Civil Rights Protection Act की धारा 3 और 4
Shadab Salim
14 May 2025 11:55 AM IST

संविधान में स्पष्ट उल्लेख कर छुआछूत को खत्म करने के लिए प्रावधान किए गए और इसके साथ ही एक आपराधिक कानून भी बनाया गया जिसका नाम 'सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955' यह कानून 8 मई 1955 को बनकर तैयार हुआ। इस कानून के अंतर्गत कुछ ऐसे कार्यों को अपराध घोषित किया गया जो छुआछूत से संबंधित है। इस प्रथक विशेष कानून को बनाए जाने का उद्देश्य छुआछूत का अंत करना तथा छुआछूत को प्रसारित करने वाले व्यक्तियों को दंडित करना था।
इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर है। इस समय अधिनियम संपूर्ण भारत पर विस्तारित होकर अधिनियमित है और इसके दाण्डिक प्रावधान उन जातियों के अधिकारों को सुरक्षित कर रहे हैं जिन्हें छुआछूत का शिकार बनाया जाता रहा था।
सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 की निम्न धाराएं अपराधियों का उल्लेख करती है तथा उनसे संबंधित दंड का प्रावधान करती है-
धारा 3
धार्मिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दंड:-
जो कोई किसी व्यक्ति को (क) किसी ऐसे लोक पूजा-स्थान में प्रवेश करने से, जो उसी धर्म को मानने वाले या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए खुला हो, जिसका वह व्यक्ति को, अथवा
(ख) किसी लोक पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा अथवा किसी पुनीत तालाब, कुएँ, जलस्त्रोत या [जल-सरणी, नदी या झील में स्थान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल-सरणी, नदी या झील के किसी घाट पर स्नान] उसी रीति से और उसी विस्तार तक करने से, जिस रीति से और जिस विस्तार तक ऐसा करना उसी धर्म के मानने वाले या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए अनुज्ञेय हों, जिसका वह व्यक्ति हो:-
"अस्पृश्यता" के आधार पर निवारित करेगा [ वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से, भी जो कम से कम एक सौ रुपये और अधिक से अधिक पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।]
स्पष्टीकरण-इस धारा और धारा 4 के प्रयोजनों के लिए बौद्ध, सिक्ख या जैन धर्म के मानने वाले व्यक्ति हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास को मानने वाले व्यक्ति, जिनके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत, आदिवासी, ब्राह्मी समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज और स्वामी नारायण सम्प्रदाय के अनुयायी भी हैं, हिन्दू समझे जाएंगे।
धारा 4
सामाजिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दंड:-
जो कोई किसी व्यक्ति के विरुद्ध निम्नलिखित के संबंध में कोई निर्योग्यता "अस्पृश्यता" के आधार पर लागू करेगा वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपये और अधिक से अधिक पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।
किसी दुकान, लोक उपहारगृह, होटल या लोक मनोरंजन स्थान में प्रवेश करना; अथवा
किसी लोक उपहारगृह, होटल, धर्मशाला, सराय या मुसाफिरखाने में, जनसाधारण, या [ उसके किसी विभाग के] व्यक्तियों के, जिसका वह व्यक्ति हो, उपयोग के लिए रखे गये किन्हीं बर्तनों और अन्य वस्तुओं का उपयोग करना; अथवा
कोई वृत्ति करना या उपजीविका [ या किसी काम में नियोजन]; अथवा
ऐसी किसी नदी, जलधारा, जलस्त्रोत, कुएं, तालाब, हौज, पानी के नल या जल के अन्य स्थान का या किसी स्नानघाट, कब्रस्तान या श्मशान, स्वच्छता संबंधी सुविधा, सड़क या रास्ते या लोक अभिगम के अन्य स्थान का, जिसका उपयोग करने के लिए या जिसमें प्रवेश करने के जनता के अन्य सदस्य, या [ उसके किसी विभाग के] व्यक्ति जिसका यह व्यक्ति हो, अधिकारवान् हो, उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना; अथवा
राज्य निधियों से पूर्णत: या अंशतः पोषित पूर्व या लोक प्रयोजन के लिए उपयोग में लाये जाने वाले या जन-साधारण के या 5[उसके किसी विभाग के व्यक्तियों के जिसका वह व्यक्ति हो,
उपयोग के लिए समर्पित स्थान का उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना; अथवा (vi) जन साधारण या 6[ उनके किसी विभाग के] व्यकियों के जिसका वह व्यक्ति हो, फायदे के लिए सृष्ट किसी पूर्त न्यास के अधीन किसी फायदे या उपभोग करना; अथवा
किसी सार्वजनिक सवारी का उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना; अथवा (viii) किसी भी परिक्षेत्र में, किसी निवास परिसर का सन्निर्माण, अर्जन या अधिभोग करना; अथवा
किसी ऐसे धर्मशाला, सराय या मुसाफिरखाने का, जो जनसाधारण या [उसके किसी विभाग के] व्यक्तियों के लिए, जिसका वह व्यक्ति हो, खुला हो, उपयोग ऐसे व्यक्ति के रूप में करना; अथवा
किसी सामाजिक या धार्मिक रूढ़ि, प्रथा या कर्म का अनुपालन 2 [ या किसी धार्मिक, या सांस्कृतिक जुलूस में भाग लेना या ऐसा जुलूस निकालना]: अथवा
आभूषणों एवं अलंकारों का उपयोग करना।
[स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "कोई निर्योग्यता लागू करना" के अन्तर्गत के आधार पर विभेद करना है।]

