Sales of Goods Act, 1930 की धारा 59, 60 और 61: अनुबंध के उल्लंघन के लिए उपाय - वारंटी, अग्रिम खंडन, और विशेष क्षतिपूर्ति
Himanshu Mishra
12 July 2025 11:17 AM

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VI अनुबंध के उल्लंघन (Breach of Contract) के लिए उपलब्ध विभिन्न कानूनी उपायों को जारी रखता है। ये धाराएँ विशेष रूप से वारंटी के उल्लंघन, नियत तारीख से पहले अनुबंध के खंडन (Anticipatory Repudiation), और ब्याज व विशेष क्षतिपूर्ति की वसूली से संबंधित हैं।
वारंटी के उल्लंघन के लिए उपाय (Remedy for Breach of Warranty)
धारा 59 वारंटी के उल्लंघन के लिए खरीदार के उपलब्ध उपायों को स्पष्ट करती है:
1. माल अस्वीकार करने का अधिकार नहीं - धारा 59(1):
जहाँ विक्रेता द्वारा वारंटी का उल्लंघन (Breach of Warranty) होता है, या जहाँ खरीदार विक्रेता की ओर से शर्त के किसी भी उल्लंघन को वारंटी का उल्लंघन मानने का चुनाव करता है या मजबूर होता है (Elects or is Compelled to Treat Any Breach of a Condition... as a Breach of Warranty), तो खरीदार ऐसे वारंटी के उल्लंघन के कारण केवल माल को अस्वीकार करने का हकदार नहीं है (Not By Reason Only of Such Breach of Warranty Entitled to Reject the Goods)।
• वारंटी बनाम शर्त: यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि माल विक्रय अधिनियम शर्तों (Conditions) और वारंटी (Warranties) के बीच अंतर करता है। शर्त अनुबंध के मुख्य उद्देश्य के लिए आवश्यक है, और इसका उल्लंघन खरीदार को अनुबंध को रद्द करने (rescind) और माल को अस्वीकार करने का अधिकार देता है। वारंटी अनुबंध के मुख्य उद्देश्य के लिए सहायक होती है, और इसका उल्लंघन केवल क्षतिपूर्ति के दावे को जन्म देता है, न कि माल को अस्वीकार करने का अधिकार।
• शर्त का वारंटी के रूप में उपचार: खरीदार कुछ मामलों में शर्त के उल्लंघन को वारंटी का उल्लंघन मानने का चुनाव कर सकता है (धारा 13)।
लेकिन वह (खरीदार) कर सकता है—
(a) कीमत में कमी या उसे खत्म करने के लिए विक्रेता के खिलाफ वारंटी के उल्लंघन का दावा करना (Set up against the seller the breach of warranty in diminution or extinction of the price); या
यह खरीदार को कीमत में कटौती (reduction) या पूरी कीमत को खत्म करने (cancellation) के लिए वारंटी के उल्लंघन का उपयोग करने की अनुमति देता है। यह एक बचाव के रूप में कार्य करता है जब विक्रेता कीमत के लिए मुकदमा करता है।
उदाहरण: आपने एक कार खरीदी जिसमें एक वारंटी थी कि इंजन बिल्कुल ठीक है। बाद में, आपको पता चला कि इंजन में एक मामूली दोष है जिसे ठीक करने में ₹5,000 लगेंगे। आप कार की कीमत से ₹5,000 कम करने के लिए वारंटी के उल्लंघन का दावा कर सकते हैं।
(b) वारंटी के उल्लंघन के लिए विक्रेता पर क्षतिपूर्ति का मुकदमा करना (Sue the seller for damages for breach of warranty)।
यह एक स्वतंत्र दावा है जहाँ खरीदार वारंटी के उल्लंघन के कारण हुए नुकसान के लिए मौद्रिक क्षतिपूर्ति की मांग करता है।
उदाहरण: वही कार दोषपूर्ण इंजन के साथ। यदि आपने पूरी कीमत चुका दी है, तो आप विक्रेता पर ₹5,000 की क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा कर सकते हैं ताकि आप मरम्मत का खर्च उठा सकें।
2. अतिरिक्त नुकसान के लिए मुकदमा करने का अधिकार - धारा 59(2):
यह तथ्य कि एक खरीदार ने कीमत में कमी या उसे खत्म करने के लिए वारंटी के उल्लंघन का दावा किया है, उसे उसी वारंटी के उल्लंघन के लिए मुकदमा करने से नहीं रोकता है यदि उसे आगे कोई नुकसान हुआ हो (Suffered Further Damage)।
