Sales of Goods Act, 1930 की धारा 47, 48 और 49: Unpaid Seller का ग्रहणाधिकार

Himanshu Mishra

7 July 2025 4:55 PM IST

  • Sales of Goods Act, 1930 की धारा 47, 48 और 49: Unpaid Seller का ग्रहणाधिकार

    माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V "अदत्त विक्रेता" (Unpaid Seller) के अधिकारों को स्पष्ट करता है, जिसे माल के लिए पूरा भुगतान नहीं मिला है। इन अधिकारों में से एक महत्वपूर्ण अधिकार है माल पर ग्रहणाधिकार (Lien on the Goods), जो विक्रेता को माल को अपने कब्ज़े में रखने की शक्ति देता है जब तक उसे भुगतान नहीं मिल जाता। यह अधिकार विक्रेता के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।

    विक्रेता का ग्रहणाधिकार (Seller's Lien)

    धारा 47 उन परिस्थितियों को परिभाषित करती है जिनके तहत एक अदत्त विक्रेता अपने ग्रहणाधिकार का प्रयोग कर सकता है:

    धारा 47(1) के अनुसार, इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, माल का अदत्त विक्रेता जो उनके कब्ज़े में (In Possession) है, निम्नलिखित मामलों में कीमत के भुगतान या निविदा (Tender) होने तक उन्हें अपने कब्ज़े में रखने का हकदार है:

    (a) जब माल बिना किसी क्रेडिट की शर्त के बेचे गए हैं (Where the goods have been sold without any stipulation as to credit):

    यह 'कैश ऑन डिलीवरी' (Cash on Delivery) या तात्कालिक भुगतान वाले लेनदेन के लिए सामान्य नियम है। यदि अनुबंध में उधार देने की कोई शर्त नहीं थी, तो विक्रेता को तुरंत भुगतान का अधिकार है और वह भुगतान होने तक माल को रोक सकता है।

    उदाहरण: आपने एक दुकान से एक लैपटॉप खरीदा। यदि कोई उधार की व्यवस्था नहीं है, तो जब तक आप लैपटॉप का पूरा भुगतान नहीं करते, दुकानदार उसे अपने पास रख सकता है।

    (b) जब माल उधार पर बेचा गया है, लेकिन क्रेडिट की अवधि समाप्त हो गई है (Where the goods have been sold on credit, but the term of credit has expired):

    यदि विक्रेता ने खरीदार को उधार पर माल दिया था, लेकिन भुगतान की निर्धारित अवधि बीत चुकी है और खरीदार ने भुगतान नहीं किया है, तो विक्रेता अपने ग्रहणाधिकार का प्रयोग कर सकता है, बशर्ते माल अभी भी उसके कब्ज़े में हो।

    उदाहरण: एक थोक व्यापारी ने एक खुदरा व्यापारी को 30 दिनों के क्रेडिट पर माल बेचा। यदि 30 दिन बीत गए हैं और खुदरा व्यापारी ने भुगतान नहीं किया है, और माल अभी भी थोक व्यापारी के गोदाम में है, तो थोक व्यापारी को उन पर ग्रहणाधिकार का अधिकार है।

    (c) जहाँ खरीदार दिवालिया हो जाता है (Where the buyer becomes insolvent):

    दिवालियापन का अर्थ है कि खरीदार अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो गया है। इस स्थिति में, विक्रेता को तुरंत ग्रहणाधिकार का अधिकार मिल जाता है, भले ही क्रेडिट अवधि समाप्त न हुई हो। यह विक्रेता को दिवालिया खरीदार के अन्य लेनदारों पर एक प्राथमिकता (Preference) देता है।

    उदाहरण: एक वितरक ने एक कंपनी को कुछ उपकरण बेचे और उन्हें डिलीवरी के लिए तैयार कर रहा था। यदि वितरक को पता चलता है कि कंपनी दिवालिया हो गई है, तो वह भुगतान प्राप्त होने तक उपकरणों को अपने पास रख सकता है।

