राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 211 से 216: संपत्ति विभाजन के विशेष प्रावधान, साझा संरचना और राजस्व वितरण

Himanshu Mishra

18 Jun 2025 4:50 PM IST

  • राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 211 से 216: संपत्ति विभाजन के विशेष प्रावधान, साझा संरचना और राजस्व वितरण

    धारा 211 – एक सह स्वामी के हिस्से में दूसरे द्वारा बनाई गई इमारतों, बागों या बगीचों का न्यायसंगत पुनर्वितरण

    जब संपत्ति का विभाजन किया जा रहा हो, और किसी सह स्वामी के हिस्से में ऐसी जमीन आ रही हो जिस पर दूसरे सह स्वामी ने अपना आवास, भवन, बगीचे, वृक्षारोपण या अन्य सुधार अपने खर्च पर किया है, तो उस सुधारकर्ता को उस जमीन का अधिकार बना रहने दिया जाएगा। हालाँकि वह जमीन दूसरे सह स्वामी के हिस्से में आती है, लेकिन उसे कुछ स्थायी किराया देना होगा जिसे 'ग्राउंड रेंट' कहते हैं।

    इसमें कलेक्टर ही तय करेगा कि वह किराया कितना हो और कितनी जमीन के लिए। आम तौर पर किराया उचित और न्यायपूर्ण रखा जाएगा। साथ ही वह सड़क मार्ग या सार्वजनिक रास्ता सुनिश्चित करेगा ताकी सुधारकर्ता का घर बार सार्वजनिक मार्ग से जुड़ा रहे और उस तक पहुंच बनी रहे।

    उदाहरण: मान लीजिए श्याम ने चार बीघा जमीन पर घर, बगीचा और नलकूप लगाया है, और विभाजन में वह जमीन रमेश के हिस्से में आ रही है। अधिनियम के तहत श्याम घर बार और बगीचा बनाए रख सकता है, लेकिन रमेश से वह जमीन के लिए उचित किराया कलेक्टर द्वारा निर्धारित किया जाएगा। साथ ही श्याम को रास्ता भी मिलेगा।

    धारा 212 – टैंकों, कुओं, नहरों और बांधों का बंटवारा

    पानी से जुड़े ढांचे जैसे टैंक, नहर, कुएं और बांध, उन भूमि के लिए जुड़े माने जाते हैं जिनके लाभार्थ समुदा उन्हें बनाए गए थे। यदि विभाजन के बाद ये संरचनाएं दो या अधिक हिस्सेदारों की साझा संपत्ति बनी रहती हैं, तो कलेक्टर यह तय करेगा:

    पहला, कौन कौन कौन से हिस्सेदार उस जल स्रोत का उपयोग करेंगे।

    दूसरा, रख रखाव और मरम्मत का खर्च किस किस हिस्सेदार द्वारा कितनी हिस्सेदारी में वहन किया जाएगा।

    तीसरा, यदि पानी बिक्री या अन्य उपयोग से आमदनी होती है, तो वह लाभ किस किस हिस्सेदार के बीच किस अनुपात में विभाजित होगी।

    इससे यह सुनिश्चित होता है कि सामान्य संसाधनों का समुचित और संतुलित उपयोग हो सके।

    उदाहरण: अगर तीन भाइयों की पड़ी जमीन में एक पुराना टैंक है, तो यह तय किया जाएगा कि वह टैंक किस हिस्से तक पानी देगा, उसकी सफाई पर खर्च किसका रहेगा और उसमें से जमा पानी का लाभ किस किस रुपये किस अनुपात में मिलेगा।

    धारा 213 – पूजा स्थल और अंतिम संस्कार स्थलों का सामान्य स्वामित्व

    जो पूजा स्थाल, मंदिर, मस्जिद, कब्रिस्तान या श्मशान पहले से सभी सह स्वामी साझा उपयोग में रखते हों, उन्हें विभाजन के बाद भी उसी तरह साझा रखना होगा, जब तक कि सभी सह स्वामी अन्यथा सहमत न हों।

