Sales of Goods Act, 1930 की धारा 38-40 : एक या अधिक किस्तों के उल्लंघन का प्रभाव
Himanshu Mishra
3 July 2025 11:35 AM

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय IV अनुबंध के प्रदर्शन (Performance of the Contract) के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें सुपुर्दगी के तरीके और संबंधित जोखिम शामिल हैं। ये धाराएँ जटिल सुपुर्दगी परिदृश्यों (Complex Delivery Scenarios) में विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट करती हैं।
किस्त सुपुर्दगी (Instalment Deliveries)
धारा 38 किस्त सुपुर्दगी से संबंधित नियमों को निर्धारित करती है:
1. किस्त सुपुर्दगी स्वीकार करने की बाध्यता नहीं - धारा 38(1):
जब तक अन्यथा सहमत न हो (Unless Otherwise Agreed), माल का खरीदार उन्हें किस्तों में सुपुर्दगी स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है। यह एक महत्वपूर्ण डिफ़ॉल्ट नियम (Default Rule) है। इसका अर्थ है कि यदि अनुबंध में स्पष्ट रूप से किस्तों में सुपुर्दगी का प्रावधान नहीं है, तो खरीदार पूरी मात्रा को एक ही बार में प्राप्त करने का हकदार है। यदि विक्रेता किस्तों में डिलीवरी की कोशिश करता है, तो खरीदार उन्हें अस्वीकार कर सकता है।
उदाहरण: आपने एक डीलर से 100 लैपटॉप का एकमुश्त ऑर्डर दिया है। यदि डीलर कहता है कि वह 50 लैपटॉप अभी और बाकी 50 अगले महीने डिलीवर करेगा, तो आप इस किस्त सुपुर्दगी को अस्वीकार कर सकते हैं और एक ही बार में पूरे 100 लैपटॉप की मांग कर सकते हैं, जब तक कि आपके अनुबंध में किस्तों में डिलीवरी का प्रावधान न हो।
2. एक या अधिक किस्तों के उल्लंघन का प्रभाव - धारा 38(2):
जहाँ माल की बिक्री का अनुबंध है जिसे निर्धारित किस्तों में सुपुर्द किया जाना है और जिनके लिए अलग से भुगतान किया जाना है, और विक्रेता एक या अधिक किस्तों के संबंध में कोई सुपुर्दगी नहीं करता (Makes No Delivery) है या दोषपूर्ण सुपुर्दगी (Defective Delivery) करता है, या खरीदार एक या अधिक किस्तों की सुपुर्दगी लेने या उनके लिए भुगतान करने में उपेक्षा करता है (Neglects) या इनकार करता है (Refuses), तो यह प्रत्येक मामले में अनुबंध की शर्तों (Terms of the Contract) और मामले की परिस्थितियों (Circumstances of the Case) पर निर्भर करता है कि:
• क्या अनुबंध का उल्लंघन पूरे अनुबंध का खंडन (Repudiation of the Whole Contract) है; या
• क्या यह एक विच्छिन्न उल्लंघन (Severable Breach) है जो केवल मुआवजे के दावे (Claim for Compensation) को जन्म देता है, लेकिन पूरे अनुबंध को खंडित मानने का अधिकार नहीं देता है।
यह धारा किस्त अनुबंधों में उल्लंघन की गंभीरता (Gravity of Breach) को निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण प्रदान करती है। उल्लंघन के कारण पूरे अनुबंध को समाप्त किया जा सकता है (खंडन), या केवल उस विशेष किस्त के लिए नुकसान का दावा किया जा सकता है।
क्या उल्लंघन पूरे अनुबंध को खंडित करता है? यह तय करने के लिए न्यायालय आमतौर पर निम्नलिखित कारकों पर विचार करते हैं:
• उल्लंघन की गंभीरता: क्या उल्लंघन इतना गंभीर है कि यह अनुबंध के मुख्य उद्देश्य को विफल करता है?
• अनुपात: क्या उल्लंघन का अनुबंध के कुल मूल्य और मात्रा के संबंध में एक महत्वपूर्ण अनुपात है?
• उल्लंघन की संभावना: क्या उल्लंघन को बार-बार होने की संभावना है?