    धारा 47(2) स्पष्ट करती है कि विक्रेता अपने ग्रहणाधिकार के अधिकार का प्रयोग कर सकता है, भले ही वह खरीदार के लिए एजेंट या बाइली (Agent or Bailee) के रूप में माल के कब्ज़े में हो। इसका मतलब है कि विक्रेता का कानूनी कब्ज़ा (Legal Possession) उसके ग्रहणाधिकार के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है।

    उदाहरण: एक विक्रेता ने खरीदार को माल बेचा और खरीदार के अनुरोध पर उन्हें अपने गोदाम में 'उसके लिए' कुछ दिनों के लिए रखने पर सहमत हुआ। भले ही विक्रेता अब खरीदार के एजेंट के रूप में माल रखे हुए है, यदि खरीदार भुगतान नहीं करता है, तो विक्रेता अभी भी अपने ग्रहणाधिकार का प्रयोग कर सकता है।

    आंशिक सुपुर्दगी (Part Delivery)

    धारा 48 आंशिक सुपुर्दगी के बाद ग्रहणाधिकार के अधिकार से संबंधित है:

    जहाँ एक अदत्त विक्रेता ने माल की आंशिक सुपुर्दगी (Part Delivery) की है, वह शेष पर अपने ग्रहणाधिकार का अधिकार प्रयोग कर सकता है (He May Exercise His Right of Lien on the Remainder), जब तक कि ऐसी आंशिक सुपुर्दगी ऐसी परिस्थितियों में न की गई हो जिससे ग्रहणाधिकार छोड़ने का समझौता (Agreement to Waive the Lien) दर्शित होता हो।

    यह धारा विक्रेता को शेष माल पर अपना दावा बनाए रखने की अनुमति देती है यदि उसने पूरे ऑर्डर का केवल एक हिस्सा डिलीवर किया है। हालाँकि, यदि आंशिक सुपुर्दगी यह संकेत देती है कि विक्रेता ने पूरे ग्रहणाधिकार को छोड़ने का इरादा किया था (जैसे कि यह एक प्रतीकात्मक डिलीवरी थी जिसका उद्देश्य पूरे माल के स्वामित्व को पारित करना था), तो वह शेष पर ग्रहणाधिकार का दावा नहीं कर सकता।

    उदाहरण: एक फर्नीचर निर्माता ने 100 कुर्सियों का ऑर्डर लिया। उसने पहली खेप में 50 कुर्सियां भेजीं और बाकी 50 अभी भी उसके पास हैं। यदि खरीदार शेष कुर्सियों के लिए भुगतान नहीं करता है, तो निर्माता उन शेष 50 कुर्सियों पर ग्रहणाधिकार का प्रयोग कर सकता है, जब तक कि पहली खेप को भेजते समय उसने यह संकेत न दिया हो कि वह पूरे 100 कुर्सियों पर अपना ग्रहणाधिकार छोड़ रहा है।

    ग्रहणाधिकार की समाप्ति (Termination of Lien)

    धारा 49 उन तरीकों को बताती है जिनसे एक अदत्त विक्रेता का माल पर ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है:

    धारा 49(1) के अनुसार, माल का अदत्त विक्रेता अपना ग्रहणाधिकार खो देता है:

    (a) जब वह माल को खरीदार को भेजने के उद्देश्य से एक वाहक या अन्य बाइली को सुपुर्द करता है, बिना माल के निपटान का अधिकार आरक्षित किए (When he delivers the goods to a carrier or other bailee for the purpose of transmission to the buyer without reserving the right of disposal of the goods):

    जैसा कि धारा 23(2) में बताया गया है, यदि विक्रेता माल को वाहक को सौंप देता है और स्वामित्व को अपने पास रखने का अधिकार (निपटान का अधिकार) आरक्षित नहीं करता है, तो ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है क्योंकि विक्रेता ने माल का कब्ज़ा खो दिया है।

