Indian Partnership Act, 1932 की धारा 28 – 29 : तीसरे पक्ष के प्रति भागीदारों की देनदारी और भागीदार के हित के हस्तांतरिती के अधिकार

Himanshu Mishra

3 July 2025 11:32 AM

  • Indian Partnership Act, 1932 की धारा 28 – 29 : तीसरे पक्ष के प्रति भागीदारों की देनदारी और भागीदार के हित के हस्तांतरिती के अधिकार

    'होल्डिंग आउट' द्वारा देनदारी (Holding Out)

    भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 28 (Section 28) 'होल्डिंग आउट' (Holding Out) के सिद्धांत को परिभाषित करती है, जिसे 'प्रदर्शन द्वारा भागीदारी' (Partnership by Estoppel) भी कहा जाता है। यह सिद्धांत तीसरे पक्ष के हितों की रक्षा करता है जो किसी व्यक्ति की भागीदारी की स्थिति पर विश्वास करते हुए फर्म के साथ लेनदेन करते हैं:

    1. स्वयं को भागीदार के रूप में प्रस्तुत करना (Representing Oneself as a Partner): कोई भी व्यक्ति जो बोले गए या लिखित शब्दों (Words Spoken or Written) से या अपने आचरण (Conduct) से खुद को किसी फर्म में भागीदार के रूप में प्रस्तुत करता है, या जानबूझकर (Knowingly) खुद को इस तरह प्रस्तुत करने की अनुमति देता है, तो वह उस फर्म में भागीदार के रूप में किसी भी ऐसे व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी (Liable) होता है जिसने ऐसी प्रस्तुति (Representation) के विश्वास पर फर्म को क्रेडिट (Credit) दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि खुद को भागीदार के रूप में प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को यह पता था या नहीं कि यह प्रस्तुति क्रेडिट देने वाले व्यक्ति तक पहुंची है।

    यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई व्यक्ति यह आभास देता है कि वह एक भागीदार है, और उस आभास के आधार पर कोई और फर्म को पैसा या सेवाएं देता है, तो वह व्यक्ति बाद में यह कहकर अपनी देनदारी से मुकर नहीं सकता कि वह वास्तव में भागीदार नहीं था।

    2. भागीदार की मृत्यु के बाद व्यवसाय जारी रखना (Continuation of Business After Partner's Death): जहां किसी भागीदार की मृत्यु के बाद व्यवसाय पुराने फर्म के नाम पर जारी रहता है, तो उस नाम या मृतक भागीदार के नाम का एक हिस्से के रूप में निरंतर उपयोग (Continued Use) अपने आप उसके कानूनी प्रतिनिधि (Legal Representative) या उसकी संपत्ति (Estate) को उसकी मृत्यु के बाद फर्म द्वारा किए गए किसी भी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं बनाता है। यह प्रावधान मृतक भागीदार के वारिसों (Heirs) को अनिश्चित देनदारी से बचाता है यदि वे व्यवसाय में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होते हैं।

    भागीदार के हित के हस्तांतरिती के अधिकार (Rights of Transferee of a Partner's Interest)

    धारा 29 (Section 29) एक भागीदार के हित को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित (Transfer) करने पर उत्पन्न होने वाले अधिकारों को नियंत्रित करती है:

    1. फर्म के जारी रहने के दौरान अधिकार (Rights During Continuance of the Firm): एक भागीदार द्वारा फर्म में अपने हित का पूर्ण (Absolute) रूप से या बंधक (Mortgage) द्वारा हस्तांतरण, या उस हित पर उसके द्वारा प्रभार (Charge) का निर्माण करने से हस्तांतरिती (Transferee) को फर्म के जारी रहने के दौरान व्यवसाय के संचालन में हस्तक्षेप (Interfere) करने, या खातों की मांग करने (Require Accounts), या फर्म की पुस्तकों का निरीक्षण करने (Inspect the Books) का अधिकार नहीं मिलता है।

    हस्तांतरिती को केवल हस्तांतरण करने वाले भागीदार के लाभ के हिस्से (Share of Profits) को प्राप्त करने का अधिकार मिलता है, और हस्तांतरिती भागीदारों द्वारा सहमत लाभ के खाते (Account of Profits) को स्वीकार करेगा। इसका मतलब है कि एक भागीदार अपना वित्तीय हित तो किसी और को दे सकता है, लेकिन उस व्यक्ति को फर्म के प्रबंधन में शामिल होने का अधिकार नहीं मिलता है, जब तक कि वह पूर्ण भागीदार न बन जाए।

    2. फर्म के विघटन या भागीदार के बाहर निकलने पर अधिकार (Rights on Dissolution of Firm or Partner Ceasing to be a Partner): यदि फर्म का विघटन (Dissolution) हो जाता है या यदि हस्तांतरण करने वाला भागीदार भागीदार नहीं रहता है, तो हस्तांतरिती को शेष भागीदारों से फर्म की संपत्ति (Assets of the Firm) के उस हिस्से को प्राप्त करने का अधिकार होता है जिसके लिए हस्तांतरण करने वाला भागीदार हकदार था।

    उस हिस्से का पता लगाने के उद्देश्य से, उसे विघटन की तारीख से खाते (Account) का अधिकार होता है। यह सुनिश्चित करता है कि हस्तांतरिती को फर्म में उसके वित्तीय निवेश का उचित हिस्सा मिले जब भागीदारी समाप्त हो जाए या संबंधित भागीदार बाहर निकल जाए।

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