Sales of Goods Act, 1930 की धारा 4 और 5 : बिक्री और बेचने का समझौता
Himanshu Mishra
20 Jun 2025 4:43 PM IST

बिक्री और बेचने का समझौता (Sale and Agreement to Sell)
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय II अनुबंध के निर्माण (Formation of the Contract) से संबंधित है, और इसकी धारा 4 बिक्री (Sale) और बेचने के समझौते (Agreement to Sell) की अवधारणाओं (Concepts) को परिभाषित करती है।
धारा 4(1) के अनुसार, माल की बिक्री का अनुबंध (Contract of Sale of Goods) एक ऐसा अनुबंध है जिसके तहत विक्रेता (Seller) एक कीमत (Price) के बदले में खरीदार (Buyer) को माल में संपत्ति (Property in Goods) हस्तांतरित (Transfers) करता है या हस्तांतरित करने के लिए सहमत (Agrees to Transfer) होता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एक ही माल में एक सह-मालिक (Part-owner) और दूसरे सह-मालिक के बीच भी बिक्री का अनुबंध हो सकता है। इसका मतलब है कि यदि किसी संपत्ति में दो या दो से अधिक लोग मालिक हैं, तो उनमें से एक अपना हिस्सा दूसरे को बेच सकता है।
उदाहरण के लिए, रमेश और सुरेश एक पुरानी कार के संयुक्त मालिक (Joint Owners) हैं। रमेश सुरेश को कार में अपना आधा हिस्सा बेचने का फैसला करता है। यह माल की बिक्री का अनुबंध है क्योंकि यह एक सह-मालिक से दूसरे सह-मालिक को संपत्ति का हस्तांतरण है।
धारा 4(2) बताती है कि बिक्री का अनुबंध निरपेक्ष (Absolute) या सशर्त (Conditional) हो सकता है। एक निरपेक्ष बिक्री (Absolute Sale) वह है जहाँ संपत्ति का हस्तांतरण तुरंत और बिना किसी शर्त के होता है। इसके विपरीत, एक सशर्त बिक्री (Conditional Sale) वह होती है जहाँ संपत्ति का हस्तांतरण किसी विशिष्ट शर्त (Specific Condition) के पूरा होने पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए, आप एक दुकान से एक रेडीमेड शर्ट खरीदते हैं और तुरंत भुगतान करते हैं और शर्ट लेते हैं। यह एक निरपेक्ष बिक्री है। वहीं, यदि आप एक नई कार बुक करते हैं और विक्रेता कहता है कि डिलीवरी अगले महीने होगी और भुगतान डिलीवरी के समय होगा, तो यह एक सशर्त बिक्री है, क्योंकि डिलीवरी और भुगतान भविष्य की शर्तें हैं।
धारा 4(3) बिक्री और बेचने के समझौते के बीच के महत्वपूर्ण अंतर को स्पष्ट करती है। जब माल में संपत्ति विक्रेता से खरीदार को तुरंत हस्तांतरित (Immediately Transferred) हो जाती है, तो अनुबंध को बिक्री (Sale) कहा जाता है। लेकिन, जहाँ माल में संपत्ति का हस्तांतरण भविष्य के समय (Future Time) में होने वाला है या किसी ऐसी शर्त (Condition) के अधीन है जिसे बाद में पूरा किया जाना है, तो अनुबंध को बेचने का समझौता (Agreement to Sell) कहा जाता है।
इस भेद को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि जोखिम (Risk) आमतौर पर संपत्ति के साथ ही गुजरता है। यदि यह एक बिक्री है, तो जोखिम खरीदार पर है, भले ही माल उसके भौतिक कब्जे (Physical Possession) में न हो। यदि यह बेचने का समझौता है, तो जब तक संपत्ति हस्तांतरित नहीं हो जाती, जोखिम विक्रेता के पास रहता है।
एक प्रसिद्ध मामले मैसर्स लक्ष्मी कॉटन मिल्स लिमिटेड बनाम कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स (M/s Lakshmi Cotton Mills Ltd. v. Commissioner of Income Tax) में, अदालत ने बिक्री और बेचने के समझौते के बीच के अंतर पर जोर दिया था, यह बताते हुए कि संपत्ति का हस्तांतरण ही मुख्य निर्णायक कारक (Main Deciding Factor) है।