    उदाहरण: एक थोक विक्रेता ने माल को एक ट्रक में लोड करके एक खरीदार को भेजा। यदि उसने बिल ऑफ लेडिंग को अपने नाम पर नहीं रखा है और माल पर अपना नियंत्रण छोड़ दिया है, तो माल के ट्रक में जाते ही उसका ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।

    (b) जब खरीदार या उसका एजेंट वैध रूप से माल का कब्ज़ा प्राप्त कर लेता है (When the buyer or his agent lawfully obtains possession of the goods):

    एक बार जब खरीदार या उसका अधिकृत एजेंट कानूनी रूप से माल का कब्ज़ा ले लेता है, तो विक्रेता का ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है क्योंकि ग्रहणाधिकार कब्ज़े पर निर्भर करता है।

    उदाहरण: आपने एक पेंटिंग खरीदी है और उसे गैलरी से उठा लिया है। भले ही आपने अभी तक पूरा भुगतान नहीं किया हो, गैलरी का उस पेंटिंग पर ग्रहणाधिकार समाप्त हो गया है क्योंकि अब वह आपके कब्ज़े में है।

    (c) उसके त्याग द्वारा (By waiver thereof):

    विक्रेता अपने ग्रहणाधिकार के अधिकार को स्पष्ट रूप से (Expressly) या निहित रूप से (Impliedly) छोड़ सकता है। यदि विक्रेता जानबूझकर अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करने का निर्णय लेता है, तो वह इसे खो देता है।

    उदाहरण: एक विक्रेता ने खरीदार को माल लेने की अनुमति दी, यह जानते हुए कि भुगतान अभी भी बकाया है, बिना किसी शर्त के। यह ग्रहणाधिकार का त्याग हो सकता है।

    धारा 49(2) एक महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट करती है:

    माल का अदत्त विक्रेता, जिस पर उसका ग्रहणाधिकार है, केवल इस कारण से अपना ग्रहणाधिकार नहीं खोता है कि उसने माल की कीमत के लिए एक डिक्री (Decree) प्राप्त की है।

    इसका मतलब है कि यदि विक्रेता कीमत वसूल करने के लिए अदालत में मुकदमा करता है और भुगतान के लिए अदालत का आदेश (Decree) प्राप्त करता है, तो भी उसका माल पर ग्रहणाधिकार का अधिकार बना रहता है जब तक कि उसे वास्तव में भुगतान नहीं मिल जाता। अदालती आदेश प्राप्त करना भुगतान की गारंटी नहीं देता है, इसलिए विक्रेता का वास्तविक सुरक्षा अधिकार (ग्रहणाधिकार) बना रहता है।

    उदाहरण: एक विक्रेता ने ₹50,000 के बकाया भुगतान के लिए खरीदार पर मुकदमा किया और अदालत से भुगतान का आदेश प्राप्त किया। यदि विक्रेता के पास अभी भी खरीदार के लिए रखे हुए माल हैं, तो वह उन पर अपना ग्रहणाधिकार बनाए रख सकता है जब तक कि ₹50,000 का भुगतान नहीं हो जाता, भले ही उसके पास अब अदालती आदेश हो।

    मोटे बनाम पेरिस (Motte v. Paris) (1966) 2 QB 19 (एक प्रासंगिक अंग्रेजी मामला): यह मामला इस सिद्धांत की पुष्टि करता है कि विक्रेता का ग्रहणाधिकार केवल तभी समाप्त होता है जब माल का भौतिक कब्ज़ा खो जाता है या ग्रहणाधिकार को स्पष्ट रूप से छोड़ दिया जाता है। अदालती कार्रवाई करने से ग्रहणाधिकार स्वचालित रूप से समाप्त नहीं होता है।

    अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है जो विक्रेता को अनभुगतान के खिलाफ एक बुनियादी स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है, विशेष रूप से जब माल अभी भी उसके नियंत्रण में हो।

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