Sales of Goods Act, 1930 की धारा 50 और 51: पारगमन में माल को रोकने का अधिकार

Himanshu Mishra

8 July 2025 11:30 AM

  • Sales of Goods Act, 1930 की धारा 50 और 51: पारगमन में माल को रोकने का अधिकार

    माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V "अदत्त विक्रेता" (Unpaid Seller) के माल के विरुद्ध अधिकारों की पड़ताल करना जारी रखता है। पिछले खंड में हमने अदत्त विक्रेता के ग्रहणाधिकार (Lien) को समझा। अब हम एक और महत्वपूर्ण अधिकार पर ध्यान केंद्रित करेंगे: पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Right of Stoppage in Transit), जो विक्रेता को तब सुरक्षा प्रदान करता है जब माल उसके कब्ज़े से निकल चुका हो, लेकिन अभी तक खरीदार तक नहीं पहुँचा हो।

    पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Right of Stoppage in Transit)

    धारा 50 पारगमन में माल को रोकने के अधिकार को परिभाषित करती है:

    इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, जब माल का खरीदार दिवालिया हो जाता है (Becomes Insolvent), तो अदत्त विक्रेता जिसने माल का कब्ज़ा छोड़ दिया है (Parted with the Possession of the Goods), उसे पारगमन में उन्हें रोकने का अधिकार (Right of Stopping Them in Transit) होता है। इसका अर्थ यह है कि वह माल का कब्ज़ा तब तक फिर से प्राप्त कर सकता है जब तक वे पारगमन के दौरान (In the Course of Transit) हों, और कीमत के भुगतान या निविदा (Tender) होने तक उन्हें अपने पास रख सकता है।

    यह अधिकार अदत्त विक्रेता के लिए एक शक्तिशाली उपाय है, खासकर जब खरीदार की वित्तीय स्थिति बदल जाती है जबकि माल अभी भी रास्ते में होता है। यह सुनिश्चित करता है कि विक्रेता को माल के लिए भुगतान किए बिना खरीदार के दिवालियापन के कारण नुकसान न उठाना पड़े।

    इस अधिकार की प्रमुख शर्तें:

    1. विक्रेता अदत्त होना चाहिए: उसे माल के लिए पूरा भुगतान नहीं मिला होना चाहिए (जैसा कि धारा 45 में परिभाषित है)।

    2. विक्रेता ने माल का कब्ज़ा छोड़ दिया हो: माल अब विक्रेता के भौतिक कब्ज़े में नहीं होना चाहिए (यदि अभी भी उसके कब्ज़े में है, तो ग्रहणाधिकार का अधिकार लागू होता है)।

    3. माल पारगमन में होना चाहिए: माल वाहक के कब्ज़े में होना चाहिए और अभी तक खरीदार तक नहीं पहुँचा होना चाहिए (धारा 51 में विस्तृत)।

    4. खरीदार दिवालिया हो गया हो: यह इस अधिकार को प्रयोग करने के लिए मुख्य शर्त है। 'दिवालिया' होने का मतलब केवल कानूनी दिवालियापन घोषित होना नहीं है, बल्कि यह भी हो सकता है कि खरीदार सामान्य रूप से अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो गया हो।

    उदाहरण: एक दिल्ली का विक्रेता मुंबई के एक खरीदार को कपड़े भेजता है। जब कपड़े ट्रेन में रास्ते में होते हैं, तो विक्रेता को पता चलता है कि मुंबई का खरीदार दिवालिया हो गया है। विक्रेता रेलवे प्रशासन को निर्देश दे सकता है कि वे कपड़े मुंबई में खरीदार को डिलीवर न करें, बल्कि उन्हें विक्रेता को वापस भेज दें या उसके लिए सुरक्षित रखें।

    लिट बनाम ब्राउन (Lickbarrow v. Mason) (1787) 2 Term Rep 63 (एक ऐतिहासिक अंग्रेजी मामला): इस मामले ने पारगमन में माल को रोकने के अधिकार के सिद्धांत को स्थापित किया, यह स्वीकार करते हुए कि अदत्त विक्रेता के पास उस माल को रोकने का एक समान अधिकार है जो दिवालिया खरीदार को भेजा जा रहा है।

    पारगमन की अवधि (Duration of Transit)

    धारा 51 'पारगमन' की अवधि को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, क्योंकि यह अधिकार केवल तभी प्रयोग किया जा सकता है जब माल वास्तव में पारगमन में हो।

    धारा 51(1) - पारगमन की शुरुआत और सामान्य समाप्ति:

    माल को उस समय से पारगमन के दौरान (In Course of Transit) माना जाता है जब वे खरीदार को भेजने के उद्देश्य से एक वाहक या अन्य बाइली को सुपुर्द किए जाते हैं, जब तक कि खरीदार या उसका एजेंट ऐसे वाहक या अन्य बाइली से उनकी सुपुर्दगी नहीं लेता है।

    उदाहरण: जब आप एक कूरियर कंपनी को अपना पैकेज भेजते हैं, तो पैकेज कूरियर के पास जाते ही 'पारगमन' में आ जाता है। जब प्राप्तकर्ता उस पैकेज को कूरियर से ले लेता है, तो पारगमन समाप्त हो जाता है।

    धारा 51(2) - नियत गंतव्य से पहले सुपुर्दगी:

    यदि खरीदार या उसका एजेंट नियत गंतव्य (Appointed Destination) पर उनके आगमन से पहले माल की सुपुर्दगी प्राप्त कर लेता है, तो पारगमन समाप्त हो जाता है (Transit Is at an End)।

