों के लिए पारदर्शिता बनी रहती है।

    धारा 61: शाखाओं के बंद होने और खुलने का अभिलेखन (Noting of Closing and Opening of Branches)

    भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 61 पंजीकृत फर्मों की शाखाओं (Branches) से संबंधित परिवर्तनों को दर्ज करने का प्रावधान करती है। जब एक पंजीकृत फर्म किसी स्थान पर व्यवसाय बंद कर देती है, या किसी नए स्थान पर व्यवसाय करना शुरू कर देती है (और यह नया स्थान उसका प्रमुख व्यवसाय स्थान नहीं है), तो फर्म का कोई भी भागीदार (Partner) या एजेंट (Agent) इस परिवर्तन की सूचना (Intimation) रजिस्ट्रार को भेज सकता है।

    रजिस्ट्रार, ऐसी सूचना मिलने पर, फर्मों के रजिस्टर में फर्म से संबंधित प्रविष्टि में इस सूचना का एक नोट (Note) बनाएगा, और इस सूचना को की धारा 59 (Section 59) के तहत दायर फर्म से संबंधित मूल विवरण के साथ फाइल करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि फर्म के सभी व्यावसायिक स्थानों का रिकॉर्ड अद्यतन (Updated) रहे।

    उदाहरण के लिए, यदि "एबीसी ट्रेडर्स" दिल्ली में अपनी एक शाखा बंद कर देती है, या मुंबई में एक नई शाखा खोलती है, तो फर्म का कोई भागीदार रजिस्ट्रार को सूचित कर सकता है, और रजिस्ट्रार रिकॉर्ड को अपडेट कर देगा।

    धारा 62: भागीदारों के नाम और पतों में परिवर्तनों का अभिलेखन (Noting of Changes in Names and Addresses of Partners)

    भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 62 पंजीकृत फर्म में भागीदारों के व्यक्तिगत विवरणों में परिवर्तन होने पर उन्हें कैसे दर्ज किया जाए, इसका प्रावधान करती है। जब एक पंजीकृत फर्म में कोई भागीदार अपना नाम (Name) या स्थायी पता (Permanent Address) बदलता है, तो इस परिवर्तन की एक सूचना फर्म का कोई भी भागीदार या एजेंट रजिस्ट्रार को भेज सकता है। रजिस्ट्रार इस सूचना को उसी तरीके से संभालेगा जैसा कि धारा 61 (Section 61) में प्रदान किया गया है।

    इसका मतलब है कि रजिस्ट्रार फर्मों के रजिस्टर में संबंधित प्रविष्टि में इस परिवर्तन का एक नोट बनाएगा और सूचना को फाइल करेगा। यह भागीदारों के पहचान विवरणों को अद्यतन रखने में मदद करता है, जो कानूनी और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि एक भागीदार, सुश्री प्रिया शर्मा, शादी के बाद अपना नाम बदलकर सुश्री प्रिया वर्मा कर लेती हैं, या अपना निवास स्थान बदल लेती हैं, तो फर्म रजिस्ट्रार को सूचित करेगी ताकि रिकॉर्ड अपडेट हो सकें। यह पारदर्शिता बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि तीसरे पक्ष के पास फर्म के भागीदारों के बारे में सटीक जानकारी हो।

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