Sales of Goods Act, 1930 की धारा 45 और 46: Unpaid Seller की परिभाषा
Himanshu Mishra
5 July 2025 5:14 PM IST

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V एक विक्रेता की विशेष स्थिति से संबंधित है जिसे उसके माल के लिए पूरा भुगतान नहीं मिला है। इस व्यक्ति को "अदत्त विक्रेता" (Unpaid Seller) कहा जाता है, और यह अध्याय माल के विरुद्ध उसके विशिष्ट अधिकारों को परिभाषित करता है, भले ही माल का स्वामित्व (Property in Goods) खरीदार (Buyer) को हस्तांतरित हो गया हो।
"अदत्त विक्रेता" की परिभाषा ("Unpaid Seller" Defined)
धारा 45 स्पष्ट करती है कि विक्रेता को "अदत्त विक्रेता" कब माना जाता है:
धारा 45(1) के अनुसार, माल का विक्रेता इस अधिनियम के अर्थ में "अदत्त विक्रेता" माना जाता है:
(a) जब पूरी कीमत का भुगतान या निविदा नहीं की गई है (When the whole of the price has not been paid or tendered):
यह सबसे सीधा मामला है। यदि खरीदार ने अभी तक माल की पूरी सहमत कीमत का भुगतान नहीं किया है, या उसने कीमत की औपचारिक निविदा (Formal Tender) नहीं की है (यानी, भुगतान करने की पेशकश की है लेकिन विक्रेता ने अस्वीकार कर दिया है), तो विक्रेता अदत्त विक्रेता है।
उदाहरण: रमेश सुरेश को ₹10,000 की घड़ी बेचता है। यदि सुरेश ने रमेश को ₹10,000 का भुगतान नहीं किया है, तो रमेश एक अदत्त विक्रेता है।
(b) जब विनिमय बिल या अन्य परक्राम्य लिखत सशर्त भुगतान के रूप में प्राप्त किया गया है, और जिस शर्त पर इसे प्राप्त किया गया था वह लिखत के अनादरण (Dishonour) के कारण या अन्यथा पूरी नहीं हुई है (When a bill of exchange or other negotiable instrument has been received as conditional payment, and the condition on which it was received has not been fulfilled by reason of the dishonour of the instrument or otherwise):
यह तब लागू होता है जब विक्रेता भुगतान के रूप में चेक, विनिमय बिल या कोई अन्य परक्राम्य लिखत स्वीकार करता है। यदि यह लिखत 'सशर्त भुगतान' (Conditional Payment) के रूप में प्राप्त किया गया था (यह अंतर्निहित समझ के साथ कि यदि लिखत का सम्मान नहीं किया जाता है, तो मूल ऋण बना रहता है), और लिखत का अनादरण हो जाता है (जैसे चेक बाउंस हो जाता है), तो विक्रेता अदत्त विक्रेता बन जाता है।
उदाहरण: एक विक्रेता ने एक खरीदार से ₹50,000 का चेक प्राप्त किया। यदि चेक बैंक में अनादरित हो जाता है (बाउंस हो जाता है), तो विक्रेता एक अदत्त विक्रेता बन जाता है क्योंकि भुगतान की शर्त पूरी नहीं हुई है।
धारा 45(2) "विक्रेता" शब्द के दायरे का विस्तार करती है इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए। इसमें कोई भी व्यक्ति शामिल है जो विक्रेता की स्थिति में है, जैसे कि:
• एक विक्रेता का एजेंट (Agent of the Seller) जिसे बिल ऑफ लेडिंग (Bill of Lading) पृष्ठांकित (Endorsed) किया गया है।
• एक कंसाइनर (Consignor) या एजेंट जिसने स्वयं कीमत का भुगतान किया है, या कीमत के लिए सीधे जिम्मेदार है।
यह सुनिश्चित करता है कि वे मध्यस्थ (Intermediaries) भी अदत्त विक्रेता के अधिकारों का लाभ उठा सकते हैं जिन्होंने माल के लिए भुगतान किया है या जो भुगतान के लिए जिम्मेदार हैं।
अदत्त विक्रेता के अधिकार (Unpaid Seller's Rights)
धारा 46 माल के विरुद्ध अदत्त विक्रेता के विभिन्न महत्वपूर्ण अधिकारों का वर्णन करती है, भले ही माल में संपत्ति खरीदार को हस्तांतरित हो गई हो।
धारा 46(1) के अनुसार, इस अधिनियम और किसी भी अन्य कानून के प्रावधानों के अधीन, इस तथ्य के बावजूद कि माल में संपत्ति खरीदार को हस्तांतरित हो गई हो, अदत्त विक्रेता के पास, कानून के निहितार्थ (By Implication of Law) से, निम्नलिखित अधिकार होते हैं:
(a) कीमत के लिए माल पर ग्रहणाधिकार (Lien on the goods for the price) जबकि वह उनके कब्ज़े में है:
यह अदत्त विक्रेता को माल को अपने कब्ज़े में रखने का अधिकार देता है जब तक कि उसे पूरी कीमत का भुगतान नहीं मिल जाता। यह अधिकार केवल तभी मौजूद होता है जब विक्रेता अभी भी माल के भौतिक कब्ज़े (Physical Possession) में हो।
