राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 225–229A: राजस्व की जिम्मेदारी, बकाया वसूली और किश्तों के माध्यम से पुनर्भुगतान
Himanshu Mishra
21 Jun 2025 11:52 PM IST

धारा 225 — सभी धारकों की संयुक्त और व्यक्तिगत जिम्मेदारी
इस धारा के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि संपत्ति के सभी धारक (holders) या सह स्वामी (co sharers) उस भूमि पर सरकारी लगान (rent) के लिए संयुक्त एवं व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होते हैं। इसका अर्थ है कि किसी एक हिस्सेदार का बकाया चुकाया न जाने पर सरकार पूरे बकाए की वसूली किसी भी भागीदार से कर सकती है।
उसी तरह, किसी कार्यकारी क्षेत्र (holding) के सभी किराएदार (tenants) एवं सह किराएदार (co tenants) भी संयुक्त व्यक्ति की तरह जिम्मेदारी स्वीकारते हैं। यहां तक कि जो व्यक्ति उस संपत्ति के कब्जे में प्रवेश करता है, वह भी उस समय तक के राजस्व और किराये का देनदार होगा। इसमें 'holder' में न केवल जमीन का मालिक बल्कि बंधकधारक (mortgagee) और पट्टाधारी (lessee) भी शामिल है।
उदाहरण: राम और श्याम ने बराबर हिस्सेदारी में भूमि खरीदी हुई है। अगर राम सरकार को ₹10,000 का बकाया है और श्याम चुका देता है, तो सरकार दोनों में से किसी एक से पूरी राशि की वसूली कर सकती है।
धारा 226 — बकाया और डिफाल्टरों की स्थिति में नियम
हर लगान या किराया निर्धारित किश्तों (instalments), समय, स्थान और व्यक्ति को भुगतान किया जाना आवश्यक है, जैसा कि नियमों में वर्णित हो। जिन्हें यह राशि समय पर नहीं चुकाते, उन्हें 'defaulters' कहा जाता है और वे सरकारी राजस्व के बकाये का हिस्सा बनते हैं। फिलहाल, राज्य सरकार के निर्देश तक, यह राशि पटवारी के माध्यम से ही जमा की जाती है।
उदाहरण: यदि सालाना ₹12,000 का राजस्व मार्च और सितंबर में दो किश्तों में देना तय किया गया, पर किश्त न दी गई, तो वह किश्त राज्य का बकाया बन जाएगी।
धारा 227 — तहसीलदार द्वारा प्रमाणित खाता रहितोबिलकूल धरेगा
राजस्व के बकाये का विवरण तहसीलदार द्वारा प्रमाणित खाता¬पुस्तक (statement of account) को मान्य क़िया जाएगा, जिसमें बकाया राशि, देनदार का नाम स्पष्ट रूप से होगा। यह खाता न्यायालय में भी बाध्यकारी सबूत माना जाएगा। फिर भी, यदि देनदार किसी गलती का दावा करना चाहता है, तो वह भुगतान विरोध के साथ जमा कर सकता है और कलेक्टर के समक्ष अलग से अपील कर सकता है।
उदाहरण: यदि खाता बताता है कि श्याम ने ₹8,000 के राजस्व की बकाया ली है, तो यह फिर भी विवादित हो सकता है यदि श्याम इसका भुगतान प्रोटेस्ट देकर करे और तहसील कार्यालय में आपत्ति दर्ज करवाए।
धारा 228 — बकाया वसूली की विधियाँ
राजस्व या किराये की बकाया राशि को चुकाने के लिए सरकार निम्नलिखित विधियों का उपयोग कर सकती है:
1. 'Writ of Demand' या 'Citation' जारी कर देना।
2. डिफॉल्टर की चल संपत्ति को जब्त कर बेच देना।
3. प्रभावित हिस्सेदारी या पटी (share/patti) की जब्ती।
4. उस हिस्सेदारी को solvent सह स्वामी को हस्तांतरित करना।
5. डिफॉल्टर की अन्य अचल संपत्ति की बिक्री (परंतु जगीर अथवा लैंडओनर की संपत्तियों पर लागू नहीं)।
इनमें से कोई भी विकल्प अपनाया जा सकता है।
उदाहरण: अगर राम ₹2,000 का बकाया है और चल संपत्ति में ट्रैक्टर है, तो सरकार उसे जब्त कर सकती है।
धारा 229 — वाजिब दावा एवं उपस्थित रहने का आदेश
यदि राजस्व या किराया बकाया हो, तो लिखित तरीके से डिफॉल्टर को भुगतान करने या बकाया राशि जमा करने का समय देकर बुलाया जाता है। इसे 'Writ of Demand' या 'Citation' कहते हैं, जिसमें आमंत्रित व्यक्ति को एक निश्चित समय सीमा दी जाती है।
धारा 229A — कठोर परिस्थिति में किश्तों का प्रावधान
इस धारा के अनुसार कलेक्टर निम्न शर्तों में किश्तों में भुगतान की सुविधा दे सकता है:
• वास्तविक कठिनाई (genuine hardship) की स्थिति हो।
• किराया या राजस्व का 'Writ of Demand' या 'Citation' जारी हो चुका हो।
• किश्तों की कुल अवधि 3 वर्षों से अधिक न हो।
• निर्धारित ब्याज सहित किश्तें हों। यदि कोई किश्त डिफॉल्ट होती है, तो शेष राशि और ब्याज तुरंत देय होता है।
• भूमि जब्त की प्रक्रिया तब तक चालू रहेगी, जब तक पूरी राशि और ब्याज चुक नहीं गया हो।
यह व्यवस्था गरीब या संकटग्रस्त किसानों को राहत देती है।
धाराएं 225–229A एक साथ मिलकर राजस्व वसूली की प्रणाली को न्यायसंगत, मजबूत और व्यवहारिक बनाती हैं।
इनका महत्व निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
• संयुक्त जिम्मेदारी: संपत्तिको लेकर विवादों से बचने में मददगार।
• नियम की स्पष्टता: किश्तों, जगह, समय और व्यक्ति की जानकारी।
• पाञ्चायती रिपोर्ट: तहसीलदार द्वारा प्रमाणित खाता बकाया को सबूत बनाने योग्य।
• वसूली की कई प्राथमिक विधियां: चल संपत्ति से लेकर न्यायिक प्रक्रिया तक विकल्प।
• कठिन परिस्थितियों में राहत: किश्तों की सुविधा।
• कानूनी बाध्यता: आदेश अपरिवर्तनीय और न्यायालय द्वारा चुनौती रहित।
ये सभी प्रावधान ग्रामीण भू-प्रबंधन को सुव्यवस्थित, पारदर्शी और किसान हितैषी बनाते हुए सामाजिक और आर्थिक संतुलन बनाए रखते हैं।