भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 51-52: फर्म के विघटन पर प्रीमियम की वापसी और धोखाधड़ी/गलत बयानी के मामले में अधिकार

Himanshu Mishra

14 July 2025 12:10 PM

  • भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 51-52: फर्म के विघटन पर प्रीमियम की वापसी और धोखाधड़ी/गलत बयानी के मामले में अधिकार

    भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) के ये खंड उन विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करते हैं जो फर्म के समय से पहले विघटन (Premature Dissolution) या धोखाधड़ी (Fraud) और गलत बयानी (Misrepresentation) के आधार पर भागीदारी अनुबंध को रद्द (Rescinded) करने पर उत्पन्न होती हैं।

    समय से पहले विघटन पर प्रीमियम की वापसी (Return of Premium on Premature Dissolution)

    धारा 51 (Section 51) उस स्थिति से संबंधित है जब एक भागीदार ने एक निश्चित अवधि (Fixed Term) के लिए भागीदारी में प्रवेश करते समय प्रीमियम (Premium) का भुगतान किया है, और फर्म उस अवधि की समाप्ति से पहले भंग (Dissolved) हो जाती है (भागीदार की मृत्यु के अलावा किसी अन्य कारण से)।

    ऐसे में, वह भागीदार प्रीमियम की वापसी या उसके ऐसे हिस्से की वापसी का हकदार होगा जो उचित (Reasonable) हो। यह निर्धारण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाएगा कि वह किन शर्तों पर भागीदार बना था और वह कितने समय तक भागीदार रहा।

    हालांकि, यह अधिकार कुछ स्थितियों में लागू नहीं होता है:

    • (क) भागीदार के दुराचार के कारण विघटन (Dissolution Due to Partner's Misconduct): यदि विघटन मुख्य रूप से भागीदार के स्वयं के दुराचार (Misconduct) के कारण हुआ हो।

    • (ख) समझौते में वापसी का प्रावधान न होना (No Provision for Return in Agreement): यदि विघटन किसी ऐसे समझौते (Agreement) के तहत हुआ है जिसमें प्रीमियम या उसके किसी भी हिस्से की वापसी के लिए कोई प्रावधान (Provision) नहीं है।

    यह धारा सुनिश्चित करती है कि यदि कोई भागीदार किसी निश्चित अवधि के लिए फर्म में निवेश करता है और फर्म समय से पहले समाप्त हो जाती है, तो उसे उसके निवेश का उचित हिस्सा वापस मिले, बशर्ते वह विघटन का मुख्य कारण न हो और समझौते में अन्यथा प्रावधान न हो।

    धोखाधड़ी या गलत बयानी के लिए भागीदारी अनुबंध रद्द होने पर अधिकार (Rights Where Partnership Contract is Rescinded for Fraud or Misrepresentation)

    धारा 52 (Section 52) उन स्थितियों को संबोधित करती है जहां भागीदारी बनाने वाले अनुबंध को किसी भी पक्ष की धोखाधड़ी (Fraud) या गलत बयानी (Misrepresentation) के आधार पर रद्द कर दिया जाता है।

    इस स्थिति में, रद्द करने का हकदार पक्ष, किसी अन्य अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निम्न का हकदार होगा:

    • (क) अधिशेष या संपत्ति पर ग्रहणाधिकार (Lien on Surplus or Assets): फर्म के ऋणों (Debts) का भुगतान होने के बाद बची हुई फर्म की संपत्ति या अधिशेष (Surplus) पर ग्रहणाधिकार (Lien), या उसे बनाए रखने का अधिकार (Right of Retention)। यह अधिकार उस राशि के लिए होगा जो उसने फर्म में हिस्सा खरीदने के लिए भुगतान की थी और जो पूंजी उसने योगदान की थी। यह भागीदार को अपनी मूल निवेशित राशि की वसूली के लिए प्राथमिकता देता है।

    • (ख) फर्म के लेनदार के रूप में स्थान (Rank as a Creditor of the Firm): फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए उसके द्वारा किए गए किसी भी भुगतान के संबंध में फर्म के लेनदार (Creditor) के रूप में स्थान प्राप्त करना। इसका मतलब है कि यदि उसने फर्म के ऋणों का भुगतान किया है, तो उसे उन राशियों के लिए एक लेनदार के रूप में माना जाएगा, जो भागीदारों की पूंजी के पुनर्भुगतान से पहले चुकाई जाएंगी।

    • (ग) धोखाधड़ी/गलत बयानी के लिए जिम्मेदार भागीदार से क्षतिपूर्ति (Indemnification from Guilty Partner(s)): धोखाधड़ी या गलत बयानी के दोषी भागीदार या भागीदारों (Partner or Partners Guilty) द्वारा फर्म के सभी ऋणों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति (Indemnified) प्राप्त करना। यह सुनिश्चित करता है कि निर्दोष भागीदार को धोखाधड़ी या गलत बयानी के कारण फर्म को हुए किसी भी ऋण के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी न ठहराया जाए, बल्कि दोषी भागीदार ही उसकी भरपाई करे। (संदर्भ: धारा 10 (Section 10) जो धोखाधड़ी से हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति के कर्तव्य को बताती है, और धारा 26 (Section 26) जो भागीदार के गलत कार्यों के लिए फर्म की देनदारी को दर्शाती है - यहां, यह व्यक्तिगत भागीदार की देनदारी पर केंद्रित है)।

    यह धारा उन भागीदारों को सुरक्षा प्रदान करती है जिन्हें धोखाधड़ी या गलत बयानी के कारण भागीदारी में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया गया था, जिससे उन्हें अपने निवेश को पुनः प्राप्त करने और देनदारियों से मुक्त होने का अधिकार मिलता है।

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