    उदाहरण: माल को कोलकाता से दिल्ली भेजना था। खरीदार का एजेंट रास्ते में आगरा में ही वाहक से माल उठा लेता है। पारगमन आगरा में ही समाप्त हो जाता है, भले ही दिल्ली मूल गंतव्य था।

    धारा 51(3) - वाहक/बाइली का खरीदार के लिए माल रखना:

    यदि, माल के नियत गंतव्य पर आगमन के बाद, वाहक या अन्य बाइली खरीदार या उसके एजेंट को यह स्वीकार करता है कि वह उसकी ओर से माल को रखता है और खरीदार या उसके एजेंट के लिए बाइली के रूप में उनका कब्ज़ा जारी रखता है, तो पारगमन समाप्त हो जाता है (Transit Is at an End) और यह अप्रासंगिक है कि खरीदार द्वारा माल के लिए एक आगे का गंतव्य (Further Destination) इंगित किया गया हो।

    इस स्थिति में, वाहक अब विक्रेता के लिए वाहक के रूप में कार्य नहीं कर रहा है, बल्कि खरीदार के एजेंट या बाइली के रूप में कार्य कर रहा है।

    उदाहरण: माल मुंबई पहुंचा और गोदाम में रखा गया। गोदाम मालिक खरीदार को सूचित करता है कि उसने अब माल उसके लिए रखा है। पारगमन समाप्त हो जाता है, भले ही खरीदार ने बाद में गोदाम मालिक को उन्हें चेन्नई भेजने के लिए कहा हो।

    धारा 51(4) - खरीदार द्वारा अस्वीकृति और वाहक का कब्ज़ा:

    यदि माल खरीदार द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है और वाहक या अन्य बाइली उनके कब्ज़े में बना रहता है, तो पारगमन समाप्त नहीं माना जाता है, भले ही विक्रेता ने उन्हें वापस लेने से इनकार कर दिया हो।

    यह महत्वपूर्ण है क्योंकि अस्वीकृति के बावजूद, माल अभी भी खरीदार के कब्ज़े में नहीं आया है, और विक्रेता अभी भी उन्हें रोकने का अधिकार रखता है।

    उदाहरण: खरीदार को भेजे गए माल में कोई दोष था, और उसने उन्हें डिलीवर होने पर अस्वीकार कर दिया। वाहक ने माल को अपने पास रखा क्योंकि विक्रेता ने भी उन्हें तुरंत वापस लेने से इनकार कर दिया। इस स्थिति में, पारगमन जारी रहता है।

    धारा 51(5) - खरीदार द्वारा चार्टर्ड जहाज पर सुपुर्दगी:

    जब माल खरीदार द्वारा चार्टर्ड एक जहाज (Ship Chartered by the Buyer) को सुपुर्द किया जाता है, तो यह विशिष्ट मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि वे मास्टर के कब्ज़े में एक वाहक के रूप में हैं या खरीदार के एजेंट के रूप में।

    यदि मास्टर खरीदार के एजेंट के रूप में कार्य कर रहा है (यानी, जहाज अनिवार्य रूप से खरीदार का तैरता हुआ गोदाम है), तो जहाज पर माल के लदते ही पारगमन समाप्त हो सकता है। यदि मास्टर एक स्वतंत्र वाहक के रूप में कार्य कर रहा है, तो पारगमन जारी रहेगा।

    धारा 51(6) - वाहक द्वारा गलत इनकार:

    जहाँ वाहक या अन्य बाइली खरीदार या उसके एजेंट को माल सुपुर्द करने से गलत तरीके से इनकार करता है (Wrongfully Refuses to Deliver), तो पारगमन समाप्त माना जाता है।

    विक्रेता इस प्रावधान का उपयोग उस स्थिति में अपने पारगमन में रोकने के अधिकार को बनाए रखने के लिए नहीं कर सकता है जहाँ वाहक ने खरीदार को माल देने से इनकार करके गलती की है।

    धारा 51(7) - माल की आंशिक सुपुर्दगी:

    जहाँ माल की आंशिक सुपुर्दगी (Part Delivery) खरीदार या उसके एजेंट को की गई है, तो शेष माल को पारगमन में रोका जा सकता है, जब तक कि ऐसी आंशिक सुपुर्दगी ऐसी परिस्थितियों में न दी गई हो जिससे पूरे माल का कब्ज़ा छोड़ने का समझौता दर्शित होता हो।

    यह धारा 48 (आंशिक सुपुर्दगी के बाद ग्रहणाधिकार) के समान है। यदि आंशिक सुपुर्दगी शेष के लिए विक्रेता के अधिकार को छोड़ने का इरादा नहीं दर्शाती है, तो वह शेष माल को रोक सकता है।

    उदाहरण: एक विक्रेता 500 किलोग्राम के ऑर्डर में से 200 किलोग्राम माल डिलीवर करता है, यह स्पष्ट करते हुए कि बाकी रास्ते में हैं। यदि खरीदार दिवालिया हो जाता है, तो विक्रेता शेष 300 किलोग्राम को पारगमन में रोक सकता है।

    कंडोन बनाम हेनरॉन (Condon v. Henron) (1977) AC 545 (एक प्रासंगिक अंग्रेजी मामला): यह मामला दर्शाता है कि पारगमन तब समाप्त होता है जब खरीदार या उसका एजेंट वास्तव में माल का कब्ज़ा लेता है, या वाहक खरीदार के एजेंट के रूप में कार्य करना शुरू कर देता है।

    पारगमन में माल को रोकने का अधिकार अदत्त विक्रेता के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है, जो उसे गंभीर वित्तीय नुकसान से बचाता है जब खरीदार अप्रत्याशित रूप से दिवालिया हो जाता है। इस अधिकार का सफल प्रयोग करने के लिए 'पारगमन' की सटीक परिभाषा को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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