यह सुनिश्चित करता है कि खरीदार को नुकसान की पूरी भरपाई मिले। यदि कीमत कम करने के बाद भी उसे अतिरिक्त नुकसान हुआ है, तो वह उन नुकसानों के लिए भी मुकदमा कर सकता है।
उदाहरण: आपने दोषपूर्ण इंजन वाली कार को कम कीमत पर स्वीकार कर लिया। बाद में, उस दोष के कारण इंजन पूरी तरह से खराब हो गया और आपको एक नया इंजन खरीदना पड़ा, जिसकी लागत ₹50,000 थी। आप पहले से मिली कमी के बावजूद, इस अतिरिक्त ₹50,000 के नुकसान के लिए विक्रेता पर मुकदमा कर सकते हैं।
चैपलोन एंड कंपनी बनाम थॉमस (Chapelon & Co. v. Thomas) (1875) LR 10 QB 28 (एक संबंधित अंग्रेजी मामला): इस मामले में, यह स्थापित किया गया कि वारंटी के उल्लंघन के लिए उपाय आमतौर पर माल को अस्वीकार करना नहीं होता, बल्कि कीमत में कमी या क्षतिपूर्ति का दावा करना होता है। यह धारा 59 के सिद्धांत का समर्थन करता है।
नियत तारीख से पहले अनुबंध का खंडन (Repudiation of Contract Before Due Date)
धारा 60 अग्रिम खंडन (Anticipatory Repudiation) के सिद्धांत से संबंधित है, जो तब होता है जब एक पक्ष डिलीवरी की नियत तारीख से पहले ही अनुबंध को तोड़ने का स्पष्ट इरादा व्यक्त करता है:
जहाँ बिक्री अनुबंध का कोई भी पक्ष डिलीवरी की तारीख से पहले अनुबंध को खंडित करता है (Repudiates the Contract), तो दूसरा पक्ष या तो:
• अनुबंध को कायम मान सकता है और डिलीवरी की तारीख तक इंतजार कर सकता है (Treat the Contract as Subsisting and Wait Till the Date of Delivery); या
• वह अनुबंध को रद्द मान सकता है और उल्लंघन के लिए क्षतिपूर्ति का मुकदमा कर सकता है (Treat the Contract as Rescinded and Sue for Damages for the Breach)।
यह पीड़ित पक्ष को दो विकल्प प्रदान करता है:
1. अनुबंध को जीवित रखना: पीड़ित पक्ष उल्लंघन करने वाले पक्ष को अपने मन बदलने और अनुबंध को पूरा करने का अवसर दे सकता है। हालाँकि, यदि वह यह विकल्प चुनता है, तो उसे अभी भी अपनी स्वयं की बाध्यताओं को पूरा करने के लिए तैयार रहना चाहिए, और यदि नियत तारीख तक प्रदर्शन नहीं होता है, तो वह उस तारीख पर उल्लंघन के लिए मुकदमा कर सकता है।
2. अनुबंध को रद्द करना और तुरंत मुकदमा करना: पीड़ित पक्ष अनुबंध को तुरंत समाप्त कर सकता है और अग्रिम उल्लंघन के लिए तुरंत क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है। इस मामले में, उसे अब अपनी बाध्यताओं को पूरा करने की आवश्यकता नहीं है।
उदाहरण: एक विक्रेता को 1 सितंबर को खरीदार को गेहूं डिलीवर करना है। 15 अगस्त को, विक्रेता खरीदार को सूचित करता है कि वह गेहूं डिलीवर नहीं करेगा। खरीदार:
• विकल्प 1: 1 सितंबर तक इंतजार कर सकता है। यदि 1 सितंबर को भी गेहूं डिलीवर नहीं होता है, तो वह उस तारीख पर उल्लंघन के लिए मुकदमा कर सकता है।
• विकल्प 2: 15 अगस्त को ही अनुबंध को रद्द मान सकता है और उसी दिन उल्लंघन के लिए क्षतिपूर्ति का मुकदमा कर सकता है।
होचस्टर बनाम डी ला टूर (Hochster v. De La Tour) (1853) 2 E & B 678 (एक अंग्रेजी लैंडमार्क मामला): इस मामले ने अग्रिम खंडन के सिद्धांत को स्थापित किया। अदालत ने फैसला सुनाया कि पीड़ित पक्ष को उल्लंघन करने वाले पक्ष द्वारा अपनी बाध्यता पूरी करने की नियत तारीख तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है; वह तुरंत मुकदमा कर सकता है।
क्षतिपूर्ति के रूप में ब्याज और विशेष क्षतिपूर्ति (Interest by Way of Damages and Special Damages)
धारा 61 ब्याज और विशेष क्षतिपूर्ति की वसूली से संबंधित नियमों को निर्धारित करती है:
1. अन्य कानूनों द्वारा निर्धारित अधिकारों को अप्रभावित रखना - धारा 61(1):