• पक्षों का इरादा: उल्लंघन के बाद पार्टियां कैसे कार्य करती हैं?
उदाहरण: एक बेकरी को एक रेस्तरां को हर हफ्ते 50 किलोग्राम विशिष्ट आटे की आपूर्ति करने का अनुबंध किया गया है, जिसके लिए साप्ताहिक भुगतान किया जाना है।
• स्थिति 1 (खंडन): यदि विक्रेता लगातार 3 हफ्तों तक आटा डिलीवर नहीं करता है, तो यह पूरे अनुबंध का खंडन माना जा सकता है, क्योंकि यह अनुबंध के मूल उद्देश्य को विफल करता है। रेस्तरां पूरे अनुबंध को रद्द कर सकता है।
• स्थिति 2 (विच्छिन्न उल्लंघन): यदि विक्रेता एक सप्ताह में 50 किलोग्राम के बजाय 49 किलोग्राम आटा डिलीवर करता है, तो यह एक विच्छिन्न उल्लंघन हो सकता है। रेस्तरां केवल उस 1 किलोग्राम आटे के लिए मुआवजे का दावा कर सकता है, लेकिन पूरे अनुबंध को रद्द नहीं कर सकता।
मर्सिडीज बनाम बोलटन (Mersey Steel and Iron Co. v. Naylor, Benzon & Co.) (1884) 9 App Cas 434 एक प्रसिद्ध अंग्रेजी मामला है जो किस्त अनुबंधों में उल्लंघन के प्रभाव से संबंधित है। इस मामले में, खरीदार ने गलत कानूनी सलाह के कारण एक किस्त का भुगतान रोक दिया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि यह भुगतान रोकना पूरे अनुबंध का खंडन नहीं था, बल्कि एक विच्छिन्न उल्लंघन था, क्योंकि खरीदार का इरादा अनुबंध को पूरी तरह से समाप्त करने का नहीं था और उसने शेष किस्तों को स्वीकार करने की इच्छा व्यक्त की थी।
वाहक या घाटपाल को सुपुर्दगी (Delivery to Carrier or Wharfinger)
धारा 39 विक्रेता द्वारा वाहक या घाटपाल को माल की सुपुर्दगी से संबंधित महत्वपूर्ण नियमों को निर्धारित करती है:
1. वाहक/घाटपाल को सुपुर्दगी खरीदार को सुपुर्दगी मानी जाती है - धारा 39(1):
जहाँ, बिक्री अनुबंध के अनुसरण में (In pursuance of a contract of sale), विक्रेता को खरीदार को माल भेजने के लिए अधिकृत या आवश्यक किया जाता है, तो माल को एक वाहक (Carrier) को सुपुर्द करना (चाहे खरीदार द्वारा नामित हो या नहीं) खरीदार को भेजने के उद्देश्य से, या माल को सुरक्षित अभिरक्षा (Safe Custody) के लिए एक घाटपाल (Wharfinger) को सुपुर्द करना, प्रथम दृष्टया (Prima Facie) खरीदार को माल की सुपुर्दगी माना जाता है।
यह नियम उस सिद्धांत को दोहराता है कि एक बार माल वाहक को सौंप दिया जाता है (और निपटान का अधिकार आरक्षित नहीं होता है, जैसा कि धारा 23(2) में बताया गया है), तो जोखिम और स्वामित्व खरीदार को हस्तांतरित हो जाता है।
2. विक्रेता का उचित अनुबंध करने का कर्तव्य - धारा 39(2):
जब तक खरीदार द्वारा अन्यथा अधिकृत न हो, विक्रेता माल की प्रकृति (Nature of the Goods) और मामले की अन्य परिस्थितियों (Other Circumstances of the Case) को ध्यान में रखते हुए, खरीदार की ओर से वाहक या घाटपाल के साथ ऐसा उचित अनुबंध (Reasonable Contract) करेगा। यदि विक्रेता ऐसा करने में विफल रहता है, और माल पारगमन के दौरान (In Course of Transit) या घाटपाल की अभिरक्षा में खो जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो खरीदार वाहक या घाटपाल को सुपुर्दगी को स्वयं को सुपुर्दगी मानने से इनकार कर सकता है, या विक्रेता को नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहरा सकता है।
