भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 36-38: जाने वाले भागीदारों के अधिकार और गारंटी पर फर्म में बदलाव का प्रभाव
Himanshu Mishra
8 July 2025 11:42 AM

बाहर जाने वाले भागीदार का प्रतिस्पर्धी व्यवसाय चलाने का अधिकार और व्यापार प्रतिबंध में समझौते (Rights of Outgoing Partner to Carry on Competing Business. Agreements in Restraint of Trade)
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 36 (Section 36) एक बाहर जाने वाले भागीदार (Outgoing Partner) के अधिकारों और व्यापार प्रतिबंधों (Restraint of Trade) से संबंधित समझौतों पर चर्चा करती है:
1. प्रतिस्पर्धी व्यवसाय चलाने का अधिकार (Right to Carry on Competing Business): एक बाहर जाने वाला भागीदार फर्म के साथ प्रतिस्पर्धा (Competing) करने वाला व्यवसाय चला सकता है और वह ऐसे व्यवसाय का विज्ञापन (Advertise) भी कर सकता है। हालांकि, किसी विपरीत अनुबंध (Contract) के अधीन रहते हुए, वह निम्न कार्य नहीं कर सकता है:
• (क) फर्म के नाम का उपयोग (Use the Firm Name): वह फर्म के नाम का उपयोग नहीं कर सकता है।
• (ख) खुद को फर्म का व्यवसाय चलाने वाले के रूप में प्रस्तुत करना (Represent Himself as Carrying on the Business of the Firm): वह खुद को यह नहीं दिखा सकता कि वह फर्म का व्यवसाय चला रहा है।
• (ग) ग्राहकों को आकर्षित करना (Solicit the Custom): वह उन व्यक्तियों के ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर सकता (Solicit the Customer) जो उसके भागीदार न रहने से पहले फर्म के साथ व्यवहार कर रहे थे। ये प्रतिबंध फर्म की सद्भावना (Goodwill) की रक्षा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि बाहर जाने वाला भागीदार अनुचित प्रतिस्पर्धा में शामिल न हो।
2. व्यापार प्रतिबंध में वैध समझौते (Valid Agreements in Restraint of Trade): एक भागीदार अपने भागीदारों के साथ एक समझौता कर सकता है कि भागीदार न रहने पर वह एक निर्दिष्ट अवधि (Specified Period) के भीतर या निर्दिष्ट स्थानीय सीमाओं (Specified Local Limits) के भीतर फर्म के समान प्रकृति का कोई व्यवसाय नहीं करेगा।
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) की धारा 27 (Section 27) में निहित किसी भी बात के बावजूद, ऐसा समझौता मान्य (Valid) होगा यदि लगाए गए प्रतिबंध उचित (Reasonable) हों। यह प्रावधान फर्म को अपने ग्राहकों और व्यापारिक रहस्यों को पूर्व भागीदारों से बचाने में सक्षम बनाता है, बशर्ते प्रतिबंध न्यायसंगत और तर्कसंगत हों।
कुछ मामलों में बाहर जाने वाले भागीदार का बाद के लाभों में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार (Right of Outgoing Partner in Certain Cases to Share Subsequent Profits)
धारा 37 (Section 37) उन स्थितियों से संबंधित है जहां फर्म का कोई सदस्य मर गया है या किसी अन्य कारण से भागीदार नहीं रहा है, और शेष या जारी रहने वाले भागीदार फर्म की संपत्ति (Property of the Firm) के साथ व्यवसाय चला रहे हैं, बिना उनके और बाहर जाने वाले भागीदार या उसकी संपत्ति के बीच खातों का कोई अंतिम निपटान (Final Settlement of Accounts) किए।
ऐसी स्थिति में, किसी विपरीत अनुबंध के अभाव में, बाहर जाने वाला भागीदार या उसकी संपत्ति, अपने या अपने प्रतिनिधियों (Representatives) के विकल्प पर, बाद में अर्जित लाभों (Subsequent Profits) के ऐसे हिस्से का हकदार है जो फर्म की संपत्ति में उसके हिस्से के उपयोग से संबंधित हो, या फर्म की संपत्ति में उसके हिस्से की राशि पर छह प्रतिशत प्रति वर्ष (Six Per Cent. Per Annum) की दर से ब्याज का हकदार है।
परंतु (Provided that), जहां भागीदारों के बीच अनुबंध द्वारा जीवित या जारी रहने वाले भागीदारों को मृत या बाहर जाने वाले भागीदार के हित को खरीदने का विकल्प (Option to Purchase the Interest) दिया गया है, और उस विकल्प का विधिवत (Duly) प्रयोग किया जाता है, तो मृतक भागीदार की संपत्ति, या बाहर जाने वाला भागीदार या उसकी संपत्ति, जैसा भी मामला हो, किसी भी अतिरिक्त या अन्य लाभ के हिस्से का हकदार नहीं होता है।
लेकिन यदि कोई भागीदार विकल्प का प्रयोग करने का दिखावा करता है और उसके सभी महत्वपूर्ण शर्तों (Material Respects) का पालन नहीं करता है, तो वह इस धारा के उपरोक्त प्रावधानों के तहत हिसाब देने के लिए उत्तरदायी होता है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि बाहर जाने वाले भागीदार या उसके कानूनी प्रतिनिधियों को फर्म की संपत्ति के निरंतर उपयोग के लिए उचित मुआवजा (Fair Compensation) मिले।
फर्म में बदलाव से निरंतर गारंटी का निरस्तीकरण (Revocation of Continuing Guarantee by Change in Firm)
धारा 38 (Section 38) निरंतर गारंटी (Continuing Guarantee) पर फर्म में बदलाव के प्रभाव को संबोधित करती है। एक फर्म को, या फर्म के लेन-देन (Transactions) के संबंध में किसी तीसरे पक्ष को दी गई एक निरंतर गारंटी, किसी विपरीत समझौते के अभाव में, फर्म की संरचना (Constitution) में किसी भी बदलाव की तारीख से भविष्य के लेन-देन (Future Transactions) के संबंध में निरस्त (Revoked) हो जाती है।
इसका मतलब है कि यदि फर्म में भागीदारों की संरचना बदल जाती है (जैसे कोई नया भागीदार आता है या कोई पुराना भागीदार जाता है), तो जो गारंटी पहले दी गई थी वह भविष्य के किसी भी लेन-देन के लिए स्वतः समाप्त हो जाती है, जब तक कि स्पष्ट रूप से कोई नया समझौता न हो। यह गारंटी देने वाले व्यक्ति को अनिश्चित देनदारी से बचाता है यदि फर्म की संरचना बदल जाती है।