धारा 4(4) यह स्पष्ट करती है कि बेचने का समझौता कब बिक्री बन जाता है। जब समय समाप्त हो जाता है (Time Elapses) या वे शर्तें पूरी हो जाती हैं (Conditions are Fulfilled) जिनके अधीन माल में संपत्ति को हस्तांतरित किया जाना है, तो बेचने का समझौता बिक्री (Sale) बन जाता है। यह प्रावधान बेचने के समझौते के गतिशील स्वभाव (Dynamic Nature) को दर्शाता है, जहाँ एक बिंदु पर यह केवल भविष्य का वादा होता है, लेकिन समय या घटनाओं के साथ यह एक पूर्ण बिक्री में बदल जाता है।
उदाहरण के लिए, आप एक किसान से एक महीने बाद कटाई के लिए तैयार होने वाली फसल खरीदते हैं। यह बेचने का समझौता है। एक महीने बाद जब फसल कट जाती है और आप उसे ले लेते हैं, तो बेचने का यह समझौता बिक्री में बदल जाता है।
अनुबंध की औपचारिकताएं (Formalities of the Contract)
माल विक्रय अधिनियम की धारा 5 बिक्री अनुबंध को कैसे बनाया जाता है, इसकी औपचारिकताएं (Formalities) निर्धारित करती है।
धारा 5(1) के अनुसार, बिक्री का अनुबंध माल को खरीदने या बेचने के प्रस्ताव (Offer to Buy or Sell Goods) और ऐसे प्रस्ताव की स्वीकृति (Acceptance of such Offer) से बनता है। यह अनुबंध तुरंत माल की सुपुर्दगी (Immediate Delivery of Goods) या कीमत के तुरंत भुगतान (Immediate Payment of the Price) या दोनों के लिए प्रदान कर सकता है। वैकल्पिक रूप से, यह किश्तों (Instalments) में सुपुर्दगी या भुगतान, या यह कि सुपुर्दगी या भुगतान या दोनों को स्थगित (Postponed) किया जाएगा, के लिए भी प्रावधान कर सकता है। यह अनुबंध कानून के मूल सिद्धांतों (Basic Principles of Contract Law) को दोहराता है कि एक वैध अनुबंध के लिए एक प्रस्ताव और उसकी स्वीकृति आवश्यक है।
उदाहरण के लिए, आप एक ऑनलाइन स्टोर पर एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट देखते हैं। स्टोर द्वारा गैजेट को एक निश्चित कीमत पर प्रदर्शित करना एक प्रस्ताव है। जब आप उस गैजेट को अपनी कार्ट में जोड़ते हैं और भुगतान करते हैं, तो आप प्रस्ताव स्वीकार करते हैं। यह एक बिक्री अनुबंध का निर्माण करता है। अनुबंध में यह प्रावधान हो सकता है कि गैजेट 2-3 दिनों में डिलीवर किया जाएगा (सुपुर्दगी स्थगित) या आप अभी भुगतान करेंगे लेकिन डिलीवरी बाद में होगी।
धारा 5(2) बिक्री अनुबंध के लिए फॉर्म (Form) या तरीके (Manner) से संबंधित है। यह बताती है कि किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, बिक्री का अनुबंध लिखित रूप में (In Writing) या मौखिक रूप से (By Word of Mouth), या आंशिक रूप से लिखित में और आंशिक रूप से मौखिक रूप से (Partly in Writing and Partly by Word of Mouth) किया जा सकता है। इसके अलावा, यह पार्टियों के आचरण (Conduct of the Parties) से भी निहित (Implied) हो सकता है। यह लचीलापन (Flexibility) वाणिज्यिक व्यवहारों में सुविधा प्रदान करता है जहाँ हमेशा औपचारिक लिखित समझौते नहीं होते हैं।
उदाहरण के लिए, जब आप एक किराना स्टोर पर जाते हैं और काउंटर पर रखी वस्तु उठाते हैं और उसके लिए भुगतान करते हैं, तो कोई लिखित अनुबंध नहीं होता है। आपका स्टोर में प्रवेश करना, वस्तु उठाना, और भुगतान करना आपके आचरण से एक बिक्री अनुबंध को दर्शाता है। इसी तरह, यदि आप फोन पर एक डीलर से कुछ सामान खरीदने का मौखिक समझौता करते हैं, तो वह भी एक वैध अनुबंध है, भले ही वह लिखा न गया हो।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के सामान्य प्रावधान, जैसे कि स्वतंत्र सहमति (Free Consent), सक्षम पक्ष (Competent Parties), और वैध उद्देश्य (Lawful Object), बिक्री के अनुबंधों पर भी लागू होते हैं। माल विक्रय अधिनियम इन सामान्य सिद्धांतों पर आधारित है और विशेष रूप से माल की बिक्री से संबंधित पहलुओं पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

