भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 41-42 : महानिदेशक के कर्तव्य और आयोग के आदेशों का उल्लंघन

Himanshu Mishra

18 Aug 2025 4:59 PM IST

  • भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 41-42 : महानिदेशक के कर्तव्य और आयोग के आदेशों का उल्लंघन

    भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए एक मजबूत और समर्पित जांच टीम की आवश्यकता होती है। यह भूमिका महानिदेशक (Director General - DG) द्वारा निभाई जाती है।

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 41 महानिदेशक की शक्तियों और कर्तव्यों को परिभाषित करती है, जबकि धारा 42 यह सुनिश्चित करती है कि CCI द्वारा दिए गए आदेशों का उल्लंघन करने पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ें। ये दोनों धाराएं मिलकर CCI को एक शक्तिशाली और प्रभावी नियामक बनाती हैं, जो न केवल उल्लंघन की जांच कर सकता है, बल्कि अपने निर्णयों को सख्ती से लागू भी कर सकता है।

    धारा 41: महानिदेशक के कर्तव्य (Duties of Director General)

    महानिदेशक CCI की जांच शाखा (investigative arm) के रूप में कार्य करता है। उसकी प्राथमिक भूमिका CCI द्वारा निर्देशित होने पर किसी भी Competition-विरोधी व्यवहार की जांच करना है।

    1. जांच में आयोग की सहायता (Assisting the Commission in Investigation)

    धारा 41(1) के अनुसार, महानिदेशक CCI द्वारा निर्देश दिए जाने पर ही कार्य करता है। वह अधिनियम या उसके नियमों या विनियमों के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन की जांच करने में CCI की सहायता करता है।

    • इसका मतलब क्या है? यह प्रावधान CCI और महानिदेशक के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन स्थापित करता है। CCI एक निर्णायक निकाय (adjudicatory body) है जो प्रथम दृष्टया (prima facie) मामलों का मूल्यांकन करता है और निर्णय लेता है, जबकि महानिदेशक एक जांच निकाय (investigative body) है जो साक्ष्य एकत्र करता है और तथ्यों की रिपोर्ट करता है। महानिदेशक अपनी पहल पर कोई जांच शुरू नहीं कर सकता।

    • उदाहरण: यदि CCI को किसी कंपनी के खिलाफ Competition-विरोधी व्यवहार की शिकायत मिलती है, और CCI को लगता है कि शिकायत में दम है, तो वह महानिदेशक को मामले की विस्तृत जांच करने का निर्देश देगा। महानिदेशक तब अपनी टीम के साथ मिलकर सबूत जुटाएगा, गवाहों से पूछताछ करेगा और एक विस्तृत रिपोर्ट CCI को सौंपेगा।

    2. सिविल कोर्ट की शक्तियां (Powers of a Civil Court)

    धारा 41(2) महानिदेशक को वही शक्तियां प्रदान करती है जो धारा 36(2) के तहत CCI को दी गई हैं, यानी एक सिविल कोर्ट (Civil Court) की शक्तियां। ये शक्तियां महानिदेशक को जांच को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम बनाती हैं। इन शक्तियों में शामिल हैं:

    • किसी भी व्यक्ति को सम्मन (summon) जारी करना और उसे शपथ पर जांचना।

    • किसी भी दस्तावेज की खोज और प्रस्तुति की मांग करना।

    • शपथ पत्र (affidavit) पर साक्ष्य प्राप्त करना।

    • गवाहों या दस्तावेजों की जांच के लिए कमीशन जारी करना।

    • किसी भी कार्यालय से सार्वजनिक रिकॉर्ड या दस्तावेजों की मांग करना।

    • उदाहरण: एक जांच के दौरान, महानिदेशक को एक कंपनी के आंतरिक ईमेल और व्यावसायिक रिकॉर्ड की आवश्यकता होती है। कंपनी सहयोग करने से इनकार कर सकती है। महानिदेशक, सिविल कोर्ट की शक्तियों का उपयोग करके, कंपनी को कानूनी रूप से उन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए मजबूर कर सकता है। यदि कंपनी फिर भी इनकार करती है, तो महानिदेशक अदालत की अवमानना के लिए कार्यवाही कर सकता है।

    3. कंपनी अधिनियम का अनुप्रयोग (Application of the Companies Act)

    धारा 41(3) महानिदेशक की शक्तियों को और बढ़ाती है। यह कहती है कि कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 240 और 240A के प्रावधान, जहाँ तक संभव हो, महानिदेशक द्वारा की गई जांच पर लागू होंगे।

    • धारा 240 जांच अधिकारियों को कंपनी के बही-खातों और दस्तावेजों तक पहुंच की शक्ति देती है।

    • धारा 240A कंपनी की संपत्तियों और बही-खातों को जब्त करने की शक्ति देती है।

    • उदाहरण: इन प्रावधानों का उपयोग करके, महानिदेशक को किसी भी कंपनी के परिसर में अचानक छापा (dawn raid) मारने और सबूतों को नष्ट होने से पहले जब्त करने की शक्ति है। यह CCI की जांच टीम के लिए एक बहुत ही शक्तिशाली उपकरण है।

