राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 230–233: चल व अचल संपत्ति की जब्ती और जब्ती के बाद बिक्री का न्यायसंगत ढांचा
Himanshu Mishra
23 Jun 2025 5:23 PM IST

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम में धाराएं 230 से 233 तक की व्यवस्थाएँ राजस्व वसूली की अंतर्निहित प्रक्रिया को गहरी, न्यायसंगत और स्पष्ट बनाती हैं। इन धाराओं के उद्देश्य डिफॉल्टर की संपत्ति को जब्त करना है लेकिन सरकारी वसूली करते समय इनकी रक्षा करना भी है कि धार्मिक या सामाजिक उपयोग में रखी गई संपत्ति को अतिक्रमण नहीं हो। आइए इसे सरल हिंदी में, उदाहरणों के साथ समझते हैं।
धारा 230 – चल संपत्ति की जब्ती और बिक्री (Attachment and Sale of Movable Property)
इस धारा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति राजस्व या किराया नहीं देता (यानी डिफॉल्टर है), तो कलेक्टर उसे नोटिस देकर उसकी चल संपत्ति को जब्त करा सकता है। 'चल संपत्ति' में ट्रैक्टर, पशु, कृषि उपकरण, घरेलू सामान इत्यादि आते हैं।
जब्ती के बाद उन समान को बेचने की प्रक्रिया वही रहेगी जो सिविल कोर्ट की देयता के तहत चल संपत्ति बेचने की होती है—つまり सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अंतर्गत। विशेष रूप से, धार्मिक उपयोग के लिए रखी गई अनुष्ठानिक वस्तुओं (चित्र, मूर्ति, पूजन सामग्री आदि) को जब्ती और बिक्री से मुक्त रखा गया है।
बिक्री और जब्ती का खर्च राजस्व बकाए में जोड़कर वसूला जाएगा। इसका उद्देश्य पारदर्शी और व्यवस्थित तरीके से रिकॉर्डेड तरीके से राजस्व वसूली सुनिश्चित करना है।
उदाहरण: यदि राम ने ₹2,000 का राजस्व बकाया रखा है और उसके ट्रैक्टर और कृषि मिक्चरॉक्टर पर जब्ती लगती है, तो उन उपकरणों को सिविल कोर्ट की प्रक्रिया अनुसार नीलामी के माध्यम से बेचा जाएगा। यदि उस ट्रैक्टर की बिक्री से मिलने वाली राशि ₹3,000 होती है, उसमें से ₹2,000 राजस्व में जुड़ जाएगा और शेष ₹1,000 डिफॉल्टर को देय होगा।
धारा 231 – अचल संपत्ति की जब्ती (Attachment of the Land)
यह धारा स्पष्ट रूप से बताती है कि ट्रैक्टर या अन्य उपकरण के स्थान पर, डिफॉल्टर की भूमि भी सरकार द्वारा जब्त की जा सकती है। यदि किसी जमीन के हिस्से, पट्टी या सम्पूर्ण भूखंड पर राजस्व बकाया हो, कलेक्टर उसे जब्त कर सकता है। जब जब्ती समाप्त होती है, तब:
1. राजस्व बकाया चुकता कर दिया जाता है,
2. शेष राशि डिफॉल्टर के पास लौटाई जाती है,
3. कब्जा मुक्त होता है और वह जमीन वापस मालिक के नाम दर्ज हो जाती है।
इस कार्यप्रणाली से सुनिश्चित होता है कि सरकारी वसूली बेहतर ढंग से हो और डिफॉल्टर को भी उचित लाभ मिले।
उदाहरण: मोहन के नाम ₹5,000 का राजस्व बकाया था और उसकी 5 बीघा जमीन शामिल है। कलेक्टर उसे जब्त करता है, ₹5,000 चुकाने पर जब्ती समाप्त होती है, और जमीन मोहन को वापस दी जाती है। अगर ₹6,000 का कृषि उपज था, तो ₹1,000 अतिरिक्त राशि मोहन को मिलती है।
धारा 232 – जब्ती के बाद प्रबंधन – अधिकार व बाध्यताएँ (Powers and Obligations of Manager)
जब अचल संपत्ति (भूमि) को जब्त किया जाता है, तो कलेक्टर वह जमीन अपने नियंत्रण और देखरेख में रखता है। फिर वह ज़मीन से मिलने वाले सभी राजस्व और लाभ – जैसे फल, किराया, उपज – को ले सकता है।
कोई तब तब तक लगान देने से छूट नहीं मिलती है जब तक की राजस्व पूरी तरह से वसूला न जाए। भूमि का उपयोग करने वाले किराएदारों पर पुराने अनुबंध प्रभावी रहेगा, और उन्हें उसी अवधि तक उपयोग करने की अनुमति होगी।
कलेक्टर यह सुनिश्चित करेगा कि राजस्व, किराया, जब्ती व प्रबंधन खर्च पहले वसूले जाएं और बचा हुआ धन डिफॉल्टर को दिया जाए।
उदाहरण: यदि विजय की जमीन जब्त कर ली गई है, लेकिन गांव के दो किराएदार उस पर खेती कर रहें हैं, कलेक्टर उनकी उपज से प्राप्त राजस्व का हिसाब रखेगा और जितना लगान बकाया था उतना उससे वसूलने के बाद बची राशि विजय को लौटाएगा।
धारा 233 – जब्ती की घोषणा (Proclamation of Attachment)
जब कलेक्टर भूमि या संपत्ति जब्त करता है, वह उस मामले की घोषणा (proclamation) जारी करता है। इसमें स्पष्ट लिखा होता है कि संपत्ति कब और क्यों जब्त की गई, और किस अवधि तक। इसी घोषणा के बाद, यदि किसी पक्षकार ने उस समय के दौरान किसी तीसरे व्यक्ति को जमीन का किराया या उपज दी, तो वह भुगतान कलेक्टर करने का उत्तरदायित्व मना सकता है।
इसी तरह, जैसे—जब विजय की जमीन पर जब्ती की घोषणा की गई, और किसी अन्य ने घोषणा के बाद दिलचस्पी रखी, तो वह भवन या जमीन का उपयोग कर रहा था, उसे सरकारी विज्ञापन के बाद मिली संपत्ति वृद्ध राशि सरकार को देनी होगी, न कि उस व्यक्ति को।
धाराएं 230 से 233 कई महत्वपूर्ण संबोधनों से होकर गुजरती हैं:
• राजस्व वसूली की प्रक्रिया का सकारात्मक रूप, जिससेेश्विक शक्तियों के दुरुपयोग से बचाव होता है।
• धार्मिक उपयोगों की रक्षा, जिससे साधु-संतों, पूजा स्थलों और अनुष्ठानों को सम्मान मिलता है।
• जब्ती के बाद भूमि का उपयोग और राजस्व अर्जन का जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन।
• भूमि जब्ती की पूरी पारदर्शी घोषणा, जिससे गलतफहमी और वादविवाद को रोका जा सके।
इन धाराओं का सम्मिलित ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि राजस्थान की भूमि–निगम व्यवस्था पारदर्शी, न्यायसंगत, सही प्रक्रिया वाला तथा भूमि की सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक गरिमा का सम्मान करता हो।