राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 221 से 224: कम मूल्यांकित सम्पत्ति से अधिक मूल्यांकित सम्पत्ति को भुगतान

Himanshu Mishra

20 Jun 2025 4:46 PM IST

  • राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 221 से 224: कम मूल्यांकित सम्पत्ति से अधिक मूल्यांकित सम्पत्ति को भुगतान

    धारा 221 – कम मूल्यांकित सम्पत्ति से अधिक मूल्यांकित सम्पत्ति को भुगतान (Under-Assessed Estates to Refund to Over-Assessed Estates)

    धारा 221 का उद्देश्य विभाजन की प्रक्रिया में हुए राजस्व मूल्यांकन की गलतियों को ठीक करना है। यदि विभाजन के बाद यह पाया जाता है कि किसी संपत्ति का मूल्यांकन कम हो गया था (अर्थात कम लगान निर्धारित हुआ) और किसी अन्य संपत्ति पर अधिक लगान लग गया था, तो अधिक लाभ में रहने वाले संपत्ति स्वामी से तीन वर्षों तक प्रतिवर्ष उस राशि की भरपाई करवाई जा सकती है जितनी राशि से उसका मूल्यांकन कम हुआ था।

    यह आदेश राजस्व बोर्ड द्वारा पारित किया जा सकता है और यह स्पष्ट किया गया है कि यह आदेश किसी भी सिविल या राजस्व न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। यदि कोई स्वामी भुगतान नहीं करता, तो यह राशि बकाया लगान के रूप में वसूली जाएगी और उस संपत्ति स्वामी को दे दी जाएगी जिसकी संपत्ति अधिक मूल्यांकित पाई गई थी।

    उदाहरण: मान लीजिए कि राम की भूमि ₹10,000 प्रतिवर्ष के हिसाब से मूल्यांकित होनी चाहिए थी लेकिन गलती से ₹6,000 ही लगान लगा। और श्याम की भूमि ₹10,000 होनी चाहिए थी पर ₹14,000 मूल्यांकित हो गई। बोर्ड यह तय कर सकता है कि राम हर वर्ष ₹4,000 श्याम को तीन वर्षों तक देगा।

    धारा 222 – एक ही गांव की संपत्तियों का समेकन (Consolidation of Estates Forming Part of the Same Village)

    धारा 222 उस स्थिति के लिए है जब एक ही गांव की दो या अधिक संपत्तियाँ अलग अलग खातों में दर्ज हैं और उनके मालिक इन्हें एक साथ मिलाकर एक ही संपत्ति बनाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में संबंधित संपत्ति धारक कलेक्टर के पास आवेदन कर सकते हैं।

    कलेक्टर चाहे तो इस अनुरोध को स्वीकार कर सकता है। यदि वह स्वीकृति देता है, तो वह संबंधित रजिस्टरों में सुधार करता है और उन संपत्तियों को एकीकृत संपत्ति के रूप में दर्ज करता है।

    इससे प्रशासनिक कार्य आसान हो जाता है, और राजस्व निर्धारण भी सरल हो जाता है। इसका लाभ विशेष रूप से तब होता है जब एक ही व्यक्ति के नाम पर अलग अलग हिस्से हों।

    उदाहरण: अगर हरिशंकर के नाम पर गांव X में 3 संपत्तियाँ हैं – एक 10 बीघा, दूसरी 5 बीघा, और तीसरी 3 बीघा – तो वह आवेदन देकर इन्हें एक 18 बीघा की संयुक्त संपत्ति के रूप में समेकित करवा सकते हैं।

    धारा 223 – सरकार और भू स्वामी के बीच विभाजन पर अध्याय लागू नहीं होगा (Chapter Not to Apply to Division Between Government and Estate Holder)

    धारा 223 के अनुसार, जब कोई संपत्ति सरकार और किसी अन्य भू स्वामी के बीच विभाजित की जानी हो, तो इस अधिनियम के सामान्य विभाजन संबंधी प्रावधान (धारा 188 से 222) लागू नहीं होंगे।