यह धारा विक्रेता पर एक कर्तव्य डालती है कि वह सुनिश्चित करे कि खरीदार के हितों की रक्षा के लिए वाहक के साथ एक उचित अनुबंध किया जाए, जैसे कि उचित देखभाल का प्रावधान या आवश्यक बीमा व्यवस्था।
उदाहरण: एक विक्रेता एक नाजुक कलाकृति को एक दूरस्थ शहर में खरीदार को भेज रहा है। यदि विक्रेता एक ऐसे वाहक का उपयोग करता है जो नाजुक वस्तुओं के लिए उचित पैकेजिंग या बीमा प्रदान नहीं करता है, और कलाकृति पारगमन में टूट जाती है, तो खरीदार डिलीवरी को अस्वीकार कर सकता है या विक्रेता पर नुकसान का दावा कर सकता है।
3. समुद्री पारगमन के दौरान बीमा की सूचना - धारा 39(3):
जब तक अन्यथा सहमत न हो, जहाँ विक्रेता द्वारा खरीदार को माल समुद्री पारगमन (Sea Transit) वाले मार्ग से भेजा जाता है, ऐसी परिस्थितियों में जिनमें बीमा करना सामान्य है, तो विक्रेता को खरीदार को ऐसी सूचना देनी होगी जो उसे समुद्री पारगमन के दौरान उनका बीमा कराने में सक्षम बना सके। यदि विक्रेता ऐसा करने में विफल रहता है, तो माल ऐसे समुद्री पारगमन के दौरान उसके जोखिम पर (At His Risk) माना जाएगा।
यह प्रावधान समुद्री परिवहन के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ जोखिम अधिक होते हैं और बीमा सामान्य प्रथा है। विक्रेता को यह सुनिश्चित करना होगा कि खरीदार को बीमा कराने का अवसर मिले, अन्यथा जोखिम विक्रेता पर बना रहता है।
दूरस्थ स्थान पर सुपुर्दगी में जोखिम (Risk Where Goods Are Delivered at Distant Place)
धारा 40 दूरस्थ स्थान पर माल की सुपुर्दगी से संबंधित जोखिम को स्पष्ट करती है:
जहाँ माल का विक्रेता उन्हें अपने जोखिम पर (At His Own Risk) उस स्थान से भिन्न किसी स्थान पर सुपुर्द करने के लिए सहमत होता है जहाँ वे बिक्री के समय थे, तो खरीदार को, जब तक अन्यथा सहमत न हो, पारगमन के दौरान होने वाले आवश्यक क्षय (Deterioration Necessarily Incident to the Course of Transit) का कोई भी जोखिम उठाना पड़ेगा।
यह धारा 'जोखिम प्रथम दृष्टया संपत्ति के साथ गुजरता है' (धारा 26) के सामान्य नियम का एक अपवाद प्रदान करती है। भले ही विक्रेता जोखिम वहन करने के लिए सहमत हो, कुछ प्रकार का क्षय अपरिहार्य होता है और खरीदार को उसे स्वीकार करना होगा। यह विशेष रूप से खराब होने वाले (Perishable) या नाजुक (Delicate) माल के लिए प्रासंगिक है।
उदाहरण: एक किसान एक दूरस्थ बाजार में अपने जोखिम पर ताजे फल डिलीवर करने के लिए सहमत होता है। हालाँकि, पारगमन के दौरान, कुछ फल प्राकृतिक रूप से थोड़े पक जाते हैं या मामूली रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जो परिवहन की प्रकृति के कारण अपरिहार्य है। खरीदार को इस स्वाभाविक क्षय का जोखिम उठाना पड़ेगा, भले ही विक्रेता ने अपने जोखिम पर डिलीवरी करने की सहमति दी हो। हालांकि, यदि क्षय लापरवाही (Negligence) या अनुचित हैंडलिंग (Improper Handling) के कारण होता है, तो विक्रेता जिम्मेदार होगा।
ये धाराएँ माल विक्रय अनुबंधों में सुपुर्दगी की प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली विभिन्न जटिलताओं को संबोधित करती हैं, जिससे पार्टियों के अधिकारों और जिम्मेदारियों में स्पष्टता आती है।