    • व्याख्या (Explanation): यह धारा स्पष्ट करती है कि कंपनी अधिनियम के संदर्भ में, "केंद्र सरकार" को "आयोग" के रूप में और "मजिस्ट्रेट" को "मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली" (Chief Metropolitan Magistrate, Delhi) के रूप में समझा जाएगा। यह कानूनी ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि ये शक्तियां सही तरीके से लागू हों।

    धारा 42: आयोग के आदेशों का उल्लंघन (Contravention of Orders of Commission)

    धारा 42 यह सुनिश्चित करती है कि CCI द्वारा दिए गए आदेशों का सम्मान किया जाए और उनका पालन किया जाए। यह धारा CCI के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए दंड निर्धारित करती है।

    1. अनुपालन की जांच और मौद्रिक दंड (Inquiry into Compliance and Monetary Penalty)

    धारा 42(1) CCI को यह जांच करने की शक्ति देती है कि उसके आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं। यदि CCI को पता चलता है कि किसी व्यक्ति ने बिना किसी उचित कारण (without reasonable cause) के CCI के किसी आदेश या निर्देश का पालन नहीं किया है, तो धारा 42(2) के तहत उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। यह जुर्माना प्रत्येक दिन के लिए एक लाख रुपये (₹1 lakh) तक हो सकता है, जब तक कि गैर-अनुपालन जारी रहता है, जो अधिकतम दस करोड़ रुपये (₹10 crore) तक हो सकता है।

    • यह किन आदेशों पर लागू होता है? यह जुर्माना CCI द्वारा धारा 27 (बंद करने का आदेश), धारा 28 (उद्यम का विभाजन), धारा 31 (संयोजन का निषेध), धारा 32 (भारत के बाहर के कार्य), धारा 33 (अंतरिम आदेश), 42A और 43A के तहत जारी किए गए आदेशों पर लागू होता है।

    • उदाहरण: CCI ने एक कंपनी को एक Competition-विरोधी प्रथा को तुरंत बंद करने का आदेश दिया। कंपनी आदेश का पालन नहीं करती है। यदि कंपनी 20 दिनों तक आदेश का उल्लंघन करती है, तो CCI उस पर ₹20 लाख (₹1 लाख/दिन x 20 दिन) तक का जुर्माना लगा सकता है।

    2. कारावास और भारी जुर्माना (Imprisonment and Heavy Fine)

    धारा 42(3) उन व्यक्तियों के लिए सबसे सख्त दंड निर्धारित करती है जो आदेशों का पालन नहीं करते हैं या धारा 42(2) के तहत लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने में विफल रहते हैं। ऐसे व्यक्ति को तीन साल तक की कैद (imprisonment for up to three years) या पच्चीस करोड़ रुपये तक का जुर्माना (fine up to ₹25 crore), या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

    • प्रक्रिया (Procedure): यह एक आपराधिक अपराध है, जिसकी सुनवाई केवल मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली द्वारा की जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मजिस्ट्रेट इस अपराध का संज्ञान तभी लेगा जब CCI या उसके किसी अधिकृत अधिकारी द्वारा शिकायत दर्ज की गई हो।

    • उदाहरण: एक कंपनी को गैर-अनुपालन के लिए ₹10 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था, लेकिन वह इसका भुगतान नहीं करती है। CCI तब मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के पास एक शिकायत दर्ज कर सकती है। यदि अदालत को लगता है कि व्यक्ति जानबूझकर आदेश का पालन नहीं कर रहा है, तो वह उसे कारावास और/या भारी जुर्माना लगा सकती है। यह प्रावधान CCI के आदेशों को कानूनी रूप से बहुत गंभीर बनाता है।

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 41 और 42 CCI को जांच और प्रवर्तन (enforcement) के लिए एक मजबूत और प्रभावी ढाँचा प्रदान करती हैं। धारा 41 यह सुनिश्चित करती है कि महानिदेशक के पास जांच करने के लिए सभी आवश्यक उपकरण और कानूनी अधिकार हैं, जिससे वह Competition-विरोधी व्यवहारों के सबूतों को प्रभावी ढंग से उजागर कर सके।

    वहीं, धारा 42 यह गारंटी देती है कि CCI के आदेश केवल कागजी कार्यवाही नहीं हैं, बल्कि उनका वास्तविक और गंभीर कानूनी परिणाम होता है। यह धारा गैर-अनुपालन के लिए आर्थिक और आपराधिक दोनों तरह के दंडों का प्रावधान करती है, जो कंपनियों को CCI के निर्णयों को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर करता है। ये दोनों धाराएं मिलकर CCI को भारत के बाजार में Competition को बनाए रखने के लिए एक शक्तिशाली संस्था बनाती हैं।

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