    ऐसी स्थिति में विभाजन केवल कलेक्टर द्वारा किया जाएगा और कलेक्टर का प्रस्ताव, अंतिम रूप से राज्य सरकार की अनुमति से ही प्रभाव में आएगा। यह प्रक्रिया उन नियमों के अनुसार होगी जिन्हें राज्य सरकार ने विशेष रूप से ऐसे मामलों के लिए बनाया हो।

    इस धारा का महत्व इसलिए है क्योंकि जब राज्य सरकार किसी जमीन की हिस्सेदारी में होती है – जैसे पट्टे या अधिग्रहण के मामलों में – तब एक स्वतंत्र और विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है।

    उदाहरण: मान लीजिए किसी गांव की 100 बीघा जमीन में से 30 बीघा पर सरकार का दावा है और 70 बीघा किसी पूर्वज के नाम पर है। ऐसे में सामान्य सह स्वामी जैसा विभाजन न होकर, कलेक्टर और सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार अलग तरीका अपनाया जाएगा।

    धारा 224 – भूमि और उसकी उपज पर लगान का प्रथम प्रभार (Revenue, a First Charge on Land and Its Produce)

    धारा 224 भूमि पर सरकार के राजस्व अधिकार को सर्वोपरि मानती है। इसके तहत किसी भी भूमि या उसकी उपज (जैसे अनाज, फल, लकड़ी आदि) पर सबसे पहले सरकारी लगान का अधिकार होगा। यह प्राथमिक अधिकार कहलाता है।

    इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भूमि की आय या उपज का कोई भी उपयोग या उसकी वसूली किसी सिविल कोर्ट के आदेश या ऋण चुकाने के लिए तब तक नहीं की जा सकती जब तक उस भूमि पर बकाया लगान या किराया चुकाया नहीं गया हो।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी राजस्व पहले वसूल हो और भूमि के स्वामी या कृषक की ओर से कोई देनदारी पूरी करने से पहले सरकारी हितों की रक्षा हो।

    उदाहरण: अगर एक कृषक के पास ₹50,000 की गेहूं की फसल है और उस पर ₹5,000 का लगान बकाया है, तो वह उस फसल की बिक्री से पहले ₹5,000 सरकार को देगा। यदि वह ₹30,000 किसी उधारकर्ता को देने वाला हो, तो पहले लगान चुकाया जाएगा और बाद में अन्य भुगतान होंगे।

    समग्र निष्कर्ष

    धाराएं 221 से 224 तक राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत विभाजन और राजस्व निर्धारण की संवेदनशीलताओं का समाधान करती हैं। धारा 221 में न्यायिक तरीके से त्रुटिपूर्ण विभाजनों का सुधार सुनिश्चित किया गया है, ताकि कोई भू स्वामी नुकसान न उठाए और दोषी को अपने लाभ का मुआवजा देना पड़े।

    धारा 222 प्रगतिशील है, जो एक ही गांव की विभाजित संपत्तियों को समेकित करके प्रशासनिक और आर्थिक प्रक्रिया को सरल बनाती है। यह राजस्व संग्रहण के दृष्टिकोण से भी फायदेमंद है।

    धारा 223 सरकार और निजी स्वामी के बीच विभाजन को सामान्य प्रक्रियाओं से बाहर रखकर यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी हिस्सेदारी के मामलों में राज्य के हित संरक्षित रहें।

    धारा 224 एक मौलिक सिद्धांत को मान्यता देती है कि सरकार को लगान वसूलने का पहला अधिकार है। यह प्रावधान किसानों को आगाह करता है कि वे किसी भी तरह की कानूनी कार्यवाही से पहले लगान का भुगतान अवश्य करें, अन्यथा उनकी उपज पर भी सरकारी दावा रहेगा।

    इन प्रावधानों से स्पष्ट होता है कि राजस्थान सरकार ने भूमि स्वामित्व, विभाजन और लगान से जुड़ी जटिलताओं को समझते हुए एक न्यायोचित, पारदर्शी और संरचनात्मक कानून बनाया है, जो भूमि संबंधों की मजबूती और प्रशासनिक सुगमता सुनिश्चित करता है।

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