इस अधिनियम में कुछ भी विक्रेता या खरीदार के ब्याज (Interest) या विशेष क्षतिपूर्ति (Special Damages) वसूल करने के अधिकार को किसी भी मामले में प्रभावित नहीं करेगा जहाँ कानून द्वारा ब्याज या विशेष क्षतिपूर्ति वसूल की जा सकती है, या जहाँ भुगतान की गई राशि को वसूल करने का अधिकार है जहाँ भुगतान का प्रतिफल विफल हो गया है।
यह धारा स्पष्ट करती है कि माल विक्रय अधिनियम ब्याज या विशेष क्षतिपूर्ति की वसूली के सामान्य कानूनों को प्रतिस्थापित नहीं करता है। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 जैसे अन्य कानून इन प्रकार की क्षतिपूर्तियों की वसूली को नियंत्रित कर सकते हैं।
• विशेष क्षतिपूर्ति: ये वे नुकसान हैं जो अनुबंध के उल्लंघन के प्रत्यक्ष और स्वाभाविक परिणाम नहीं होते हैं, लेकिन जो उल्लंघन के समय पार्टियों को ज्ञात विशेष परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होते हैं। इनकी वसूली के लिए आमतौर पर यह साबित करना पड़ता है कि उल्लंघन करने वाले पक्ष को इन विशेष नुकसानों की संभावना के बारे में पता था।
• प्रतिफल की विफलता (Failure of Consideration): यदि भुगतान किया गया है लेकिन जिसके लिए भुगतान किया गया था वह प्राप्त नहीं हुआ है, तो भुगतान की गई राशि को वापस पाने का अधिकार होता है।
उदाहरण: एक खरीदार ने एक मशीन खरीदी जो उसे एक विशिष्ट परियोजना के लिए चाहिए थी, और उसने विक्रेता को इस परियोजना के बारे में बताया। विक्रेता ने मशीन डिलीवर नहीं की, और खरीदार को परियोजना पूरी करने में देरी के कारण भारी जुर्माना देना पड़ा। यह जुर्माना विशेष क्षतिपूर्ति हो सकती है यदि विक्रेता को परियोजना और जुर्माने की संभावना के बारे में पता था।
हेडली बनाम बैक्सेंडेल (Hadley v. Baxendale) (1854) 9 Exch 341 (एक अंग्रेजी लैंडमार्क मामला): यह मामला विशेष क्षतिपूर्ति की वसूली के लिए मौलिक परीक्षण स्थापित करता है, यह बताता है कि नुकसान तभी वसूल किया जा सकता है जब वे अनुबंध के स्वाभाविक परिणाम हों या यदि उल्लंघन करने वाले पक्ष को अनुबंध के समय उन नुकसानों की विशेष जानकारी थी।
2. न्यायालय द्वारा ब्याज का अधिनिर्णय - धारा 61(2):
इसके विपरीत किसी अनुबंध के अभाव में, न्यायालय कीमत की राशि पर ऐसी दर पर ब्याज प्रदान कर सकता है जैसा वह उचित समझे:
(a) विक्रेता को कीमत की राशि के लिए उसके वाद में (To the seller in a suit by him for the amount of the price)माल की निविदा की तारीख से या उस तारीख से जिस पर कीमत देय थी;
यदि विक्रेता कीमत के लिए मुकदमा करता है, तो न्यायालय उसे उस तारीख से ब्याज दे सकता है जब उसने माल की पेशकश की थी या जब कीमत का भुगतान देय था।
(b) खरीदार को अनुबंध के विक्रेता की ओर से उल्लंघन के मामले में कीमत की वापसी के लिए उसके वाद में (To the buyer in a suit by him for the refund of the price in a case of a breach of the contract on the part of the seller)उस तारीख से जिस पर भुगतान किया गया था।
यदि विक्रेता के उल्लंघन के कारण खरीदार को कीमत वापस मिलनी है, तो न्यायालय उसे उस तारीख से ब्याज दे सकता है जब उसने भुगतान किया था।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि पक्षकारों को उनके पैसे के उपयोग के नुकसान की भरपाई हो, खासकर जब भुगतान में देरी या वापसी की आवश्यकता होती है। न्यायालय के पास ब्याज दर निर्धारित करने का विवेक होता है।
माल विक्रय अधिनियम की धारा 59, 60 और 61 अनुबंध के उल्लंघन के लिए उपलब्ध उपायों के दायरे को व्यापक बनाती हैं, वारंटी के उल्लंघन, अग्रिम खंडन और ब्याज व विशेष क्षतिपूर्ति जैसे अधिक जटिल परिदृश्यों को कवर करती हैं। ये धाराएँ व्यावसायिक लेन-देन में न्याय और क्षतिपूर्ति के सिद्धांतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।