उदाहरण: आपने एक फर्नीचर की दुकान से एक डाइनिंग टेबल खरीदी है, और भुगतान आंशिक रूप से किया गया है। दुकान के मालिक के पास टेबल पर ग्रहणाधिकार है, और वह आपको तब तक टेबल लेने से रोक सकता है जब तक आप शेष कीमत का भुगतान नहीं करते।
(b) खरीदार के दिवालियेपन (Insolvency) के मामले में पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Right of stopping the goods in transit) जब उसने उनका कब्ज़ा छोड़ दिया हो:
यह एक बहुत शक्तिशाली अधिकार है। यदि विक्रेता ने माल का कब्ज़ा वाहक (Carrier) को सौंप दिया है (जिसका अर्थ है कि माल 'पारगमन में' है) और उसे बाद में पता चलता है कि खरीदार दिवालिया हो गया है, तो अदत्त विक्रेता को वाहक को माल को खरीदार तक न पहुंचाने का निर्देश देकर उन्हें वापस लेने का अधिकार है। यह अधिकार तभी उत्पन्न होता है जब विक्रेता ने माल का कब्ज़ा खो दिया हो लेकिन वे अभी तक खरीदार तक नहीं पहुंचे हों।
उदाहरण: एक विक्रेता ने 500 किलोग्राम कपास एक ट्रक में लोड करके एक दिवालिया हो रहे खरीदार को भेज दिया है। यदि विक्रेता को खरीदार के दिवालियेपन का पता चलता है जबकि कपास अभी भी रास्ते में है, तो वह ट्रक ड्राइवर को कपास को बीच रास्ते में रोकने का निर्देश दे सकता है, उन्हें वापस अपने पास ले सकता है।
(c) इस अधिनियम द्वारा सीमित पुनर्बिक्री का अधिकार (Right of re-sale as limited by this Act):
कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में (जो अधिनियम की बाद की धाराओं में विस्तृत हैं, जैसे धारा 54), अदत्त विक्रेता को उस माल को फिर से बेचने का अधिकार होता है जिसके लिए उसे भुगतान नहीं मिला है। यह अधिकार आमतौर पर तभी प्रयोग किया जा सकता है जब खरीदार भुगतान करने में अनुचित रूप से विलंब करता है, या जब माल खराब होने वाला हो, या जब विक्रेता ने खरीदार को पुनर्बिक्री की अपनी मंशा के बारे में सूचित किया हो।
उदाहरण: एक फल विक्रेता ने फल बेचे हैं लेकिन खरीदार ने भुगतान नहीं किया है। चूंकि फल खराब होने वाले हैं, विक्रेता उन्हें किसी अन्य ग्राहक को फिर से बेच सकता है ताकि नुकसान कम हो सके।
धारा 46(2) उस स्थिति से संबंधित है जहाँ माल में संपत्ति खरीदार को हस्तांतरित नहीं हुई है।
जहाँ माल में संपत्ति खरीदार को हस्तांतरित नहीं हुई है, अदत्त विक्रेता के पास, अपने अन्य उपायों के अलावा, सुपुर्दगी रोकने का अधिकार (Right of Withholding Delivery) होता है जो उसके ग्रहणाधिकार और पारगमन में रोकने के अधिकार के समान और सह-विस्तृत (Similar to and Co-extensive with) होता है जहाँ संपत्ति खरीदार को हस्तांतरित हो गई है।
यह उपधारा स्पष्ट करती है कि यदि स्वामित्व अभी भी विक्रेता के पास है, तो उसे स्वाभाविक रूप से माल को अपने पास रखने का अधिकार है। यह अधिकार ग्रहणाधिकार और पारगमन में रोकने के अधिकारों जैसा ही है, लेकिन इसे एक अलग नाम दिया गया है क्योंकि स्वामित्व अभी भी विक्रेता के पास है, इसलिए उसे 'पुनः प्राप्त' करने की आवश्यकता नहीं है।
उदाहरण: आपने एक कस्टम-निर्मित वस्तु का ऑर्डर दिया है और उसे अभी तक उठाया नहीं है। यदि आपने भुगतान नहीं किया है, तो विक्रेता आपको वस्तु देने से इनकार कर सकता है क्योंकि स्वामित्व अभी भी उसके पास है।
रोलैंड बनाम डिवॉल (Rowland v. Divall) (1923) 2 KB 500 (यह मामला सीधे अदत्त विक्रेता के अधिकारों पर नहीं है, लेकिन यह संपत्ति के हस्तांतरण और उससे जुड़े अधिकारों को समझने के लिए प्रासंगिक है। इस मामले में, खरीदार ने एक कार खरीदी थी जो चोरी की थी। शीर्षक कभी खरीदार को हस्तांतरित नहीं हुआ। खरीदार को वास्तविक मालिक के खिलाफ कोई अधिकार नहीं मिला। यह दर्शाता है कि कैसे शीर्षक का हस्तांतरण महत्वपूर्ण है, और यदि यह वैध रूप से नहीं होता है, तो आगे के अधिकार प्रभावित होते हैं।)
अदत्त विक्रेता के ये अधिकार एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि विक्रेता, जिसने माल का नियंत्रण खो दिया है या खोने वाला है, पूरी तरह से असुरक्षित न रहे यदि उसे अपने भुगतान की गारंटी नहीं मिलती है।