    यदि सभी मिलकर प्राथमिक रूप से यह तय करें कि वह संरचना अलग अलग अधिकारों में विभाजित की जाए, तब उस समझौते को ओहदा खताब (Record) में संलग्न कर दिया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होता है कि धार्मिक और सामाजिक उपयोग की सामूहिक संरचनाएं सभी के लिए बनी रहें और उनका कानूनी अभिलेख सुरक्षित रहे।

    उदाहरण: यदि एक गांव में चार भाइयों द्वारा साझेदारी में एक मंदिर और कब्रिस्तान था, तो विभाजन के बाद भी वे सभी मिलकर इसका स्वामित्व बनाए रखेंगे। यदि वे झांके कि किसी धर्म संस्था को अलग करना है, तो वह निर्णय एक दस्तावेज में दर्ज होगा।

    धारा 214 – अनियमित भूखंड वितरण एक कारण हो सकता है या नहीं

    विभाजन के समय प्रत्येक हिस्से को यथासंभव एक ठोस और सुदृढ़ भूखंड के रूप में वितरित करना होता है ताकि मालिक उचित रूप से संपत्ति का उपयोग कर सके।

    हालांकि, यदि भूखंड पूरी तरह से सुसंगत न हो (यानि उसमें छेद छलन, छोटे टुकड़े रह जाएं), तब भी विभाजन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता अगर उच्च न्यायाधिकरण (Board) की मंजूरी हो। यानी क्षुद्रावस्था (incompactness) एकमात्र कारण नहीं होना चाहिए विभाजन को टालने के लिए।

    उदाहरण: 50 बीघा कृषि भूमि को 3 हिस्सों में बांटना है ऐसी प्रक्रिया में कुछ हिस्सों में खंड खंड रूपें हो सकते हैं, लेकिन यदि यह 'बोर्ड' द्वारा स्वीकार्य है, तो विभाजन वैध माना जाएगा।

    धारा 215 – विभाजन के साथ राजस्व बंटवारा प्रक्रिया

    चाहे विभाजन समझौते, मध्यस्थता या कलेक्टर द्वारा हो, धारा 215 यह सुनिश्चित करती है कि तैयार भूखंडों के बीच राजस्व का वितरण भी उसी तर्ज पर हो जिस रूप में भूमि विभाजित की गई।

    जब लॉट स्वीकार हो जाते हैं, तो कलेक्टर तय करेगा कि हर भूखंड का राजस्व कितना है और यदि किसी भूखंड में多个 हिस्सेदार हों, तो प्रत्येक के राजस्व की जिम्मेदारी भी तय करेगा।

    उदाहरण: 3 हिस्सों में विभाजित 60 बीघा भूमि में पहला हिस्से में 20 बीघा, दूसरा 25 बीघा और तीसरा 15 बीघा है। कलेक्टर राजस्व अनुपात में बांटेगा: जैसे अगर कुल राजस्व ₹60,000 है, तो पहला हिस्सेदार ₹20,000, दूसरा ₹25,000, तीसरा ₹15,000 का बंटवारा करता है।

    धारा 211 से 215 के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि संपत्ति विभाजन केस जीवंत रहकर केवल भूमि के टुकड़े बांटने की प्रक्रिया न रह जाए, बल्कि उसमें शामिल ढांचों, संसाधनों, धार्मिक सांस्कृतिक सार्वजनिक उपयोग आदि का न्यायपूर्ण स्वामित्व और अभिलेख बना रह सके। साथ ही, कानूनी रूपों में अपरिहार्य विसंगति या आवश्यकताओं के कारण विभाजन को टाले बिना उसे सुलझाकर भूमि को एक संरचित, न्यायपूर्ण और राजस्व सक्षम प्रक्रिया के तहत बाँटा जाए।

    इस संपूर्ण विधिक व्यवस्था से यह स्पष्ट होता है कि कानून केवल अतिक्रमण रोकने या विवाद निवारण तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक संरचना को ध्यान में रख कर ग्रामीण और नगरीय दोनों ही संदर्भों में न्याय और उपयोग में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है।

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