वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 43 से 46: अपराधों का संज्ञान और न्यायिक सुरक्षा
Himanshu Mishra
15 Aug 2025 4:54 PM IST

वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, के तहत प्रदूषण के मामलों से निपटने के लिए एक विशिष्ट कानूनी प्रक्रिया स्थापित की गई है। अध्याय VII में, धारा 43 से 46 तक के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि अपराधों का संज्ञान (cognizance) सही तरीके से लिया जाए, बोर्ड के सदस्यों को कानूनी सुरक्षा मिले, और उनकी कार्रवाई को नागरिक अदालतों (civil courts) में चुनौती न दी जा सके।
धारा 43 - अपराधों का संज्ञान (Cognizance of Offences)
यह धारा अदालतों को अधिनियम के तहत अपराधों का संज्ञान लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल प्राधिकृत (authorised) निकाय ही इन मामलों को शुरू करें, लेकिन यह जनता को भी एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करके शिकायत करने का अधिकार देता है।
• शिकायत करने का अधिकार: कोई भी अदालत इस अधिनियम के तहत किसी अपराध का संज्ञान तब तक नहीं लेगी जब तक कि शिकायत:
o (a) बोर्ड या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा नहीं की गई हो।
o (b) किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा नहीं की गई हो जिसने बोर्ड या प्राधिकृत अधिकारी को कम से कम साठ दिनों का नोटिस (notice) दिया हो। इस नोटिस में कथित अपराध और शिकायत करने के अपने इरादे का उल्लेख होना चाहिए।
• अधिकार क्षेत्र: इस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध की सुनवाई केवल एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate of the first class) से कम की अदालत में नहीं की जाएगी। यह सुनिश्चित करता है कि गंभीर अपराधों की सुनवाई सक्षम और अनुभवी न्यायाधीशों द्वारा की जाए।
सार्वजनिक भागीदारी और रिपोर्ट (Public Participation and Reports):
उप-धारा (2) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति उपरोक्त खंड (b) के तहत शिकायत करता है, तो बोर्ड को उस व्यक्ति की मांग पर उसके कब्जे में मौजूद प्रासंगिक रिपोर्ट (relevant reports) उपलब्ध करानी होगी। हालांकि, बोर्ड ऐसी रिपोर्ट उपलब्ध कराने से इनकार कर सकता है यदि उसकी राय में यह सार्वजनिक हित (public interest) के खिलाफ हो। यह प्रावधान आम जनता को प्रदूषण के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने में सक्षम बनाता है, जबकि बोर्ड की विवेकपूर्ण शक्ति को भी बनाए रखता है।
धारा 44 - बोर्ड के सदस्य, अधिकारी और कर्मचारी लोक सेवक होंगे (Members, Officers and Employees of Board to be Public Servants)
यह धारा बोर्ड के सदस्यों और कर्मचारियों को भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक (public servants) मानती है। यह उन्हें उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते समय कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है और उन्हें भ्रष्टाचार या अन्य आपराधिक कृत्यों के लिए जिम्मेदार बनाता है, जैसे कि किसी सरकारी अधिकारी पर लागू होता है। उदाहरण के लिए, यदि एक बोर्ड अधिकारी सद्भाव में अपनी ड्यूटी करते समय किसी व्यक्ति द्वारा धमकी दी जाती है, तो उस व्यक्ति पर लोक सेवक पर हमला करने का मुकदमा चलाया जा सकता है।
धारा 45 - रिपोर्ट और रिटर्न (Reports and Returns)
यह धारा बोर्डों के बीच और बोर्डों और सरकार के बीच सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करती है।
• केंद्रीय बोर्ड को अपने कार्यों के संबंध में केंद्र सरकार को रिपोर्ट, रिटर्न, आंकड़े, खाते और अन्य जानकारी प्रस्तुत करनी होगी, जैसा कि सरकार समय-समय पर मांग सकती है।
• राज्य बोर्ड को भी इसी तरह की जानकारी राज्य सरकार और केंद्रीय बोर्ड को प्रस्तुत करनी होगी।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि सरकार और केंद्रीय बोर्ड को राज्य स्तर पर चल रहे प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों के बारे में सूचित रखा जाए, जिससे प्रभावी योजना और नीति निर्माण (policy making) में मदद मिले।
धारा 46 - क्षेत्राधिकार का निषेध (Bar of Jurisdiction)
यह धारा नागरिक अदालतों (civil courts) के अधिकार क्षेत्र को सीमित करती है और बोर्डों को उनके कार्यों के लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।
• कोई भी नागरिक अदालत किसी भी ऐसे मामले के संबंध में किसी भी मुकदमे या कार्यवाही पर विचार करने के लिए क्षेत्राधिकार नहीं रखेगी, जिसे इस अधिनियम के तहत गठित एक अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) को निर्धारित करने का अधिकार है।
• इस अधिनियम के तहत प्रदत्त किसी भी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी भी कार्रवाई के संबंध में किसी भी अदालत या अन्य प्राधिकारी द्वारा कोई भी निषेधाज्ञा (injunction) जारी नहीं की जाएगी।
यह प्रावधान बोर्डों और अपीलीय प्राधिकारी को प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित मामलों में निर्णायक प्राधिकारी (decisive authority) के रूप में कार्य करने का अधिकार देता है, जिससे कानूनी चुनौतियों के कारण उनके कार्यों में अनावश्यक देरी या बाधा को रोका जा सके। उदाहरण के लिए, यदि एक फैक्ट्री को बोर्ड द्वारा बंद करने का आदेश दिया जाता है, तो मालिक इस आदेश के खिलाफ नागरिक अदालत में निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा नहीं कर सकता है; उसे केवल धारा 31 के तहत अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील करनी होगी।

